हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

LiveLaw News Network

13 Feb 2022 5:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (7 फरवरी, 2022 से लेकर 11 फरवरी, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    फिल्म निर्माताओं को फिल्मों में केवल सभ्य भाषा का इस्तेमाल करने के लिए नहीं कहा जा सकता, फिल्म की भाषा अनुच्छेद 19 (2) के दायरे में है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने गुरुवार को मलयालम फिल्म चुरूली (Churuli) को अत्यधिक अश्लील भाषा के इस्तेमाल के कारण ओटीटी प्लेटफॉर्म सोनी लिव (SonyLiv) से कथित रूप से हटाने की मांग वाली याचिका को खारिज किया। कोर्ट ने कहा कि एक फिल्म निर्माता के पास यह तय करने का विवेक है कि उसके फिल्म के पात्रों द्वारा किस प्रकार की भाषा का उपयोग किया जाना चाहिए।

    न्यायमूर्ति पी.वी. कुन्हीकृष्णन ने कहा कि जब तक एक फिल्म में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाए गए उचित प्रतिबंधों के दायरे में है, तब तक कोई भी फिल्म निर्माता को अपनी फिल्म में केवल सभ्य भाषा का उपयोग करने के लिए नहीं कहा जा सकता है और यह उनका कलात्मक विवेक है कि वह भाषा का चयन करे, लेकिन निश्चित रूप से संविधान के अनुच्छेद 19 (2) में उल्लिखित उचित प्रतिबंध के साथ।

    केस का शीर्षक: पैगी फेन बनाम सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन एंड अन्य।

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    सेक्‍शन 50 एनडीपीएस एक्ट- एसीपी की मौजूदगी में की गई व्यक्तिगत तलाशी केवल इसलिए गलत नहीं कि अधिकारी पुलिस विभाग से संबंधित है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 के तहत एक पुलिस अधिकारी, जो एक राजपत्रित अधिकारी है, उसे आरोपी/संदिग्ध की व्यक्तिगत तलाशी लेने पर कोई रोक नहीं है।

    जस्टिस एचपी संदेश की सिंगल जज बेंच ने कहा, "सहायक पुलिस आयुक्त भी एक राजपत्रित अधिकारी है ... उक्त विभाग के अधिकारी द्वारा व्यक्तिगत तलाशी पर रोक नहीं है और कोई कानून यह निर्धारित नहीं करता है कि राजपत्रित अधिकारी, जो विशेष विभाग से संबंधित हो, की उपस्थिति में ही उसकी (संदिग्ध/आरोपी की) व्यक्तिगत तलाशी ली जानी चाहिए..।"

    केस शीर्षक: जोसविन लोबो बनाम कर्नाटक राज्य

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    आपराधिक अपील को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि आरोपों के खंडन के लिए जोर नहीं डाला गयाः इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह कहा कि एक आपराधिक अपील को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि आरोपों के खंडन के लिए जोर नहीं डाला गया था।

    जस्टिस अनिल कुमार ओझा की खंडपीठ ने जेजे एक्ट की धारा 101 के तहत अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ दायर एक पुनरीक्षण याचिका की अनुमति देते हुए यह‌ ‌टिप्‍पणी की। आरोपी/पुनरीक्षणवादी की अपील को आरोपों के खंडन पर जोर नहीं दिए जाने के आधार पर खारिज कर दिया गया था।

    केस टाइटल - बिल्लू @ आनंदी और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्‍य

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    लोक अदालत के अवार्ड को केवल अनुच्छेद 226 और 227 के तहत दायर याचिका में चुनौती दी जा सकती है: गुवाहाटी हाईकोर्ट

    गुवाहाटी हाईकोर्ट (Gauhati High Court) ने सिविल कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील की सुनवाई करते हुए कहा है कि लोक अदालत में निपटारे का समझौता सिविल कोर्ट का डिक्री माना जाता है और इस तरह यह पक्षकारों के लिए बाध्यकारी है। कोर्ट ने आगे कहा कि इसके खिलाफ किसी भी अदालत में कोई अपील नहीं की जा सकती है और यदि कोई पक्ष समझौते के आधार पर इस तरह के अवार्ड को चुनौती देना चाहता है, तो यह केवल संविधान के अनुच्छेद 226 और अनुच्छेद 227 के तहत याचिका दायर करके किया जा सकता है।

    केस का नाम: वनलालमवाई बनाम ललतानपुइया

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    नाबालिग बच्चा पालन-पोषण के लिए अपने पिता से भरण-पोषण मांगने का हकदार, वह तलाक के समझौते से बंधा नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि एक नाबालिग बच्चा पिता द्वारा अपने पालन-पोषण के लिए भरण-पोषण का दावा करने का हकदार है और ऐसा बच्चा अपने माता-पिता के बीच भरण-पोषण के संबंध में तलाक के समझौते से बाध्य नहीं है।

    जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह एक नाबालिग बच्चे द्वारा दायर एक अपील पर विचार कर रहे थे, जिसने फैमिली कोर्ट द्वारा 15,000 प्रति माह भरणपोषण दिए जाने से व्यथित होकर याचिका दायर की थी।

    केस शीर्षक: फतेह सहारन बनाम रोहित सहारन

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    [वैवाहिक विवाद] इस आधार पर एफआईआर रद्द नहीं कर सकते कि जांच अधिकारी ने प्रारंभिक जांच नहीं की: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि प्रारंभिक जांच करना या न करना जांच अधिकारी का अधिकार क्षेत्र है। इसके आधार पर एफआईआर रद्द नहीं की जा सकती।

    जस्टिस अनिल कुमार ओझा की खंडपीठ ने पीड़िता के पति, ससुर और सास द्वारा दायर दण्ड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की 482 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई की।

    केस का शीर्षक - आशीष और 2 अन्य वी. स्टेट ऑफ यू.पी.और दूसरा

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    आरोप तय करने के आदेश के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट की धारा 14A के तहत अपील को प्राथमिकता दी जानी चाहिए: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में रजिस्ट्री द्वारा उठाई गई आपत्ति को खारिज करते हुए कहा कि आरोप तय करने का आदेश, जो अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (इसके बाद 'एससी' के रूप में संदर्भित) के प्रावधानों को भी आकर्षित करता है, एक अंतर्वर्ती आदेश नहीं है, और इसलिए एससी/एसटी एक्ट की धारा 14A के तहत अपील को चुनौती देने के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

    केस का नाम: गुड्डू @ विनय एंड अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य एंड अन्य।

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    वैकल्पिक उपाय उपलब्ध होने के बावजूद भी रिट याचिका पर सुनवाई हो सकती है : आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने दोहराया कि प्राकृतिक न्याय के नियमों का पालन नहीं करने पर भले ही कोई वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हो, तो पीड़ित व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक रिट याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने उसके द्वारा खरीदी गई जमीन पर अपना नाम बदलने के लिए आवेदन किया था।

    याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि उक्त आवेदन भूमि और पट्टादार पासबुक अधिनियम, 1971 में एपी राइट्स, विशेष रूप से अधिनियम की धारा पांच के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना खारिज कर दिया गया। इस अधिनियम में प्रावधान है कि याचिकाकर्ता को नोटिस दिया जाना चाहिए था। उसके बाद आदेश याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर देने के बाद पारित किया जाना चाहिए था।

    केस शीर्षक: पोलु वेंकट लक्ष्मम्मा और अन्य बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य।

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    निचली अदालत के निष्कर्ष को उलटने के लिए निष्पादन कार्यवाही के दौरान एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति नहीं की जा सकती: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि जब निचली अदालत संपत्ति के कब्जे के सवाल का फैसला कर चुकी हो, उसके बाद निष्पादन न्यायालय निष्पादन कार्यवाही में एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति नहीं कर सकता है।

    जस्टिस आर रघुनंदन राव ने कहा, "मौजूदा मामले में, सक्षम क्षेत्राधिकार के ट्रायल कोर्ट ने पहले ही याचिकाकर्ता के पक्ष में संपत्ति के कब्जे के सवाल का फैसला कर लिया है। निष्पादन याचिका में आदेश पारित करते समय इस निष्कर्ष को निष्पादन न्यायालय उलट नहीं सकता है। निष्पादन न्यायालय को ऐसी स्थिति में एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति का निर्देश नहीं देना चाहिए था।"

    केस शीर्षक: एम राम चंद्रैया बनाम वैलेपु चीन अंकैया

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    जब नागरिकता के निर्धारण में नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों की अनदेखी की जाती है तो न्यायिक हस्तक्षेप आवश्यक: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई के दरमियान कहा, "उस व्यक्ति, जिसे किसी व्यक्ति को इस आधार पर कि वह भारत का नागरिक नहीं है, निर्वास‌ित करने की सिफारिश करने की व्यापक और महत्वपूर्ण शक्तियां दी गई हैं, उससे कम से कम यह उम्मीद की जाती है कि वह संबंधित व्यक्ति को सुनवाई का अवसर उपलब्ध कराए।"

    कोर्ट यह टिप्पणी केंद्र सरकार की उन व्यापक शक्तियों के संदर्भ में किया, जिनमें किसी व्यक्ति की राष्ट्रीयता की जांच करने और भारतीय नागरिक नहीं पाए जाने पर उसे निर्वासित करने की श‌क्‍ति निहित है।

    केस शीर्षक: रसीदाबेन पत्नी सिद्दीकभाई दाउदभाई बनाम गुजरात राज्य

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    पेंशनभोगी की मृत्यु के बाद विधवा हुई विवाहित बेटी फैमली पेंशन की हकदार नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि फैमली पेंशन का लाभ पेंशनभोगी की विधवा बेटी को नहीं दिया जा सकता है, जिसकी शादी उसके पिता/माता की मृत्यु के समय हो चुकी थी। अदालत ने माना कि एक बेटी, जो अपने पिता/माता के निधन के बाद विधवा हुई है, उसके पास फैमली पेंशन का दावा करने का कोई मौलिक या वैधानिक अधिकार नहीं है।

    जस्टिस हरीश टंडन और जस्टिस रवींद्रनाथ सामंत की पीठ के समक्ष विचाराधीन मुद्दा यह था कि क्या एक पेंशनभोगी की बेटी, जो विवाहित थी, लेकिन पेंशनभोगी की मृत्यु के बाद विधवा हो गई, वह फैमली पेंशन की हकदार है।

    केस शीर्षक: यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य बनाम रत्ना सरकार

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    संस्थान 'गलती से प्रवेश' पाने वाले छात्रों का नामांकन रद्द नहीं कर सकते, जब उनकी ओर से कोई गलती ना हो : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एम्स के एमएससी नर्सिंग के छात्रों की ओर से दायर एक याचिका को स्वीकार कर लिया है। याचिका में संस्थान के ऑफिस मेमोरेंडम (ओएम) को चुनौती दी गई है, जिसके जर‌िए उनके प्रवेश को रद्द कर दिया गया था।

    छात्रों को एम्स के प्रॉस्पेक्टस और ऑफर लेटर में पात्रता शर्तों के आधार पर भर्ती किया गया था। हालांकि, 2 महीने बाद संस्थान ने उनके प्रवेश को रद्द करने का निर्णय लिया क्योंकि उसने नियत तारीख से बाद में योग्यता परीक्षा परिणाम जारी किया था। ऐसे में छात्रों ने राहत की गुहार लगाते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    केस शीर्षक: आभा जॉर्ज और अन्य बनाम अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और अन्य।

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    सजा पर सुनवाई- सेक्‍शन 235(2) सीआरपीसी का पालन न करना ट्रायल का महत्वपूर्ण चरण, न कि सेक्शन 465 के तहत उपचार योग्य अनियमितताः गुवाहाटी हाईकोर्ट

    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक आपराधिक अपील पर कहा कि जब निचली अदालत किसी आरोपी को दोषी ठहराती है तो उसे सीआरपीसी की धारा 235 (2) के तहत अनिवार्य सजा पर सुनवाई का अवसर देना होता है।

    प्रावधान निर्धारित करता है: यदि अभियुक्त को दोषी ठहराया जाता है तो जज जब तक कि वह धारा 360 के प्रावधानों के अनुसार आगे नहीं बढ़ता है, अभियुक्त को सजा के प्रश्न पर सुनेगा, और फिर कानून के अनुसार उसे सजा सुनाएगा।

    केस शीर्षक: श्री जोथापुइया बनाम मिजोरम राज्य

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    [सीआरपीसी की धारा 167 (2)] डिफॉल्ट जमानत पर विचार करते समय रिमांड की तारीख भी शामिल किया जाना चाहिए: मद्रास हाईकोर्ट ने दोहराया

    मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने कहा कि डिफ़ॉल्ट जमानत का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का हिस्सा है, इसलिए एक अपरिहार्य मौलिक अधिकार है। आगे कहा कि डिफॉल्ट जमानत पर विचार करते समय रिमांड की तारीख भी शामिल किया जाना चाहिए।

    न्यायमूर्ति एम. निर्मल कुमार की एकल-न्यायाधीश पीठ POCSO -आरोपी की याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें POCSO अधिनियम के तहत विशेष अदालत को सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत दायर एक आवेदन पर डिफ़ॉल्ट जमानत देने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी।

    केस का शीर्षक: आर हेनरी पॉल बनाम तमिलनाडु राज्य

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    एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 के तहत जमानत पर प्रतिबंध से कंट्रोल सब्सटेंस प्रभावित नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया

    नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (एनडीपीएस एक्ट) के तहत गिरफ्तार एक विदेशी नागरिक से जुड़े एक मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने नियंत्रित पदार्थों से जुड़े अपराधों के आरोपी व्यक्तियों की देयता और विदेशी के जमानत के अधिकार को स्पष्ट किया।

    अधिनियम की धारा 37(1) में कहा गया है कि "37. अपराधों का संज्ञेय और गैर-जमानती होना-(1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी,- (ए) इस अधिनियम के तहत दंडनीय प्रत्येक अपराध संज्ञेय होगा; (बी) धारा 19 या धारा 24 या धारा 27A के तहत अपराध और वाणिज्यिक मात्रा से जुड़े अपराधों में कोई भी व्यक्ति जमानत पर या अपने स्वयं के बांड पर रिहा नहीं किया जाएगा जब तक कि.."

    केस शीर्षक: तिनिमो एफेरे वोवो बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार

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    अन्य धार्मिक प्रथाओं के प्रति सहिष्णुता दिखाई जानी चाहिए; यह देश विविधता में एकता पर गर्व करता है: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल के एक फैसले में अन्य धार्मिक प्रथाओं के प्रति सहिष्णुता दिखाने की आवश्यकता के बारे में बात की। कोर्ट एक हिंदू व्यक्ति द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें कन्याकुमारी जिला कलेक्टर द्वारा एक चर्च बनाने की अनुमति को चुनौती दी गई थी, जिसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने दिन और रात लाउडस्पीकर के उपयोग के कारण उपद्रव होने की शिकायत की थी।

    कोर्ट ने अपना निर्णय यह कहते हुए शुरू किया कि भारत के संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य के रूप में गठित करने का संकल्प लिया गया था। कोर्ट ने अनुच्छेद 15(1) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि राज्य को धर्म और अनुच्छेद 51ए(ई) जैसे कारकों के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए, जिसके अनुसार सद्भाव और भाईचारे को बढ़ावा देना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य है।

    केस टाइटल: पॉलराज बनाम जिला कलेक्टर व अन्य

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    आईपीसी की धारा 307 के तहत प्रक्रियात्मक अनियमितताओं के बावजूद घायल गवाह की विश्वसनीय गवाही का वजन होता है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने घायल गवाह की गवाही की विश्वसनीयता की पुष्टि करने के बाद राज्य द्वारा धारा 307/324 आईपीसी (हत्या का प्रयास/खतरनाक हथियारों से चोट पहुंचाने का प्रयास) को बरकरार रखने के मामले को सही ठहराया।

    प्रक्रियात्मक अनियमितताओं जैसे कि सार्वजनिक गवाह का परीक्षण न होना और अभियोजन द्वारा अपराध के हथियार की बरामदगी के लिए अपीलकर्ता की आपत्तियों को घायल गवाह की विश्वसनीय गवाही के आलोक में खारिज कर दिया गया।

    केस शीर्षक: सलीम खान बनाम राज्य (जीएनसीटी सरकार, दिल्ली)

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    सीआरपीसी की धारा 195 के तहत गवाह के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए प्रारंभिक जांच आवश्यक नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (ग्वालियर बेंच) ने हाल ही में कहा कि सीआरपीसी के तहत मुकदमा चलाने के लिए एक निर्देश जारी करने के लिए प्रारंभिक जांच करना अनिवार्य नहीं है और आवेदक इससे पहले सुनवाई के किसी भी अवसर का हकदार नहीं है।

    न्यायमूर्ति जीएस अहलूवालिया की एकल पीठ अनिवार्य रूप से अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ एक आपराधिक रिवीजन से निपट रही थी, जिसमें प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष सीआरपीसी के तहत उसके आवेदन को खारिज करने के खिलाफ आवेदक द्वारा दायर अपील भी खारिज कर दी गई थी।

    केस का शीर्षक: लक्ष्मण राव बनाम कोर्ट ऑफ थर्ड एडिशनल सेशन जज, गुना एंड अन्य।

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    एससी महिला को ईसाई व्यक्ति से शादी करने के आधार पर जाति प्रमाण पत्र देने से इनकार नहीं किया जा सकता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने कहा कि कि किसी व्यक्ति के मामले या समुदाय का फैसला उसके जन्म के आधार पर उक्त समुदाय में किया जाना है। उसका किसी अन्य समुदाय के व्यक्ति से विवाह करने पर उसके कास्ट सर्टिफिकेट (जाति प्रमाण पत्र) के अनुदान पर कोई असर नहीं पड़ता।

    अदालत हिंदू अनुसूचित जाति कुरवन समुदाय की एक महिला द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उक्त महिला एक ईसाई से शादी करने पर उसे कास्ट सर्टिफिकेट देने से इनकार करने से व्यथित थी।

    केस शीर्षक: ज्योत्सना ए बनाम केरल लोक सेवा आयोग और अन्य

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    "युवा छात्रों को एलएलबी डिग्री हासिल करने के अवसर से वंचित नहीं किया जाना चाहिए": हाईकोर्ट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी को रिक्त सीटें भरने का निर्देश दिया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी को अपने एलएलबी पाठ्यक्रम में सभी कैटेगरी में उपलब्ध सभी रिक्त सीटों को दो सप्ताह के अंदर भरने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि भले ही एडमिशन के लिए कट-ऑफ डेट निकल चुकी हो।

    जस्टिस रेखा पल्ली ने कहा कि युवा छात्रों को एलएलबी डिग्री हासिल करने के अवसर से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। इन युवाओं ने प्रवेश परीक्षा को पास करने के लिए कड़ी मेहनत की है।

    केस का शीर्षक: दीपांशु खन्ना और अन्य बनाम दिल्ली यूनिवर्सिटी

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