चार्जेस से संबंधित गलतियों का प्रभाव और कानूनी शब्दों की व्याख्या : BNSS, 2023 की धारा 237 और धारा 238

Himanshu Mishra

28 Oct 2024 6:52 PM IST

  • चार्जेस से संबंधित गलतियों का प्रभाव और कानूनी शब्दों की व्याख्या : BNSS, 2023 की धारा 237 और धारा 238

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) ने पुराने Criminal Procedure Code को बदलते हुए न्यायिक प्रक्रियाओं को सरल बनाने और अपराध से जुड़े मामलों में स्पष्टता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करने का प्रयास किया है।

    इसमें दो मुख्य धाराएँ—धारा 237 और धारा 238—इस बात पर विशेष ध्यान देती हैं कि आरोप पत्र (Charge Sheet) में लिखे शब्द कैसे समझे जाने चाहिए और आरोप में हुई गलतियों का मामले पर क्या प्रभाव पड़ता है। ये दोनों धाराएँ न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता बनाए रखने और आरोपी के अधिकारों की सुरक्षा करने में महत्वपूर्ण हैं।

    धारा 237: चार्जेस में कानूनी शब्दों की व्याख्या (Legal Interpretation of Words in Charges)

    धारा 237 के अनुसार आरोप में प्रयोग हुए शब्दों को संबंधित कानून में निर्धारित अर्थ के अनुसार समझा जाएगा। इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आरोप पत्र के शब्दों को उनके कानूनी अर्थ में ही देखा जाए ताकि उन शब्दों की गलत व्याख्या न हो सके। इसका मुख्य उद्देश्य सभी पक्षों के बीच एक समान समझ बनाए रखना है।

    1. शब्दों का कानूनी अर्थ (Legal Sense of Words): धारा 237 कहती है कि आरोप में प्रयोग किए गए शब्दों को कानून में उनके निर्दिष्ट अर्थ में समझा जाएगा, न कि सामान्य अर्थ में। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी व्यक्ति पर "चोरी" (Theft) का आरोप लगाया गया है, तो इस शब्द का वही अर्थ होगा जो भारतीय न्याय संहिता (BNS) में चोरी के लिए दिया गया है।

    2. मानकीकृत शब्दावली (Standardized Terminology): इस धारा का उद्देश्य कानूनी शब्दों को सभी मामलों में एक समान अर्थ में समझना है। इससे शब्दों की गलत व्याख्या और अनिश्चितता का खतरा कम हो जाता है।

    3. आरोपों में प्रयोग (Application in Charges): यह नियम यह सुनिश्चित करता है कि अभियोजन और बचाव पक्ष आरोपों की सही समझ के साथ न्यायिक प्रक्रिया में भाग लें। कानूनी परिभाषाओं का प्रयोग सुनिश्चित करता है कि सभी पक्ष आरोपों को सही समझ में लाएं, जिससे प्रक्रिया में निष्पक्षता बनी रहती है।

    धारा 238: चार्जेस में हुई गलतियों का न्यायिक प्रक्रिया पर प्रभाव (Effects of Errors in Charges on Legal Proceedings)

    धारा 238 एक व्यवहारिक प्रावधान है जो आरोपों में हुई गलतियों को समझने में मदद करता है। इस धारा के अनुसार, हर गलती को "महत्वपूर्ण" (Material) नहीं माना जाएगा जब तक कि वह आरोपी को भ्रमित न करे या न्याय में बाधा न उत्पन्न करे।

    इस प्रकार, यह प्रावधान केवल "महत्वपूर्ण गलतियों" पर ध्यान देने को कहता है, ताकि मामूली गलतियों के कारण मामला अनावश्यक रूप से न रुके।

    धारा 238 के मुख्य प्रावधान और उनका उपयोग (Key Provisions and Application of Section 238)

    धारा 238 समझाती है कि आरोप पत्र में हुई गलतियों को कब महत्वपूर्ण समझा जाएगा और कब नहीं।

    इसके कुछ मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:

    1. मामूली गलतियाँ हमेशा महत्वपूर्ण नहीं होती (Minor Errors are Not Always Material): इस धारा के अनुसार, आरोप पत्र में मामूली गलती या विवरण का न होना स्वतः ही मामले को प्रभावित नहीं करता जब तक कि इससे आरोपी को कोई वास्तविक हानि या भ्रम नहीं होता।

    2. आरोपी पर प्रभाव (Impact on the Accused): अगर गलती से आरोपी भ्रमित हो गया और उसने अपने बचाव को लेकर सही तैयारी नहीं की, तो यह एक "महत्वपूर्ण गलती" मानी जाएगी। यदि गलती आरोपी को भ्रमित नहीं करती है, तो इसे "अमहत्वपूर्ण" (Immaterial) समझा जाएगा और मामले की प्रक्रिया जारी रहेगी।

    3. निष्पक्ष मुकदमे का अधिकार (Requirement of a Fair Trial): धारा 238 यह सुनिश्चित करती है कि आरोप पत्र में मामूली गलतियों के कारण आरोपी को बिना वजह नुकसान न हो। साथ ही, यह न्यायिक प्रक्रिया को अनावश्यक रूप से रोकने से भी बचाती है, जिससे न्याय की गति बनी रहती है।

    धारा 238 के उदाहरण (Examples Illustrating Section 238)

    इस धारा में कुछ उदाहरण भी दिए गए हैं जो समझाते हैं कि कैसे विभिन्न प्रकार की गलतियाँ आरोपी और मुकदमे की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती हैं:

    • उदाहरण (a): अगर किसी व्यक्ति A पर धारा 180 के तहत नकली सिक्के रखने का आरोप है, लेकिन आरोप में "धोखाधड़ी से" (Fraudulently) शब्द छूट गया है, तो यह गलती महत्वपूर्ण नहीं मानी जाएगी जब तक A को इससे कोई भ्रम नहीं हुआ हो।

    • उदाहरण (b): अगर A पर किसी व्यक्ति B को धोखा देने का आरोप है लेकिन धोखे का तरीका नहीं बताया गया, फिर भी A अपने बचाव में गवाही देता है, तो अदालत इसे अमहत्वपूर्ण मान सकती है क्योंकि A को गलत विवरण से कोई वास्तविक भ्रम नहीं हुआ।

    • उदाहरण (c): यदि A पर B को धोखा देने का आरोप है लेकिन आरोप में कई लेन-देन थे, तो A इस भ्रम में पड़ सकता है कि आरोप किस लेन-देन के संदर्भ में है। इस स्थिति में, अदालत इसे महत्वपूर्ण गलती मान सकती है।

    • उदाहरण (d): अगर A पर किसी व्यक्ति खैदर बख्श की हत्या का आरोप है, लेकिन नाम गलती से खोडा बख्श और तारीख गलत दी गई है, परन्तु A पूरे मामले से अवगत है, तो यह गलती अमहत्वपूर्ण मानी जाएगी।

    • उदाहरण (e): यदि A पर खैदर बख्श की हत्या का आरोप है लेकिन वह खोडा बख्श की हत्या के लिए मुकदमे में जा रहा है, तो यह गलती महत्वपूर्ण मानी जाएगी क्योंकि इससे A भ्रमित हो सकता है।

    धारा 238 का न्यायिक प्रक्रिया में महत्व (Importance of Section 238 in Legal Practice)

    धारा 238 न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह प्रावधान मामूली गलतियों के कारण न्यायिक प्रक्रिया में अनावश्यक विलंब को रोकता है और महत्वपूर्ण गलतियों पर ध्यान केंद्रित करता है ताकि आरोपी को कोई भ्रमित न हो और उनका बचाव प्रभावित न हो।

    न्याय सुनिश्चित करने के लिए धारा 237 और 238 का संतुलन

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में धारा 237 और 238 न्याय प्रक्रिया को संतुलित और प्रभावी बनाने में सहायक हैं। जहां धारा 237 यह सुनिश्चित करती है कि कानूनी शब्दों को सही परिभाषाओं में समझा जाए, वहीं धारा 238 आरोप पत्र में हुई मामूली गलतियों को नजरअंदाज कर केवल महत्वपूर्ण गलतियों पर ध्यान देती है।

    इस प्रकार, ये धाराएँ यह सुनिश्चित करती हैं कि कानूनी प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहे और आरोपी के अधिकार सुरक्षित रहें। इन प्रावधानों के कारण न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष और तीव्र बनी रहती है, जिससे न्यायिक प्रणाली में एकरूपता आती है और न्याय सुनिश्चित होता है।

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