न्यायालयों द्वारा मामलों की संज्ञान लेने की शर्तें: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अंतर्गत धारा 215

Himanshu Mishra

3 Oct 2024 6:33 PM IST

  • न्यायालयों द्वारा मामलों की संज्ञान लेने की शर्तें: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अंतर्गत धारा 215

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) ने Criminal Procedure Code को प्रतिस्थापित किया है और यह 1 जुलाई, 2024 से लागू हो चुकी है। इस नए कानून में महत्वपूर्ण प्रावधानों में से एक यह है कि न्यायालय कैसे और कब किसी अपराध का संज्ञान (Cognizance) ले सकते हैं।

    संज्ञान का अर्थ यह है कि न्यायालय किसी अपराध के बारे में जानकारी प्राप्त करता है और उस पर आगे की कार्रवाई करने का निर्णय करता है। इस लेख में हम संज्ञान से जुड़े प्रावधानों और शर्तों पर चर्चा करेंगे, विशेष रूप से जब अपराध सार्वजनिक सेवकों और न्यायिक कार्यवाही से जुड़े हों।

    धारा 215: न्यायालय द्वारा संज्ञान लेने की सीमाएं

    उपधारा (1): न्यायालय बिना लिखित शिकायत के संज्ञान नहीं ले सकता

    धारा 215(1) में कुछ विशेष श्रेणियों के अपराधों के लिए न्यायालयों को संज्ञान लेने से रोका गया है जब तक कि उस मामले से संबंधित सार्वजनिक सेवक या अदालत के अधिकारी की लिखित शिकायत न हो।

    इसमें सार्वजनिक सेवकों द्वारा किए गए अपराध, न्यायिक कार्यवाही के दौरान किए गए अपराध, और अन्य मामलों से जुड़े अपराध शामिल हैं।

    मुख्य प्रावधान:

    1. सार्वजनिक सेवकों द्वारा अपराध (धारा 206 से 223, भारतीय न्याय संहिता के अंतर्गत) यदि कोई अपराध भारतीय न्याय संहिता की धारा 206 से 223 (धारा 209 को छोड़कर) के अंतर्गत आता है, तो न्यायालय तब तक संज्ञान नहीं ले सकता जब तक कि संबंधित सार्वजनिक सेवक या उसके अधिकृत अधिकारी की लिखित शिकायत न हो। यह नियम अपराध के प्रयास, उकसाने, या आपराधिक षड्यंत्र (Conspiracy) पर भी लागू होता है।

    उदाहरण: यदि कोई सार्वजनिक सेवक अपने कार्य के दौरान सार्वजनिक संपत्ति का दुरुपयोग करता है (धारा 208 के अंतर्गत), तो न्यायालय तभी मामले पर कार्रवाई करेगा जब उस सेवक या उसके वरिष्ठ द्वारा औपचारिक शिकायत दर्ज की जाएगी।

    2. न्यायिक कार्यवाही में जुड़े अपराध न्यायालय की कार्यवाही से जुड़े अपराध, जैसे झूठे सबूत गढ़ना या न्यायिक प्रक्रिया में बाधा डालना (धारा 229 से 233, 236, 237, 242 से 248, और 267), के मामले में न्यायालय तभी संज्ञान ले सकता है जब न्यायाधीश या अदालत के अधिकारी द्वारा लिखित शिकायत दर्ज की जाए।

    उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति अदालत में झूठा दस्तावेज प्रस्तुत करता है (धारा 229), तो न्यायालय तभी मामला आगे बढ़ाएगा जब संबंधित न्यायाधीश या अधिकारी द्वारा शिकायत दर्ज की जाएगी।

    3. दस्तावेज़ों या सबूतों से जुड़े अपराध धारा 215 उन मामलों पर भी लागू होती है जहाँ कोई अपराध किसी दस्तावेज या सबूत से जुड़ा हो। ऐसे मामलों में न्यायालय तभी संज्ञान लेगा जब उस दस्तावेज से संबंधित न्यायिक अधिकारी की लिखित शिकायत दर्ज हो।

    उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति न्यायालय में नकली दस्तावेज़ प्रस्तुत करता है, तो न्यायालय तभी कार्यवाही करेगा जब संबंधित न्यायाधीश द्वारा शिकायत की जाए।

    उपधारा (2): सार्वजनिक सेवकों द्वारा शिकायतों की वापसी

    यह प्रावधान सार्वजनिक सेवकों को दी गई शिकायतों को वापस लेने की अनुमति देता है। हालांकि, यह तभी संभव है जब शिकायत को दर्ज करने वाला अधिकारी उस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी द्वारा अधिकृत हो।

    एक बार शिकायत वापस ले ली गई तो न्यायालय उस पर आगे की कार्यवाही नहीं कर सकता। हालांकि, यह वापसी तभी मान्य होगी जब न्यायालय में प्रारंभिक परीक्षण (Trial) समाप्त नहीं हुआ हो।

    उदाहरण: यदि किसी सरकारी अधिकारी के खिलाफ गलत धन उपयोग करने की शिकायत की गई है, लेकिन विभाग ने बाद में इसे वापस लेने का निर्णय लिया है, तो यदि परीक्षण अभी पूरा नहीं हुआ है, तो मामला वहीं समाप्त हो जाएगा।

    उपधारा (3): "न्यायालय" का परिभाषित रूप

    धारा 215(3) के अंतर्गत "न्यायालय" की परिभाषा में दीवानी (Civil), राजस्व (Revenue) या आपराधिक (Criminal) अदालतें शामिल हैं, साथ ही वे न्यायाधिकरण (Tribunals) भी शामिल हैं जो किसी केंद्रीय या राज्य अधिनियम के तहत स्थापित किए गए हैं और जिन्हें उस अधिनियम द्वारा न्यायालय घोषित किया गया है।

    उदाहरण: एक राजस्व न्यायाधिकरण जो भूमि विवादों से निपटता है, इस धारा के तहत "न्यायालय" माना जाएगा, और उसकी कार्यवाही से जुड़े अपराधों के मामले में न्यायालय द्वारा संज्ञान लेने के लिए औपचारिक शिकायत आवश्यक होगी।

    उपधारा (4): न्यायालयों की अधीनता का निर्धारण

    यह प्रावधान यह स्पष्ट करता है कि कौन सा न्यायालय किस न्यायालय के अधीन माना जाएगा। सामान्यत:, वह न्यायालय जिस पर अपील की जा सकती है, उस न्यायालय को अधीनस्थ (Subordinate) माना जाता है।

    अगर किसी दीवानी न्यायालय के फैसले पर अपील नहीं की जा सकती, तो वह अदालत उस क्षेत्र के प्रधान दीवानी न्यायालय के अधीन मानी जाएगी।

    उदाहरण: एक जिला न्यायालय, जिसके फैसले आमतौर पर हाईकोर्ट में अपील किए जाते हैं, उस हाईकोर्ट के अधीन माना जाएगा। इसी तरह, अगर कोई भूमि विवाद राजस्व न्यायालय में है, तो वह अदालत दीवानी न्यायालय के अधीन मानी जाएगी।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में न्यायालय द्वारा संज्ञान लेने के नियम स्पष्ट किए गए हैं, खासतौर से उन मामलों में जहाँ सार्वजनिक सेवक और न्यायिक कार्यवाही शामिल हैं।

    धारा 215 में यह प्रावधान है कि न्यायालय किसी अपराध का संज्ञान तभी ले सकता है जब शिकायत औपचारिक रूप से अधिकृत अधिकारी द्वारा दर्ज की गई हो। शिकायतों की वापसी की प्रक्रिया भी स्पष्ट है, जिससे मामलों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया जा सके।

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