क्या RBI को सार्वजनिक विश्वास का दावा करते हुए जानकारी देने से मना करने का अधिकार है?

Himanshu Mishra

11 Nov 2024 9:09 PM IST

  • क्या RBI को सार्वजनिक विश्वास का दावा करते हुए जानकारी देने से मना करने का अधिकार है?

    रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया बनाम जयंतीलाल एन. मिस्त्री (2015) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (Right to Information Act, 2005, RTI Act) के दायरे और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (Reserve Bank of India, RBI) की गोपनीयता (Confidentiality) की जिम्मेदारियों पर विचार किया।

    इस मामले में अदालत ने यह जांचा कि क्या आरबीआई और अन्य बैंकों को आर्थिक हित, वाणिज्यिक (Commercial) गोपनीयता और सार्वजनिक विश्वास (Public Confidence) का दावा करते हुए जानकारी देने से मना करने का अधिकार है।

    इस निर्णय में विशेष रूप से RTI अधिनियम की धारा 8 (Section 8) के कुछ प्रावधानों (Provisions) का अध्ययन किया गया, जिससे यह निर्धारित किया जा सके कि क्या ये अपवाद उस जानकारी को संरक्षण प्रदान करते हैं जिसे याचिकाकर्ता द्वारा अधिनियम के तहत मांगा गया था।

    RTI अधिनियम की महत्वपूर्ण प्रावधानों (Key Provisions) का अध्ययन

    RTI अधिनियम पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए बनाया गया है, लेकिन कुछ मामलों में सार्वजनिक हित (Public Interest) और संवेदनशील जानकारी (Sensitive Information) को सुरक्षित रखने के लिए धारा 8 में छूट (Exemption) प्रदान की गई है।

    इस मामले में अदालत ने निम्नलिखित धाराओं पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया:

    1. धारा 8(1)(a): इस धारा में उस जानकारी को छूट दी गई है जिसका खुलासा भारत की संप्रभुता, अखंडता या आर्थिक हितों (Economic Interests) को प्रभावित कर सकता है।

    2. धारा 8(1)(d): वाणिज्यिक (Commercial) गोपनीयता या व्यापारिक (Trade Secrets) रहस्य वाली जानकारी को संरक्षण प्रदान करता है जो किसी तीसरे पक्ष (Third Party) की प्रतिस्पर्धी स्थिति को नुकसान पहुंचा सकती है।

    3. धारा 8(1)(e): किसी भरोसेमंद (Fiduciary) क्षमता में रखी गई जानकारी को छूट प्रदान करता है, जब तक कि बड़े सार्वजनिक हित में उसका खुलासा उचित न हो।

    4. धारा 8(2): यदि जानकारी का खुलासा सार्वजनिक हित में अधिक आवश्यक हो तो यह छूट हटाई जा सकती है, भले ही उस पर छूट लागू हो।

    धारा 8(1)(e) और भरोसेमंद (Fiduciary) क्षमता का अध्ययन

    आरबीआई ने तर्क दिया कि बैंकों के निरीक्षण और निगरानी के दौरान एकत्र की गई जानकारी भरोसेमंद क्षमता (Fiduciary Capacity) में रखी गई है और इसलिए इसे धारा 8(1)(e) के तहत छूट प्राप्त है।

    अदालत ने माना कि आरबीआई एक पारंपरिक भरोसेमंद (Traditional Fiduciary) भूमिका में काम नहीं करता है जैसा कि एक बैंक करता है। इसके बजाय, आरबीआई सार्वजनिक हित में एक नियामक (Regulator) की भूमिका निभाता है जो भारत के बैंकिंग सिस्टम की स्थिरता पर केंद्रित है। अदालत ने पाया कि आरबीआई का नियामक कार्य पारंपरिक व्यापारिक भरोसेमंद संबंधों की तरह गोपनीयता की आवश्यकता नहीं रखता।

    अदालत ने इस पर जोर दिया कि बैंकिंग क्षेत्र में पारदर्शिता (Transparency) का बड़ा सार्वजनिक हित आरबीआई के भरोसेमंदता के दावे से अधिक महत्वपूर्ण है।

    धारा 8(1)(a) और भारत के आर्थिक हितों का प्रभाव (Economic Interests)

    आरबीआई ने यह भी तर्क दिया कि संवेदनशील जानकारी का खुलासा सार्वजनिक विश्वास (Public Confidence) को नुकसान पहुंचा सकता है और भारत के आर्थिक हितों को प्रभावित कर सकता है, जो कि धारा 8(1)(a) के तहत छूट प्राप्त है। हालांकि, अदालत ने यह निष्कर्ष निकाला कि आरबीआई के कार्यों में पारदर्शिता से सार्वजनिक विश्वास कमजोर नहीं, बल्कि मजबूत होगा।

    अदालत ने पाया कि गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (Non-Performing Assets, NPAs) और निरीक्षण रिपोर्टों के बारे में जानकारी का खुलासा सार्वजनिक हित को बढ़ावा देगा और जवाबदेही (Accountability) को सुनिश्चित करेगा। इसलिए, यह तर्क जानकारी को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं था।

    अनुच्छेद 19 और मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) का संदर्भ

    अदालत ने यह पुष्टि की कि RTI अधिनियम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) से प्राप्त सूचना के मौलिक अधिकार (Fundamental Right to Information) का समर्थन करता है। अदालत ने देखा कि पारदर्शिता लोकतंत्र का एक आवश्यक तत्व है और सार्वजनिक संस्थानों को पारदर्शी तरीके से कार्य करना चाहिए ताकि नागरिकों का सूचना का अधिकार सुरक्षित हो। इस निर्णय में अदालत ने इस संवैधानिक सिद्धांत (Constitutional Principle) को संतुलित करने की आवश्यकता पर बल दिया।

    पारदर्शिता का समर्थन करने वाले पूर्व-निर्णय (Precedents)

    अदालत ने कई प्रमुख निर्णयों का उल्लेख किया जिनमें पारदर्शिता पर जोर दिया गया था, जैसे:

    • स्टेट ऑफ यूपी बनाम राज नारायण (1975): इसने यह कहा कि जानने का अधिकार स्वतंत्रता का एक हिस्सा है।

    • सीबीएसई बनाम आदित्य बंधोपाध्याय (2011): इसमें RTI अधिनियम की सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने में भूमिका को रेखांकित किया गया।

    • यूनियन ऑफ इंडिया बनाम एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (2002): इसने पुष्टि की कि जनता को अपने प्रतिनिधियों के बारे में जानकारी का अधिकार है।

    इन मामलों ने इस बात पर जोर दिया कि सार्वजनिक जानकारी तक पहुँच लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है और पारदर्शिता से संस्थानों में विश्वास बढ़ता है, और अदालत ने इस निर्णय में इसी दृष्टिकोण का पालन किया।

    धारा 8(2) और गोपनीयता (Confidentiality) से अधिक सार्वजनिक हित

    अदालत ने RTI अधिनियम की धारा 8(2) का हवाला दिया, जो यह अनुमति देता है कि यदि बड़े सार्वजनिक हित की आवश्यकता हो, तो छूट के बावजूद भी जानकारी का खुलासा किया जा सकता है।

    अदालत ने माना कि बैंकों की कार्यप्रणाली और जवाबदेही के बारे में जानकारी तक जनता की पहुँच का महत्व गोपनीयता की तुलना में अधिक है।

    विशेष रूप से, अदालत ने यह माना कि आरबीआई द्वारा गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) और निरीक्षण रिपोर्ट्स के खुलासे से पारदर्शिता बढ़ेगी, वित्तीय अनियमितताओं को रोका जा सकेगा और जमाकर्ताओं के हित सुरक्षित होंगे।

    RTI अधिनियम का आरबीआई की गोपनीयता के दावों पर वर्चस्व (Primacy)

    आरबीआई बनाम जयंतीलाल एन. मिस्त्री के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सार्वजनिक संस्थानों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने में RTI अधिनियम का विशेष महत्व है, विशेष रूप से बैंकिंग क्षेत्र में।

    अदालत ने आरबीआई के भरोसेमंदता (Fiduciary) दावे को खारिज करते हुए और अन्य गोपनीयता प्रावधानों (Confidentiality Provisions) पर RTI अधिनियम की प्रधानता (Supremacy) को मजबूत करते हुए यह स्पष्ट किया कि सार्वजनिक हित और जानकारी का अधिकार सर्वोपरि हैं।

    यह निर्णय यह बताता है कि RTI अधिनियम एक पारदर्शी और उत्तरदायी नियामक (Regulatory) ढाँचे को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, यहाँ तक कि संवेदनशील क्षेत्रों में भी।

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