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अपील दाख़िल करने की प्रक्रिया और अपील की त्वरित समाप्ति : धारा 423 से 425 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
परिचयभारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में अपील (Appeal) एक ऐसा अधिकार है जिसके ज़रिए दोषी ठहराया गया व्यक्ति या राज्य सरकार किसी फ़ैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती दे सकती है। ऐसे कई मामलों में जब आरोपी व्यक्ति निचली अदालत के फ़ैसले से असहमत होता है, तो वह ऊपरी अदालत में अपनी बात रख सकता है और न्याय की पुनरावृत्ति की माँग कर सकता है। लेकिन इस अधिकार को प्रयोग में लाने के लिए कुछ निश्चित प्रक्रिया और नियम बनाए गए हैं, जो 'भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023' (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023)...
क्या CrPC की धारा 167(2) के तहत मिली Default Bail को बाद में केस की Merit के आधार पर रद्द किया जा सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने State through CBI v. T. Gangi Reddy @ Yerra Gangi Reddy के महत्वपूर्ण फैसले में यह तय किया कि क्या CrPC की धारा 167(2) (Section 167(2) of the Code of Criminal Procedure) के तहत मिली Default Bail को बाद में रद्द (Cancel) किया जा सकता है, यदि चार्जशीट (Chargesheet) दाख़िल होने के बाद यह साबित हो कि आरोपी ने गंभीर गैर-जमानती अपराध (Serious Non-bailable Offence) किया है।कोर्ट ने इस निर्णय में Default Bail, Sections 437(5) और 439(2) CrPC की व्याख्या की और यह समझाया कि न्याय की...
राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम की धाराओं 27, 28 और 29: समय-सीमा, कोर्ट फीस और अधिनियम की प्रधानता
धारा 27 – समय-सीमा (Limitation)राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम की धारा 27 यह स्पष्ट करती है कि इस अधिनियम के अंतर्गत किरायादाता (Tenant) और मकान मालिक (Landlord) के बीच Rent Tribunal या Appellate Rent Tribunal में जो भी आवेदन (Application), याचिका (Petition), अपील (Appeal) या अन्य कार्यवाही की जाएगी, उन पर लिमिटेशन एक्ट, 1963 (Limitation Act, 1963) की व्यवस्था लागू होगी। इसका अर्थ यह है कि अगर किसी व्यक्ति को Rent Tribunal के सामने कोई याचिका या अपील दाखिल करनी है, तो उसे निर्धारित समय-सीमा के...
राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्य निर्धारण अधिनियम की धारा 31 और धारा 32 भाग 1
राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्य निर्धारण अधिनियम (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act) यह निर्धारित करता है कि विभिन्न प्रकार के दीवानी मुकदमों (Civil Suits) में कितनी Court Fees देनी होगी। इससे न्यायालय को राजस्व प्राप्त होता है और साथ ही यह भी सुनिश्चित होता है कि वादी (Plaintiff) अपने द्वारा मांगी गई राहत (Relief) को उचित रूप से महत्व दे।इस लेख में हम इस अधिनियम की धारा 31 (Section 31: Pre-emption Suits) और धारा 32 की उपधाराएं (Sub-sections) (1), (2), और (3) को सरल हिन्दी में...
जब हाईकोर्ट द्वारा दोष सिद्ध किया जाए, तब सुप्रीम कोर्ट में अपील और अन्य विशेष अपील अधिकार – BNSS, 2023 की धारा 420 से 422
धारा 420 – हाईकोर्ट द्वारा दोषसिद्धि के मामलों में सुप्रीम कोर्ट में अपील का अधिकार (Appeal against conviction by High Court in certain cases)भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) की धारा 420 यह बताती है कि अगर कोई व्यक्ति किसी अपराध में पहले निचली अदालत से बरी (Acquitted) कर दिया गया हो, लेकिन हाईकोर्ट (High Court) ने अपील पर उस बरी किए गए आदेश को पलट दिया हो और उस व्यक्ति को दोषी (Convicted) ठहराकर उसे मृत्युदंड (Death sentence), आजीवन कारावास...
किराये पर दी गई संपत्ति का निरीक्षण धारा 25 और 26, राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001
धारा 25: मकान का निरीक्षण (Inspection of Premises)राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की धारा 25 मकान मालिक (Landlord) के उस अधिकार को निर्धारित करती है जिसके अंतर्गत वह अपने किराए पर दिए गए मकान या संपत्ति का निरीक्षण कर सकता है। यह प्रावधान इसलिए लाया गया है ताकि मकान मालिक यह सुनिश्चित कर सके कि उसकी संपत्ति की स्थिति सही है, उसका दुरुपयोग नहीं हो रहा है, और किरायेदार (Tenant) ने संपत्ति में कोई अवैध या अनुचित परिवर्तन नहीं किया है। लेकिन यह अधिकार पूर्ण स्वतंत्रता नहीं देता। इसमें कुछ...
क्या Parole की अवधि को Actual Imprisonment में गिना जाना चाहिए ताकि सज़ा से पहले रिहाई मिल सके?
सुप्रीम कोर्ट ने Rohan Dhungat v. State of Goa मामले में यह अहम सवाल उठाया कि क्या किसी दोषी (Convict) द्वारा Parole पर बिताया गया समय “Actual Imprisonment” (वास्तविक कारावास) की अवधि में गिना जा सकता है जब वह समय से पहले रिहाई (Premature Release) की मांग करता है? कोर्ट ने इस मामले में Parole के उद्देश्य, जेल नियमों की व्याख्या और सज़ा के दुरुपयोग की संभावना पर विचार करते हुए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश दिए।Parole का उद्देश्य और प्रकृति (Nature and Purpose of Parole) Parole एक प्रकार की शर्तीय...
NI Act धारा 101,102,103 और 104 के प्रावधान
धारा 101 प्रसाक्ष्य की अन्तर्वस्तुएँ- धारा 100 के अधीन प्रसाक्ष्य में अन्तर्विष्ट होने चाहिए।या तो स्वयं लिखत या लिखत की और जिसके ऊपर लिखी या मुद्रित हर बात की अक्षरश: अनुलिपि।उस व्यक्ति का नाम जिसके लिए और जिसके विरुद्ध लिखत प्रसाक्ष्यित की गई है।यह कथन कि, यथास्थिति, संदाय या प्रतिग्रहण या बेहतर प्रतिभूति को माँग नोटरी पब्लिक द्वारा ऐसे व्यक्ति से की गई है; यदि उस व्यक्ति का कोई उत्तर है, तो उस उत्तर के शब्द या यह कथन कि उसमें कोई उत्तर नहीं दिया था वह पाया नहीं जा सका।जब कि वचन-पत्र या...
NI Act की धारा 99 एवं 100 के प्रावधान
अनादर की सूचना के पश्चात् धारक द्वारा दूसरा लिया जाने वाला कदम अनादर के तथ्य का टिप्पण एवं प्रसाक्ष्य होता है जिसे नोटरी पब्लिक द्वारा धारा 99 एवं 100 के अधीन दिया जाता है।जब कोई वचन पत्र या विनिमय पत्र (चेक नहीं) अनादृत हो जाता है, धारक अनादर की सम्यक् सूचना देकर वचन पत्र के रचयिता या विनिमय पत्र के लेखीवाल या पृष्ठांकक पर बाद ला सकता है या वह टिप्पण या प्रसाक्ष्य करा सकता है जिससे अनादर के तथ्य का प्रमाणीकरण प्राप्त कर सके। यह स्वयं लिखत पर या इससे सम्बद्ध कागज़ पर या आंशिक प्रत्येक पर हो सकता...
निर्दोष ठहराए जाने पर राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट द्वारा अपील का अधिकार: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 419
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) के अध्याय XXXI में अपील (Appeal) संबंधी प्रावधान दिए गए हैं। इस अध्याय में जहां एक ओर दोषसिद्धि (Conviction) के विरुद्ध अपील का अधिकार समझाया गया है, वहीं दूसरी ओर यह भी स्पष्ट किया गया है कि क्या किसी व्यक्ति को दोषमुक्त (Acquittal) किए जाने पर भी अपील संभव है। धारा 419 इसी विषय को विस्तार से संबोधित करती है।इस लेख में हम धारा 419 के प्रत्येक उप-खंड को सरल भाषा में समझेंगे और इससे जुड़े अन्य प्रावधानों का भी उल्लेख...
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम की धारा 28, 29 और 30
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम में वादों के प्रकार के अनुसार न्यायालय शुल्क की गणना की जाती है। इस लेख में हम तीन महत्वपूर्ण धाराओं — धारा 28 (Specific Relief Act के तहत कब्जे के वाद), धारा 29 (अन्य कब्जे के वाद), और धारा 30 (इज़मेन्ट से संबंधित वाद) — का विस्तृत और सरल विश्लेषण करेंगे।इन धाराओं का उद्देश्य यह है कि यदि कोई व्यक्ति किसी अचल संपत्ति (immovable property) का कब्जा चाहता है या इज़मेन्ट अधिकार (easement rights) को लागू करना चाहता है, तो उसे न्यायालय शुल्क किस प्रकार...
ज़रूरी मरम्मत की जिम्मेदारी – किरायेदार और मकान-मालिक के कर्तव्य: राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की धारा 24 और 24-ए
किरायेदारी संबंधों में मरम्मत (Repairs) का प्रश्न अक्सर विवाद का कारण बनता है। मकान की देखभाल, ज़रूरी मरम्मत, और खर्चों का वहन किसके द्वारा किया जाएगा — ये बातें अक्सर लिखित समझौते में तय होती हैं। लेकिन जब ऐसा कोई लिखित समझौता (Written Agreement) नहीं होता, तो राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की धारा 24 (Section 24 of the Rajasthan Rent Control Act, 2001) इन जिम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से निर्धारित करती है।धारा 24 बताती है कि मरम्मत का खर्च कितनी राशि तक किरायेदार को वहन करना होगा और किस...
क्या एयरबैग जैसे Safety Feature के नाकाम होने पर कार निर्माता को सज़ा मिलनी चाहिए?
सुप्रीम कोर्ट ने Hyundai Motor India Ltd. बनाम Shailendra Bhatnagar मामले में यह महत्वपूर्ण सवाल उठाया कि क्या कार में दिए गए Safety Feature, जैसे एयरबैग (Airbag), अगर सही समय पर काम न करें, तो क्या यह "डिफेक्ट" (Defect) माना जाएगा और क्या कार निर्माता को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? इस फैसले में कोर्ट ने Consumer Protection Act, 1986 और Sale of Goods Act, 1930 की कानूनी व्याख्या (Interpretation) करते हुए उपभोक्ताओं (Consumers) के अधिकारों को मज़बूती से सामने रखा।उपभोक्ता कानून का दायरा...
राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम की धारा 27 : Trust Property से संबंधित वादों में न्यायालय शुल्क
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम की धारा 27 एक विशेष और महत्वपूर्ण धारा है, जो विशेष रूप से विश्वास संपत्ति (Trust Property) से संबंधित वादों में न्यायालय शुल्क (Court Fees) के निर्धारण से जुड़ी है। यह धारा तब लागू होती है जब कोई व्यक्ति या संस्था अदालत में ऐसे विवादों को लेकर जाती है जो किसी ट्रस्ट की संपत्ति, ट्रस्टी का अधिकार, या ट्रस्टी के बीच विवादों से जुड़े होते हैं।धारा 27 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ट्रस्ट या धर्मार्थ संपत्तियों से संबंधित मुकदमों में न्याय की...
किरायेदार को दी जा रही सुविधाएं बंद करने पर रोक – राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की धारा 23
कई बार मकान-मालिक (Landlord) और किरायेदार (Tenant) के बीच विवाद की स्थिति में मकान-मालिक जानबूझकर किरायेदार को दी जा रही आवश्यक सुविधाएं (Amenities) जैसे बिजली, पानी, सफाई, पार्किंग आदि बंद कर देता है। इससे किरायेदार को असुविधा होती है और कई बार उसे मकान खाली करने के लिए मजबूर भी किया जाता है।राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की धारा 23 (Section 23 of the Rajasthan Rent Control Act, 2001) इस तरह की मनमानी पर रोक लगाती है। यह धारा सुनिश्चित करती है कि जब तक Rent Authority की अनुमति न हो, तब...
धारा 418 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 – जब सरकार अपर्याप्त सजा के खिलाफ अपील करती है
संदर्भ (Reference): इससे पहले के लेखों में हमने धारा 415, 416 और 417 के अंतर्गत यह समझा कि कौन व्यक्ति अपील कर सकता है, और किन परिस्थितियों में अपील का अधिकार नहीं होता। अब हम धारा 418 के माध्यम से यह जानेंगे कि राज्य सरकार या केंद्र सरकार किस स्थिति में यह मानते हुए कि किसी दोषी को मिली सजा बहुत कम (Inadequate) है, उसके खिलाफ अपील कर सकती है।अपील की अनुमति – जब सजा अपर्याप्त हो धारा 418 के अनुसार, जब किसी व्यक्ति को अपराध के लिए दोषी ठहराया गया हो और उसे जो सजा दी गई हो, वह सरकार को अपर्याप्त...
क्या किसी Criminal Case को सिर्फ Political Rival के दर्ज कराने पर रद्द किया जा सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने Ramveer Upadhyay & Anr. v. State of U.P. & Anr. मामले में यह महत्वपूर्ण सवाल उठाया कि क्या किसी Criminal Case को सिर्फ इसलिए खारिज (Quash) किया जा सकता है क्योंकि वह मामला Political Rival द्वारा दर्ज कराया गया है? इस फैसले में कोर्ट ने CrPC की धारा 482 (Section 482 of CrPC), Complaint को शुरुआती स्तर पर खारिज करने की प्रक्रिया, और Political Rivalry के प्रभाव को गहराई से समझाया। इस लेख में हम कोर्ट द्वारा तय किए गए महत्वपूर्ण कानून बिंदुओं को सरल भाषा में समझेंगे।धारा 482...
सुप्रीम कोर्ट अपने लंबित मामलों को कैसे कम कर सकता है? आइये जानते हैं
वर्तमान में, भारत के सुप्रीम कोर्ट में 81,712 मामले लंबित हैं। न्यायालय में लंबित मामलों की संख्या नागरिकों को अपने मामलों के निर्णय के लिए प्रतीक्षा करने में लगने वाले समय को बढ़ा देती है। यह संवैधानिक मामलों की सुनवाई में भी देरी करता है जो महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों को सुलझाते हैं क्योंकि मुख्य न्यायाधीशों को नियमित मामलों की सुनवाई और संवैधानिक मामलों के बीच निरंतर संतुलन बनाए रखना चाहिए। लंबित मामलों से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पास कोई सुसंगत रणनीति न होने के दो कारण हैं, पहला,...
NI Act की धारा 93,94,97 और 98 के प्रावधान
अधिनियम की धारा 93 में अप्रतिग्रहण या असंदाय लिखत के अनादर की सूचना देने की अपेक्षा की गई है-उन सब पक्षकारों को, जिन्हें कि धारक उस पर अलग-अलग दायी बनाना चाहता है।उन कई पक्षकारों में से किसी एक को, जिन्हें कि वह उस पर संयुक्तत: दायी बनाना।चेक की दशा में असंदाय की दशा में लेखोवाल को आपराधिक आवद्धता से भारित करने में चाहता है।अनादर के पश्चात् माँग सूचना भेजना आवश्यक होता है। (धारा 138) अनादर की सूचना क्यों?- अनादर की सूचना देने का प्रयोजन संदाय की माँग करना नहीं होता है, बल्कि उसकी आबद्धता को...
NI Act में किसी इंस्ट्रूमेंट के बाउंस हो जाने पर इन्फॉर्म करना
किसी भी इंस्ट्रूमेंट के बाउंस हो जाने पर उसकी सूचना प्रेषित करना होती है। परक्राम्य लिखत में विनिमय पत्र एवं चेक की दशा में एक निश्चित धनराशि के संदाय करने का आदेश एवं वचन पत्र की दशा में निश्चित धनराशि के संदाय का वचन अन्तर्विष्ट होता है। ऐसी आबद्धता संविदात्मक सम्बन्ध भी उत्पन्न करती है। जब यह आबद्धता उन्मोचित हो जाती है तो यह कहा जाता है कि लिखत का आदरण कर दिया गया है एवं मना करने की दशा में यह कहा जाता है कि लिखत का अनादर कर दिया गया है एवं यह संविदा भंग होता है।एक लिखत का अनादर हो सकता...



















