जानिए हमारा कानून
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 44: निर्णय और डिक्री में संशोधन
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 152 संहिता की अंतिम धाराओं में है। इस धारा में डिक्री और निर्णय में होने वाली किसी गलती में संशोधन से संबंधित प्रावधान है। इस आलेख में धारा 152 पर विस्तृत टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।यह अधिनियम में प्रस्तुत की गई धारा का मूल रूप है-धारा 152निर्णयों, डिक्रियों का आदेशों या संशोधन निर्णयों, या डिक्रियों या आदेशों में ही लेखन या गणित सम्बन्धी भूलें या किसी आकस्मिक भूल या लोप से उसमें हुयी गलतियाँ न्यायालय द्वारा स्वप्रेरणा से या...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 43: सिविल मामले में न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 151 अति महत्वपूर्ण धारा है। इस धारा में न्यायालय को अंतर्निहित शक्ति दी गई है। यह वैसा ही शक्ति है जैसी शक्ति आपराधिक मामलों में उच्च न्यायालय को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अंतर्गत प्राप्त होती है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 151 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।न्यायालय की अन्तर्निहित शक्ति–वे सभी अधिकार, जो न्यायालय को, न्याय के प्रशासन के दौरान, सही और उचित कदम उठाने के लिये तथा गलत कार्य को रोकने के लिये आवश्यक हैं, से...
अदालत में फर्जी वसीयत को कैसे चैलेंज किया जा सकता है
वसीयत किसी भी व्यक्ति की अंतिम इच्छा है। अगर किसी व्यक्ति ने कोई धन कमाया है और ऐसा धन उसकी चल अचल संपत्ति में बंटा हुआ है तब वह अपने जीवनकाल में ऐसी संपत्ति के संबंध में वसीयत कर सकता है। वसीयत का अर्थ होता है किसी व्यक्ति द्वारा अपने जीवनकाल में ही उसकी संपत्ति के संबंध में कोई निर्णय लेना और ऐसे निर्णय में यह उल्लेख हो कि उसके मर जाने के बाद उसकी संपत्ति किसे दी जाए।कोई भी व्यक्ति अपनी कमाई हुई संपत्ति को किसी भी व्यक्ति को या संस्था वसीयत कर सकता है। जब तक वह व्यक्ति जीवित रहता है तब तक...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 42: संहिता में पुनरीक्षण से संबंधित प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 115 पुनरीक्षण से संबंधित प्रावधान उपलब्ध करती है, इस संहिता में अपील के साथ ही उच्चतर न्यायालय के पास पुनर्विलोकन, पुनरीक्षण, और निर्देश के भी अधिकार है। इस आलेख में पुनरीक्षण से संबंधित प्रावधानों पर प्रकाश डाला जा रहा है।यह अधिनियम में प्रस्तुत की गई धारा का मूल रूप है-धारा 115. पुनरीक्षण -(1) उच्च न्यायालय किसी भी ऐसे मामले के अभिलेख को मँगवा सकेगा जिसका ऐसे उच्च न्यायालय के अधीनस्य किसी न्यायालय ने विनिश्चय किया है और जिसकी कोई...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 41: पुनर्विलोकन से संबंधित प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 114 पुनर्विलोकन से संबंधित प्रावधान उपलब्ध करती है। संहिता में निर्देश के बाद पुनर्विलोकन से संबंधित प्रावधान है। पुनर्विलोकन उस ही न्यायालय द्वारा किया जाने वाला रिवीव है जिस न्यायालय द्वारा डिक्री दी गई है। इस आलेख में पुनर्विलोकन से संबंधित प्रावधानों पर टिप्पणी की जा रही है।यह संहिता में दी गई धारा का मूल रूप हैधारा 114 पुनर्विलोकनपूर्वोक्त के अधीन रहते हुये कोई व्यक्ति, जो (क) किसी ऐसी डिक्री या आदेश से जिसकी इस संहिता द्वारा...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 40: निर्देश से संबंधित प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 113 निर्देश से संबंधित है। निर्देश न्यायालय की एक शक्ति है। कोई अधीनस्थ न्यायालय निर्देश के माध्यम से किसी विधि के प्रश्न को उच्च न्यायालय से पूछ सकता है और उसका हल जान सकता है। इस आलेख में इस ही निर्देश से संबंधित प्रावधान पर चर्चा की जा रही है।निर्देश के बारे में उपबन्ध धारा 113 एवं आदेश 46 में किये गये हैं। निर्देश का उद्देश्य अधीनस्य न्यायालय द्वारा, उन मामलों में जिनमें अपील नहीं होती, विधि के प्रश्नों पर उच्च न्यायालय की राय...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 39: संहिता के अंतर्गत हाईकोर्ट को अपील
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 109 उच्चतम न्यायालय को अपील से संबंधित प्रावधान करती है। हालांकि अपील केवल उच्च न्यायालय को ही नहीं होती अपितु दूसरे न्यायलयों को भी होती लेकिन जिन मामलों में अपील उच्चतम न्यायालय को होती है उसका उल्लेख इस धारा के अंतर्गत मिलता है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 109 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 132 133 और 134 (क) में भी सिविल मामले में सर्वोच्च न्यायालय में अपील का प्रावधान है। सर्वोच्च न्यायालय में अपील...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 38: संहिता के अंतर्गत अपील न्यायालय को मिली शक्तियां
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 107 अपील न्यायालय की शक्तियों को उल्लेखित करती है। संहिता ने पहले अपील के संबंध में उल्लेख किया जहां यह बताया कि कौनसे निर्णय की अपील कहाँ और कैसे होगी। वह धाराएं अपील का अधिकार उत्पन्न करती है जबकि धारा 107 न्यायालय के अधिकार उत्पन्न करती है। धारा 107 स्पष्ट करती है कि अपीलीय न्यायालय किस प्रकार काम करता है और अंत में उसके पास किसी निर्णय के संबंध में क्या क्या अधिकार शेष रह जाते हैं। इस आलेख के अंतर्गत इस ही धारा 107 पर टिप्पणी...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 37: संहिता में द्वितीय अपील से संबंधित प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 100 द्वित्तीय अपील से संबंधित है। मूल डिक्री की अपील के बाद अपील में दिए निर्णय अपील सेकेंड अपील कहलाती है। इस आलेख के अंतर्गत द्वित्तीय अपील पर चर्चा की जा रही है।धारा 100 द्वितीय अपील के सम्बन्ध में उपबन्ध करती है। ध्यान रहे कि द्वितीय अपील हमेशा उच्च न्यायालय में की जाती है। सिविल प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1976 के माध्यम से धारा 100 में आमूल परिवर्तन कर दिया है, और पुरानी धारा 100 के स्थान पर एक नई धारा ने जन्म ले लिया...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 36: संहिता के अंतर्गत अपील संबंधित प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 96 अपील से संबंधित है। यह धारा मूल डिक्री की अपील से संबंधित है। यह एक प्रकार से पहली अपील भी है। किसी भी निर्णय को बगैर अपील के अंतिम मानना न्यायपूर्ण नहीं है इसलिए इस संहिता में भी अपील संबंधित प्रावधान है। इस आलेख में धारा 96 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।अपील के माध्यम से अधीनस्थ न्यायालय द्वारा निर्णय में की गयी त्रुटियों के निवारण का अवसर प्राप्त होता है। अतः अपील एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा अधीनस्थ न्यायालय के...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 35: अनुपूरक कार्यवाहियों के अधीन न्यायालय को शक्तियां
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 94 और 95 के माध्यम से अनुपूरक कार्यवाहियों के बारे में उपबन्ध किया गया है। धारा 94 में वर्णित अनुपूरक कार्यवाहियों को विवेचना से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि ऐसे कार्यवाही की आवश्यकता क्यों पड़ती है? न्यायालय का काम न्याय करना है, और ऐसा कार्य वह डिक्री, आदेश, निर्णय एवं व्यादेशों आदि के माध्यम से पूरा करता है जहाँ कोई पक्षकार न्याय को विफल करना चाहता है वहाँ, न्यायालय उसे ऐसा नहीं करने देगा। दूसरे शब्दों में जब कोई पक्षकार डिक्री...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 34: संहिता की धारा 91 एवं 92
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 91 एवं 92 का संबंध पब्लिक न्यूसेंस (Public nuisance) या सार्वजनिक उपद्रव से है। ऐसा न्यूसेंस जिससे आम जनता को नुकसान होता है। दंड प्रक्रिया संहिता के साथ ही इस संहिता में भी पब्लिक न्यूसेंस से संबंधित प्रावधान है। इस आलेख के अंतर्गत इन दोनों ही धाराओं पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।धारा 91पब्लिक न्यूसेंस की परिभाषा संहिता की धाराओं के अधीन नहीं किया गया है। इसकी परिभाषा साधारण खण्ड अधिनियम (General Clauses Act 1897) की धारा 3 की...
गाली गलौज और धमकियां देना भी है संगीन जुर्म, इस पर बनता है मुकदमा
गाली गलौज और जान से मारने की धमकी देना आए दिन देखने को मिलता है। हमारे सामाजिक जीवन में अनेक व्यवहार होते हैं। ऐसे व्यवहारों में कई बार हमारे विवाद भी हो जाते हैं। व्यापारिक व्यवहार, सामाजिक व्यवहार या पारिवारिक व्यवहार। किसी भी परिस्थिति में हमारे छुटपुट विवाद हो जाते हैं, जहां लोग एक दूसरे को गाली गलौज या फिर जान से मारने की धमकियां देते हैं।देखने में आता है कि एक ही कॉलोनी में रहने वाले लोग विवाद होने पर एक दूसरे को अश्लील गालियां देने लगते हैं और इसी के साथ अपने रिश्तेदारों या दोस्तों को...
डॉक्टर की लापरवाही से मरीज को नुकसान होने या उसकी मौत हो जाने पर क्या है प्रावधान
इलाज आज के समय की मूल आवश्यकताओं में से एक है। विज्ञान के सहारे से बीमारों का इलाज किया जाता है। सरकार ने इलाज करने के लिए चिकित्सक रजिस्टर्ड किए हैं। यही रजिस्टर्ड चिकित्सक अपनी पद्धति से इलाज कर सकते हैं। कोई भी एलोपैथी का रजिस्टर्ड चिकित्सक एलोपैथी से इलाज कर सकता है। इसी तरह दूसरी अन्य पद्धतियां भी हैं जिनके चिकित्सक अपनी पद्धति अनुसार इलाज करते हैं।ऑपरेशन जैसी पद्धति एलोपैथिक चिकित्सा द्वारा होती है। एलोपैथी का रजिस्टर्ड डॉक्टर ऑपरेशन करता है। कभी-कभी देखने में यह आता है कि डॉक्टर की...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 33:अन्तराभिवाची वाद क्या होते है
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 88 अन्तराभिवाची का उल्लेख करती है। इस वाद का अर्थ होता है कि कोई विवाद की विषय वस्तु प्रतिवादियों के बीच होना। संहिता में इस धारा को डालने का उद्देश्य यह है कि केवल वादी प्रतिवादी के बीच ही मुकदमे नहीं सुने जाए अपितु प्रतिवादियों के मध्य के विवाद को भी सुलझाया जाए।यह अधिनियम में प्रस्तुत की गई धारा का मूल स्वरूप है-धारा 88अन्तराभिवाची वाद कहाँ संस्थित किया जा सकेगा-जहाँ दो या अधिक व्यक्ति उसी ऋण, धनराशि या अन्य जंगम या स्थावर...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 32:संहिता की धारा 81,82,83 एवं 84
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 81,82,83 एवं 84 यह चारों ही धाराएं विशेष वाद से संबंधित है। विशेष वाद अर्थात सरकार के द्वारा या सरकार के विरुद्ध वाद है। इस आलेख में इन चारों ही धाराओं पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।यह अधिनियम में प्रस्तुत की गई धारा का मूल रूप है।धारा 81गिरफ्तारी और स्वीय उपसंजाति से छूट- ऐसे किसी भी कार्य के लिये, जो लोक अधिकारी द्वारा उसकी पदीय हैसियत में किया गया तात्पर्यित है, उसके विरुद्ध संस्थित किये गये वाद में -(क) डिक्री के निष्पादन में...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 31:सरकार के द्वारा या सरकार के विरुद्ध वाद
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 79 सरकार के द्वारा और सरकार के विरुद्ध होने वाले वादों से संबंधित प्रक्रिया निर्धारित करती है। इसके साथ ही दूसरी धाराएं भी है जो इस ही प्रक्रिया को आगे बढ़ाती है। जैसे धारा 80 भी इससे ही संबंधित है। इस आलेख में इन दोनों ही धाराओं पर संयुक्त रूप से टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।धारा 79धारा 79 के माध्यम से एक प्रक्रिया बतायी गयी है जिसके अनुसार सरकार के द्वारा या सरकार के विरुद्ध वाद संस्थित किया जा सकता है। यह धारा किसी भी प्रकार की...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 30: कमीशन निकालने की न्यायालय की शक्ति
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 75 कमीशन से संबंधित है। जिस तरह आपराधिक मामलों में न्यायालय कमीशन जारी करके गवाहों के बयान ले सकता है इस ही तरह सिविल मामलों में भी कमीशन जारी किया जा सकता है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 75 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।धारा 75वाद का संचालन सुचारु रूप से आगे बढ़ाने के लिये संहिता के अन्तर्गत आनुषंगिक कार्यवाहियों का उपबन्ध किया गया है। ऐसी आनुषंगिक कार्यवाहियों में न्यायालय को यह शक्ति प्रदान की गई है कि वह धारा 75 में वर्णित...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 29: आस्तियों का वितरण
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 73 अस्तियों के वितरण से संबंधित प्रावधानों को इंगित करती है। किसी भी कुर्क की गई संपत्ति को विक्रय करने पर निर्णीत ऋणी के डिक्री किए गए धन को ही दिया जाता है, सारी संपत्ति जितना मूल्य अदा नहीं किया जाता है। यह धारा अस्तियों के वितरण को नियमित करती है। इस आलेख के अंतर्गत इस धारा पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।धारा 73 आस्तियों के वितरण का उपबन्ध करती है। आस्तियों के वितरण का प्रश्न कहाँ उठता है?'अ' ने 'ब' के विरुद्ध 15000 रुपये की...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 28: संहिता की धारा 61,62,63 एवं 64
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 61, 62, 63 एवं 64 भी कुर्की से संबंधित प्रावधान प्रस्तुत करती है। यह तीनों धाराएं धारा 60 की सहायक धाराएं है। धारा 60 में कुर्की से संबंधित विस्तृत उल्लेख किया गया है जिसका विवेचन पिछले आलेख में प्रस्तुत किया गया है, शेष 61, 62, 63 एवं 64 में भी धारा 60 से संबंधित बातों को ही स्पष्ट किया गया है। इस आलेख में इन सभी धाराओं पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।धारा 61यह संहिता में प्रस्तुत धारा के मूल शब्द हैकृषि उपज को भागतः छूट- राज्य...