क्या एडवर्स पोजेशन के आधार पर कोई व्यक्ति Article 65 के तहत मालिकाना हक के लिए मुकदमा कर सकता है?
Himanshu Mishra
30 Sept 2024 6:07 PM IST
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अक्सर यह सवाल सुना है कि क्या एडवर्स पोजेशन (Adverse Possession) का दावा करने वाला व्यक्ति मालिकाना हक (Declaration of Title) और स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent Injunction) के लिए Article 65 के तहत मुकदमा दायर कर सकता है। यह सवाल उस व्यक्ति के अधिकारों पर आधारित है जिसने लंबे समय तक संपत्ति पर कब्जा बनाए रखा है और अब वह उस कब्जे को कानूनी तौर पर वैध बनाना चाहता है।
इस लेख में, हम एडवर्स पोजेशन से जुड़े प्रावधानों (Provisions), न्यायिक व्याख्याओं (Judicial Interpretations), और इससे संबंधित मौलिक मुद्दों (Fundamental Issues) की चर्चा करेंगे।
एडवर्स पोजेशन क्या है?
एडवर्स पोजेशन एक कानूनी सिद्धांत (Legal Doctrine) है जिसके तहत यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य की भूमि पर लंबे समय तक कब्जा रखता है, तो वह व्यक्ति कुछ शर्तों के पूरा होने पर उस भूमि का कानूनी मालिक (Legal Owner) बन सकता है। इन शर्तों में यह जरूरी है कि कब्जा सतत (Continuous), सार्वजनिक (Open) और असली मालिक के हितों के खिलाफ (Hostile) हो। भारतीय कानून में एडवर्स पोजेशन को Article 65 के तहत सुसंगत किया गया है, जो यह निर्धारित करता है कि असली मालिक को कब्जा वापस पाने के लिए 12 साल का समय दिया जाता है।
यह सिद्धांत विवादास्पद (Controversial) है क्योंकि यह किसी ऐसे व्यक्ति को कानूनी हक (Legal Ownership) प्रदान करता है जिसे कानूनन अतिक्रमणकारी (Trespasser) माना जा सकता है। लेकिन इसका औचित्य (Justification) यह है कि भूमि का उत्पादक उपयोग (Productive Use) होना चाहिए, और यदि असली मालिक संपत्ति की देखभाल नहीं करता है तो वह अपने अधिकार खो सकता है।
Limitation Act, 1963 का Article 65
Article 65 के अनुसार, जो व्यक्ति किसी संपत्ति पर 12 साल तक कब्जा बनाए रखता है, उसके खिलाफ असली मालिक का अधिकार समाप्त हो जाता है। यह अवधि तब शुरू होती है जब कब्जाधारी व्यक्ति संपत्ति का एडवर्स पोजेशन करता है, यानी जब वह उस पर मालिकाना हक का दावा करता है। 12 साल पूरे होने के बाद असली मालिक संपत्ति का कानूनी हक खो देता है।
यहां मुख्य सवाल यह उठता है कि क्या जो व्यक्ति 12 साल या उससे अधिक समय से एडवर्स कर रहा है, वह मालिकाना हक (Declaration of Title) और स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent Injunction) के लिए मुकदमा दायर कर सकता है? ऐतिहासिक रूप से, एडवर्स पोजेशन को "ढाल" (Shield) माना गया है, जिसका इस्तेमाल बचाव (Defense) के लिए होता है, न कि मुकदमा शुरू करने के लिए।
न्यायिक व्याख्या (Judicial Interpretation): एडवर्स पोजेशन "ढाल" या "तलवार" (Shield or Sword)?
Ravinder Kaur Grewal v. Manjit Kaur के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि एडवर्स पोजेशन का दावा करने वाला व्यक्ति Article 65 के तहत मालिकाना हक और स्थायी निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा कर सकता है।
कोर्ट ने माना कि यदि किसी व्यक्ति ने एडवर्स पोजेशन के माध्यम से अपना हक सिद्ध कर लिया है, तो वह उस हक की घोषणा (Declaration) के लिए मुकदमा दायर कर सकता है और दूसरों को, यहां तक कि असली मालिक को भी, हस्तक्षेप करने से रोक सकता है।
यह निर्णय पहले के न्यायिक फैसलों, जैसे कि Gurudwara Sahib v. Gram Panchayat Village Sirthala (2014), से भिन्न था, जिसमें अदालत ने कहा था कि एडवर्स पोजेशन के आधार पर मुकदमा दायर नहीं किया जा सकता।
उस मामले में, कोर्ट ने माना था कि एडवर्स पोजेशन केवल एक बचाव (Defense) के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, न कि मुकदमे के आधार के रूप में। लेकिन Ravinder Kaur Grewal के फैसले ने इस स्थिति को बदल दिया और कहा कि एक बार जब कब्जाधारी ने अपना हक सिद्ध कर लिया हो, तो वह उसे कानूनी तौर पर मान्यता दिलाने के लिए मुकदमा कर सकता है।
Article 65 के तहत कब्जे की सुरक्षा (Protection of Possession)
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, Limitation Act का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संपत्ति पर दावा (Claim) उचित समय के भीतर किया जाए। यदि कोई व्यक्ति 12 साल तक संपत्ति पर कब्जा बनाए रखता है और उस दौरान असली मालिक कोई कार्रवाई नहीं करता है, तो कानून यह मान लेता है कि मालिक ने अपनी संपत्ति पर दावा छोड़ दिया है।
ऐसे में कब्जाधारी व्यक्ति को कानूनी अधिकार मिल जाते हैं, और वह किसी भी हस्तक्षेप (Interference) के खिलाफ सुरक्षा (Protection) की मांग कर सकता है।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि एडवर्स पोजेशन स्वाभाविक रूप से गलत नहीं है। यह केवल तब गलत होता है जब यह असली मालिक के हितों के खिलाफ होता है, और यहां भी मालिक को 12 साल का समय दिया गया है अपनी संपत्ति वापस लेने के लिए।
यदि वह इस समय सीमा के भीतर कोई कदम नहीं उठाता है, तो वह अपने अधिकारों को खो देता है और कब्जाधारी व्यक्ति वैध हकदार (Legal Owner) बन जाता है।
एडवर्स पोजेशन पर मुख्य न्यायिक फैसले (Key Judgments on Adverse Possession)
1. Balkrishan v. Satyaprakash & Ors. (2001): इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि एडवर्स पोजेशन साबित करने के लिए तीन मुख्य शर्तों को पूरा करना होता है: कब्जा सतत (Continuous), सार्वजनिक (Public), और शांतिपूर्ण (Peaceful) होना चाहिए। कब्जा असली मालिक के हितों के खिलाफ भी होना चाहिए।
2. Des Raj v. Bhagat Ram (2007): इस मामले में अदालत ने पुष्टि की कि एडवर्स पोजेशन के आधार पर मालिकाना हक का दावा किया जा सकता है, बशर्ते कि कब्जाधारी यह साबित कर सके कि उसका कब्जा असली मालिक की जानकारी में था और उस पर अधिकार जमाया गया था।
3. Kshitish Chandra Bose v. Commissioner of Ranchi (1981): इस मामले में अदालत ने माना कि यदि कोई व्यक्ति 30 साल से अधिक समय तक संपत्ति पर कब्जा बनाए रखता है, तो वह एडवर्स पोजेशन (Adverse Possession) के आधार पर मालिकाना हक का दावा कर सकता है।
एडवर्स पोजेशन के आधार पर मुकदमा दायर करने का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट के Ravinder Kaur Grewal v. Manjit Kaur के फैसले ने यह स्पष्ट किया है कि जो व्यक्ति एडवर्स पोजेशन के माध्यम से मालिकाना हक प्राप्त करता है, वह Article 65 के तहत मालिकाना हक और स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent Injunction) के लिए मुकदमा दायर कर सकता है। यह फैसला पहले के फैसलों से एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है, जहां एडवर्स पोजेशन को केवल एक बचाव (Defense) के रूप में देखा जाता था। नए दृष्टिकोण के तहत, एडवर्स पोजेशन का उपयोग एक कानूनी दावा (Legal Claim) के लिए किया जा सकता है।
यह निर्णय यह भी सुनिश्चित करता है कि कानून भूमि के उत्पादक उपयोग (Productive Use) को प्रोत्साहित करता है और मालिकों को अपनी संपत्ति को लंबे समय तक उपेक्षित (Neglect) करने के लिए हतोत्साहित करता है। एडवर्स पोजेशन भले ही विवादास्पद (Controversial) हो, लेकिन अदालत का यह निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि जो लोग बिना रुकावट के लंबे समय तक भूमि पर कब्जा करते हैं, वे अपने कानूनी अधिकारों को सुरक्षित कर सकें।