क्या उच्च शिक्षा संस्थान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत न्यायिक पुनर्विचार के दायरे में आते हैं?

Himanshu Mishra

12 Nov 2024 8:33 PM IST

  • क्या उच्च शिक्षा संस्थान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत न्यायिक पुनर्विचार के दायरे में आते हैं?

    Dr. Janet Jeyapaul बनाम SRM University और अन्य के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने इस अहम संवैधानिक सवाल पर विचार किया कि क्या University Grants Commission (UGC) Act के अंतर्गत "deemed university" का दर्जा प्राप्त SRM University पर High Court का writ अधिकार (jurisdiction) लागू हो सकता है।

    इस मामले का मुख्य सवाल यह था कि क्या SRM University, जो एक deemed university है, Article 226 के तहत न्यायालय के writ के अधीन हो सकती है।

    इस फैसले का महत्व इस बात में है कि किस स्थिति में सार्वजनिक कार्य (public function) कर रहे निजी संस्थानों को सार्वजनिक कानून (public law) के तहत जवाबदेह ठहराया जा सकता है।

    Article 226 और Public Function: Writ Jurisdiction का विस्तार (Expanding Writ Jurisdiction)

    भारतीय संविधान का Article 226 High Courts को "किसी भी व्यक्ति या प्राधिकरण" पर writ जारी करने की शक्ति देता है ताकि मौलिक और कानूनी अधिकारों की रक्षा की जा सके।

    Article 12 के विपरीत, जो केवल "State" पर लागू होता है, Article 226 किसी भी इकाई पर लागू हो सकता है, जो सार्वजनिक कार्य या सार्वजनिक दायित्व (public duty) निभा रही हो।

    इस अंतर के कारण, कोर्ट निजी निकायों (Private bodies) को भी, जो सार्वजनिक कार्य कर रहे हैं, न्यायिक समीक्षा (judicial review) के दायरे में लाती है ताकि उनकी जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।

    कोर्ट ने इस व्यापक व्याख्या (Interpretation) का समर्थन करने वाले कुछ महत्वपूर्ण मामलों का उल्लेख किया:

    1. Andi Mukta Sadguru Shree Muktajee Vandas Swami Suvarna Jayanti Mahotsav Smarak Trust बनाम V.R. Rudani: इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि mandamus writ एक private trust पर भी जारी हो सकती है जो कॉलेज का प्रबंधन कर रही थी क्योंकि वह शिक्षा के माध्यम से सार्वजनिक दायित्व निभा रही थी। इस मामले ने स्थापित किया कि जो संस्थान सार्वजनिक धन (public funds) प्राप्त कर रहे हैं या राज्य के कर्तव्यों (state responsibilities) जैसे कार्य कर रहे हैं, वे writ jurisdiction के अधीन हो सकते हैं।

    2. Zee Telefilms Ltd. बनाम Union of India: Zee Telefilms के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि भले ही भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) Article 12 के तहत "State" नहीं था, लेकिन उसके सार्वजनिक कार्यों ने उसे Article 226 के तहत न्यायिक समीक्षा के दायरे में ला दिया। इस मामले में इस बात पर जोर दिया गया कि यह संस्था का मूल (origin) नहीं बल्कि उसकी गतिविधि का स्वभाव (nature) है, जो उसके न्यायिक समीक्षा के दायरे में आने का निर्णय करता है।

    इन उदाहरणों के माध्यम से, कोर्ट ने यह स्थापित किया कि Article 226 किसी भी इकाई पर लागू हो सकता है, यदि उसकी गतिविधियाँ सार्वजनिक तत्व (public element) से युक्त हैं।

    Deemed Universities और Public Functions (Public Functions of Deemed Universities)

    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि deemed universities, भले ही वे statute द्वारा निर्मित न हों, समाज में शिक्षा प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक कार्य निभाती हैं और UGC द्वारा नियंत्रित (regulated) हैं। SRM University को UGC Act के Section 3 के तहत deemed university का दर्जा दिया गया है, जिसके कारण उसे अन्य statutory universities की तरह ही सार्वजनिक दायित्वों का पालन करना पड़ता है।

    कोर्ट ने यह अवलोकन किया कि शैक्षणिक संस्थाएँ (educational institutions) समाज में एक मूलभूत भूमिका निभाती हैं। अतः SRM University की उच्च शिक्षा प्रदान करने वाली गतिविधियाँ सार्वजनिक कार्य मानी गईं।

    कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि एक deemed university के रूप में SRM University UGC Act के तहत अपने दायित्वों के कारण Article 226 के अधीन आती है।

    सार्वजनिक उत्तरदायित्व के लिए न्यायिक समीक्षा (Judicial Review as Public Accountability Safeguard)

    न्यायिक पुनर्विचार (Judicial Review) यह सुनिश्चित करती है कि सार्वजनिक दायित्व निभाने वाले निकाय, चाहे वे निजी हों या सार्वजनिक, निष्पक्षता और वैधता (legality) के मानकों का पालन करें।

    सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक पुनर्विचार की इस भूमिका को एक सुरक्षा उपाय के रूप में वर्णित किया, जो यह सुनिश्चित करता है कि जो संस्थान सार्वजनिक हितों (public interests) को प्रभावित करते हैं, वे जनता के प्रति उत्तरदायी रहें।

    इस फैसले के माध्यम से कोर्ट ने पुनः यह सिद्ध किया कि सार्वजनिक कार्यों से जुड़े संस्थानों को सार्वजनिक कानून (public law) की पुनर्विचार के तहत आना चाहिए।

    अधिकारिता (Jurisdiction) और जवाबदेही (Accountability) में संतुलन

    SRM University के सार्वजनिक कार्य को पहचानने के साथ, कोर्ट ने इस चिंता पर भी विचार किया कि यदि सभी निजी शैक्षणिक संस्थानों पर writ jurisdiction लागू कर दी जाए, तो अत्यधिक मुकदमेबाजी (litigation) हो सकती है।

    कोर्ट ने संतुलन बनाते हुए यह स्पष्ट किया कि केवल वे संस्थान, जो महत्वपूर्ण सार्वजनिक कार्यों में लगे हैं, Article 226 के अधीन होंगे। SRM University के मामले में, UGC Act के तहत उसके दायित्वों और जनता को शिक्षा प्रदान करने की भूमिका ने इसे इस दायरे में लाने के लिए पर्याप्त ठहराया।

    Dr. Janet Jeyapaul बनाम SRM University के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने Article 226 के तहत writ jurisdiction के दायरे को व्यापक करते हुए यह सुनिश्चित किया कि सार्वजनिक कार्य करने वाले निजी निकाय भी न्यायिक पुनर्विचार के अधीन हों।

    यह फैसला भविष्य में यह सुनिश्चित करेगा कि सार्वजनिक कार्यों को निभाने वाले संस्थान न्यायिक पुनर्विचार के माध्यम से जवाबदेह बने रहें। इस निर्णय के माध्यम से कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सार्वजनिक कार्य, चाहे कोई भी संस्था इसे निभा रही हो, सार्वजनिक कानून (public law) के अधीन होना चाहिए।

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