हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : महत्वपूर्ण आदेश और निर्णय पर एक नज़र

LiveLaw News Network

29 Aug 2021 5:00 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : महत्वपूर्ण आदेश और निर्णय पर एक नज़र

    हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : महत्वपूर्ण आदेश और निर्णय पर एक नज़र

    कर्ज चुकाने से इनकार करना आत्महत्या के लिए उकसाने जैसा नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट ने माना कि हालांकि अलग-अलग व्यक्ति किसी विशेष स्थिति पर अलग-अलग प्रतिक्रिया दे सकते हैं, लेकिन केवल ऋण चुकाने से इनकार करने को किसी भी तरह से आत्महत्या करने के लिए उकसाने का कार्य नहीं माना जा सकता है।

    न्यायमूर्ति रजनीश ओसवाल ने इस संबंध में कहा, "दुष्प्रेरण का अपराध गठित करने के लिए अभियुक्त द्वारा किया गया कार्य इस प्रकार का होना चाहिए ताकि मृतक के पास अपने जीवन को समाप्त करने का चरम कदम उठाने के अलावा कोई अन्य विकल्प न बचे।"

    गौरी देवी बनाम जम्मू कश्मीर राज्य

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    आरोपी द्वारा पहली बार यौन उत्पीड़न करने के समय विरोध न करना पीड़िता की पूर्व सहमति के समानः मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में माना है कि आरोपी द्वारा पहली बार यौन उत्पीड़न करने के समय पीड़िता द्वारा उसका विरोध न करना,पीड़िता की पूर्व-सहमति के समान माना जाएगा और इसलिए इस प्रकार दी गई सहमति को तथ्य की गलत धारणा के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।

    जस्टिस आर. पोंगियप्पन की बेंच ने यह टिप्पणी आईपीसी की धारा 376 के तहत एक व्यक्ति/आरोपी की सजा को खारिज करने के लिए दायर एक अपील पर विचार करने के बाद की, जिसने कथित तौर पर पीड़िता से शादी करने का वादा किया था, लेकिन वादा पूरा नहीं किया।

    केस का शीर्षक - चिन्नापंडी बनाम राज्य

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    पैरोल पूरा होने पर आत्मसमर्पण करने में कैदी की विफलता राज्य की वैध हिरासत से भागने के बराबर: राजस्थान उच्च न्यायालय

    राजस्थान उच्च न्यायालय ने यह पाते हुए कि 2020 में उच्च न्यायालय की एक डिवीजन बेंच द्वारा दिया गया निर्णय कानून में सही नहीं है, गुरुवार को कहा कि एक कैदी पैरोल अवधि पूरी होने पर जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण नहीं करना, राज्य की विधिपूर्ण अभिरक्षा से भाग निकलने जैसा माना जाएगा और सामान्यतया ऐसा बंदी राजस्थान बंदी ओपन एयर कैम्प नियमों के अनुसार ओपन एयर कैम्प में स्थानान्तरित होने का हकदार नहीं होगा।

    जस्टिस विनीत कुमार माथुर, जस्टिस पुष्पेंद्र सिंह भाटी और जस्टिस विजय बिश्नोई की तीन-जजों की पीठ उच्च न्यायालय की दो अलग-अलग खंडपीठों द्वारा दो विरोधाभासी और विरोधी फैसलों के मद्देनजर मुख्य न्यायाधीश द्वारा संदर्भित एक प्रश्न का निस्तारण कर रही थी।

    केस टाइटल- गज्जा राम बनाम राज्य और अन्य

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    मजिस्ट्रेट को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत जांच में आईओ की सहायता के लिए इंस्पेक्टर रैंक से नीचे के अधिकारी को अनुमति देने का अधिकार : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एक विशेष न्यायाधीश को अन्वेषण (investigation) में जांच अधिकारी (आईओ) की सहायता करने के लिए इंस्पेक्टर रैंक से नीचे के अधिकारी को अनुमति देने का अधिकार है।

    न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने कहा कि ऐसे अधिकारी द्वारा उठाए गए कदम जांच अधिकारी की सीधी निगरानी में होने चाहिए, जो जांच को नियंत्रित कर रहा है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अधीनस्थ अधिकारी द्वारा उठाए गए सभी कदमों के लिए आईओ जिम्मेदार होगा।

    न्यायालय विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित 7 फरवरी, 2020 के आदेश को रद्द करने की मांग वाली एक याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें जांच करने में मुख्य जांच अधिकारी की सहायता के लिए सब इंस्पेक्टर को अनुमति देने की मांग करने वाले सीबीआई के आवेदन को अस्वीकार कर दिया गया था।

    केस शीर्षक: सीबीआई बनाम भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड और अन्य।

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    दिल्ली हाईकोर्ट ने आईटी नियम, 2021 के तहत व्हाट्सएप के ट्रैसेबिलिटी क्लॉज को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 के नियम 4 (2) के तहत उल्लिखित "ट्रेसेबिलिटी" क्लॉज को चुनौती देने वाली व्हाट्सएप की याचिका पर नोटिस जारी किया।

    "ट्रेसेबिलिटी" क्लॉज केएस पुट्टुस्वामी बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में निहित निजता के अधिकार का उल्लंघन है। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने व्हाट्सएप के लिए पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी की सुनवाई के बाद नोटिस जारी किया।

    केस शीर्षक: व्हाट्सएप एलएलसी बनाम भारत संघ

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    किसान विरोध प्रदर्शन और दिल्ली दंगों से संबंधित मामलों पर अभियोजक नियुक्ति के एलजी के फैसले के खिलाफ दिल्ली राज्य सरकार की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने उपराज्यपाल (एलजी) के एक आदेश के खिलाफ दिल्ली राज्य सरकार द्वारा दायर एक याचिका पर नोटिस जारी किया है, जिसमें किसान विरोध प्रदर्शन मामले और दिल्ली दंगों से संबंधित मामलों पर बहस करने के लिए अपनी पसंद के अभियोजकों का एक पैनल नियुक्त करने के कैबिनेट के फैसले को एलजी ने पलट दिया था।

    मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने दिल्ली सरकार के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ एएम सिंघवी को सुना और मामले को अगली सुनवाई के लिए 21 अक्टूबर के लिए पोस्ट कर दिया।

    केस शीर्षक: जीएनसीटीडी बनाम एलजी

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    एनडीपीएस अधिनियम - एक पार्टी में दूसरे के लिए ड्रग्स खरीदना किसी को ड्रग पेडलर नहीं बनाता है: बॉम्बे हाईकोर्ट

    कोर्ट ने पहली बार अपराध करने वाले दो अपराधियों के लिए एक सुधारात्मक दृष्टिकोण अपनाया और टिप्पणी की कि आज के युवा "अभी या कभी नहीं" के रवैये से अपने कार्यों के परिणामों का अंदाजा नहीं लगा सकते हैं।

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने ड्रग्स रखने और सेवन करने के आरोप में गिरफ्तार किए गए दो युवकों को यह कहते हुए जमानत दे दी कि किसी पार्टी में किसी अन्य व्यक्ति के लिए ड्रग्स खरीदने के कारण उसे ड्रग पेडलर नहीं बनाया जाएगा और उसकी जमानत के खिलाफ प्रथम दृष्टया एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 की कठोरता लागू नहीं होगी।

    केस शीर्षक: [हर्ष शैलेश शाह बनाम महाराष्ट्र राज्य]

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    'काम नहीं तो वेतन' तब लागू नहीं होगा, जब कानून स्पष्ट छूट पर पूर्ण वेतन देने का प्रावधान करता है: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा है कि जब मौलिक नियम स्पष्ट रूप से एक सरकारी कर्मचारी को सजा/आपराधिक आरोपों से मुक्त करने पर पूर्ण वेतन और भत्ते का अनुदान प्रदान करते हैं, तो 'काम नहीं तो वेतन' का सिद्धांत लागू नहीं होगा।

    जस्टिस संजय के अग्रवाल ने टिप्पणी की कि 'काम नहीं तो वेतन' का सिद्धांत मौलिक नियमों के नियम 54 के उप-नियम (2) को ओवरराइड नहीं करेगा, जो पूर्ण छूट पर पूर्ण वेतन और भत्ते प्रदान करता है।

    केस का शीर्षक: राजेंद्र शर्मा और अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और अन्य।

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    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डॉक्टर कफील खान के खिलाफ एंटी सीएए भाषण पर दर्ज आपराधिक कार्यवाही रद्द की

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गुरुवार को डॉक्टर कफील खान को एक बड़ी राहत देते हुए दिसंबर 2019 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में एक विरोध प्रदर्शन में सीएए और एनआरसी के बारे में दिए गए उनके भाषण पर उनके खिलाफ लंबित आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी।

    न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की खंडपीठ ने उनके कथित भड़काऊ भाषण के बाद शुरू की गई पूरी आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अलीगढ़ के संज्ञान आदेश को रद्द कर दिया।

    इसी मामले में यूपी सरकार द्वारा डॉ. खान के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) भी लगाया गया था। हालांकि, पिछले साल इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एनएसए के तहत डॉ खान की नजरबंदी को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि उनका भाषण वास्तव में राष्ट्रीय एकता का आह्वान था।

    केस का शीर्षक - डॉ. कफील बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

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    अंतर धार्मिक विवाह के कारण धर्मांतरण करने के लिए ज़िला मजिस्ट्रेट की अनुमति आवश्यक नहीं : गुजरात हाईकोर्ट ने अपना पिछला आदेश बरकरार रखा

    गुजरात उच्च न्यायालय ने गुरुवार को गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 की धारा 5 पर रोक लगाने वाले अपने 19 अगस्त के आदेश में बदलाव करने से इनकार कर दिया और कहा कि "हमें आदेश में कोई बदलाव करने का कोई कारण नहीं मिलता है।"

    मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव की खंडपीठ के समक्ष पेश हुए महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने तर्क दिया कि अधिनियम की धारा 5 का विवाह से कोई लेना-देना नहीं है और इसलिए, न्यायालय के 19 अगस्त के आदेश में धारा की कठोरता को कम करने की आवश्यकता है। इसमें धारा 5 का उल्लेख है।

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    पति द्वारा कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना या कोई भी यौन कृत्य बलात्कार नहीं, भले ही वह बलपूर्वक या उसकी इच्छा के विरुद्ध होः छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति को वैवाहिक बलात्कार के अपराध से आरोमुक्त करते हुए कहा है कि पति द्वारा अपनी कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के साथ यौन संबंध या कोई भी यौन कृत्य करना बलात्कार नहीं है, भले ही वह पत्नी से बलपूर्वक या उसकी इच्छा के विरुद्ध किया गया हो।

    हालांकि, अदालत ने आरोपी पति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत आरोप तय करते हुए कहा कि पत्नी के साथ अप्राकृतिक शारीरिक संबंध बनाने के उसके कृत्य ने उक्त अपराध को आकर्षित किया है।

    केस का शीर्षकः दिलीप पांडे व अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य

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    यौन अपराध की पीड़िता के पास एफआईआर रद्द करने के लिए अदालत जाने का कोई रास्ता नहीं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यौन अपराध की पीड़िता को यौन उत्पीड़न के लिए दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने का कोई अधिकार नहीं हो सकता है।

    न्यायमूर्ति अनूप चितकारा की खंडपीठ एक बलात्कार पीड़िता की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में उसने आरोपी के खिलाफ उसके कहने पर दर्ज एफआईआर को इस आधार पर रद्द करने की मांग की थी कि अब उन्होंने (पीड़ित और आरोपी) ने शादी करने का फैसला कर लिया है। यौन उत्पीड़न की 20 वर्षीय कथित पीड़िता द्वारा आरोपी को एक पक्ष के रूप में आरोपित किए बिना दायर की गई थी। हालांकि, उसके हलफनामे द्वारा याचिका का समर्थन किया गया था। इसमें कहा गया था कि उसने आरोपी के साथ समझौता किया है।

    महामारी के दौरान पक्षकार को वर्चुअल हियरिंग की सुविधा नहीं देना सुनवाई की भावना के विपरीत: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने पाया कि ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम के तहत नियंत्रण प्राधिकरण का कार्य संबंधित पक्ष को वर्चुअल सुनवाई की सुविधा प्रदान नहीं करना महामारी के दौरान सुनवाई करने की भावना के विपरीत है।

    न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने यह भी देखा कि इस तरह के प्राधिकरण का कर्तव्य है कि वह पक्षकार को वर्चुअल लिंक उपलब्ध कराए या उसे सूचित करे कि उक्त अनुरोध को स्वीकार नहीं किया गया है, ताकि पक्षकार को वैकल्पिक व्यवस्था करने में सक्षम बनाया जा सके।

    शीर्षक: शरत दास और सहयोगी बनाम रामेश्वर सिंह और अन्य

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    पिता की संपत्ति पर दावा करने के लिए बेटे द्वारा पत्नी के निवास के अधिकार के आधार पर घरेलू हिंसा अधिनियम का इस्तेमाल नहीं किया जा सकताः दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि अपनी पत्नी के निवास के अधिकार के आधार पर घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधानों को (एक सामाजिक कल्याण कानून होने के नाते) एक बेटे द्वारा अपने पिता की संपत्ति में अधिकार का दावा करने या उसके बल पर कब्जा बनाए रखने के लिए एक चाल के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

    न्यायमूर्ति प्रतिभा सिंह ने कहा कि, ''अपनी पत्नी के निवास के अधिकार के आधार पर डीवी अधिनियम के प्रावधानों को एक बेटे द्वारा अपने पिता की संपत्ति में अधिकार का दावा करने या उसके बल पर कब्जा बनाए रखने के लिए एक चाल के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।''

    ''संपत्ति के स्वामित्व से संबंधित एक सिविल विवाद को इस तरह से डीवी अधिनियम के तहत एक मामले में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह डीवी अधिनियम के लाभकारी प्रावधानों के दुरुपयोग के समान होगा,जो इसे इसके उद्देश्य और सीमा से ऊपर और परे खींचकर ले जाएंगे।''

    केस का शीर्षकः आरती शर्मा व अन्य बनाम गंगा सरन

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