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धारा 416 और 417 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 – जब अपील का अधिकार नहीं होता
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita - BNSS) में जहाँ एक ओर धारा 415 यह बताती है कि दोषसिद्ध व्यक्ति (Convicted Person) को किन परिस्थितियों में अपील (Appeal) का अधिकार होगा, वहीं धारा 416 और 417 यह स्पष्ट करती हैं कि कुछ विशेष स्थितियों में अपील का अधिकार नहीं होगा।इन धाराओं का उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया को अनावश्यक अपीलों से बचाना है, खासकर तब जब मामला बहुत साधारण हो या जब व्यक्ति ने खुद ही अपराध स्वीकार कर लिया हो। धारा 416 – जब आरोपी ने अपराध स्वीकार कर लिया...
किराया न स्वीकारने या संदेह की स्थिति में किराया प्राधिकरण के पास किराया जमा कराने की प्रक्रिया – राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की धारा 22-जी
राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 (Rajasthan Rent Control Act, 2001) की धारा 22-जी (Section 22-G) किरायेदार (Tenant) को यह अधिकार देती है कि जब मकान-मालिक (Landlord) किराया स्वीकार करने से इनकार कर दे या जब यह स्पष्ट न हो कि किराया किसे दिया जाना चाहिए, तब किरायेदार Rent Authority के पास वह किराया जमा कर सके। यह प्रावधान खासकर उन मामलों में बेहद महत्वपूर्ण है जहाँ मकान-मालिक और किरायेदार के बीच विवाद (Dispute) हो या संपत्ति को लेकर स्वामित्व (Ownership) का झगड़ा चल रहा हो।इस लेख में हम धारा...
Injunction से संबंधित वादों में न्यायालय शुल्क की गणना – धारा 26 राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम की धारा 26 उन वादों से संबंधित है जिनमें वादी अदालत से निषेधाज्ञा (injunction) की मांग करता है। निषेधाज्ञा एक प्रकार का आदेश होता है जिसमें अदालत प्रतिवादी को किसी कार्य को करने या न करने का निर्देश देती है। यह धारा बताती है कि ऐसे वादों में न्यायालय शुल्क कैसे गणना किया जाएगा।धारा 26 की व्याख्या करने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि इस अधिनियम में विभिन्न प्रकार के वादों के लिए अलग-अलग शुल्क निर्धारण की व्यवस्था की गई है: • धारा 21: धन की वसूली...
क्या फ्लैट खरीदार को देर से कब्ज़ा मिलने पर Consumer Law के तहत Refund और Compensation मिल सकता है?
Experion Developers Pvt. Ltd. बनाम Sushma Ashok Shiroor (2022) में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय उन अहम कानूनी और संवैधानिक (Constitutional) सवालों को छूता है जो खासकर Real Estate विवादों में उपभोक्ताओं (Consumers) के अधिकारों से जुड़े हैं।इस फैसले में कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अगर कोई Homebuyer, जो कि एक Consumer है, उसे फ्लैट का कब्जा समय पर नहीं मिलता, तो वह Consumer Protection Act, 1986 के तहत Refund और Compensation की मांग कर सकता है, भले ही RERA (Real Estate Regulation and Development Act,...
NI Act के किसी इंस्ट्रूमेंट में दिखाई देने वाले बदलाव
धारा 89 की योजना है कि कोई भी किया गया तात्विक बदलाव लिखत पर दृश्यमान होना चाहिए, यदि यह ऐसा नहीं है वहाँ सम्यक् अनुक्रम में किया गया पेमेंट बाध्यकारी होगा और एक सही एवं मान्य पेमेंट माना जाएगा। इस धारा के अनुसार यदि :-कोई वचन पत्र, विनिमय या चेकतात्विक रूप में परिवर्तित है,परन्तु ऐसा किया गया बदलाव दिखाई नहीं देता है, याजहाँ चेक को पेमेंट के लिए उपस्थापित किया गया है,जो उपस्थापन के समयरेखांकित है, दिखाई नहीं देता, यारेखांकन है, परन्तु उसे मिटा दिया गया है,व्यक्ति बैंकर जो पेमेंट करने के लिए...
NI Act में किसी इंस्ट्रूमेंट में बदलाव करना
यह सामान्य सिद्धान्त है कि कोई भी तात्विक बदलाव लिखत को, ऐसे बदलाव के समय उसका पक्षकार है, के विरुद्ध शून्य बनाने का प्रभाव रखता है। परन्तु ऐसा लिखत बदलाव के पूर्व के पक्षकारों में विधिमान्य बना रहेगा।यह नियम इस सिद्धान्त पर आधारित है कि ऐसे बदलाव से लिखत की पहचान नष्ट होती है और पक्षकारों को ऐसी परिस्थिति में दायी ठहराना होगा जिसके लिए उन्होंने कभी करार न किया हो। लिखत का बदलाव उसके कूटरचना से भिन्न होता है कूटरचना लिखत को निष्प्रभावी एवं शून्य बनाता है।इस धारा के अधीन बदलाव के लिए निम्नलिखित...
पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी को 187 साल की सजा क्यों मिली? क्या कहता है बच्चों की सुरक्षा के लिए कानून?
Taliparamba Fast-Track Court ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया, जिसमें एक मदरसा शिक्षक को 187 वर्ष की सजा सुनाई गई। यह निर्णय एक 16 वर्षीय बच्ची के साथ दो वर्षों से अधिक समय तक हुए यौन शोषण के मामले में आया। इस मामले ने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया और यह प्रश्न उठाया कि बच्चों के विरुद्ध यौन अपराधों के मामलों में POCSO अधिनियम किस प्रकार कार्य करता है और इसकी सजा कितनी कठोर हो सकती है।इस लेख में हम सरल भाषा में समझेंगे: • POCSO अधिनियम क्या है? • इसमें कौन-कौन से अपराध (Offences) आते...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 415: सजा के खिलाफ अपील का अधिकार
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita - BNSS) के तहत भारत की आपराधिक न्याय व्यवस्था में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। इस संहिता का अध्याय 31 (Chapter XXXI) "अपीलें" (Appeals) से संबंधित है। इसी अध्याय की धारा 415 (Section 415) में यह बताया गया है कि सजा पाए व्यक्ति को किन परिस्थितियों में और किस न्यायालय में अपील करने का अधिकार है।अपील (Appeal) कानून में एक बहुत ज़रूरी उपाय (Remedy) है, जो किसी दोषसिद्ध व्यक्ति (Convicted Person) को अदालत के फैसले के खिलाफ अपनी...
घोषणात्मक डिक्री से संबंधित वादों में न्यायालय शुल्क की गणना – धारा 24 राजस्थान कोर्ट फीस एक्ट
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम की धारा 24 उन वादों पर लागू होती है जिनमें वादी केवल एक घोषणा (Declaration) चाहता है, चाहे उसके साथ किसी अन्य राहत (Relief) की भी मांग हो या नहीं। इस धारा में विस्तार से बताया गया है कि ऐसी घोषणात्मक डिक्री या आदेश के लिए शुल्क किस प्रकार से गणना किया जाएगा। यह धारा उस स्थिति पर लागू होती है जब वाद धारा 25 के अंतर्गत नहीं आता हो।धारा 24 में कुल पांच उपखंड (a से e) दिए गए हैं, जो विभिन्न प्रकार की घोषणात्मक याचिकाओं को अलग-अलग परिस्थितियों में...
किराया पुनर्निरीक्षण और सुरक्षा जमा : राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम की धारा 22-D, 22-E और 22-F
राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 (Rajasthan Rent Control Act, 2001) को 2017 के संशोधन (Amendment) के बाद किराए के विवादों और किरायेदारी (Tenancy) को लेकर स्पष्ट दिशानिर्देश दिए गए हैं। मकान मालिक (Landlord) और किरायेदार (Tenant) के बीच समय-समय पर विवाद अक्सर किराए की वृद्धि (Rent Increase), सुविधाओं की स्थिति (Condition of Amenities), और सुरक्षा जमा (Security Deposit) को लेकर होते हैं।इन्हीं विवादों को प्रभावी ढंग से सुलझाने के लिए अधिनियम की धारा 22-D, 22-E और 22-F महत्वपूर्ण भूमिका...
क्या सरकार बिना मुआवजा दिए और कानूनी प्रक्रिया अपनाए किसी की जमीन पर कब्जा कर सकती है?
सुप्रीम कोर्ट ने Sukh Dutt Ratra & Anr. v. State of Himachal Pradesh मामले में एक बहुत ही अहम सवाल पर फैसला सुनाया—क्या राज्य (State) किसी नागरिक की ज़मीन जबरदस्ती लेकर बिना कानून के अनुसार प्रक्रिया अपनाए और बिना मुआवज़ा दिए, सिर्फ इसलिए बच सकता है कि ज़मीन के मालिक ने देर से कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया? कोर्ट ने इसका जवाब साफ़ तौर पर “नहीं” दिया और यह कहा कि ज़मीन का अधिकार एक संवैधानिक (Constitutional) और मानव अधिकार (Human Right) है, जिसे छीना नहीं जा सकता।अनुच्छेद 300-A और संपत्ति का...
NI Act में किसी इंस्ट्रूमेंट की पार्टी का अपनी जिम्मेदारी से डिस्चार्ज होना
कुछ कंडीशन ऐसी हैं जिनमे किसी भी इंस्ट्रूमेंट के पक्षकार अपनी ज़िम्मेदारी से डिस्चार्ज हो जाते हैं फिर उन पर इंस्ट्रूमेंट की जिम्मेदारी नहीं होती है।(क) रचयिता एवं प्रतिग्रहीता-जहाँ धारक वचन पत्र के या विनिमय पत्र प्रतिग्रहीता को दायित्व से निर्मुक्त करता है, वहाँ इंस्ट्रूमेंट स्वयं में डिस्चार्ज हो जाता है, क्योंकि इंस्ट्रूमेंट में ये मुख्य ऋणी होते हैं।(ख) पृष्ठांकक/पृष्ठांककों को-जहाँ धारक किसी पृष्ठांकक या पृष्ठांककों ने नाम को निर्मुक्त करता है वहाँ ऐसे धारक के अधीन हक व्युत्पन्न करने वाले...
NI Act की धारा 82 के प्रावधान
इस एक्ट की यह धारा इंस्ट्रूमेंट की पार्टियों के डिस्चार्ज के संबंध में बात करती है। परक्राम्य लिखतों के सम्बन्ध में उन्मुक्ति दो तरह से प्रयुक्त की जाती है-इंस्ट्रूमेंट की स्वयं में उन्मुक्तिइंस्ट्रूमेंट के कुछ पक्षकारों की उन्मुक्तिजब तब परक्राम्य इंस्ट्रूमेंट अस्तित्व में एवं विधिमान्य होता है इससे कतिपय कार्यवाही के अधिकार होते हैं, परन्तु जब इन अधिकारों की समाप्ति हो जाती है तो इंस्ट्रूमेंट उन्मुक्त हो जाता है।परक्राम्य लिखतें अर्थात वचन पत्र, विनिमय पत्र एवं चेक उन्मुक्त हो जाते हैं, जब...
किराए में संशोधन से जुड़ी परिस्थितियाँ – राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम की धारा 22-D
राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 (Rajasthan Rent Control Act, 2001) को 2017 में हुए संशोधन (Amendment) के बाद अधिक व्यावहारिक और संतुलित बनाया गया है, ताकि मकान मालिक (Landlord) और किरायेदार (Tenant) दोनों के अधिकारों और कर्तव्यों के बीच संतुलन बना रहे। इन संशोधनों के तहत कई नयी धाराएं जोड़ी गईं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण धारा है – धारा 22-D, जो कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में किराए के पुनर्निरीक्षण (Revision) से संबंधित है।इस धारा को पूरी तरह समझने के लिए हमें इससे पहले की कुछ धाराओं पर भी...
क्या Criminal Case लंबित होने पर Appellate Court Dismissal को टाल सकता है?
Eastern Coalfields Limited बनाम Rabindra Kumar Bharti [2022 LiveLaw (SC) 374] में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब एक कर्मचारी के खिलाफ एक ही समय पर Departmental Inquiry (विभागीय जांच) और Criminal Trial (आपराधिक मुकदमा) चल रहा हो, तो क्या Appellate Court (अपील अदालत) उसके Dismissal (निलंबन/बर्खास्तगी) को Criminal Case की समाप्ति तक टाल सकती है।इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन प्रमुख कानूनी सिद्धांतों को दोहराया जो यह बताते हैं कि Departmental Proceedings (विभागीय कार्यवाही) और Criminal...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 415: सजा के खिलाफ अपील का अधिकार
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita - BNSS) के तहत भारत की आपराधिक न्याय व्यवस्था में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। इस संहिता का अध्याय 31 (Chapter XXXI) "अपीलें" (Appeals) से संबंधित है। इसी अध्याय की धारा 415 (Section 415) में यह बताया गया है कि सजा पाए व्यक्ति को किन परिस्थितियों में और किस न्यायालय में अपील करने का अधिकार है।अपील (Appeal) कानून में एक बहुत ज़रूरी उपाय (Remedy) है, जो किसी दोषसिद्ध व्यक्ति (Convicted Person) को अदालत के फैसले के खिलाफ अपनी...
चल संपत्ति से संबंधित वादों में न्यायालय शुल्क की गणना : धारा 23 राजस्थान न्यायालय शुल्क मूल्यांकन अधिनियम
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम के अंतर्गत धारा 23 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो यह स्पष्ट करती है कि जब कोई वादी (Plaintiff) चल संपत्ति (Movable Property) से संबंधित वाद दायर करता है, तो उस वाद में न्यायालय शुल्क (Court Fee) किस प्रकार से निर्धारित किया जाएगा। इस धारा में दो प्रमुख प्रकार के वादों की बात की गई है – पहला, सामान्य चल संपत्ति के लिए, और दूसरा, टाइटल दस्तावेज़ (Documents of Title) के लिए।धारा 23 को समझना इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे यह सुनिश्चित होता...
NI Act में किसी भी इंस्ट्रूमेंट में किसके द्वारा पेमेंट होता है?
किसी लिखत का विधिमान्य एवं लिखत के उन्मोचन के लिए पेमेंट रचयिता या प्रतिग्रहीता या उसकी ओर से किया जाना चाहिए। रचयिता या प्रतिग्रहीता अपनी आबद्धता से उन्मोचित नहीं होगा यदि पेमेंट लेखीवाल या किसी पृष्ठांकक या किसी अजनबी का अपने खाते में किए गए पेमेंट से किया जाता है। यदि कोई अजनबी लिखत के अधीन रकम का पेमेंट धारक को करता है तो उसे लिखत का क्रेता कहा जाएगा, परन्तु एक अजनबी यदि लिखत के किसी पक्षकार की ओर से पेमेंट करता है तो ऐसे पेमेंट का वही प्रभाव होगा जैसा कि उसे पक्षकार के द्वारा पेमेंट के लिए...
NI Act की धारा 78 के प्रावधान
परक्राम्य में लिखत अधिनियम मूल रूप से तीन प्रकार के लिखत से संबंधित है तथा उन लिखतों में पेमेंट किए जाने का वचन होता है न कि पेमेंट होता है। पेमेंट किसे किया जाएगा इससे संबंधित प्रावधानों का विस्तारपूर्वक उल्लेख अधिनियम की धारा 78 के अंतर्गत प्राप्त होता है।किसे पेमेंट किया जाना चाहिए- धारा 78 रचयिता या प्रतिग्रहीता के उन्मोचन पेमेंट द्वारा धारक को करने का उपबन्ध करती है। यद्यपि कि धारा 82 में रचयिता, प्रतिग्रहीता या पृष्ठांकक का लिखत के अधीन दायित्व से उन्मोचन का उपबन्ध करती है। किसी लिखत के...
क्या भारतीय आपराधिक न्याय व्यवस्था में पीड़ित को भी अभियोजन प्रक्रिया का सक्रिय हिस्सा बनाया जाना चाहिए?
परिचय: पीड़ित के अधिकारों पर ध्यानJagjeet Singh v. Ashish Mishra @ Monu (2022) के ऐतिहासिक (Landmark) निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने तीन अहम मुद्दों पर गहराई से विचार किया—पीड़ित (Victim) का कानूनी अधिकार, कोर्ट द्वारा जमानत (Bail) देते समय अपनाए जाने वाले सिद्धांत, और निष्पक्ष सुनवाई (Fair Trial) का मूल सिद्धांत। यह मामला केवल अपने तथ्यों के कारण नहीं, बल्कि इस वजह से महत्वपूर्ण बना क्योंकि इसमें कोर्ट ने पहली बार स्पष्ट रूप से कहा कि पीड़ित को भी जमानत की प्रक्रिया में भाग लेने और अपनी बात रखने...


















