UP Revenue Code | सह-भूमिधर संयुक्त स्वामित्व के कानूनी बंटवारे के बाद ही अपने हिस्से के लिए भूमि उपयोग परिवर्तन की मांग कर सकते हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Shahadat
19 April 2025 2:26 PM

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 80(1) या 80(2) के तहत गैर-कृषि भूमि उपयोग घोषणा का यह अर्थ नहीं है कि भूमि का सह-भूमिधरों के बीच बंटवारा हो चुका है।
अधिनियम की धारा 80 (4) की व्याख्या करते हुए जस्टिस डॉ. योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव और जस्टिस शेखर बी. सराफ की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि अगर सह-भूमिधरों में से कोई एक संयुक्त स्वामित्व वाली भूमि के गैर-कृषि उपयोग के लिए आवेदन करना चाहता है तो या तो सभी सह-भूमिधरों को एक साथ आवेदन करना होगा, या अगर सह-भूमिधरों में से कोई एक ही अपने हिस्से के लिए आवेदन कर रहा है, तो संबंधित भूमि का बंटवारा संहिता, 2006 की धारा 116 और संबंधित नियमों के प्रावधानों के अनुसार पहले ही हो चुका होगा।
खंडपीठ ने कहा,
“संयुक्त हित के साथ भूमि में अपना हिस्सा रखने वाले सह-भूमिधर के कहने पर [धारा 80 (1) संहिता 2006 के तहत] आवेदन करने से पहले कानून के प्रावधानों के अनुसार संबंधित भूमि में सह-भूमिधरों के शेयरों का निर्धारण करना होगा। इसका मतलब यह होगा कि भूमिधरी भूमि में अविभाजित हित रखने वाले किसी भी सह-भूमिधर के कहने पर उप-धारा (1) या उप-धारा (2) के तहत घोषणा के लिए आवेदन केवल आवश्यक पूर्व-शर्त की पूर्ति पर ही बनाए रखा जा सकेगा कि संबंधित भूमि को कानून के प्रावधानों के अनुसार विभाजित किया गया, यानी संहिता, 2006 की धारा 116 और संबंधित नियमों के तहत निहित प्रावधानों के अनुसार।”
खंडपीठ ने यह टिप्पणी भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BPCL) के पेट्रोल पंप डीलरशिप के लिए याचिकाकर्ताओं का आवेदन खारिज करने का फैसला बरकरार रखते हुए की।
BPCL ने अपने डीलर चयन दिशा-निर्देश, 2023 के आधार पर अपना निर्णय लिया, जिसमें कहा गया कि यदि प्रस्तावित भूमि दीर्घकालिक पट्टे पर है। विचाराधीन भूमि के कई मालिक हैं तो सभी सह-स्वामियों को पट्टा निष्पादित करना होगा। यदि ऐसा नहीं है तो पट्टा अमान्य माना जाएगा।
इस मामले में लीज डीड याचिकाकर्ताओं के पक्ष में विचाराधीन भूमि के केवल एक सह-स्वामी द्वारा निष्पादित किया गया, जबकि राजस्व अभिलेखों से पता चला कि उसी के चार अन्य सह-स्वामी है।
BPCL के निर्णय को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें तर्क दिया गया कि भूमि का विभाजन पहले ही 20 दिसंबर, 2019 के आदेश द्वारा किया जा चुका है, जिसमें सह-भूमिधर विजय सिंह (वह व्यक्ति जिसने उनके पक्ष में पट्टा विलेख निष्पादित किया) का हिस्सा घोषित किया गया।
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि 2006 संहिता की धारा 80 की उपधारा (4) के अनुसार, एक बार धारा 80 के तहत घोषणा किए जाने के बाद यह पूर्वधारणा होती है कि भूमि पहले ही कानून के अनुसार विभाजित या विभाजित हो चुकी है।
दूसरी ओर, प्रतिवादी नंबर 2 से 4 के वकील ने तर्क दिया कि 20 दिसंबर, 2019 का आदेश संहिता, 2006 की धारा 80(1) के तहत पारित किया गया, जो केवल भूमि के गैर-कृषि उपयोग की घोषणा करने से संबंधित है। इसे भूमि के विभाजन को प्रभावित करने वाले आदेश के रूप में नहीं समझा जा सकता।
इन प्रस्तुतियों को सुनने के बाद न्यायालय ने 2006 संहिता के वैधानिक ढांचे की जांच की और पाया कि धारा 80 की उपधारा (1) का दूसरा प्रावधान यह प्रावधान करता है कि भूमिधरी भूमि में अविभाजित हित रखने वाले किसी भी सह-भूमिधर द्वारा घोषणा के लिए प्रस्तुत कोई भी आवेदन तब तक स्वीकार्य नहीं होगा, जब तक कि सभी सह-भूमिधर आवेदन में शामिल न हो जाएं या उनके हितों को कानून के अनुसार विभाजित न कर दिया गया हो।
नियम 2016 के नियम 88 का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि ऐसी घोषणा के बाद भूमि राजस्व के बंटवारे के लिए सीमांकन की आवश्यकता होती है, जब घोषणा केवल जोत के एक हिस्से से संबंधित हो। न्यायालय ने बताया कि यह सीमांकन नियम 2016 के नियम 22 के तहत निर्धारित तरीके से किया जाना है, जो संहिता की धारा 24 के तहत सीमा विवादों के निपटारे से संबंधित है।
आगे यह भी उल्लेख किया गया कि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के आधार पर धारा 80 को पूरी तरह से प्रतिस्थापित कर दिया गया और अब धारा 80 की वर्तमान उपधारा (4) के अनुसार, अविभाजित हित वाले सह-भूमिधर द्वारा उपधारा (1) या (2) के तहत घोषणा के लिए आवेदन तब तक स्वीकार्य नहीं है, जब तक कि सभी सह-भूमिधर संयुक्त रूप से आवेदन न करें। प्रावधान में आगे कहा गया कि यदि केवल एक सह-भूमिधर संयुक्त हित वाली भूमि में अपने हिस्से के लिए घोषणा चाहता है तो ऐसे आवेदन पर तभी विचार किया जाएगा जब अन्य सह-भूमिधरों के हिस्से को संहिता की धारा 116 के अनुसार कानून के अनुसार विभाजित कर दिया जाएगा।
दूसरे शब्दों में, जैसा कि खंडपीठ ने स्पष्ट करते हुए कि धारा 80(1) या (2) के तहत एक आवेदन सह-भूमिधर (अपनी भूमि के हिस्से के संबंध में) द्वारा तभी रखा जा सकता है, जब उक्त भूमि को संहिता की धारा 116 और संबंधित नियमों के अनुसार पहले ही बंटवारा कर दिया गया हो।
अब चूंकि वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता ऐसा कोई दस्तावेज प्रस्तुत करने में विफल रहे, जो यह दर्शाता हो कि संपत्ति को संहिता की धारा 116 के तहत सभी सह-स्वामियों के बीच बंटवारा किया गया था। इसलिए न्यायालय ने आपत्तिजनक में कोई भौतिक त्रुटि या अवैधता नहीं पाते हुए याचिकाकर्ताओं की याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल- ईशान चौधरी और अन्य बनाम भारत संघ और 4 अन्य 2025 लाइव लॉ (एबी) 136