झूठा साक्ष्य देना और लोक न्याय के विरुद्ध अपराध: बीएनएस, 2023 की धारा 227

Himanshu Mishra

2 Oct 2024 6:11 PM IST

  • झूठा साक्ष्य देना और लोक न्याय के विरुद्ध अपराध: बीएनएस, 2023 की धारा 227

    भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) ने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) को प्रतिस्थापित किया है और यह 1 जुलाई, 2024 से लागू हो गई है। इस संहिता के अध्याय XIV में झूठे साक्ष्य और लोक न्याय के विरुद्ध अपराधों (Offenses Against Public Justice) के बारे में विस्तार से बताया गया है। इस लेख में हम धारा 227 पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जो झूठे साक्ष्य (False Evidence) की परिभाषा देती है और इसे समझाने के लिए उदाहरण (Illustrations) भी देती है।

    धारा 227: झूठे साक्ष्य की परिभाषा (Section 227: Definition of False Evidence)

    धारा 227 में यह बताया गया है कि झूठे साक्ष्य क्या होते हैं। यदि कोई व्यक्ति कानूनन किसी शपथ (Oath), कानून की स्पष्ट व्यवस्था या किसी घोषणा (Declaration) के तहत सच बोलने के लिए बाध्य है, और वह झूठा बयान देता है, जिसे वह जानता है या मानता है कि वह झूठा है, या जिसमें वह विश्वास नहीं करता, तो उसे झूठा साक्ष्य माना जाएगा।

    स्पष्टीकरण 1: बयानों के रूप (Explanation 1: Forms of Statements)

    इस स्पष्टीकरण में यह स्पष्ट किया गया है कि झूठा बयान मौखिक (Verbally) हो सकता है या किसी अन्य रूप में भी दिया जा सकता है। इसका मतलब है कि चाहे व्यक्ति झूठ बोलकर बयान दे या किसी अन्य माध्यम से संवाद करे, यह झूठा साक्ष्य माना जाएगा।

    स्पष्टीकरण 2: विश्वास का झूठा बयान (Explanation 2: False Statement of Belief)

    दूसरे स्पष्टीकरण में यह बताया गया है कि कोई व्यक्ति झूठा साक्ष्य तब भी दे सकता है जब वह अपने विश्वास (Belief) के बारे में झूठा बयान दे। उदाहरण के लिए, यदि कोई कहता है कि वह किसी चीज़ में विश्वास करता है, जबकि वास्तव में वह विश्वास नहीं करता, तो वह झूठा साक्ष्य देगा। यह उन मामलों पर लागू होता है जब व्यक्ति अपने ज्ञान (Knowledge) या विश्वास के बारे में झूठ बोलता है।

    झूठे साक्ष्य के उदाहरण (Illustrations of False Evidence)

    झूठे साक्ष्य की अवधारणा को और बेहतर ढंग से समझाने के लिए धारा 227 में कई उदाहरण दिए गए हैं। ये उदाहरण बताते हैं कि कैसे अलग-अलग स्थितियों में झूठे साक्ष्य दिए जा सकते हैं।

    उदाहरण (a)

    स्थिति (Scenario): A नाम का व्यक्ति एक मुकदमे में झूठी गवाही देता है ताकि B के Z पर एक हज़ार रुपये के दावे का समर्थन किया जा सके। A शपथ लेकर कहता है कि उसने Z को B के दावे की सच्चाई स्वीकार करते हुए सुना है, जबकि यह सच नहीं है।

    व्याख्या (Explanation): इस मामले में, A ने जानबूझकर झूठी जानकारी दी है जबकि वह सच बोलने की शपथ के तहत था। B के दावे का समर्थन करने के लिए इस झूठे बयान को देकर, A ने झूठा साक्ष्य दिया है।

    उदाहरण (b)

    स्थिति (Scenario): A नाम का व्यक्ति, जो सच बोलने के लिए शपथबद्ध है, गवाही देता है कि वह मानता है कि एक विशेष हस्ताक्षर Z का है, जबकि वह वास्तव में ऐसा नहीं मानता।

    व्याख्या (Explanation): यहाँ, A यह जानते हुए कि हस्ताक्षर Z के नहीं हैं, झूठ बोल रहा है। A यह जानते हुए कि उसका बयान झूठा है, झूठा साक्ष्य देता है क्योंकि वह कुछ ऐसा कह रहा है जिसमें वह विश्वास नहीं करता।

    उदाहरण (c)

    स्थिति (Scenario): A, जो Z की लिखावट (Handwriting) को सामान्य रूप से जानता है, गवाही देता है कि उसे विश्वास है कि एक विशेष हस्ताक्षर Z का है। A वास्तव में ऐसा विश्वास करता है, हालांकि बाद में यह पता चलता है कि हस्ताक्षर Z के नहीं हैं।

    व्याख्या (Explanation): इस मामले में, A ने झूठा साक्ष्य नहीं दिया है क्योंकि A का बयान उसकी सच्ची धारणा (Belief) पर आधारित है। भले ही A का विश्वास गलत हो, लेकिन उसने जो गवाही दी वह उसके विश्वास के अनुसार सही थी। यहाँ अच्छी नीयत (Good Faith) में किया गया विश्वास झूठे साक्ष्य के दायरे में नहीं आता।

    उदाहरण (d)

    स्थिति (Scenario): A नाम का व्यक्ति, जो शपथबद्ध है, कहता है कि उसे पता है कि Z एक विशेष दिन एक विशेष स्थान पर था, जबकि A को इस बारे में कुछ भी पता नहीं है।

    व्याख्या (Explanation): इस स्थिति में, A झूठा साक्ष्य दे रहा है क्योंकि वह ऐसा दावा कर रहा है कि उसे उस विषय पर जानकारी है, जबकि वास्तव में उसे कुछ भी पता नहीं है। Z उस दिन वहां था या नहीं, यह महत्वपूर्ण नहीं है; A का झूठे ज्ञान का दावा ही उसे झूठा साक्ष्य बनाता है।

    उदाहरण (e)

    स्थिति (Scenario): A नाम का व्यक्ति एक दुभाषिया (Interpreter) या अनुवादक (Translator) है और उसे किसी बयान या दस्तावेज़ का सही अनुवाद (Translation) करने की शपथ दिलाई गई है। हालांकि, A जानबूझकर गलत अनुवाद प्रस्तुत करता है।

    व्याख्या (Explanation): इस मामले में, A ने झूठा साक्ष्य दिया है क्योंकि उसने जानबूझकर गलत अनुवाद प्रदान किया है। A को सही अनुवाद करने की शपथ दिलाई गई थी, लेकिन उसने यह शपथ तोड़ी, इसलिए यह झूठा साक्ष्य है।

    धारा 227 से मुख्य बातें (Key Takeaways from Section 227)

    धारा 227 का मुख्य सार यह है कि झूठे साक्ष्य तब होते हैं जब कोई व्यक्ति जानबूझकर झूठे बयान देता है, चाहे वह तथ्य के बारे में हो या विश्वास के बारे में। व्यक्ति को शपथ, कानून या घोषणा के तहत सच बोलने के लिए बाध्य होना चाहिए। झूठा साक्ष्य सिर्फ तथ्यों के बारे में झूठ बोलने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विश्वास के बारे में झूठ बोलने को भी शामिल करता है।

    इस धारा के स्पष्टीकरण और उदाहरण स्पष्ट करते हैं कि झूठे साक्ष्य कई रूपों में हो सकते हैं। चाहे किसी ने सुनी-सुनाई बात पर झूठी गवाही दी हो, हस्ताक्षर के बारे में झूठ बोला हो, या गलत अनुवाद किया हो, यदि यह जानबूझकर किया गया है, तो यह झूठा साक्ष्य माना जाएगा।

    संधिता न्यायिक कार्यवाही (Judicial Proceedings) में सत्यता (Truthfulness) की महत्ता को रेखांकित करती है और झूठे साक्ष्य देने के लिए कड़ी सज़ा का प्रावधान किया गया है ताकि न्याय प्रक्रिया की पवित्रता बनी रहे।

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