नियोक्ता द्वारा आपराधिक इतिहास को छुपाना उम्मीदवारी रद्द करने/सेवा से बर्खास्तगी का आधार: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

29 Jan 2024 3:42 AM GMT

  • नियोक्ता द्वारा आपराधिक इतिहास को छुपाना उम्मीदवारी रद्द करने/सेवा से बर्खास्तगी का आधार: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि रोजगार चाहने वाले किसी भी उम्मीदवार की सजा/बरी, गिरफ्तारी या लंबित आपराधिक मामले के बारे में जानकारी को छुपाया नहीं जा सकता है। न्यायालय ने कहा कि यदि आपराधिक इतिहास के संबंध में कोई तथ्य छिपाया गया तो उम्मीदवारी रद्द की जा सकती है या सेवा से बर्खास्त किया जा सकता है।

    अवतार सिंह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य और राजस्थान राज्य विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड बनाम अनिल कंवरिया में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए जस्टिस सलिल कुमार राय और जस्टिस सुरेंद्र सिंह-प्रथम की पीठ ने कहा,

    “अवतार सिंह (सुप्रा) और राजस्थान राज्य विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड (सुप्रा) के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून पर विचार करने से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि दोषी ठहराए जाने/बरी होने के संबंध में एक उम्मीदवार द्वारा नियोक्ता को दी गई जानकारी या सेवा में प्रवेश करने से पहले या बाद में गिरफ्तारी या आपराधिक मामला लंबित होना सत्य होना चाहिए और आवश्यक जानकारी का कोई दमन या गलत उल्लेख नहीं होना चाहिए। उम्मीदवार द्वारा किए गए किसी भी उल्लंघन के कारण उसकी उम्मीदवारी रद्द कर दी जाएगी, यदि पहले ही नियुक्त हो तो सेवा से बर्खास्त कर दिया जाएगा।''

    अदालत ने इस आधार पर उम्मीदवारी रद्द करने को बरकरार रखा कि अपीलकर्ता 10 महीने तक अपने आवेदन पत्र में त्रुटि को ठीक करने में विफल रहा था और उसने केवल अपने खिलाफ एक आपराधिक मामला लंबित होने के तथ्य का खुलासा किया था जब उसे हलफनामे पर एक अंडरटेकिंग देने के लिए कहा गया था।

    पृष्ठभूमि

    अपीलकर्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा जारी एक विज्ञापन में अर्दली/चपरासी/कार्यालय चपरासी/फर्राश के पद के लिए आवेदन किया था। ऑनलाइन फॉर्म में, "क्या आपके खिलाफ कोई आपराधिक शिकायत का मामला दर्ज किया गया है?" के कॉलम के सामने, अपीलकर्ता ने उत्तर कॉलम में "नहीं" भरा। अपीलकर्ता ने सेलेक्‍शन राउंड में क्वालिफाई हो गया और सफल घोषित किया गया। इसके बाद, अपीलकर्ता को अपना आपराधिक इतिहास बताते हुए एक हलफनामा जमा करना था।

    अपीलकर्ता ने दावा किया कि उसने अपने खिलाफ लंबित आपराधिक मामले का खुलासा करते हुए हलफनामा प्रस्तुत किया था। इसके बाद, उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी गई क्योंकि हाईकोर्ट द्वारा जारी दिशानिर्देशों में विशेष रूप से प्रावधान किया गया था कि यदि उम्मीदवार ने अपने खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का खुलासा नहीं किया है तो उम्मीदवारी रद्द कर दी जानी चाहिए। हाईकोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ ने अपीलकर्ता की उम्मीदवारी रद्द करने को बरकरार रखा। इसके बाद उन्होंने आदेश के खिलाफ विशेष अपील दायर की।

    अपीलकर्ता-याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि एकल न्यायाधीश ने अवतार सिंह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सही ढंग से लागू नहीं किया था। यह तर्क दिया गया कि जिस कंप्यूटर ऑपरेटर ने अपीलकर्ता को फॉर्म भरने में मदद की थी, उसने गलती की थी। दस्तावेजों के सत्यापन के चरण में ही याचिकाकर्ता को फॉर्म में त्रुटि का पता चला।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि ऑनलाइन आवेदनों में सुधार करने के लिए एक विंडो प्रदान करने के बावजूद, अपीलकर्ता ने कथित त्रुटि को ठीक करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। आपराधिक मामले की लंबितता का खुलासा करने वाला हलफनामा ऑनलाइन फॉर्म भरने के 10 महीने बाद दायर किया गया था। यह तर्क दिया गया कि त्रुटि अनजाने में होने के बजाय जानबूझकर की गई थी।

    हाईकोर्ट का फैसला

    अवतार सिंह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य में सुप्रीम कोर्ट ने उम्मीदवार द्वारा उम्मीदवारी रद्द करने/सेवा समाप्ति के मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए नियोक्ता को किए गए खुलासे के सत्यापन के लिए व्यापक दिशानिर्देश निर्धारित किए हैं। अनुच्छेद 38.1, 38.2 और 38.3 में सुप्रीम कोर्ट ने यह माना

    “38.1 किसी उम्मीदवार द्वारा दोषसिद्धि, दोषमुक्ति या गिरफ्तारी, या किसी आपराधिक मामले के लंबित होने के बारे में नियोक्ता को दी गई जानकारी, चाहे सेवा में प्रवेश करने से पहले या बाद में सही होनी चाहिए और आवश्यक जानकारी का कोई दमन या गलत उल्लेख नहीं होना चाहिए।

    38.2 झूठी जानकारी देने पर सेवा समाप्ति या उम्मीदवारी रद्द करने का आदेश पारित करते समय, नियोक्ता ऐसी जानकारी देते समय मामले की विशेष परिस्थितियों, यदि कोई हो, का ध्यान रख सकता है।

    38.3 नियोक्ता निर्णय लेते समय कर्मचारी पर लागू सरकारी आदेशों/निर्देशों/नियमों को ध्यान में रखेगा।''

    न्यायालय ने आगे राजस्थान राज्य विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड बनाम अनिल कंवारिया पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक बार रोजगार चाहने वाले व्यक्ति ने दोषसिद्धि/आपराधिक कार्यवाही के संबंध में जानकारी छिपा ली है तो बाद में बरी होने पर उसे अधिकार के रूप में रोजगार नहीं मिलता है।

    कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता ने ऑनलाइन आवेदन पत्र में हुई त्रुटि को ठीक करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया था, और केवल जब उसे हलफनामे पर एक अंडर टेकिंग प्रस्तुत करने के लिए कहा गया तो उसने अपने खिलाफ एक आपराधिक मामले की लंबितता का खुलासा किया।

    न्यायालय ने माना कि अपीलकर्ता अवतार सिंह मामले के पैराग्राफ 38.2 और 38.3 के अंतर्गत आने और 38.1 के अंतर्गत न आने का अनुरोध नहीं कर सकता क्योंकि उसके पक्ष में कोई विशेष परिस्थितियां नहीं हैं। अदालत ने माना कि अपीलकर्ता ने जानबूझकर अपने आवेदन पत्र में उसके खिलाफ लंबित आपराधिक मामले को छुपाया था। तदनुसार, न्यायालय ने उनकी उम्मीदवारी रद्द करने को बरकरार रखा और अपील खारिज कर दी।

    केस टाइटल: चंद्रजीत कुमार गोंड बनाम इलाहाबाद हाईकोर्ट और अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 48 [विशेष अपील नंबर- 777/2023]

    केस साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (एबी) 48


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