अपराध और अभियोजन से जुड़े प्रावधान: धारा 337, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
Himanshu Mishra
11 Jan 2025 10:30 PM IST
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) ने अपराध और अभियोजन प्रक्रिया (Prosecution Process) में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। इसकी धारा 337 अभियोजन और सुनवाई (Trial) से जुड़े सामान्य प्रावधानों को स्पष्ट करती है।
इसमें विशेष रूप से डबल जिओपार्डी (Double Jeopardy) के सिद्धांत और इसके अपवादों (Exceptions) को शामिल किया गया है। यह धारा न्याय प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के साथ-साथ कुछ विशेष परिस्थितियों में पुनः सुनवाई (Retrial) की अनुमति देती है।
दोहरी सजा से संरक्षण (Protection Against Double Jeopardy) – धारा 337(1)
डबल जिओपार्डी का सिद्धांत अपराध कानून (Criminal Law) की बुनियाद है। धारा 337(1) के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए सक्षम न्यायालय (Competent Court) द्वारा दोषी ठहराया (Convicted) या बरी (Acquitted) कर दिया गया है, तो उस अपराध के लिए दोबारा मुकदमा नहीं चलाया जा सकता जब तक कि यह दोषसिद्धि (Conviction) या बरी का आदेश प्रभावी (In Force) है।
इसके साथ ही, यह प्रावधान यह भी सुनिश्चित करता है कि अभियोजन (Prosecution) उसी घटना के आधार पर किसी और अपराध के लिए नई सुनवाई न कर सके, जिसे पहले सेक्शन 244(1) के तहत अलग तरीके से चार्ज किया जा सकता था या सेक्शन 244(2) के तहत दोषी ठहराया जा सकता था।
अलग अपराधों के लिए अपवाद (Exceptions for Distinct Offences) – धारा 337(2)
डबल जिओपार्डी से सुरक्षा के बावजूद, धारा 337(2) कुछ मामलों में पुनः सुनवाई की अनुमति देती है। यदि किसी व्यक्ति पर ऐसा अलग अपराध (Distinct Offence) साबित होता है जिसे पहले मुकदमे के दौरान चार्ज किया जा सकता था, तो राज्य सरकार (State Government) की अनुमति से उस पर पुनः मुकदमा चलाया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति पर चोरी (Theft) का मुकदमा चला और बाद में यह पता चला कि उसने धोखाधड़ी (Fraud) भी की थी, तो राज्य सरकार की अनुमति से उसे इस अलग अपराध के लिए पुनः आरोपी बनाया जा सकता है।
नए परिणामों पर पुनः सुनवाई (Consequential Offences and Subsequent Trials) – धारा 337(3)
धारा 337(3) के तहत, यदि किसी अपराध के परिणाम (Consequences) पहली सुनवाई के समय ज्ञात नहीं थे या बाद में उत्पन्न हुए, तो आरोपी पर दोबारा मुकदमा चलाया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति को गंभीर चोट (Grievous Hurt) पहुंचाने के लिए दोषी ठहराया गया और बाद में पीड़ित की मृत्यु हो गई, तो आरोपी पर गैर इरादतन हत्या (Culpable Homicide) का मुकदमा चल सकता है।
पहले न्यायालय की अक्षमता (Incompetency of the First Trial Court) – धारा 337(4)
धारा 337(4) के तहत, यदि पहले सुनवाई करने वाला न्यायालय उस अपराध पर मुकदमा चलाने में सक्षम नहीं था, जो उसी घटना से संबंधित है, तो आरोपी पर उस अपराध के लिए दोबारा मुकदमा चलाया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, यदि एक मजिस्ट्रेट (Magistrate) ने किसी व्यक्ति को चोट पहुंचाने (Voluntarily Causing Hurt) के लिए दोषी ठहराया, लेकिन गंभीर चोट (Grievous Hurt) के मामले की सुनवाई करने की उसकी क्षमता नहीं थी, तो आरोपी पर गंभीर चोट के लिए सक्षम न्यायालय में दोबारा मुकदमा चलाया जा सकता है।
डिस्चार्ज के बाद पुनः मुकदमा (Retrial After Discharge) – धारा 337(5)
धारा 337(5) स्पष्ट करती है कि यदि किसी आरोपी को धारा 281 के तहत डिस्चार्ज (Discharge) किया गया है, तो उसी अपराध के लिए पुनः मुकदमा नहीं चल सकता, जब तक कि उसे डिस्चार्ज करने वाले न्यायालय या उसके उच्च न्यायालय (Superior Court) की सहमति न हो।
अन्य विधानों की संगति (Preservation of Existing Legal Principles) – धारा 337(6)
धारा 337(6) यह सुनिश्चित करती है कि यह प्रावधान धारा 26, जनरल क्लॉजेज एक्ट, 1897 (General Clauses Act) या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 208 को प्रभावित नहीं करेगा। यह प्रावधान विभिन्न कानूनों के बीच सामंजस्य बनाए रखने पर जोर देता है ताकि किसी भी मौजूदा कानूनी सिद्धांत को कमजोर न किया जाए।
व्याख्या: बरी, डिस्चार्ज और शिकायत खारिज करना (Explanation: Acquittal, Discharge, and Dismissal of Complaints)
इस धारा की व्याख्या (Explanation) में यह स्पष्ट किया गया है कि शिकायत खारिज (Dismissal of Complaint) या आरोपी का डिस्चार्ज होना बरी (Acquittal) के समान नहीं है। बरी का मतलब है कि आरोपी उस अपराध के लिए पूरी तरह से मुक्त हो गया है, जबकि डिस्चार्ज या शिकायत खारिज होने की स्थिति में आगे कानूनी कार्रवाई संभव है।
धारा 337 के उदाहरण (Illustrations)
इस धारा में दिए गए उदाहरण (Illustrations) इसके व्यावहारिक उपयोग को स्पष्ट करते हैं:
1. चोरी के मामले में बरी: यदि किसी व्यक्ति को नौकर के रूप में चोरी (Theft as a Servant) के आरोप से बरी कर दिया गया, तो उसे उसी चोरी, सामान्य चोरी (Theft Simply), या आपराधिक विश्वासघात (Criminal Breach of Trust) के लिए दोबारा आरोपी नहीं बनाया जा सकता।
2. गंभीर चोट और मौत: यदि किसी व्यक्ति को गंभीर चोट (Grievous Hurt) पहुंचाने के लिए दोषी ठहराया गया और बाद में पीड़ित की मृत्यु हो गई, तो उसे गैर इरादतन हत्या (Culpable Homicide) के लिए पुनः आरोपी बनाया जा सकता है।
3. गैर इरादतन हत्या से हत्या: यदि किसी व्यक्ति को गैर इरादतन हत्या (Culpable Homicide) के लिए दोषी ठहराया गया है, तो उसे उन्हीं तथ्यों पर हत्या (Murder) के लिए दोबारा आरोपी नहीं बनाया जा सकता।
4. साधारण चोट और गंभीर चोट: यदि मजिस्ट्रेट ने आरोपी को साधारण चोट (Voluntarily Causing Hurt) के लिए दोषी ठहराया, तो उसे उन्हीं तथ्यों पर गंभीर चोट (Grievous Hurt) के लिए पुनः आरोपी नहीं बनाया जा सकता, जब तक कि धारा 337(3) के तहत नए परिणाम ज्ञात न हों।
5. चोरी से डकैती: यदि किसी व्यक्ति को चोरी (Theft) के लिए दोषी ठहराया गया, तो नए सबूत मिलने पर उसे डकैती (Robbery) के लिए आरोपी बनाया जा सकता है।
6. डकैती से डकैती के अन्य मामले: यदि तीन व्यक्तियों को डकैती (Robbery) के लिए दोषी ठहराया गया, तो उन्हें उन्हीं तथ्यों पर डकैती के संगठित अपराध (Dacoity) के लिए भी आरोपी बनाया जा सकता है।
धारा 337, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, व्यक्तियों को एक ही अपराध के लिए बार-बार अभियोजन (Repeated Prosecution) से बचाती है और न्यायपालिका की निष्पक्षता सुनिश्चित करती है। यह प्रावधान डबल जिओपार्डी के सिद्धांत को मजबूत करता है और नए तथ्यों या अलग अपराधों के मामलों में पुनः सुनवाई की अनुमति देकर न्याय को संतुलित करता है।
इसमें दिए गए उदाहरण इसे और अधिक स्पष्ट और समझने योग्य बनाते हैं। यह धारा कानूनी प्रक्रिया (Legal Process) को पारदर्शी बनाकर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करती है और आपराधिक न्याय प्रणाली की सटीकता बनाए रखती है।