जानिए हमारा कानून
जानिए कोर्ट की डिक्री क्या होती है
सिविल कोर्ट द्वारा दी गई डिक्री को लेकर काफी संशय की स्थिति होती है। बहुत से लोगों को यह नहीं पता होता कि डिक्री क्या होती है डिक्री और जजमेंट में डिफरेंस को समझने में थोड़ी चूक हो जाती है।जजमेंट, डिक्री और आर्डर तीनों ही शब्द सिविल मामले से संबंधित हैं। इन तीनों शब्दों का उपयोग सिविल कोर्ट द्वारा किया जाता है। सिविल मामला पक्षकारों को स्वयं चलाना होता है। कोई भी सिविल मामला आपराधिक मामले की तरह स्टेट के द्वारा नहीं चलाया जाता है बल्कि इसे पक्षकार स्वयं चलाते हैं। अदालत इस मामले को सुनती है ऐसे...
कौन से बिल्डर की शिकायत रेरा में हो सकती है और क्या है प्रक्रिया
बिल्डर्स को विनियमित करने और ग्राहकों के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 बनाया गया है। जमीन पर मकान बनाकर बेचना वर्तमान समय का एक बड़ा धंधा बन गया है। बिल्डर जमीन पर ऐसे मकान बनाते हैं और उन्हें बेचते हैं तथा इस पर मुनाफा कमाते हैं। एक समय तक इस धंधे में बिल्डर द्वारा ग्राहकों के साथ बहुत ज्यादा ज्यादती की जाती रही है। अनेक घटनाएं ऐसी मिली है जहां बिल्डर ने मकान का नक्शा और क्वालिटी दिखाई कुछ और तथा बेची कुछ और। ग्राहकों के अधिकार छीने जा रहे थे उनके...
जानिए आर्य समाज शादी क्या है
आर्य समाज शादी काफी चर्चित है। समाज की शोशेबाजी से दूर रहने वाले लोग या फिर जाति प्रथा में विश्वास नहीं रखने वाले लोग अधिकांश आर्य समाज शादी की ओर रुख करते हैं। ऐसी आर्य समाज शादी क्या होती है और इस शादी को क्या कानूनी मान्यता प्राप्त है।क्या है आर्य समाज शादी:-दयानंद सरस्वती द्वारा आर्य समाज की स्थापना की गई। इस समाज के मंदिर होते हैं जहां शादी संपन्न कराई जाती है। भारत में आर्य समाज की शादी के लिए एक अधिनियम भी बनाया गया है जिसे आर्य समाज मैरिज वैलिडेशन एक्ट, 1937 कहा जाता है।यह अधिनियम आर्य...
पुलिस जब एफआईआर दर्ज नहीं करें तब क्या किया जा सकता है
पुलिस राज्य के नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाई गई है। पुलिस का यह कर्तव्य है कि वह अपने राज्य के नागरिकों की सुरक्षा करें। भारतीय दंड संहिता और उसी की तरह के अन्य दाण्डिक कानून अलग-अलग अपराधों का उल्लेख करते हैं। बहुत से कार्य और लोप ऐसे हैं जिन्हें पार्लियामेंट या फिर राज्य विधान मंडल ने अपराध बनाया है। किसी भी व्यक्ति के साथ जब ऐसा कोई अपराध घटता है तब उस व्यक्ति को पीड़ित कहा जाता है। जिस पीड़ित की परिभाषा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा (WA) में प्रस्तुत की गई है।ऐसा पीड़ित व्यक्ति सबसे पहले...
क्या पॉवर ऑफ अटॉर्नी या फिर फुल पेमेंट एग्रीमेंट पर प्रॉपर्टी खरीदना चाहिए
प्रॉपर्टी के सौदे किसी भी व्यक्ति के सारे जीवन की जमा की गई पूंजी से होते हैं। यह सौदे बहुत बड़ी धन राशि में होते हैं। इन सौदों को किए जाते समय बहुत सावधानी रखे जाने की जरूरत होती है।किसी भी प्रॉपर्टी को खरीदने पर स्टांप ड्यूटी अदा करनी होती है तब उस प्रॉपर्टी को सरकार द्वारा रजिस्ट्रीकरण एक्ट के अंतर्गत रजिस्टर्ड किया जाता है। स्टांप ड्यूटी बचाने के लिए कुछ लोगों द्वारा पॉवर ऑफ अटॉर्नी के जरिए प्रॉपर्टी खरीदना या फिर फुल पेमेंट एग्रीमेंट पर प्रॉपर्टी खरीदना जैसे चलन देखने को मिलते हैं।अगर भारत...
होम लोन के लिए जाने के क्या फायदे हो सकते हैं?
पुराने समय से बड़े लोग कहते आए हैं कि कर्ज़ नहीं लिया जाना चाहिए। कर्ज़ के लिए जाने का बहुत नुकसान है। आधुनिक समय में कर्ज की अवधारणा ही बदल गई। आज बहुत सारी जगह ऐसी है जहां कर्ज़ लिए जाने के कुछ फायदे भी हो सकते हैं। ऐसा ही एक कर्ज़ होम लोन है जहां कर्ज़ पर घर लिए जाने के कुछ फायदे भी हैं।होम लोन के बारे में कहा जाता है कि एक आदमी को अपनी सारी उम्र होम लोन का कर्ज चुकाना पड़ता है क्योंकि ऐसा होम लोन एक लंबे समय के लिए चलता है। ऐसा नहीं है कि लोग रुपए नहीं होने की वजह से होम लोन लेते हैं और दूसरे भी...
वैवाहिक मामलों में क्यों भेजे जाते हैं लीगल नोटिस और क्या है कानूनी बाध्यता
पति और पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद होने के परिणामस्वरूप तलाक और भरण पोषण जैसे मामले बनते हैं। तलाक के भरण पोषण का मामला न्यायालय में दर्ज करवाने के पहले पक्षकार एक दूसरे को लीगल नोटिस भेजते हैं। पक्षकार ऐसे लीगल नोटिस किसी वकील के जरिए भेजते हैं। सवाल यह है कि क्या ऐसे लीगल नोटिस भेजे जाने के लिए कोई कानूनी बाध्यता है या फिर इस लीगल नोटिस को भेजे जाने से पक्षकारों को कोई फायदा होता है।कानूनी जरूरत:-एक दूसरे को ऐसे लीगल नोटिस भेजे जाने की कानून में तो कोई जरूरत नहीं बताई गई है और इसका कोई भी...
तलाक के बाद दूसरा विवाह कैसे और कब किया जा सकता है
वैवाहिक विवादों में दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है। समाज में आए दिन पति और पत्नी के बीच वैवाहिक विवादों को देखा जा सकता है। यह विवाद बढ़ते हुए कुटुंब न्यायालय के समक्ष तक पहुंचते हैं और वहां मुकदमे के रूप में चलते हैं। इनमें तलाक के मुकदमे सर्वाधिक है। तलाक लेने हेतु हिंदू विवाह अधिनियम 1955 का कानून लागू होता है और उसी के साथ विशेष विवाह अधिनियम 1956 का कानून भी लागू होता है। हिंदू विवाह अधिनियम पक्षकारों के हिंदू होने पर लागू होता है और विशेष विवाह अधिनियम दो अलग-अलग धर्मों के लोगों द्वारा...
किसी व्यक्ति को रुपए या माल उधार देते समय कौन सी बातों का ध्यान रखें
वर्तमान व्यापारिक युग में माल उधार दिया जाना या फिर रुपए उधार दिया जाना एक आम चलन बन गया है। व्यक्ति के आम जीवन की समस्याएं भी अनेक है समय-समय पर आर्थिक समस्याएं घर कर जाती हैं जिनके परिणामस्वरूप व्यक्ति को उधार लेकर आर्थिक संकट से उभरना पड़ता है। व्यापार व्यवसाय चलाने हेतु भी उधार का सहारा लेना पड़ता है। कई मामले ऐसे मिलते हैं जहां किसी व्यक्ति द्वारा उधार माल ले लिया जाता है या उधार रुपए प्राप्त कर लिए जाते हैं पर उन्हें लौटाया नहीं जाता है और लौटाते समय उधार माल लेने वाले या फिर उधार रुपए...
मकान या जमीन खरीदते समय कौन सी कानूनी बातों की जांच करें
संपत्ति खरीदना आज के समय में हर व्यक्ति का सपना है। संपत्ति अत्यधिक महंगी होती है जिसे खरीदने में किसी व्यक्ति द्वारा अपने समस्त जीवन की आय लगा दी जाती है। ऐसी संपत्ति को खरीदते समय उससे जुड़ी हुई कानूनी जानकारियों की भलीभांति जांच कर लेना चाहिए। कौन सी बातों को जानना चाहिए इसकी जानकारी होना सभी के लिए जरूरी हो जाता है।कौन सी बातों की जांच करेंसंपत्ति दो प्रकार की हो सकती है। पहली वह संपत्ति जो किसी व्यक्ति द्वारा उपभोग की जा रही है और उसके उपभोग की जाने में एक लंबी यात्रा है। एक लंबे समय से वह...
क्या एक पत्नी को अपने पति और ससुराल वालों की संपत्ति में कोई हक है
भारत में कानून को लेकर बहुत सारी भ्रांतियां हैं। उन भ्रांतियों में एक भ्रांति यह भी है कि एक महिला को उसके पति की संपत्ति में अधिकार होता है या फिर पति के माता पिता की संपत्ति में कोई अधिकार होता है। इस मामले में भारत का कानून अत्यंत स्पष्ट है।क्या है कानून:-संपत्ति के उत्तराधिकार के मामले में भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और मुस्लिम पर्सनल लॉ में उत्तराधिकार के नियम लागू होते हैं। किसी भी व्यक्ति की संपत्ति दो प्रकार की होती है। पहली प्रकार की वह संपत्ति होती है जो उसमे...
क्या करें जब वाहन का एक्सीडेंट हो जाए, क्या है कानून?
मोटर वाहन मौजूदा समय की मांग है। आज हर व्यक्ति किसी न किसी मोटरयान से यात्रा कर रहा है इसलिए कहा जाता है कि वाहन वर्तमान समय की मांग है। जल्दबाजी उतावलेपन के कारण सड़क हादसे भी अधिक होते हैं। ऐसे सड़क हादसों से निपटने के लिए कुछ कानून बनाए गए हैं। उन कानूनों के जरिए सड़क हादसों से बचाने की कोशिश सरकार द्वारा की गई है।आज सड़क हादसे अत्यधिक हो रहे हैं ऐसे में इनसे संबंधित कानूनों की जानकारी होना आवश्यक हो जाता है।क्या है कानून:-सड़क हादसे अनेक प्रकार के होते हैं जैस दो पहिया वाहन का किसी ट्रक से...
भरण पोषण का आदेश हो जाने के बाद कैसे करें वसूली
भरण पोषण एक प्रसिद्ध कानूनी अवधारणा है वर्तमान परिस्थितियों में भरण पोषण पति द्वारा छोड़ी गई पत्नी को प्राप्त हो रहा है। हालांकि कानून में ऐसा भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार हर उस व्यक्ति को है जो दूसरे व्यक्ति के ऊपर आश्रित रहता है। जैसे बच्चे को माता पिता से भरण-पोषण करने का अधिकार है, माता पिता को बच्चों से भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार है परंतु समाज में साधारण रूप से पति द्वारा छोड़ी गई पत्नी अधिकांश रूप से ऐसी भरण पोषण की याचिका लेकर न्यायालय में आती है।इन कानूनों में प्राप्त होता है...
किराया अनुबंध 11 महीने का क्यों होता है और किराएदार क्या कभी मकान मालिक हो सकता है
आधुनिक समय में किराएदार और मकान मालिक व्यवस्था अधिक देखने को मिल रही है क्योंकि शहरो का विस्तार हो रहा है और शहरों में दूसरे शहर के लोग आकर रह रहे हैं जिससे वे किसी मकान में कुछ समय के लिए किराएदार के नाते से रहते हैं। किसी संपत्ति के मालिक के लिए भी यह कच्छी आय का साधन हो गया है। संपत्ति के मालिक अपनी संपत्तियों को किराए पर देकर एक बेहतरीन आय अर्जित करते हैं।किराया अनुबंध एक कानूनी विषय है तो इस पर सभी कानूनी जानकारियां उन व्यक्तियों को होना चाहिए जो किसी संपत्ति को किराए पर देते हैं और जो किसी...
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 भाग:19 इस अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा लगाए जाने की प्रक्रिया और आवश्यक दस्तावेज
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 (The Consumer Protection Act, 2019) से संबंधित सभी आलेखों में इस अधिनियम के महत्वपूर्ण प्रावधानों पर चर्चा की गई है। उनसे संबंधित न्याय निर्णय प्रस्तुत किए गए हैं। इस आलेख के अंतर्गत इस अधिनियम के अंतर्गत कोई भी शिकायत दर्ज किए जाने की प्रक्रिया से संबंधित जानकारियां प्रस्तुत की जा रही है और किसी मुकदमे को दर्ज करवाने हेतु उसमें लगने वाले आवश्यक दस्तावेजों की सूची प्रस्तुत की जा रही है।कैसे दर्ज करवाएं मुकदमा-जैसा की विदित है इस अधिनियम के अंतर्गत त्रिस्तरीय आयोग...
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 भाग:18 इस अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा दर्ज करने हेतु लगने वाली कोर्ट फीस
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 (The Consumer Protection Act, 2019) के तहत बनाए गए नियम शिकायत दायर करने के लिए शुल्क के संबंध में उल्लेख करते हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। इस अधिनियम के अंतर्गत यह प्रयास किया गया है कि एक उपभोक्ता को शीघ्र और सरल तथा सस्ता न्याय मिल सके। सिविल न्यायालय में कोई भी मुकदमा दर्ज करने हेतु अत्यधिक कोर्ट फीस लगती है। इस कोर्ट फीस के कारण अनेक लोग सिविल न्यायालय में मुकदमा दर्ज भी नहीं कर पाते हैं। उपभोक्ता...
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 भाग:17 इस अधिनियम पर कोई अन्य अधिनियम लागू नहीं होना
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 (The Consumer Protection Act, 2019) की धारा 100 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के संदर्भ में इस विषय पर अन्य अधिनियम के अल्पीकरण के संबंध में अर्थात उनके लागू न होने के संबंध में उल्लेख करती है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 100 से संबंधित प्रावधानों पर चर्चा की जा रही है।यह अधिनियम में प्रस्तुत की गई धारा का मूल स्वरूप है:-धारा-100अधिनियम का किसी अन्य विधि के अल्पीकरण में न होना इस अधिनियम के उपबंध तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबंधों के अतिरिक्त होंगे न कि उनके...
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 भाग:16 अधिनियम के अंतर्गत दाण्डिक प्रावधान
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 (The Consumer Protection Act, 2019) की धारा 88, 90, 91 आपराधिक प्रावधान करती है। इन धाराओं के अंतर्गत अधिनियम में कुछ कामों को अपराध बनाया है और उनके लिए दंड तय किया गया है। यह अधिनियम एक सिविल प्रकृति का अधिनियम है परंतु इसमें कहीं कहीं कुछ प्रावधान दाण्डिक प्रकृति के हैं। अंत में इस अधिनियम के अंतर्गत इन धाराओं को दिए जाने का उद्देश्य इस अधिनियम को समाज में प्रभावशाली बनाना है जिससे उपभोक्ताओं का शोषण करने वाले व्यापारियों के भीतर भय बना रहे। अधिनियम की इन धाराओं...
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 भाग:15 आयोग के आदेशों का प्रवर्तन और अनुपालन न करने पर पेनाल्टी
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 (The Consumer Protection Act, 2019) की धारा 71 एवं 72 में आयोग द्वारा दिए गए आदेशो के पालन के विषय में तथा उनका पालन नहीं करने पर शास्ति अर्थात पेनाल्टी का उल्लेख किया गया है। इस आलेख के अंतर्गत इन ही दो धाराओं पर सारगर्भित टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।यह अधिनियम में प्रस्तुत की गई धारा का मूल स्वरूप है:-धारा- 71जिला आयोग, राज्य आयोग और राष्ट्रीय आयोग के आदेशों का प्रवर्तन जिला आयोग, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग द्वारा किया गया प्रत्येक आदेश इसके द्वारा उस रीति...
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 भाग:14 मुकदमा दर्ज करवाने हेतु परिसीमा की अवधि
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 (The Consumer Protection Act, 2019) की धारा 69 इस अधिनियम के महत्वपूर्ण धाराओं में से एक है। यह अधिनियम अपने आप में एक संपूर्ण संहिता है जो इस अधिनियम से संबंधित प्रक्रिया को भी स्थापित करता है। इस अधिनियम के अंतर्गत मुकदमों को संस्थित करने हेतु परिसीमा का भी निर्धारण कर दिया गया है।यदि कोई मुकदमा इस परिसीमा अवधि के भीतर आयोग के समक्ष लाया जाता है तभी उस मुकदमे को सुनवाई योग्य माना जाता है। यदि इस अवधि के बाहर किसी मुकदमे को लाया जाता है तब उस मुकदमे पर सुनवाई नहीं...