पब्लिक सर्वेंट द्वारा जानबूझकर गिरफ्तारी में चूक और लापरवाही से दोषी का भागना: BNS, 2023, धारा 260 और 261
Himanshu Mishra
25 Oct 2024 6:21 PM IST
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023), जिसने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) का स्थान लिया और 1 जुलाई, 2024 से लागू हुई, में पब्लिक सर्वेंट (Public Servants) के लिए विशिष्ट कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ निर्धारित की गई हैं।
यह संहिता विशेष रूप से उन मामलों पर ध्यान देती है जब पब्लिक सर्वेंट किसी अपराध के दोषी या न्यायिक हिरासत (Custody) में रखे गए व्यक्ति को कानूनी तौर पर सुरक्षा में रखने में विफल रहते हैं। धारा 260 और 261 ऐसे मामलों से निपटने के लिए बनाई गई हैं, जिनमें या तो पब्लिक सर्वेंट जानबूझकर किसी दोषी को पकड़ने में चूक करते हैं या लापरवाही के कारण दोषी को भागने देते हैं।
धारा 260: पब्लिक सर्वेंट द्वारा जानबूझकर गिरफ्तारी में चूक (Intentional Omission in Arrest by Public Servants)
धारा 260 का उद्देश्य
धारा 260 उन पब्लिक सर्वेंट पर लागू होती है, जैसे पुलिस अधिकारी, जेल अधिकारी, या अन्य सरकारी कर्मचारी जो दोषियों की हिरासत और सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होते हैं। यह धारा तब लागू होती है जब कोई पब्लिक सर्वेंट किसी न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए गए व्यक्ति को गिरफ्तार करने में जानबूझकर चूक करता है या उसे भागने देता है। इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पब्लिक सर्वेंट कानून का पालन करते हुए दोषियों को हिरासत में रखें।
गंभीरता के आधार पर सज़ा
धारा 260 में सज़ा का निर्धारण उस अपराध की गंभीरता पर निर्भर करता है, जिसके लिए दोषी को हिरासत में रखा गया था या गिरफ्तारी की जानी थी। इस धारा के तहत मामलों को अपराध की गंभीरता के अनुसार तीन वर्गों में बांटा गया है:
1. वर्ग (क): मृत्युदंड (Death Sentence) पाने वाले दोषी का भागना
o यदि किसी पब्लिक सर्वेंट द्वारा जानबूझकर ऐसे दोषी को भागने दिया जाता है जिसे मृत्युदंड मिला हो, तो उसे आजीवन कारावास या चौदह साल तक की सज़ा, जुर्माना सहित या बिना जुर्माने के, हो सकती है।
o उदाहरण: एक पुलिस अधिकारी जो मृत्युदंड प्राप्त दोषी को ले जाते समय दरवाजा खुला छोड़ देता है, जिससे दोषी भाग जाता है। ऐसे में अधिकारी को चौदह साल तक की सज़ा मिल सकती है।
2. वर्ग (ख): आजीवन कारावास या दस साल से अधिक की सज़ा प्राप्त दोषी का भागना
o यदि दोषी को आजीवन कारावास या दस साल या उससे अधिक की सज़ा दी गई है और पब्लिक सर्वेंट उसे जानबूझकर भागने देता है, तो उसे सात साल तक की सज़ा हो सकती है।
o उदाहरण: एक जेल अधिकारी जानबूझकर आजीवन कारावास प्राप्त दोषी को भागने देता है। ऐसे में अधिकारी को सात साल तक की सज़ा हो सकती है।
3. वर्ग (ग): दस साल से कम की सज़ा प्राप्त दोषी का भागना
o यदि दोषी को दस साल से कम की सज़ा प्राप्त हुई है या वह कानूनी हिरासत में है, तो अधिकारी को अधिकतम तीन साल तक की सज़ा या जुर्माना, या दोनों, दिए जा सकते हैं।
o उदाहरण: एक जेल अधिकारी जानबूझकर एक चोरी के दोषी को भागने देता है जिसे पांच साल की सज़ा मिली थी। ऐसे में अधिकारी को तीन साल तक की सज़ा हो सकती है।
धारा 260 में इरादे का महत्व
धारा 260 का मुख्य उद्देश्य जानबूझकर की गई चूक पर है। इसका अर्थ है कि यदि कोई पब्लिक सर्वेंट अपने कर्तव्य का पालन न करने का निर्णय जानबूझकर लेता है, तो उसे सज़ा का पात्र माना जाएगा।
धारा 261: पब्लिक सर्वेंट की लापरवाही से दोषी का भागना (Escape Due to Negligence of Public Servant)
धारा 261 का उद्देश्य
धारा 261 उन मामलों को कवर करती है, जहां किसी पब्लिक सर्वेंट की लापरवाही के कारण दोषी व्यक्ति भागने में सफल हो जाता है। इस धारा का उद्देश्य ऐसे पब्लिक सर्वेंट के खिलाफ कार्रवाई करना है जो अपनी जिम्मेदारियों में ढील देते हैं, जिससे दोषी व्यक्ति जेल या हिरासत से भाग सकता है। चूँकि यह जानबूझकर किया गया कार्य नहीं है बल्कि लापरवाही के कारण हुआ है, इसलिए इस धारा के अंतर्गत सज़ा अपेक्षाकृत कम होती है।
लापरवाही से दोषी के भागने पर सज़ा
अगर किसी पब्लिक सर्वेंट की लापरवाही से दोषी भाग जाता है, तो उसे दो साल तक की साधारण सज़ा या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
• उदाहरण: एक जेल वार्डन गलती से किसी दोषी के सेल का ताला बंद करना भूल जाता है और दोषी भाग जाता है। ऐसी स्थिति में वार्डन को धारा 261 के तहत अधिकतम दो साल की सज़ा मिल सकती है।
धारा 261 में लापरवाही का महत्व
धारा 261 का ध्यान लापरवाही पर है। इसका मतलब यह है कि अगर कोई पब्लिक सर्वेंट की असावधानी से दोषी भागता है, तो यह धारा उस पर लागू होती है। यह जानबूझकर की गई चूक के बजाय ध्यान की कमी के कारण हुई घटना को दर्शाती है।
धारा 259 और 260 के बीच अंतर
धारा 259 और 260 दोनों ही पब्लिक सर्वेंट की जिम्मेदारी को लेकर बनाई गई हैं, लेकिन इनके बीच कुछ मुख्य अंतर हैं:
• गिरफ्तारी का कर्तव्य (धारा 259) बनाम हिरासत में रखना (धारा 260):
o धारा 259 उन पब्लिक सर्वेंट पर लागू होती है जिन्हें अपराध में संलिप्त व्यक्ति को गिरफ्तार करने का कर्तव्य सौंपा गया है, चाहे वह दोषी हो या आरोपी।
o धारा 260 उन व्यक्तियों पर ध्यान देती है जो पहले से न्यायालय के आदेश या कानूनी हिरासत में हैं।
• अपराध की गंभीरता के अनुसार अलग-अलग सज़ा:
o दोनों धाराओं में सज़ा अपराध की गंभीरता के अनुसार निर्धारित होती है, लेकिन धारा 260 में मृत्युदंड या आजीवन कारावास प्राप्त दोषियों के भागने पर अधिक कड़ी सज़ा निर्धारित की गई है।
• धारा 260 में जानबूझकर की गई चूक बनाम धारा 259 में गिरफ्तारी का कर्तव्य:
o धारा 260 का मुख्य उद्देश्य उन मामलों को ध्यान में रखना है, जिनमें पहले से हिरासत में लिए गए दोषियों को जानबूझकर छोड़ दिया जाता है। धारा 259 में उन पब्लिक सर्वेंट पर ध्यान दिया जाता है जो कानूनी रूप से किसी अपराधी की गिरफ्तारी का पालन नहीं करते हैं।
धारा 260 और 261 का न्याय प्रणाली में महत्व
धारा 260 और 261 भारतीय न्याय संहिता, 2023 के महत्वपूर्ण प्रावधान हैं। ये सुनिश्चित करते हैं कि पब्लिक सर्वेंट अपनी जिम्मेदारी को सही ढंग से निभाएं। इन धाराओं के माध्यम से न्याय प्रणाली की सुरक्षा और ईमानदारी को बनाए रखने में मदद मिलती है, ताकि कोई दोषी व्यक्ति कानूनी प्रक्रिया को दरकिनार कर भाग न सके।