इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डॉक्टर कफील खान के खिलाफ एंटी सीएए भाषण पर दर्ज आपराधिक कार्यवाही रद्द की
LiveLaw News Network
26 Aug 2021 7:38 PM IST
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गुरुवार को डॉक्टर कफील खान को एक बड़ी राहत देते हुए दिसंबर 2019 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में एक विरोध प्रदर्शन में सीएए और एनआरसी के बारे में दिए गए उनके भाषण पर उनके खिलाफ लंबित आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी।
न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की खंडपीठ ने उनके कथित भड़काऊ भाषण के बाद शुरू की गई पूरी आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अलीगढ़ के संज्ञान आदेश को रद्द कर दिया।
इसी मामले में यूपी सरकार द्वारा डॉ. खान के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) भी लगाया गया था। हालांकि, पिछले साल इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एनएसए के तहत डॉ खान की नजरबंदी को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि उनका भाषण वास्तव में राष्ट्रीय एकता का आह्वान था।
संक्षेप में मामला
गौरतलब है कि 29 जनवरी को डॉ. कफील को यूपी एसटीएफ ने भड़काऊ भाषण के आरोप में मुंबई से गिरफ्तार किया था। 10 फरवरी को अलीगढ़ सीजेएम कोर्ट ने जमानत के आदेश दिए थे लेकिन उनकी रिहाई से पहले NSA लगा दिया गया। उन पर अलीगढ़ में भड़काऊ भाषण और धार्मिक भावनाओं को भड़काने के आरोप लगाए गए थे।
13 दिसंबर, 2019 को अलीगढ़ में उनके खिलाफ धर्म, नस्ल, भाषा के आधार पर नफरत फैलाने के मामले में धारा 153-ए के तहत केस दर्ज किया गया था।
आरोप था कि 12 दिसंबर को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों के सामने दिए गए संबोधन में धार्मिक भावनाओं को भड़काया और दूसरे समुदाय के प्रति शत्रुता बढ़ाने का प्रयास किया। इसमें ये भी कहा गया कि 12 दिसंबर 2019 को शाम 6.30 बजे डॉ. कफील और स्वराज इंडिया के अध्यक्ष व एक्टिविस्ट डॉ. योगेंद्र यादव ने AMU में लगभग 600 छात्रों की भीड़ को CAA के खिलाफ संबोधित किया था जिस दौरान कफील ने ऐसी भाषा का प्रयोग किया।
याचिका में तर्क
याचिका में मुख्य रूप से तर्क दिया गया था कि उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने से पहले सरकार की पूर्व अनुमति नहीं ली गई थी।
यह तर्क दिया गया कि सीआरपीसी की धारा 196 के अनुसार, आईपीसी की धारा 153-ए, 153-बी, 505 (2) के तहत अपराध का संज्ञान लेने से पहले, केंद्र सरकार या राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट से अभियोजन स्वीकृति की पूर्व अनुमति लेनी होती है, इसलिए, यह प्रस्तुत किया गया था कि चूंकि डॉ कफील के खिलाफ तत्काल मामले में इस तरह की पूर्व स्वीकृति/अनुमति नहीं ली गई थी, इसलिए संज्ञान आदेश और आपराधिक कार्यवाही रद्द की जा सकती है।
[नोट: धारा 196 सीआरपीसी, अध्याय-VI I.P.C के तहत दंडनीय किसी भी अपराध का संज्ञान लेने से पहले केंद्र सरकार या राज्य सरकार से पूर्व मंजूरी लेने का उल्लेख करता है।
इसलिए, धारा 196 सीआरपीसी की आवश्यकता के अनुसार, अध्याय-VI I.P.C के तहत दंडनीय अपराध का कोई संज्ञान नहीं लिया जा सकता, जब तक कि केंद्र सरकार या राज्य सरकार से पूर्व स्वीकृति प्राप्त न हो जाए।
धारा 196 Cr.P.C का उद्देश्य उचित प्राधिकारी द्वारा उचित विचार के बाद अभियोजन सुनिश्चित करना है ताकि तुच्छ या अनावश्यक अभियोजन से बचा जा सके।
महत्वपूर्ण रूप से सीआरपीसी की धारा 196(1)(ए) और (1-ए)(ए) के अनुसार, आईपीसी की धारा 153-ए, 153-बी, धारा 295-ए या धारा (1), (2), और (3) धारा 505 के तहत दंडनीय अपराधों का संज्ञान लेने पर पूर्ण रोक है। -।]
न्यायालय की टिप्पणियां
शुरुआत में अदालत ने स्वराज ठाकरे बनाम झारखंड राज्य और अन्य 2008 CRI. L. J. 3780 के मामलों में झारखंड उच्च न्यायालय के फैसले और सरफराज शेख बनाम मध्य प्रदेश राज्य के मामले में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले का उल्लेख किया।
बेंच ने कहा,
"... आईपीसी के तहत अपराध का संज्ञान लेने से पहले, केंद्र सरकार या राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट द्वारा पूर्व अभियोजन स्वीकृति नहीं ली गई है और विद्वान मजिस्ट्रेट ने संज्ञान के आदेश को पारित करते समय संबंधित प्रावधानों का ठीक से पालन नहीं किया है।"
अदालत ने धारा 482 सीआरपीसी के तहत दायर आवेदन और डॉक्टर कफील के खिलाफ धारा 153-ए, 153-बी, 505 (2), 109 आईपीसी के तहत मामला स्वीकार कर लिया, जो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अलीगढ़ और अदालत में लंबित है। संज्ञान आदेश की पूरी कार्यवाही को निरस्त कर दिया गया।
कोर्ट ने मामले को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अलीगढ़ की अदालत को भी इस निर्देश के साथ अग्रेषित कर दिया है कि डॉ कफील के खिलाफ संज्ञान धारा 196 (ए) सीआरपीसी के प्रावधानों के अनुसार, उक्त धाराओं के तहत केंद्र सरकार या राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट द्वारा अभियोजन की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करने के बाद ही लिया जा सकता था।
डॉक्टर कफील खान के बारे में
डॉक्टर कफील को बीआरडी ऑक्सीजन त्रासदी के बाद निलंबित कर दिया गया था, जिसमें लीक्विड ऑक्सीजन की आपूर्ति अचानक बंद होने के बाद 63 मासूम बच्चों की मौत हो गई थी। जांच के बाद मंजूरी मिलने के बाद डॉ कफील को छोड़कर उनके साथ निलंबित किए गए अन्य सभी आरोपियों को बहाल कर दिया गया है।
शुरू में उन्हें अपनी जेब से भुगतान करके आपातकालीन ऑक्सीजन आपूर्ति की व्यवस्था करने के लिए तुरंत कार्य करके एक उद्धारकर्ता के रूप में कार्य करने की सूचना मिली थी।
बच्चों को सांस लेने के लिए सिलेंडर की व्यवस्था करने के लिए नायक के रूप में सम्मानित होने के बावजूद उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 409 (लोक सेवक, या बैंकर, व्यापारी या एजेंट द्वारा आपराधिक विश्वासघात), 308 (गैर इरादतन हत्या करने का प्रयास) और 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। यह आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अपने कर्तव्यों में लापरवाही की, जिसके परिणामस्वरूप चिकित्सा ऑक्सीजन की कमी हो गई।
डॉ कफील को सितंबर 2017 में गिरफ्तार किया गया और अप्रैल 2018 में ही रिहा कर दिया गया था। दरअसल, उच्च न्यायालय ने यह देखते हुए उनकी जमानत याचिका को अनुमति दी थी कि व्यक्तिगत रूप से डॉ खान के खिलाफ चिकित्सा लापरवाही के आरोपों को स्थापित करने के लिए कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है।
डॉ कफील को ड्यूटी में लापरवाही का आरोप लगाते हुए सेवा से निलंबित भी कर दिया गया। विभागीय जांच की एक रिपोर्ट ने डॉ कफील को सितंबर 2019 में आरोपों से मुक्त कर दिया। मुख्य न्यायाधीश बोबडे की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने पिछले साल इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था, जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत डॉ कफील खान की हिरासत को रद्द कर दिया था।
केस का शीर्षक - डॉ. कफील @
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