क्या सरकार द्वारा 'Substantially Financed' NGO RTI Act के दायरे में आते हैं?

Himanshu Mishra

1 Oct 2024 6:06 PM IST

  • क्या सरकार द्वारा Substantially Financed NGO RTI Act के दायरे में आते हैं?

    Right to Information (RTI) Act, 2005 का उद्देश्य पारदर्शिता (Transparency) और जवाबदेही (Accountability) को बढ़ावा देना है, जिसके तहत नागरिकों को सरकारी अधिकारियों से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है। इस संदर्भ में, एक महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि क्या वे गैर-सरकारी संगठन (NGOs), जो सरकार द्वारा 'Substantially Financed' यानी बड़े पैमाने पर वित्तपोषित (Substantially Funded) हैं, RTI Act के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण (Public Authority) माने जाते हैं? इस प्रश्न पर D.A.V. College Trust and Management Society & Ors. v. Director of Public Instructions के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) ने निर्णय देते हुए 'Substantial Financing' और ऐसे NGOs की स्थिति पर महत्वपूर्ण स्पष्टता प्रदान की।

    RTI Act के तहत 'Public Authority' की परिभाषा

    RTI Act की धारा 2(h) (Section 2(h)) में 'Public Authority' को परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार, कोई भी संस्था या निकाय (Body or Institution), जो संविधान (Constitution) द्वारा या संसद (Parliament) या राज्य विधानमंडल (State Legislature) द्वारा बनाई गई हो, उसे 'Public Authority' माना जाता है। इसके अतिरिक्त, वे निकाय भी शामिल हैं जो सरकार द्वारा 'Owned, Controlled या Substantially Financed' हैं। धारा में यह भी स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वे NGOs, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सरकार द्वारा 'Substantially Financed' हैं, वे भी RTI Act के दायरे में आते हैं।

    NGOs को 'Public Authority' के रूप में परिभाषित किया जाना इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे उन संगठनों की जिम्मेदारी तय होती है जो सार्वजनिक धन (Public Funds) का उपयोग कर रहे हैं। RTI Act का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जब भी सार्वजनिक धन का उपयोग किया जाए, तो उसकी जानकारी नागरिकों को मिल सके और वे यह जान सकें कि सरकारी संसाधनों (Government Resources) का उपयोग कैसे किया जा रहा है।

    'Substantially Financed' की न्यायिक व्याख्या (Judicial Interpretation)

    D.A.V. College Trust के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल पर विचार किया कि क्या NGOs, जो शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत हैं और सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त करते हैं, RTI Act के तहत Public Authority माने जा सकते हैं। अपीलकर्ताओं (Appellants) ने तर्क दिया कि NGOs Public Authority नहीं हैं और इसलिए उन्हें RTI Act के तहत सूचना प्रदान करने की बाध्यता नहीं होनी चाहिए।

    हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि Public Authority की परिभाषा केवल चार श्रेणियों तक सीमित नहीं है। धारा 2(h) के दूसरे हिस्से में यह भी कहा गया है कि जो निकाय 'Owned, Controlled या Substantially Financed' हैं, वे भी इस परिभाषा के तहत आते हैं। अदालत ने यह भी समझाया कि 'Substantially Financed' का अर्थ यह नहीं है कि संगठन की 50% से अधिक वित्तीय सहायता होनी चाहिए। इसके बजाय, इसका मतलब यह है कि उस संगठन की गतिविधियों (Operations) पर वित्तीय सहायता का इतना प्रभाव हो कि बिना इस सहायता के वह कार्य करना कठिन हो।

    'Substantial Financing' पर महत्वपूर्ण निर्णय (Key Judgments on 'Substantial Financing')

    इससे पहले Thalappalam Service Cooperative Bank Ltd. v. State of Kerala के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने धारा 2(h) की व्याख्या की थी। न्यायालय ने कहा था कि केवल सरकारी अनुदान (Grants) प्राप्त करना यह सिद्ध नहीं करता कि कोई संस्था Substantially Financed है। इसके लिए यह दिखाना आवश्यक है कि यह वित्तीय सहायता इतनी महत्वपूर्ण हो कि बिना इसके संस्था का संचालन (Functioning) संभव न हो।

    D.A.V. College Trust के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने यह जोड़ा कि Substantial Financing प्रत्यक्ष (Direct) या अप्रत्यक्ष (Indirect) दोनों हो सकती है। उदाहरण के लिए, अगर किसी NGO को शहर में जमीन मुफ्त या बहुत सस्ते में दी जाती है, तो इसे भी Substantial Financing माना जाएगा। यह केवल नकद सहायता (Monetary Contributions) तक सीमित नहीं है, बल्कि अन्य प्रकार की सहायता, जैसे कि कर में छूट (Tax Exemptions) या अन्य विशेषाधिकार (Privileges), भी इसके अंतर्गत आते हैं।

    सार्वजनिक पारदर्शिता में NGOs की भूमिका (Role of NGOs in Public Transparency)

    न्यायालय ने अपने फैसले में यह भी कहा कि यदि कोई NGO सरकार से Substantial Financing प्राप्त कर रहा है, तो उसे RTI Act के तहत सार्वजनिक जांच (Public Scrutiny) के लिए उत्तरदायी होना चाहिए। इसके पीछे का तर्क यह है कि सार्वजनिक धन का उपयोग पारदर्शी (Transparent) रूप से होना चाहिए और नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि उनका कर का पैसा (Tax Money) कैसे खर्च किया जा रहा है, चाहे वह किसी सरकारी निकाय (Government Body) द्वारा हो या किसी NGO द्वारा।

    न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि ऐसे NGOs को RTI Act के दायरे से बाहर रखना, जो सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त कर रहे हैं, RTI Act के उद्देश्य को विफल करेगा। RTI Act का उद्देश्य पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना है, खासकर तब जब सार्वजनिक धन का उपयोग हो रहा हो। इस फैसले के बाद, यह सुनिश्चित हो गया कि जो NGOs Substantially Financed हैं, वे भी जवाबदेही के दायरे में आएंगे और उनके द्वारा प्राप्त सरकारी धन की जानकारी नागरिकों को उपलब्ध होगी।

    RTI Act की 'Purposive Interpretation' (Purposive Interpretation of the RTI Act)

    इस मामले में अदालत ने 'Purposive Interpretation' के सिद्धांत (Principle) पर जोर दिया। इस सिद्धांत के अनुसार, कानून की व्याख्या (Interpretation) इस तरह की जानी चाहिए कि वह अपने उद्देश्य (Purpose) को पूरा करे। RTI Act का उद्देश्य पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना है, और अदालत ने इस सिद्धांत को लागू करते हुए Public Authority की परिभाषा को विस्तारित किया, ताकि वे NGOs भी इसमें शामिल हो सकें जो सरकार से Substantial Financing प्राप्त करते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि नागरिक सरकारी धन के उपयोग पर नजर रख सकें, चाहे वह धन किसी सरकारी संस्था या NGO के पास हो।

    अदालत ने यह भी कहा कि धारा 2(h) की भाषा कुछ हद तक अस्पष्ट (Ambiguous) हो सकती है और इसे अलग-अलग तरीकों से समझा जा सकता है। लेकिन Purposive Interpretation सिद्धांत को लागू करते हुए अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि RTI Act का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जो भी संस्था सरकार से Substantial Financing प्राप्त कर रही है, वह सार्वजनिक जांच के दायरे में आए।

    RTI Act के तहत जवाबदेही

    D.A.V. College Trust के मामले में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने यह महत्वपूर्ण स्पष्टता दी कि जो NGOs सरकार से Substantial Financing प्राप्त कर रहे हैं, वे RTI Act के तहत Public Authority माने जाएंगे। यह निर्णय सुनिश्चित करता है कि जो संगठन महत्वपूर्ण मात्रा में सार्वजनिक धन (Public Funds) प्राप्त कर रहे हैं, वे उसके उपयोग के लिए जवाबदेह होंगे और नागरिकों को यह जानने का अधिकार होगा कि यह धन किस तरह से खर्च किया जा रहा है।

    यह फैसला RTI Act के व्यापक उद्देश्य को मजबूती प्रदान करता है, जो पारदर्शिता और जिम्मेदारी के लिए एक मजबूत ढांचा तैयार करता है। NGOs को Act के दायरे में लाकर, न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया है कि RTI Act अपने उद्देश्य को पूरी तरह से पूरा कर सके।

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