हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

4 Feb 2024 5:00 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (20 जनवरी, 2024 से 02 फरवरी, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    सीबीआई को RTI Act के तहत छूट नहीं, संवेदनशील जांच को छोड़कर भ्रष्टाचार और मानवाधिकार उल्लंघन की जानकारी देनी होगी: दिल्ली हाइकोर्ट

    इस तर्क को खारिज करते हुए कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 (RTI Act 2005) के प्रावधानों से छूट दी गई, दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसी को संवेदनशील जांचों को छोड़कर भ्रष्टाचार और मानवाधिकार उल्लंघनों पर जानकारी प्रदान करनी होगी। जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि भले ही सीबीआई का नाम RTI Act की दूसरी अनुसूची में उल्लिखित है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि पूरा एक्ट एजेंसी पर लागू नहीं होता।

    केस टाइटल- सीपीआईओ सीबीआई बनाम संजीव चतुवेर्दी

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    कोर्ट फाइलिंग में वादी की जाति/धर्म का उल्लेख नहीं होगा: गुवाहाटी हाईकोर्ट

    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने 30 जनवरी, 2024 को तत्काल प्रभाव से एक अधिसूचना जारी की जिसके द्वारा उसने निर्देश दिया कि गुवाहाटी हाईकोर्ट या उसके अधिकार क्षेत्र की अदालतों के समक्ष दायर किसी भी याचिका/मुकदमे/कार्यवाही में पक्षकारों के ज्ञापन में वादी की जाति/धर्म का उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं होगी।

    गुवाहाटी हाईकोर्ट का यह कदम सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थानांतरण याचिका (सिविल) संख्या 1957/2023 में पारित 10 जनवरी, 2024 के आदेश के बाद आया है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि देश भर की सभी अदालतें याचिकाओं और मुकदमों में वादियों की जाति और धर्म का उल्लेख करने की प्रथा को रोकें।

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    सिविल सेवा अपीलीय ट्रिब्यूनल राजस्थान वित्तीय निगम के संविदा कर्मचारी के सेवा मामले से उत्पन्न अपील पर विचार नहीं कर सकता: हाइकोर्ट

    राजस्थान हाइकोर्ट की खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश पीठ द्वारा पारित आदेश रद्द कर दिया। उक्त आदेश में राजस्थान वित्तीय निगम के संविदा कर्मचारी द्वारा ट्रांसफर आदेश को चुनौती देने वाली रिट याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी गई थी कि उसके पास राजस्थान सिविल सेवा अपीलीय ट्रिब्यूनल के समक्ष आक्षेपित ट्रांसफर आदेश को चुनौती देने का वैकल्पिक उपाय है।

    एक्टिंग चीफ जस्टिस मनिन्द्र मोहन श्रीवास्तव और जस्टिस शुभा मेहता की खंडपीठ ने पाया कि राजस्थान सिविल सेवा अपीलीय ट्रिब्यूनल के पास राजस्थान वित्तीय निगम के किसी कर्मचारी के किसी भी सेवा मामले से उत्पन्न होने वाली सेवाओं को प्रभावित करने वाली अपील सुनने का अधिकार क्षेत्र नहीं है।

    केस टाइटल- अनिल पारीक बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य।

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    PMLA जांच 365 दिनों से अधिक समय तक चलने पर कार्यवाही नहीं होती, ED द्वारा जब्त की गई संपत्ति वापस की जानी चाहिए: दिल्ली हाइकोर्ट

    दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा कि जहां धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 (Prevention of Money-Laundering Act, 2002) के तहत जांच 365 दिनों से अधिक चलती है और किसी अपराध से संबंधित कोई कार्यवाही नहीं होती है तो संपत्ति की जब्ती समाप्त हो जाएगी। इसलिए सम्पत्ति उस व्यक्ति को वापस कर दिया जाना चाहिए, जिससे जब्त किया गया।

    जस्टिस नवीन चावला ने फैसला सुनाया, “इस एक्ट के तहत किसी भी अपराध से संबंधित किसी अदालत के समक्ष या किसी अन्य देश के संबंधित कानून के तहत भारत के बाहर आपराधिक क्षेत्राधिकार की सक्षम अदालत के समक्ष किसी भी कार्यवाही के लंबित होने की स्थिति में 365 दिनों से अधिक समय तक ऐसी जब्ती की निरंतरता जब्ती होगी। इसलिए यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 300 ए का उल्लंघन है।”

    केस टाइटल- महेंद्र कुमार खंडेलवाल बनाम प्रवर्तन एवं अन्य निदेशालय।

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    Gyanvapi Case: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'व्यास तहखाना' के अंदर 'पूजा' पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद समिति की उस याचिका को स्वीकार करने से इनकार किया, जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद (व्यास तहखाना के नाम से जाना जाता है) के दक्षिणी तहखाने में होने वाली पूजा पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की गई थी। हालांकि, कोर्ट ने राज्य सरकार को इलाके में कानून व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया।

    तहखाना के अंदर पूजा 31 जनवरी को शुरू हुई, जिसके तुरंत बाद वाराणसी जिला जज ने आदेश पारित कर जिला मजिस्ट्रेट को उचित व्यवस्था करके क्षेत्र के अंदर पूजा की सुविधा प्रदान करने का निर्देश दिया। डीएम ने उसी दिन आदेश का अनुपालन करा दिया।

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    यूपी धर्मांतरण विरोधी कानून | अंतरधार्मिक विवाह तब तक मान्य नहीं होगा जब तक कि धारा 8 और 9 के तहत 'पूर्व' और 'रूपांतरण के बाद की घोषणा' औपचारिकता का अनुपालन न किया जाए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि एक अंतर-धार्मिक विवाह को कोई पवित्रता नहीं दी जा सकती है, जो यूपी गैरकानूनी धर्म संपरिवर्तन अधिनियम 2021 की धारा 8 और 9 के अनुपालन के बिना किया गया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि 2021 का अधिनियम लागू होने के बाद [27 नवंबर, 2020 के बाद] विवाह होता है, तो पार्टियों को अधिनियम की धारा 8 और 9 का अनुपालन सुनिश्चित करना होगा।

    केस टाइटल: निकिता नजराना और अन्य बनाम स्टेट ऑफ अप और 3 अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 66 [रिट - सी नंबर 1348 ऑफ 2024]

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    राजस्व अधिकारियों को 'जाति नहीं, धर्म नहीं' प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक व्यक्ति अपने दस्तावेजों में अपनी जाति और धर्म का उल्लेख नहीं करने का विकल्प चुन सकता है, लेकिन राजस्व अधिकारियों को "नो कास्ट नो रिलिजन सर्टिफिकेट" जारी करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के प्रमाण पत्र को जारी करना एक सामान्य घोषणा के रूप में माना जाएगा और सरकार द्वारा प्रदत्त किसी भी शक्ति के अभाव में राजस्व अधिकारी ऐसा नहीं कर सकते।

    केस टाइटल: एच संतोष बनाम जिला कलेक्टर

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    भरण-पोषण प्रावधानों को वेलफेयर कानून होने के कारण उचित संदेह से परे साबित करने की आवश्यकता नहीं: कलकत्ता हाइकोर्ट

    कलकत्ता हाइकोर्ट ने हाल ही में माना कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के प्रावधान वेलफेयर कानून हैं और उन्हें उनके आपराधिक कानून समकक्षों के रूप में उचित संदेह से परे साबित करने की आवश्यकता नहीं है।

    जस्टिस अजॉय कुमार मुखर्जी की एकल पीठ ने याचिकाकर्ता के खिलाफ भरण-पोषण का दावा रद्द करने से इनकार करते हुए कहा, "अपने वैवाहिक घर में रहने के दौरान पत्नी पक्ष का आचरण सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण देने से पहले विचार किया जाने वाला एकमात्र पैरामीटर नहीं हो सकता। प्रावधान वेलफेयर कानून होने के कारण यह नहीं माना जाना चाहिए कि आईपीसी की धारा 498ए के तहत किसी मामले को उचित संदेह से परे साबित करने के लिए क्या अर्थ लगाया जा सकता है। आईपीसी की धारा 406 के तहत मुझे लगता है कि यह उपयुक्त मामला नहीं है, जहां आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल करते हुए वर्तमान कार्यवाही याचिकाकर्ता के पक्ष में पारित फैसले के आधार पर रद्द की जा सकती है, जिसमें धारा 498ए/406/34 के तहत आपराधिक कार्यवाही चल रही है।"

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    हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण आदेश अंतर्वर्ती नहीं, फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 19 के तहत अपील योग्य: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 के तहत फैमिली कोर्ट द्वारा पारित पेंडेंट लाइट मेंटेनेंस के खिलाफ फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 19 (1) के तहत हाईकोर्ट में अपील की जा सकती है। उल्लेखनीय है कि पेंडेंट लाइट मेंटेनेंस का आदेश मुकदमा लंबित होने पर बच्चों, पत्नी और अन्य व्यक्ति को भरण-पोषण प्रदान करता है।

    संदर्भ के लिए फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 19(1) के अनुसार, फैमिली कोर्ट के प्रत्येक निर्णय या आदेश के खिलाफ, जो कि अंतवर्ती आदेश (Interlocutory Order) नहीं है, हाईकोर्ट में अपील की जाएगी। धारा 19(5) में कहा गया है, "उपरोक्त को छोड़कर, फैमिली कोर्ट के किसी भी निर्णय आदेश या डिक्री के खिलाफ किसी भी न्यायालय में कोई अपील या पुनरीक्षण नहीं किया जाएगा।"

    केस टाइटल: XXX बनाम XXX

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    आंगनवाड़ी उम्‍मीदवार का किसी ऐसे सरकारी कर्मचारी से निषिद्ध ‌डिग्री की सीमा में संबंध हो, जिसका चयन प्रक्रिया में प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष प्रभाव है तो उसे अयोग्य माना जाएगा: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि जब सरकारी कर्मचारी, जिनका चयन प्रक्रिया में प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष प्रभाव होता है या स्थानीय निकायों के सदस्य निषिद्ध डिग्री के दायरे में किसी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता उम्मीदवार से संबंधित होते हैं तो उस उम्मीदवार को अयोग्य माना जाएगा। यहां यह ध्यान रखना उचित है कि ऐसी नियुक्तियों से संबंधित कार्यालय ज्ञापन संख्या/F3-2/06/50-2 दिनांक 27.05.2006 में रिश्ते की निषिद्ध डिग्री दी गई है।

    केस टाइटलः श्रीमती तुलसा बाई गोंड बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य।

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    महाराष्ट्र सिविल सेवा नियम | वेतनमान में कटौती का जुर्माना रोजगार की अवधि से अधिक नहीं बढ़ाया जाता, सेवानिवृत्ति के बाद के लाभों पर प्रभाव पड़ता है: बॉम्बे हाइकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सजा के रूप में राज्य सरकार के कर्मचारी के वेतनमान में कटौती का प्रभाव रोजगार की अवधि से आगे नहीं बढ़ता और सेवानिवृत्ति के बाद के लाभों पर असर पड़ता है। जस्टिस एएस चांदूरकर और जस्टिस जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने डॉ. रामचन्द्र बापू निर्मले द्वारा दायर याचिका स्वीकार कर ली, जिसमें दंड के रूप में सेवानिवृत्ति तक कम करने से पहले उनके वेतन के आधार पर उनकी पेंशन की गणना करने की मांग की गई।

    केस टाइटल - डॉ. रामचन्द्र बापू निर्मले बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य

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    पति द्वारा अलग रहने के समझौते में किए गए वादों का पालन न करने पर पत्नी भरण-पोषण की हकदार: मध्यप्रदेश हाइकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जब पति अलग रहने के समझौते में किए गए वादे से पीछे हट गया तो यह नहीं कहा जा सकता कि पत्नी आपसी सहमति से अलग रह रही है। जस्टिस विशाल धगट की एकल न्यायाधीश पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि पत्नी ऐसे मामलों में भरण पोषण की हकदार होगी।

    जबलपुर की पीठ ने कहा, “याचिकाकर्ता नंबर 1 समझौते में किए गए वादों के आधार पर अलग रहने के लिए सहमत हुआ। प्रतिवादी समझौते में किए गए वादों से मुकर गया, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि याचिकाकर्ता आपसी सहमति से अलग रह रहा है।”

    केस टाइटल- नगीना बानो एवं अन्य बनाम मोहम्मद नईम अली।

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    जब तक प्रतिमा में विशेष प्रावधान न हो, नियोक्ता सेवानिवृत्त कर्मचारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाइकोर्ट

    इलाहाबाद हाइकोर्ट ने माना कि जब तक उसे किसी प्रतिमा के तहत विशेष रूप से अधिकार क्षेत्र नहीं दिया जाता है, तब तक नियोक्ता का कोई अनुशासनात्मक प्राधिकारी किसी कर्मचारी के खिलाफ उसकी सेवानिवृत्ति के बाद अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू नहीं कर सकता, या लंबित अनुशासनात्मक कार्यवाही जारी नहीं रख सकता।

    जस्टिस जे.जे. मुनीर ने कहा, “कुछ नियम नियोक्ता को अपने कर्मचारियों के खिलाफ सेवानिवृत्ति के बाद निश्चित अवधि तक कार्यवाही शुरू करने की शक्ति प्रदान करते हैं और वह भी निश्चित रूप से कुछ उच्च प्राधिकारी की अनुमति के साथ। केवल क़ानून के तहत ही नियोक्ता अपने सेवानिवृत्त कर्मचारी पर विस्तारित अनुशासनात्मक क्षेत्राधिकार का उपयोग ले सकता है, अन्यथा नहीं ले सकता।”

    केस टाइटल: महेंद्र नाथ शर्मा बनाम यूपी राज्य और अन्य

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    बॉम्बे हाईकोर्ट का आईटी नियमों में संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर खंडित फैसला

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को आईटी संशोधन नियम, 2023 के नियम 3(i)(II)(ए) और (सी) को रद्द करने की मांग वाली याचिकाओं पर विभाजित फैसला सुनाया, जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उसके व्यवसाय के बारे में किसी भी 'फर्जी, गलत या भ्रामक' जानकारी की पहचान करने के लिए केंद्र सरकार को एक तथ्य-जांच इकाई (एफसीयू) स्थापित करने का अधिकार देता है । जस्टिस गौतम पटेल ने कहा कि उन्होंने याचिकाकर्ताओं- राजनीतिक व्यंग्यकार कुणाल कामरा, एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स ऑफ डिजिटल एसोसिएशन और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के पक्ष में फैसला सुनाया है।

    केस - कुणाल कामरा बनाम भारत संघ

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    वेतन भुगतान अधिनियम | धारा 17 के तहत अपील पर निर्णय लेने वाले जिला जज अदालत के रूप में कार्य करते हैं, 'व्यक्तित्व पदनाम' के रूप में नहीं: इलाहाबाद हाइकोर्ट

    इलाहाबाद हाइकोर्ट ने माना कि नाम से व्यक्तिगत क्षमता में नियुक्त न्यायाधीश व्यक्तित्व पदनाम (Persona Designate) के रूप में कार्य करता है, लेकिन जब उन्हें केवल उनके पदनाम से नियुक्त किया जाता है, तो वह न्यायालय के रूप में कार्य करते हैं।

    न्यायालय ने माना कि यह निर्धारित करने के लिए कि नियुक्ति व्यक्तित्व पदनाम के रूप में की गई है, या नहीं, यह देखने के लिए है कि क्या व्यक्ति को "केवल उसके नाम से नियुक्त किया गया है, विवरण या पदनाम केवल उसकी पहचान के लिए दिया जा रहा है।" यदि केवल पद या पदनाम का उल्लेख किया गया है तो नियुक्ति न्यायालय के रूप में है न कि व्यक्तित्व पदनाम के रूप में।

    केस टाइटल- जयंत श्रीवास्तव बनाम निर्धारित प्राधिकारी, वेतन भुगतान अधिनियम, 1936 और अतिरिक्त श्रम आयुक्त और 4 अन्य।

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    भाई-बहनों को दी गई स्कूल फीस में छूट का दावा अधिकार के रूप में नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि स्कूल द्वारा दी गई भाई-बहन की फीस में राहत कुछ शर्तों के अधीन है और इसे अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता। सहोदर शुल्क योजना लाभ की प्रयोज्यता से संबंधित मुद्दे के कारण दिल्ली पब्लिक स्कूल, राज नगर गाजियाबाद से दो भाई-बहनों को निष्कासित करने से निपटते हुए कोर्ट ने उक्त टिप्पणी की।

    जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव ने कहा, “मुझे लगता है कि प्रतिवादी नंबर 7 द्वारा जारी सर्कुलर दिनांक 5.8.2021 के तहत भाई-बहन फीस में राहत उन माता-पिता को दिया जाने वाला लाभ है, जिनके दो बच्चे कुछ शर्तों के अधीन संस्थान में पढ़ रहे हैं और अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता।”

    केस टाइटल:- सतेंद्र कुमार और 2 अन्य बनाम यूपी राज्य और 6 अन्य [WRIT - C No. - 31168/2023]

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    हिंदू विवाह अधिनियम | धारा 11 के तहत विवाह को शून्य घोषित करने की याचिका पर धारा 12 के तहत शून्यकरणीय विवाह के आधार पर निर्णय नहीं लिया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 11 (शून्य विवाह, Void Marriages) के तहत ‌‌दिए गए आधार धारा 12 (शून्यकरणीय विवाह, Voidable Marriages) के तहत दिए गए आधारों से बहुत अलग हैं और इस प्रकार, अधिनियम की धारा 11 के तहत दायर याचिका पर धारा 11 में उल्लिखित आधारों के अलावा किसी अन्य आधार पर निर्णय नहीं किया जा सकता है। न्यायालय ने माना कि अधिनियम की धारा 5 के खंड (i), (iv) और (v) के उल्लंघन में किया गया विवाह शून्य है और इसे ठीक या अनुमोदित नहीं किया जा सकता है। हालांकि, शून्यकरणीय विवाह के मामले में, घोषणा आवश्यक है अन्यथा विवाह बना रहता है।

    केस टाइटलः कुमारी अंकिता देवी बनाम श्री जगदीपेंद्र सिंह @कन्हैया [प्रथम अपील संख्या - 1391/2023]

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    POCSO Act की धारा 4 | बच्चे के प्राइवेट पार्ट से लिंग का केवल छूना भी यौन उत्पीड़न: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपनी भतीजियों के साथ यौन उत्पीड़न करने के आरोपी व्यक्ति को यह कहते हुए जमानत देने से इनकार किया कि यौन इरादे से पीड़िता की योनि में लिंग को छूना भी यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) की धारा 4 के तहत नाबालिग पर प्रवेशात्मक यौन हमला है।

    जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा, “पेनेट्रेटिव यौन हमले के मामले में भी यह जरूरी नहीं है कि पीड़िता के हाइमन, लेबिया मेजा, लेबिया मिनोरा में कुछ चोट हो। केवल पीड़ित के निजी अंग से लिंग को छूना भी POCSO Act की धारा 4 के तहत अपराध है।"

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    सीआरपीसी की धारा 468 | परिसीमा की गणना की तारीख फाइनल रिपोर्ट दाखिल करने की तारीख है, एफआईआर दर्ज करने की नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि सीआरपीसी की धारा 469 के तहत परिसीमा अवधि की गणना की तारीख अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने की तारीख से होगी, न कि एफआईआर दर्ज करने की तारीख से।

    जस्टिस आनंद वेंकटेश ने कहा कि एफआईआर से उत्पन्न मामले में अंतिम रिपोर्ट दाखिल होने पर मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लिया जाता है। अदालत ने कहा कि एफआईआर का आधार केवल पुलिस अधिकारियों द्वारा प्राप्त जानकारी है, न कि कोई "शिकायत" जिस पर संज्ञान लिया गया हो।

    केस टाइटल: ए. कलियापेरुमल बनाम पुलिस सुपरिटेंडेंट।

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    जब अभियुक्त की भूमिका के संबंध में साक्ष्य मौन हों तो "संदेह का लाभ" देने के लिए विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग आवश्यक नहीं: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि संदेह का लाभ देने की विवेकाधीन शक्ति तब लागू नहीं होती है जब आरोपी व्यक्तियों की संलिप्तता के संबंध में सबूतों का पूर्ण अभाव हो। ज‌स्टिस बिबेक चौधरी ने कहा, "ट्रायल कोर्ट द्वारा संदेह का लाभ देने का सवाल तब उठता है जब रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों से ऐसा प्रतीत होता है कि दो विचार - एक अभियोजन पक्ष के समर्थन में और दूसरा बचाव पक्ष के समर्थन में पाए जाते हैं, कोर्ट को चाहिए कि उस दृष्टिकोण को स्वीकार करें जो अभियुक्त के पक्ष में है।”

    केस टाइटल: सुशील कुमार चौधरी बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

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    CrPc की धारा 197 के तहत सुरक्षा का दावा करने के लिए दस्तावेज तैयार करना, धन का दुरुपयोग करना 'आधिकारिक कर्तव्य' का हिस्सा नहीं: इलाहाबाद हाइकोर्ट

    इलाहाबाद हाइकोर्ट ने कहा कि दस्तावेज़ में हेरफेर करना या धन का दुरुपयोग करना सीआरपीसी की धारा 197 के तहत सुरक्षा का दावा करने के लिए लोक सेवक के आधिकारिक कर्तव्य का हिस्सा नहीं। सीआरपीसी की धारा 197 अधिकारी को अनावश्यक उत्पीड़न से बचाने का प्रयास करती है, जिस पर अपने आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान कार्य करते समय या कार्य करने के दौरान किए गए अपराध का आरोप है, सिवाय इसके कि सक्षम प्राधिकारी की पूर्व मंजूरी हो। अदालत को ऐसे अपराध का संज्ञान लेने से रोकती है।

    केस टाइटल - वेद प्रकाश गोविल बनाम यूपी राज्य।

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    Succession Act की धारा 67 | प्रोबेट कार्यवाही में अदालत यह तय नहीं कर सकती कि लाभार्थी के गवाह के पति होने के कारण वसीयत रद्द हो सकती है या नहीं: बॉम्बे हाइकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि किसी वसीयत में भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम (Indian Succession Act) की धारा 67 के तहत लाभार्थी गवाह का जीवनसाथी होने के नाते वसीयत की शून्यता का मुद्दा वसीयत की प्रोबेट या वसीयत के साथ प्रशासन संलग्न पत्र की कार्यवाही में वसीयतनामा न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

    जस्टिस मनीष पिताले ने मृत व्यक्ति की बेटियों द्वारा दायर आवेदन खारिज कर दिया, जिसमें मृतक के बेटे की वसीयत रद्द करने से संबंधित अतिरिक्त मुद्दे को वसीयत के मुकदमे में जोड़ने की मांग की गई, क्योंकि बहू वसीयत की गवाह थी। अदालत ने कहा कि इस मुद्दे को अलग कार्यवाही में संबोधित किया जाना चाहिए।

    केस टाइटल - रूबी सिरिल डिसूजा और अन्य (आवेदक) बीच के मामले में: सेसिलिया रेनॉल्ड डिसूजा और अन्य बनाम रूबी सिरिल डिसूजा और अन्य।

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    नियोक्ता द्वारा आपराधिक इतिहास को छुपाना उम्मीदवारी रद्द करने/सेवा से बर्खास्तगी का आधार: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि रोजगार चाहने वाले किसी भी उम्मीदवार की सजा/बरी, गिरफ्तारी या लंबित आपराधिक मामले के बारे में जानकारी को छुपाया नहीं जा सकता है। न्यायालय ने कहा कि यदि आपराधिक इतिहास के संबंध में कोई तथ्य छिपाया गया तो उम्मीदवारी रद्द की जा सकती है या सेवा से बर्खास्त किया जा सकता है।

    केस टाइटल: चंद्रजीत कुमार गोंड बनाम इलाहाबाद हाईकोर्ट और अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 48 [विशेष अपील नंबर- 777/2023]

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    पति आय की कमी के बावजूद पत्नी का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य, वह अकुशल श्रमिक के रूप में प्रति दिन 350 से 400 रुपये कमा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि एक पति अपनी पत्नी को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण प्रदान करने के लिए बाध्य है, भले ही उसकी नौकरी से कोई आय न हो, वह अकुशल श्रमिक के रूप में प्रतिदिन 350-400 रुपये रुपये कमा सकता है।

    जस्टिस रेनू अग्रवाल की पीठ ने अंजू गर्ग बनाम दीपक कुमार गर्ग 2022 लाइव लॉ (एससी) 805 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें यह माना गया था कि पति को शारीरिक श्रम से भी पैसा कमाने की आवश्यकता होती है, यदि वह सक्षम है, और क़ानून में उल्लिखित कानूनी रूप से स्वीकार्य आधारों को छोड़कर, अपने दायित्व से बच नहीं सकता।

    केस टाइटल: कमल बनाम स्टेट ऑफ यूपी गृह सचिव लखनऊ के माध्यम से, और अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 46

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    धारा 100(5) सीआरपीसी | तलाशी और जब्ती के गवाहों को अदालत में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है, जब तक कि उन्हें विशेष रूप से सम्मन न किया जाए: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने हाल के एक फैसले में 28 साल पुराने एक मामले में पुनरीक्षण आवेदन को आंशिक रूप से अनुमति देते हुए इस बात पर जोर दिया कि रिकवरी के तथ्य को स्थापित करने के लिए अभियोजन पक्ष को केवल जब्ती सूची को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।

    जस्टिस अंबुज नाथ ने कहा, “रिकवरी के तथ्य को साबित करने के लिए, अभियोजन पक्ष के लिए साक्ष्य में जब्ती सूची जोड़ना पर्याप्त है। धारा 100(5) सीआरपीसी के अनुसार तलाशी और जब्ती के गवाहों को गवाह के रूप में अदालत में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है जब तक कि अदालत द्वारा विशेष रूप से बुलाया न जाए। मुझे इस आधार पर कोई अनियमितता नहीं मिली कि जब्ती सूची के गवाह अपने साक्ष्य दर्ज करने के लिए अदालत में उपस्थित नहीं हुए।''

    केस टाइटलः मोहम्मद रेयाज़ुल और अन्य बनाम झारखंड राज्य

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