महिलाओं और पुरुषों की संख्या पर पाबंदी: क्या यह पेशे की स्वतंत्रता का उल्लंघन है?
Himanshu Mishra
11 Jan 2025 10:33 PM IST
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने होटल प्रिया बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें ऑर्केस्ट्रा बार (Orchestra Bars) में पुरुष और महिलाओं के लिए समान संख्या (Gender Cap) की शर्त को असंवैधानिक घोषित किया गया।
यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15(1) (लैंगिक भेदभाव पर रोक), और अनुच्छेद 19(1)(g) (पेशा करने की स्वतंत्रता) पर आधारित है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे प्रतिबंध पितृसत्तात्मक (Patriarchal) सोच पर आधारित हैं और समानता व स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।
संवैधानिक प्रावधान और उनका महत्व (Constitutional Provisions and Their Interpretation)
यह मामला मुख्य रूप से दो संवैधानिक अधिकारों पर आधारित है:
1. अनुच्छेद 15(1) (Article 15(1)): लिंग (Gender) के आधार पर भेदभाव को रोकता है।
2. अनुच्छेद 19(1)(g) (Article 19(1)(g)): किसी भी पेशे, व्यवसाय, व्यापार या काम करने की स्वतंत्रता देता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य को सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता (Decency), और नैतिकता (Morality) की रक्षा के लिए अनुच्छेद 19(6) के तहत उद्योगों को नियंत्रित करने का अधिकार है। लेकिन, ऐसे नियम दूसरे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते।
लैंगिक समानता का सिद्धांत (The Principle of Gender Equality)
कोर्ट ने कहा कि लिंग आधारित (Gender-Based) प्रतिबंध, अनुच्छेद 15(1) का उल्लंघन करते हैं। अनुज गर्ग बनाम होटल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (Anuj Garg v. Hotel Association of India) और जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ (Joseph Shine v. Union of India) जैसे ऐतिहासिक मामलों का हवाला देते हुए, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर लगाए गए पितृसत्तात्मक नियम उनकी स्वतंत्रता को सीमित करते हैं।
कोर्ट ने सुझाव दिया कि महिलाओं को सशक्त बनाना (Empowerment) एक बेहतर उपाय है, न कि उनके लिए अवसरों को बाधित करना।
पेशे की स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Occupational Freedom)
यह प्रतिबंध अनुच्छेद 19(1)(g) का भी उल्लंघन करता है। कोर्ट ने कहा कि कलाकारों का समूह कैसा होगा—सिर्फ पुरुष, सिर्फ महिलाएं, या पुरुष-महिला का मिश्रण—यह तय करना कलाकारों और बार मालिकों का अधिकार है। इस प्रकार की शर्तें, जो बिना किसी तर्कसंगत आधार के लगाई जाती हैं, अनुचित और मनमानी (Arbitrary) हैं।
कोर्ट ने स्टेट ऑफ महाराष्ट्र बनाम इंडियन होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन (State of Maharashtra v. Indian Hotel and Restaurant Association) के मामले का हवाला दिया, जिसमें बार में डांस पर पूर्ण प्रतिबंध को पेशे की स्वतंत्रता पर अनुचित हस्तक्षेप बताया गया था।
ऐतिहासिक संदर्भ और पूर्व निर्णय (Historical Context and Previous Rulings)
यह निर्णय लैंगिक भेदभाव और पेशे की स्वतंत्रता पर सुप्रीम कोर्ट के पहले के निर्णयों पर आधारित है:
1. आईएचआरए I (IHRA I, 2013): कोर्ट ने डांस बार पर पूर्ण प्रतिबंध को असंवैधानिक घोषित किया था और कहा था कि ऐसा प्रतिबंध अनुच्छेद 14 और 19(1)(g) का उल्लंघन करता है।
2. आईएचआरए III (IHRA III, 2019): कोर्ट ने 2016 के प्रावधानों को खारिज करते हुए कहा कि डांस बार पर अत्यधिक नैतिकतावादी (Overly Moralistic) प्रतिबंध अनुचित हैं और संवैधानिक अधिकारों का हनन करते हैं।
सुरक्षात्मक नियमों का भ्रम (The Fallacy of Paternalistic Regulation)
कोर्ट ने महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर लगाए गए प्रतिबंधों की कड़ी आलोचना की।
अनुज गर्ग और अन्य मामलों के आधार पर कोर्ट ने कहा कि ऐसे नियम पितृसत्तात्मक सोच को बढ़ावा देते हैं और महिलाओं की स्वायत्तता (Autonomy) को बाधित करते हैं। राज्य का कर्तव्य है कि वह महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्यस्थल बनाए, न कि उनके अवसरों को बाधित करे।
नियम और मौलिक अधिकारों का संतुलन (Balancing Regulation and Fundamental Rights)
कोर्ट ने यह भी स्वीकार किया कि महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम, 1951 (Maharashtra Police Act, 1951) के तहत सार्वजनिक प्रदर्शन को नियंत्रित करने का राज्य को अधिकार है। लेकिन, ये नियम तर्कसंगत और भेदभावरहित होने चाहिए। कोर्ट ने आठ कलाकारों की संख्या और मंच के आकार की सीमा को उचित ठहराया, क्योंकि ये सुरक्षा और सुविधाओं से जुड़े हैं। लेकिन लिंग आधारित सीमा को अस्वीकार्य माना।
लैंगिक न्याय के लिए व्यापक प्रभाव (Broader Implications for Gender Justice)
यह निर्णय लैंगिक न्याय और पेशे की स्वतंत्रता के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह सुप्रीम कोर्ट की उस प्रतिबद्धता को दिखाता है, जो ऐतिहासिक पूर्वाग्रहों और भेदभाव को हटाने के लिए है।
यह महिलाओं के लिए अवसरों के विस्तार और उनकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की दिशा में एक मजबूत संदेश देता है।
होटल प्रिया बनाम महाराष्ट्र राज्य में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय संवैधानिक समानता और स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता को दोहराता है। यह लैंगिक भेदभाव और पेशे की स्वतंत्रता पर लगाए गए पितृसत्तात्मक प्रतिबंधों को खारिज करता है।
यह फैसला याद दिलाता है कि सच्चा सशक्तिकरण (Empowerment) वह है, जो व्यक्तियों को किसी भी मनमाने प्रतिबंध के बिना विकल्प चुनने की स्वतंत्रता देता है।