क्या राज्य प्रभावी कानूनों के माध्यम से महिला भ्रूण हत्या पर रोक लगा सकता है?
Himanshu Mishra
26 Oct 2024 5:15 PM IST
वॉलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ पंजाब बनाम भारत संघ (2016) के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने महिला भ्रूण हत्या की गंभीर समस्या पर विचार किया। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि Pre-Conception and Pre-Natal Diagnostic Techniques (PCPNDT) Act, 1994 के प्रभावी क्रियान्वयन के अभाव में भ्रूण हत्या बढ़ रही है, जिससे समाज में लिंग अनुपात (Sex Ratio) असंतुलित हो रहा है।
इस कानून का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मेडिकल तकनीक का उपयोग लिंग परीक्षण (Sex Determination) और महिला भ्रूण हत्या के लिए न हो, ताकि सामाजिक संतुलन और लैंगिक समानता (Gender Equality) को बनाए रखा जा सके।
PCPNDT Act का उद्देश्य (Purpose of PCPNDT Act)
PCPNDT Act, 1994 का मकसद यह है कि मेडिकल तकनीकों का दुरुपयोग कर गर्भधारण से पहले या बाद में भ्रूण का लिंग न पता किया जाए। इस कानून के मुख्य उद्देश्य हैं:
1. लिंग परीक्षण (Sex Determination) के लिए तकनीकों का दुरुपयोग रोकना।
2. जीन संबंधित क्लिनिकों (Genetic Clinics) और डायग्नोस्टिक केंद्रों (Diagnostic Centres) को यह सुनिश्चित करना कि केवल चिकित्सकीय आवश्यकता के लिए इनका प्रयोग हो।
3. लिंग-निर्धारण तकनीकों के प्रचार-प्रसार पर रोक लगाना।
4. कानून का उल्लंघन करने वालों पर सख्त दंड लगाना।
कोर्ट ने कहा कि इस कानून के सख्त अनुपालन के बिना, महिला भ्रूण हत्या को रोकना मुश्किल है और यह समाज में गहरी असमानता पैदा कर सकता है।
महत्वपूर्ण निर्णय और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश (Key Judgements and Directions)
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कई पूर्ववर्ती निर्णयों का उल्लेख किया। CEHAT बनाम भारत संघ (2001 और 2003) में, कोर्ट ने राज्य और जिला स्तर पर उचित अधिकारियों की नियुक्ति के निर्देश दिए थे ताकि PCPNDT Act का पालन सुनिश्चित किया जा सके। कोर्ट ने जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया था, ताकि लोगों के बीच लिंग-आधारित भेदभाव को कम किया जा सके।
कोर्ट ने अजीत सावंत माजगवई बनाम कर्नाटक राज्य (1997) के मामले का भी उल्लेख किया, जिसमें महिलाओं के प्रति हिंसा और भेदभाव की निंदा की गई थी। कोर्ट ने कहा कि समाज में महिलाओं को समान भागीदार के रूप में स्वीकार किए बिना प्रगति संभव नहीं है।
कानून के क्रियान्वयन में चुनौतियाँ (Challenges in Implementation)
कोर्ट ने पाया कि PCPNDT Act के बावजूद, कई राज्यों में इसके अनुपालन में कमी रही। विभिन्न क्लिनिकों और डायग्नोस्टिक केंद्रों की बढ़ती संख्या की निगरानी और नियंत्रण में खामियां थीं। कई बार अधिकारी इन केंद्रों का नियमित निरीक्षण नहीं करते, जिससे कानून का उल्लंघन जारी रहता है।
कोर्ट ने बेहतर क्रियान्वयन के लिए निम्नलिखित निर्देश दिए:
1. राज्य और जिला स्तर पर तिमाही (Quarterly) निगरानी रिपोर्ट प्रस्तुत करना।
2. सभी केंद्रों में रिकॉर्ड सही तरीके से बनाए रखना।
3. कानून का उल्लंघन करने वाले उपकरणों को जब्त (Seize) और सील करना।
4. PCPNDT Act से संबंधित मामलों की सुनवाई को तेज करना।
जागरूकता अभियानों (Awareness Campaigns) की आवश्यकता
कोर्ट ने कहा कि केवल कानून का पालन कराना पर्याप्त नहीं है, बल्कि लोगों की मानसिकता में बदलाव लाने के लिए प्रभावी जागरूकता अभियानों की भी आवश्यकता है। सरकार, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs), और समुदाय के नेताओं को मिलकर ऐसे अभियान चलाने होंगे। मीडिया, कार्यशालाओं (Workshops), और समुदायिक कार्यक्रमों के माध्यम से यह संदेश फैलाया जाना चाहिए कि लड़के और लड़की के बीच कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।
घटते लिंग अनुपात के कानूनी और सामाजिक प्रभाव (Legal and Social Impact of Declining Sex Ratio)
कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि लिंग अनुपात में सुधार नहीं किया गया, तो इसका गंभीर सामाजिक प्रभाव पड़ेगा। इसमें मानव तस्करी (Human Trafficking), जबरन विवाह (Forced Marriages) और महिलाओं के शोषण जैसी समस्याएँ बढ़ सकती हैं। कोर्ट ने कहा कि लिंग-आधारित भेदभाव न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि मानव गरिमा (Human Dignity) और जीवन के अधिकार का भी अपमान है।
वॉलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ पंजाब बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय यह संदेश देता है कि महिला भ्रूण हत्या जैसी प्रथाओं को रोकने के लिए केवल कानून बनाना पर्याप्त नहीं है। इसके लिए समाज को भी जागरूक होना पड़ेगा और लिंग समानता को अपनाना होगा।
कोर्ट ने कहा कि कानून का पालन और प्रभावी जागरूकता अभियान मिलकर ही समाज में बदलाव ला सकते हैं। यह निर्णय इस बात पर जोर देता है कि महिलाओं के संरक्षण और सशक्तिकरण (Empowerment) के बिना समाज की प्रगति अधूरी है और इस दिशा में ठोस कदम उठाना अनिवार्य है।