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हिंदू विवाह अधिनियम, 1955: प्रारंभिक धाराएं
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की शुरुआत इसकी प्रारंभिक धाराओं (Preliminary Sections) से होती है, जो अधिनियम के नाम, उसके विस्तार (Extent) और उन व्यक्तियों (Persons) पर लागू होने (Application) का निर्धारण करती हैं जिन पर यह कानून प्रभावी होगा। ये धाराएँ अधिनियम की नींव (Foundation) रखती हैं और यह स्पष्ट करती हैं कि कौन इसके दायरे (Ambit) में आता है।1. संक्षिप्त नाम और विस्तार (Short Title and Extent) (1) इस अधिनियम को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 कहा जा सकता है। (This Act may be called the Hindu...
एबॉर्शन से संबंधित क़ानून
इस संबंध में एमटीपी एक्ट 1971 है। जिसका नाम- गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम है।महिला की सहमति के विरुद्ध गर्भपात दंडनीय है। महिला की सहमति से महिला के जीवन बचाने हेतु किए गए गर्भपात दंडनीय नहीं है। गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम 1971 के अंतर्गत भी महिला के जीवन की रक्षा हेतु प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। इस अधिनियम का निर्माण कुछ गर्भो का समापन पंजीकृत चिकित्सक द्वारा किए जाने और उससे संबंधित विषयों के लिए प्रावधान करने के उद्देश्य से किया गया है। यह अधिनियम 1 अप्रैल 1972 से लागू हुआ। इस...
Arbitration And Conciliation Act में Arbitral Institution द्वारा Arbitrator नियुक्त किया जाना
इस नए मध्यस्थता अधिनियम 2019 के अन्तर्गत संस्थागत मध्यस्थता को वैधानिक मान्यता प्राप्त है। अतः अब स्थायी मध्यस्थता संस्थाओं की सहायता से मध्यस्थों को नियुक्ति कराई जा सकती है। पक्षकारों के अनुरोध पर यह संस्था विशेषज्ञों की पेनल (नामावली) में विवाद की विषय वस्तु के क्षेत्र में अनुभवी विशेषज्ञ व्यक्तियों में से मध्यस्थ नियुक्त किये जाने हेतु पक्षकारों को परामर्श देते हैं।यह स्थायी मध्यस्थता संस्थायें केवल मध्यस्थता कार्यवाही का संचालन नहीं करती अपितु इस हेतु प्रशासनिक सहायता उपलब्ध कराती हैं।...
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 का परिचय
हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) 1955, भारतीय कानूनी इतिहास (Indian Legal History) में एक महत्वपूर्ण कानून है, जिसने देश की एक बड़ी आबादी के बीच व्यक्तिगत संबंधों (Personal Relationships) के नियमन में एक बड़ा बदलाव लाया।भारत की संसद (Parliament of India) द्वारा अधिनियमित (Enacted) यह अधिनियम (Act) केवल एक कानूनी उपकरण (Statutory Instrument) नहीं था, बल्कि एक गहरा सामाजिक सुधार (Social Reform) था, जिसका उद्देश्य हिंदुओं के बीच विवाह (Marriage) से संबंधित कानून को संहिताबद्ध (Codify) और...
Sales of Goods Act, 1930 की धारा 41-44: अनुबंध का प्रदर्शन - खरीदार के अधिकार और देनदारियां
माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय IV अनुबंध के प्रदर्शन (Performance of the Contract) के बारे में बताता है, जिसमें खरीदार (Buyer) के महत्वपूर्ण अधिकार और कर्तव्य शामिल हैं, विशेष रूप से माल की जाँच (Examination of Goods), स्वीकृति (Acceptance), और सुपुर्दगी (Delivery) से संबंधित। ये धाराएँ खरीदार के हितों की रक्षा करती हैं और विक्रेता (Seller) के साथ उसके संबंधों को स्पष्ट करती हैं।खरीदार का माल की जाँच का अधिकार (Buyer's Right of Examining the Goods) धारा 41 खरीदार को...
Indian Partnership Act 1932 की धारा 30 : भागीदारी के लाभों में नाबालिगों का प्रवेश
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 30 (Section 30) नाबालिगों (Minors) को भागीदारी के लाभों में शामिल करने से संबंधित विशिष्ट प्रावधानों (Specific Provisions) को निर्धारित करती है। यह धारा भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (Indian Contract Act, 1872) के सिद्धांत से एक अपवाद (Exception) है, जो नाबालिगों को अनुबंध करने में अक्षम (Incompetent to Contract) मानता है।नाबालिग को भागीदारी में शामिल करना (Admitting a Minor to Partnership) उप-धारा (1) के अनुसार, एक व्यक्ति जो...
क्या अवैध विवाह से जन्मे बच्चों को अपने माता-पिता की पैतृक संपत्ति में अधिकार मिल सकता है?
हिंदू कानून में विवाह और संपत्ति से जुड़ी कानूनी पृष्ठभूमि सुप्रीम कोर्ट ने Revanasiddappa बनाम Mallikarjun (2023) के फैसले में यह महत्वपूर्ण सवाल तय किया कि क्या ऐसे बच्चे जो अवैध (Void) या रद्दयोग्य (Voidable) विवाह से जन्मे हैं, अपने माता-पिता की संयुक्त या पैतृक संपत्ति (Ancestral/Joint Hindu Family Property) में अधिकार पा सकते हैं। यह विवाद विशेष रूप से हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act) की धारा 16 (Section 16) और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (Hindu Succession Act) की...
भारतीय कानून व्यवस्था के तहत एक महिला आरोपी के अधिकार
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 के तहत आरोपी महिलाओं के अधिकारभारतीय आपराधिक कानून अपराधों के आरोपी महिलाओं के लिए विशेष सुरक्षा सुनिश्चित करता है, कानूनी प्रक्रिया के दौरान उनकी गरिमा और अधिकारों को संरक्षित करता है। इन सुरक्षा उपायों को अब मुख्य रूप से भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) और भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) के तहत संहिताबद्ध किया गया है। 1. गिरफ्तारी से संबंधित सुरक्षा केवल रात्रि गिरफ्तारी और केवल महिला अधिकारी नहीं (धारा 43 BNSS): महिलाओं को सूर्यास्त और...
Arbitration And Conciliation Act में पार्टी द्वारा Arbitrator की नियुक्ति
इस एक्ट में Arbitrator की नियुक्ति किसी भी मामले के पक्षकारों द्वारा भी की जाती है। जहाँ मध्यस्थ या मध्यस्थों को नियुक्ति पक्षकारों द्वारा की गई हो, वहां वह तत्काल को मध्यस्य निर्देशित कर मध्यस्थता कार्यवाही प्रारम्भ कर सकते हैं। मध्यस्थ किसी भी राष्ट्रीयता का व्यक्ति को सकता है परन्तु अन्तर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक संव्यवहार से सम्बन्धित विवाद की दशा में दोनों पक्षकारों को राष्ट्रीयता से भिन्न राष्ट्रीयता वाले व्यक्ति को मध्यस्थ के रूप में नियुक्त किया जाना आवश्यक है।अतः एक ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय...
Arbitration And Conciliation Act की धारा 7 के प्रावधान
इस एक्ट धारा 7 उपबन्धित करती है कि 'इस भाग में मध्यस्थता करार' से अभिप्रेत है एक ऐसा करार जो पक्षकारों द्वारा उन सभी अथवा कुछ विवादों को, जो उनमें एक परिभाषित विधिक संबंध से जन्म लेेते है को प्रेषित किये जाने हेतु किया गया हो।इस परिभाषा में यह स्पष्ट है कि जो विवाद मध्यस्थता के तहत मध्यस्थ को गया है वह पक्षकारों के मध्य किसी विधि सम्बन्ध के कारण उत्पन्न हुये होने चाहिये।एक मामले में अभिनिर्धारित किया गया कि किसी माध्यस्थता करार की वैधता उसमें विनिर्दिष्ट मध्यस्थों की संख्या पर निर्भर नहीं करती।...
क्या समय से पहले रिहाई के लिए केवल न्यायाधीश की राय ही काफी है?
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 432 के तहत समयपूर्व रिहाई (Premature Release under Section 432 of CrPC)दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973) की धारा 432 सरकार को यह शक्ति देती है कि वह किसी दोषी (Convict) की सजा को माफ (Remit) या निलंबित (Suspend) कर सकती है। यह शक्ति सरकार की कार्यपालिका (Executive) शक्ति का हिस्सा है, न कि न्यायिक (Judicial) प्रक्रिया का। लेकिन यह शक्ति पूरी तरह से मनमानी नहीं हो सकती। धारा 432(2) कहती है कि ऐसा निर्णय लेने से पहले उस न्यायाधीश की राय...
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 262 और 263 : पटवारी आदि लोक सेवक माने जाएंगे
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 राज्य में भूमि और राजस्व से जुड़े मामलों के व्यापक नियमन के लिए लागू किया गया था। अधिनियम के अंतिम दो प्रावधान धारा 262 और 263 इस कानून की व्याख्या को पूर्णता प्रदान करते हैं। एक ओर जहां धारा 262 यह स्पष्ट करती है कि इस अधिनियम के अंतर्गत नियुक्त सभी भूमि राजस्व अधिकारी 'लोक सेवक' (Public Servant) माने जाएंगे, वहीं दूसरी ओर धारा 263 यह स्पष्ट करती है कि पूर्ववर्ती कानूनों और परंपराओं का इस अधिनियम के लागू होने के बाद क्या स्थान रहेगा।धारा 262 – पटवारी आदि लोक...
Sales of Goods Act, 1930 की धारा 38-40 : एक या अधिक किस्तों के उल्लंघन का प्रभाव
माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय IV अनुबंध के प्रदर्शन (Performance of the Contract) के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालता है, जिसमें सुपुर्दगी के तरीके और संबंधित जोखिम शामिल हैं। ये धाराएँ जटिल सुपुर्दगी परिदृश्यों (Complex Delivery Scenarios) में विक्रेता (Seller) और खरीदार (Buyer) के अधिकारों और कर्तव्यों को स्पष्ट करती हैं।किस्त सुपुर्दगी (Instalment Deliveries) धारा 38 किस्त सुपुर्दगी से संबंधित नियमों को निर्धारित करती है: 1. किस्त सुपुर्दगी स्वीकार करने की बाध्यता...
Indian Partnership Act, 1932 की धारा 28 – 29 : तीसरे पक्ष के प्रति भागीदारों की देनदारी और भागीदार के हित के हस्तांतरिती के अधिकार
'होल्डिंग आउट' द्वारा देनदारी (Holding Out)भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 28 (Section 28) 'होल्डिंग आउट' (Holding Out) के सिद्धांत को परिभाषित करती है, जिसे 'प्रदर्शन द्वारा भागीदारी' (Partnership by Estoppel) भी कहा जाता है। यह सिद्धांत तीसरे पक्ष के हितों की रक्षा करता है जो किसी व्यक्ति की भागीदारी की स्थिति पर विश्वास करते हुए फर्म के साथ लेनदेन करते हैं: 1. स्वयं को भागीदार के रूप में प्रस्तुत करना (Representing Oneself as a Partner): कोई भी व्यक्ति जो...
हलफनामा (Affidavit) का अर्थ, कानूनी प्रावधान, प्रक्रिया और सजा
एक हलफनामा एक ऐसा लिखित बयान होता है जिसमें कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से कुछ बातें सच बताकर उन्हें शपथ या सत्य प्रतिज्ञान के साथ लिखता है। भारत में इसे कानूनी और सरकारी कामों में सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। यह बयान उस व्यक्ति द्वारा दिया जाता है जिसे अभिपत्रक या प्रतिवादी कहते हैं। जब यह हलफनामा किसी अधिकृत अधिकारी (जैसे नोटरी या मजिस्ट्रेट) के सामने साइन किया जाता है और वह इसे सत्यापित करता है, तब यह कानूनी रूप से वैध माना जाता है।शपथ पत्र क्या है? एक हलफनामा एक औपचारिक दस्तावेज है...
Sales of Goods Act, 1930 की धारा 36-37 : Delivery के नियम और गलत मात्रा
Sales of Goods Act, 1930 का अध्याय IV अनुबंध के प्रदर्शन (Performance of the Contract) के बारे में बताता है। इसमें सुपुर्दगी (Delivery) से संबंधित महत्वपूर्ण नियम शामिल हैं, जो विक्रेता (Seller) और खरीदार (Buyer) दोनों के लिए स्पष्टता प्रदान करते हैं।सुपुर्दगी संबंधी नियम (Rules as to Delivery) धारा 36 सुपुर्दगी के विभिन्न पहलुओं और संबंधित कर्तव्यों को निर्धारित करती है: 1. सुपुर्दगी का स्थान (Place of Delivery) - धारा 36(1): क्या खरीदार को माल का कब्ज़ा लेना है या विक्रेता को उन्हें खरीदार...
क्या सरकार और राजस्व मंडल को राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 261 के अंतर्गत नियम बनाने का अधिकार है?
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 एक विस्तृत अधिनियम है जो राज्य के राजस्व प्रशासन को नियंत्रित करता है। इसकी धारा 261 यह स्पष्ट रूप से निर्धारित करती है कि किन विषयों पर और किस स्तर की सरकार या अधिकारी को नियम बनाने (Rule Making) का अधिकार है। यह धारा राज्य शासन और राजस्व मंडल (Board of Revenue) को अधिनियम के उद्देश्य को पूर्ण करने हेतु नियम बनाने की शक्तियाँ प्रदान करती है।धारा 261(1) – राजस्व मंडल द्वारा नियम बनाना (Rules by the Board with Prior Sanction of the State Government) इस उपधारा के...
Indian Partnership Act, 1932 की धारा 25-28 : तीसरे पक्ष के प्रति भागीदारों और फर्म की देनदारियां
फर्म के कार्यों के लिए भागीदार की देनदारी (Liability of a Partner for Acts of the Firm)भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 25 (Section 25) भागीदारों की देनदारी को स्पष्ट करती है। इसके अनुसार, प्रत्येक भागीदार फर्म के सभी कार्यों के लिए, जो उसके भागीदार रहते हुए किए गए थे, अन्य सभी भागीदारों के साथ संयुक्त रूप से (Jointly) और व्यक्तिगत रूप से (Severally) भी उत्तरदायी (Liable) होता है। इसका मतलब है कि यदि फर्म पर कोई कर्ज है, तो लेनदार (Creditor) या तो सभी...
क्या POCSO मामलों में सपोर्ट पर्सन की नियुक्ति कानूनी अधिकार है या सिर्फ एक सलाह?
POCSO कानून के तहत बाल संरक्षण की व्यवस्था (Child Protection Framework under POCSO)POCSO अधिनियम, 2012 (Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012) बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षित रखने के लिए बनाया गया एक विशेष कानून है। इसका उद्देश्य बच्चों के लिए संवेदनशील और सुरक्षित कानूनी प्रक्रिया (Child-Friendly Legal Framework) सुनिश्चित करना है। इस कानून में न केवल विशेष न्यायालय (Special Courts) की व्यवस्था की गई है बल्कि पीड़ित बच्चों को न्याय प्रक्रिया में सहयोग देने के लिए सपोर्ट...
क्या सरकारों द्वारा धारा 4 की अनुपालना के बिना सूचना का अधिकार नागरिकों को वास्तविक सशक्तिकरण दे सकता है?
किशन चंद जैन बनाम भारत संघ (2023) के ऐतिहासिक फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने जानकारी के अधिकार अधिनियम, 2005 (Right to Information Act, 2005 - RTI Act) के एक बेहद अहम मुद्दे पर विचार किया क्या बिना जवाबदेही (Accountability) के यह कानून अपने मकसद में सफल हो सकता है?इस मामले में कोर्ट ने किसी एक व्यक्ति की शिकायत या प्रक्रिया की गलती पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि सार्वजनिक संस्थाओं द्वारा RTI Act की धारा 4 (Section 4) के पालन की समग्र स्थिति पर विचार किया। इस निर्णय ने यह स्पष्ट किया कि नागरिकों को...



















