दिल्ली हाईकोर्ट ने मेधा पाटकर की मानहानि याचिका में ट्रायल कोर्ट को सुनवाई टालने का निर्देश दिया
Amir Ahmad
16 April 2025 7:34 AM

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता और सोशल एक्टिविस्ट मेधा पाटकर द्वारा दिल्ली के उपराज्यपाल (Delhi LG) वी.के. सक्सेना के खिलाफ दायर मानहानि मामले में ट्रायल कोर्ट को सुनवाई स्थगित करने का निर्देश दिया।
जस्टिस शालिंदर कौर ने ट्रायल कोर्ट को आदेश दिया कि वह इस मामले की अगली सुनवाई 20 मई के बाद तय करे। हाईकोर्ट में पाटकर ने याचिका दायर कर ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उनके द्वारा अतिरिक्त गवाह को पेश करने की अनुमति संबंधी अर्जी को खारिज कर दिया गया।
गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने इस याचिका पर 27 मार्च को नोटिस जारी किया और अगली सुनवाई 20 मई को तय की। कोर्ट को जानकारी दी गई कि ट्रायल कोर्ट ने 28 मार्च को इस मामले में अंतिम बहस के लिए 19 अप्रैल की तारीख तय कर दी। पाटकर की ओर से कहा गया कि यदि ट्रायल कोर्ट में कार्यवाही आगे बढ़ती है तो हाईकोर्ट में लंबित याचिका निरर्थक हो जाएगी।
उधर Delhi LG वी.के. सक्सेना की ओर से कोर्ट को बताया गया कि अभी तक इस याचिका पर जवाब दाखिल नहीं किया गया।
इसके बाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया,
"उपरोक्त तथ्यों के मद्देनज़र ट्रायल कोर्ट को निर्देशित किया जाता है कि वह अगली तारीख हाईकोर्ट द्वारा दी गई तारीख 20 मई के बाद तय करे। याचिका निस्तारित की जाती है।"
मेधा पाटकर ने ट्रायल कोर्ट के 18 मार्च के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उनके गवाह को पेश करने का आवेदन खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह मुकदमे को जानबूझकर लंबा खींचने की कोशिश है, न कि कोई वास्तविक जरूरत हैं।
गौरतलब है कि 2000 में जब सक्सेना अहमदाबाद स्थित एनजीओ 'काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज' के प्रमुख थे, तब उन्होंने पाटकर और नर्मदा बचाओ आंदोलन के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित किए, जिसके बाद पाटकर ने उनके खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज कराया।
इसके जवाब में वी.के. सक्सेना ने भी पाटकर के खिलाफ 25 नवंबर 2000 की प्रेस रिलीज देशभक्त का असली चेहरा को लेकर मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया, जिसमें पाटकर ने कथित रूप से सक्सेना को 'कायर' और 'देशभक्त नहीं' कहा था। इस मामले में पाटकर को दोषी ठहराया गया> हालांकि उन्हें एक साल की प्रोबेशन पर रिहा कर दिया गया। इस सजा के खिलाफ पाटकर की याचिका भी जस्टिस कौर के समक्ष लंबित है।
अपनी मानहानि याचिका के संदर्भ में पाटकर ने नया गवाह पेश करने की अनुमति मांगी थी। उन्होंने दलील दी थी कि वह CrPC की धारा 254(1) के तहत किसी भी गवाह को बुलाकर अपना पक्ष साबित कर सकती हैं और ऐसा करने पर कोई कानूनी रोक नहीं है।
वहीं ट्रायल कोर्ट ने यह कहते हुए उनकी अर्जी खारिज कर दी कि यह मामला 24 साल से लंबित है और पाटकर अपने सभी मूल गवाहों की पहले ही गवाही करा चुकी हैं। कोर्ट ने कहा था कि पाटकर ने यह नहीं बताया कि उन्हें इस गवाह के बारे में कब, कैसे और किन परिस्थितियों में जानकारी मिली जिससे उनके आवेदन की विश्वसनीयता कमजोर होती है।
केस टाइटल: Medha Patkar v. LG Saxena