हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
12 Jan 2025 4:30 AM

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (06 जनवरी, 2025 से 10 जनवरी, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
कमर्शियल कोर्ट एक्ट 120 दिनों के बाद अतिरिक्त लिखित बयान दाखिल करने के लिए CPC के नियम 8 के आदेश की प्रयोज्यता को नहीं रोकता: दिल्ली हाईकोर्ट
कमर्शियल विवादों के संबंध में दिल्ली हाईकोर्ट ने पाया है कि कमर्शियल कोर्ट एक्ट 2015 लिखित बयान दाखिल करने के लिए 120 दिनों की समाप्ति के बाद अतिरिक्त लिखित बयान दाखिल करने के लिए सीपीसी के नियम 8 के आदेश को लागू करने से नहीं रोकता।
जस्टिस मिनी पुष्करणा ने कहा, "कमर्शियल कोर्ट एक्ट, 2015 में ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह सुझाव दे कि सीपीसी के नियम 9 के प्रावधान लिखित बयान दाखिल करने के लिए एक सौ बीस (120) दिनों की अवधि समाप्त होने के बाद कमर्शियल मुकदमों पर लागू नहीं होंगे। इसलिए वादी का यह तर्क कि अतिरिक्त लिखित बयान केवल एक सौ बीस (120) दिनों की वैधानिक सीमा के भीतर ही दाखिल किया जा सकता है, स्वीकार नहीं किया जा सकता।"
केस टाइटल: नोवार्टिस एजी एंड अन्य बनाम नैटको फार्मा लिमिटेड (सीएस(कॉम) 229/2019)
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वैध अभिभावक बच्चे को दूसरे पैरेंट की कस्टडी से ले लेता है तो इसे अपहरण नहीं माना जाएगा: तेलंगाना हाईकोर्ट
तेलंगाना हाईकोर्ट ने बुधवार (8 जनवरी) को दोहराया कि यदि कोई माता-पिता, जो बच्चे का वैध अभिभावक है, बच्चे को दूसरे माता-पिता की हिरासत से दूर ले जाता है, तो इसे अपहरण नहीं माना जाएगा और इसके लिए बीएनएस की धारा 137 (2) के तहत एफआईआर दर्ज करने की आवश्यकता नहीं है।
धारा 137 (2) बीएनएस में कहा गया है कि जो कोई भी भारत से या वैध अभिभावकत्व से किसी व्यक्ति का अपहरण करता है, उसे सात साल तक की अवधि के कारावास से दंडित किया जाएगा और जुर्माना भी देना होगा।
केस टाइटल: एक्स बनाम वाई
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एक बार अनुकंपा के आधार पर नियुक्त परिवार के सदस्य की सेवा समाप्त हो जाने पर, दूसरा सदस्य नियुक्ति की मांग नहीं कर सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने माना कि एक बार परिवार के किसी सदस्य ने अनुकंपा नियुक्ति का लाभ ले लिया है, तो उस परिवार के सदस्य की सेवा समाप्त होने के बाद उसे किसी अन्य परिवार के सदस्य को नहीं दिया जा सकता।
वर्तमान मामले में, अपीलकर्ता के भाई को उसके पिता की जगह अनुकंपा के आधार पर नियुक्त किया गया था, जिनका सेवा के दौरान निधन हो गया था। हालांकि, भाई ड्यूटी से अनुपस्थित रहा और उसकी सेवा समाप्त कर दी गई। इसके बाद, अपीलकर्ता ने अपने भाई के स्थान पर नियुक्ति की मांग की।
केस टाइटल: सोबिया मुजीब बनाम पंजाब राज्य और अन्य
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Art.166 के तहत राज्यपाल के फैसले तक प्रस्तावित MLC को कोई अधिकार नहीं, मंत्रिपरिषद वापस ले सकती है नामांकन वापस: बॉम्बे हाईकोर्ट
शिवसेना (UBT) नेता सुनील मोदी द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए, राज्यपाल के फैसले को चुनौती देते हुए, राज्य सरकार को विधान परिषद (MLC) के 12 सदस्यों के नामांकन वापस लेने की अनुमति देने के लिए, बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि चूंकि 12 एमएलसी के नामांकन के लिए मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सलाह पर राज्यपाल द्वारा कोई 'निर्णय' नहीं लिया गया था। अनुशंसित सदस्यों को कोई अधिकार नहीं दिया गया था।
चीफ़ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस अमित बोरकर की खंडपीठ ने कहा कि चूंकि संविधान के अनुच्छेद 166 की आवश्यकताओं के अनुसार अनुशंसित नामों को प्रभावी करने के लिए कोई सरकारी आदेश नहीं था, इसलिए मंत्रिपरिषद के पास सिफारिशों को वापस लेने का विवेक है।
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मध्यस्थता समझौते की वैधता या अस्तित्व पर वास्तविक आपत्तियों का निर्णय अधिनियम की धारा 16 के तहत ट्रिब्यूनल द्वारा किया जा सकता है: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस सोमशेखर सुंदरेशन की पीठ ने माना कि मध्यस्थता समझौते की वैधता और अस्तित्व से संबंधित वास्तविक आपत्तियों का निर्णय मध्यस्थता न्यायाधिकरण द्वारा किया जा सकता है, न कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 11 के तहत अदालत द्वारा।
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राज्य कानून के अनुसार BH रजिस्टर्ड वाहनों पर मोटर वाहन कर लागू होगा; केंद्र कर दरें निर्धारित नहीं कर सकता : केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि भारत (BH) रजिस्ट्रेशन वाले वाहनों को उस राज्य में प्रचलित दरों के अनुसार मोटर वाहन कर का भुगतान करना होगा, जहां रजिस्ट्रेशन की मांग की गई। न्यायालय ने कहा कि केंद्र सरकार के पास बीएच श्रृंखला के वाहनों के लिए मोटर वाहन कर की दर निर्धारित करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि मोटर वाहन कराधान राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आने वाला विषय है।
जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने वाहन मालिकों द्वारा दायर रिट याचिकाओं के समूह में यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जो केरल मोटर वाहन विभाग द्वारा राज्य के कर का भुगतान किए बिना बीएच श्रृंखला के तहत अपने वाहनों को रजिस्टर्ड करने से इनकार करने से व्यथित थे।
केस टाइटल: हरीश कुमार केपी बनाम भारत संघ
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S.13B Hindu Marriage Act| बहस पूरी होने के बाद भी एक पक्ष एकतरफा तरीके से तलाक के लिए सहमति वापस ले सकता है: उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि तलाक के लिए सहमति को तर्कों के समापन के बाद भी, आपसी सहमति के आधार पर तलाक देने की डिक्री पारित होने से पहले किसी भी समय पति या पत्नी द्वारा एकतरफा वापस लिया जा सकता है।
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-B के तहत तलाक देने के लिए पति-पत्नी की 'आपसी सहमति' के महत्व को दोहराते हुए, जस्टिस गौरीशंकर सतपथी की सिंगल जज बेंच ने कहा, “जैसा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा समझाया गया है, कानून से पता चलता है कि पति या पत्नी में से कोई भी एकतरफा सहमति वापस ले सकता है और हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के तहत तलाक की डिक्री देने का सार होने के नाते, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-B के तहत तलाक की कोई डिक्री पारित नहीं की जा सकती है, यदि कोई भी पक्ष डिक्री पारित करने के लिए इस तरह की सहमति वापस लेता है।
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आयकर अधिनियम की धारा 127 के तहत दोहरी शर्तें करदाता के मामले को एक अधिकारी से दूसरे अधिकारी को ट्रांसफर करने के लिए अनिवार्य: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 127 के तहत करदाता के मामले को एक कर निर्धारण अधिकारी से दूसरे कर निर्धारण अधिकारी को हस्तांतरित करने के लिए अनिवार्य दोहरी शर्तों को स्पष्ट किया है।
धारा 127 में प्रावधान है कि आयुक्त करदाता को मामले में सुनवाई का उचित अवसर देने तथा ऐसा करने के उसके कारणों को दर्ज करने के पश्चात, अपने अधीनस्थ कर निर्धारण अधिकारी से किसी भी मामले को अपने अधीनस्थ किसी अन्य कर निर्धारण अधिकारी को हस्तांतरित कर सकता है।
केस टाइटलः मेसर्स डीलक्स एंटरप्राइजेज बनाम आयकर अधिकारी
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नायब नजीर आपसी सहमति से तलाक की याचिका की स्वीकार्यता पर फैसला नहीं कर सकते: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने माना कि नायब नजीर किसी आवेदन की स्वीकार्यता पर फैसला नहीं कर सकते। उन्हें इसे न्यायालय के विवेक पर छोड़ देना चाहिए। इस प्रकार, न्यायालय ने नायब नजीर को पक्षों द्वारा दायर आवेदनों पर इस तरह के समर्थन करने से परहेज करने का निर्देश दिया। नायब नजीर नजारत का सदस्य है, जो जिला कोर्ट की प्रक्रिया सेवा एजेंसी है।
जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की एकल पीठ ने कहा, “याचिकाकर्ताओं के आवेदन को शुरुआत में ही खारिज करना कानून की नजर में स्वीकार्य नहीं है। किसी भी कारण से आवेदन की स्वीकार्यता पर नायब नजीर द्वारा फैसला नहीं किया जा सकता। इस प्रकार, स्पष्ट रूप से नायब नजीर ने याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर आवेदन को स्वीकार करने से इनकार करके अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया है।”
केस टाइटल: यशिका शाह एवं अन्य बनाम रजिस्ट्रार, रिट याचिका नंबर 36223/2024
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Bhima-Koregaon Elgar Parishad मामले में रोना विल्सन और सुधीर धावले को मिली जमानत
बॉम्बे हाईकोर्ट ने भीमा-कोरेगांव एल्गर परिषद मामले में रोना विल्सन और सुधीर धावले को जमानत दी। रिसर्चर रोना विल्सन और एक्टिविस्ट सुधीर धावले को बड़ी राहत देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार (8 जनवरी) को उन्हें भीमा-कोरेगांव एल्गर परिषद मामले में जमानत दी। जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस कमल खता की खंडपीठ ने इस तथ्य पर विचार किया कि दोनों ने विचाराधीन कैदियों के रूप में 6 साल से अधिक समय जेल में बिताया है।
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नियमित कर्मचारियों को दिए जाने वाले पेंशन लाभ के लिए पीस-रेट कर्मचारी हकदार नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की जस्टिस संजय धर की एकल पीठ ने जम्मू-कश्मीर हस्तशिल्प निगम के पूर्व पीस-रेट कर्मचारियों द्वारा दायर पेंशन लाभ की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। न्यायालय ने पीस-रेट कर्मचारियों और नियमित कर्मचारियों के बीच अंतर किया और माना कि दैनिक उत्पादन के आधार पर भुगतान किए जाने वाले कर्मचारी पेंशन लाभ के लिए नियमित सरकारी कर्मचारियों के साथ समानता का दावा नहीं कर सकते।
केस टाइटल: मोहम्मद यूसुफ मीर और अन्य बनाम यूटी ऑफ जम्मू-कश्मीर और अन्य।
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फैमिली पेंशन का दावा करने के लिए कार्रवाई का कारण केवल पेंशनभोगी की मृत्यु पर ही उत्पन्न होता है; सट्टा दावे मान्य नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की एकल न्यायाधीश पीठ ने फैसला सुनाया कि फैमिली पेंशन के लिए दावे के लिए वैध कार्रवाई का कारण होना चाहिए, जो केवल पेंशनभोगी की मृत्यु पर ही उत्पन्न होता है। न्यायालय ने फैमिली पेंशन के प्रसंस्करण के लिए अनिवार्य निषेधाज्ञा की मांग करने वाले मुकदमे के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका स्वीकार की। इसने फैसला सुनाया कि केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 2021 के नियम 50 के तहत फैमिली पेंशन केवल पेंशनभोगी की मृत्यु पर ही शुरू होती है। भविष्य की अनिश्चित घटनाओं पर आधारित सट्टा दावे वैध कार्रवाई का कारण नहीं बन सकते।
केस टाइटल: कुमकुम दानिया बनाम कुलभूषण दानिया
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यौन उत्पीड़न पीड़ित बच्चे के पास परिवार के सम्मान और भविष्य की रक्षा के नाम पर निरस्तीकरण याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि आपराधिक तंत्र को सक्रिय करने के बाद शिकायतकर्ता की भूमिका समाप्त हो जाती है और शिकायतकर्ता या पीड़ित बच्चे के पास POCSO मामले को निरस्त करने के लिए याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं है, वह भी परिवार के सम्मान की रक्षा के नाम पर।
जस्टिस वीरेंद्र सिंह की पीठ ने आगे कहा कि निरस्तीकरण POCSO Act की विधायी मंशा के भी विरुद्ध है। पीठ ने आगे कहा, "चूंकि, अपराध समाज के विरुद्ध है और यदि इस प्रकार के मामलों को याचिका में लिए गए आधारों के आधार पर निरस्त किया जाता है तो इससे ऐसे अपराध करने वाले अन्य आरोपियों को मामले को निपटाने के लिए संविधानेतर तरीके अपनाने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा, जैसे कि विश्वासपात्र संबंधों के माध्यम से गवाह को प्रभावित करना, धन-बल का उपयोग करना या पीड़ित/शिकायतकर्ता को धमकाना और परिवार के सम्मान के नाम पर मामले को निपटाना।"
केस टाइटल- एक्स बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य
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औद्योगिक विवादों में निषेधाज्ञा पारित करने का अधिकार सिविल न्यायालय के पास: मद्रास हाईकोर्ट
जस्टिस वी. लक्ष्मीनारायणन की एकल पीठ ने जिला मुंसिफ के उस आदेश के विरुद्ध सिविल पुनरीक्षण याचिका स्वीकार की, जिसमें टीएडब्ल्यू फुटवियर डिवीजन के विरुद्ध निषेधाज्ञा पारित करने से इनकार कर दिया गया था।
मुंसिफ ने यह कहते हुए शिकायत को खारिज कर दिया था कि यह मामला औद्योगिक विवाद है और यह विशेष रूप से श्रम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है। हालांकि, न्यायालय ने फैसला सुनाया कि औद्योगिक विवाद अधिनियम के अंतर्गत शामिल न होने वाले मामलों पर सिविल न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र है।
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Sec (6) के तहत मध्यस्थ नियुक्त करने वाला हाईकोर्ट, धारा 42 के तहत 'न्यायालय' नहीं माना जा सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
जस्टिस ज्योत्सना रेवाल दुआ की हिमाचल हाईकोर्ट की पीठ ने माना है कि मूल नागरिक क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने वाले हाईकोर्ट को मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 42 के उद्देश्य से 'न्यायालय' के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है, जब उसने अधिनियम की धारा 11 (6) के तहत केवल मध्यस्थों को नियुक्त किया है। अधिनियम की धारा 42 को लागू नहीं किया जाएगा जहां मूल नागरिक क्षेत्राधिकार वाले हाईकोर्ट ने केवल मध्यस्थ नियुक्त किया है और नहीं कोई अन्य अभ्यास किया।
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BNSS में पीड़ित की परिभाषा अतीत में व्यक्तियों को हुए नुकसान/चोट को कवर नहीं करती, बाद के मामलों में अभियुक्तों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ ने हाल ही में स्पष्ट किया कि BNSS की धारा 2(Y) के तहत पीड़ित की परिभाषा अतीत में अभियुक्त के कहने पर किसी व्यक्ति द्वारा झेले गए नुकसान या चोट को कवर नहीं करती। इस प्रकार ऐसे व्यक्तियों को किसी अन्य पीड़ित द्वारा अभियुक्त के खिलाफ दायर किए गए बाद के मामलों में आपत्ति करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
केस टाइटल: इस्माइल शाह बनाम मध्य प्रदेश राज्य एमसीआरसी नंबर 46833/2024
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Rajasthan Tenancy Act| राजस्व अभिलेखों में खनन उद्देश्यों के लिए दर्ज भूमि का उपयोग कृषि उद्देश्यों के लिए नहीं किया जा सकता: हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि चूंकि खनन को राजस्थान काश्तकारी अधिनियम 1955 (Rajasthan Tenancy Act) के तहत कृषि गतिविधि नहीं कहा जा सकता है, इसलिए खनन कार्यों के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि को कृषि उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि नहीं कहा जा सकता। खासकर तब जब राजस्व अभिलेखों में भूमि की प्रकृति खनन उद्देश्यों के लिए दर्ज की गई हो।
जस्टिस रेखा बोराणा की पीठ एक ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एक वाद को खारिज करने के आवेदनों को खारिज कर दिया गया और वादों को बनाए रखने योग्य माना गया।
टाइटल: एस.ए.एस. आर.के. मार्बल उद्योग बनाम पुष्टिमार्गीय एवं अन्य तथा अन्य संबंधित याचिकाएँ