पेंशनभोगी की मृत्यु के बाद विधवा हुई विवाहित बेटी फैमली पेंशन की हकदार नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
9 Feb 2022 7:30 AM IST
कलकत्ता हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि फैमली पेंशन का लाभ पेंशनभोगी की विधवा बेटी को नहीं दिया जा सकता है, जिसकी शादी उसके पिता/माता की मृत्यु के समय हो चुकी थी। अदालत ने माना कि एक बेटी, जो अपने पिता/माता के निधन के बाद विधवा हुई है, उसके पास फैमली पेंशन का दावा करने का कोई मौलिक या वैधानिक अधिकार नहीं है।
जस्टिस हरीश टंडन और जस्टिस रवींद्रनाथ सामंत की पीठ के समक्ष विचाराधीन मुद्दा यह था कि क्या एक पेंशनभोगी की बेटी, जो विवाहित थी, लेकिन पेंशनभोगी की मृत्यु के बाद विधवा हो गई, वह फैमली पेंशन की हकदार है।
कोर्ट ने नकारात्मक उत्तर देते हुए कहा,
"जैसा कि विधायी मंशा का प्रदर्शन किया गया है, फैमली पेंशन की योजना में कभी भी पेंशनभोगी की बेटी शामिल नहीं है, जिसकी शादी पेंशनभोगी की मृत्यु तक हो गई थी.. एक बेटी, जो अपने माता के निधन के बाद विधवा हो गई थी, उसके पास फैमली पेंशन का दावा करने का कोई मौलिक या वैधानिक अधिकार नहीं है। इस संबंध में किसी भी कानून के अभाव में, फैमली पेंशन का लाभ पेंशनभोगी की बेटी को नहीं दिया जा सकता है। सरकार के नीतिगत निर्णय के विपरीत किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए अपनी असाधारण या विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग करना इस न्यायालय की ओर से नासमझी होगी।"
पृष्ठभूमि
मौजूदा मामले में यूनियन ऑफ इंडिया ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण, कलकत्ता बेंच, कोलकाता द्वारा 16 जून, 2016 को पारित एक आदेश को चुनौती दी थी, जिसके तहत कार्मिक, पीजी और पेंशन मंत्रालय द्वारा 18 सितंबर, 2014 को जारी कार्यालय ज्ञापन, पेंशन और पेंशनभोगी कल्याण विभाग, भारत सरकार को इस आधार पर रद्द कर दिया गया था कि यह असंवैधानिक है और सार्वजनिक नीति का विरोध करता है।
संबंधित ट्रिब्यूनल ने तदनुसार अधिकारियों को रत्ना सरकार नामक महिला को मृतक पेंशनभोगी की आश्रित बेटी के रूप में फैमली पेंशन का वितरण जारी रखने का निर्देश दिया था, जिसे आदेश के संचार की तारीख से दो महीने के भीतर जारी किया जाना था।
पेंशनभोगी नित्य गोपाल दास पूर्वी रेलवे के ड्राइवर थे और वह 10 सितंबर, 1980 को सेवानिवृत्ति हुए थे। वह रेलवे पेंशनभोगी थे और 19 मई, 1985 को उनकी मृत्यु हो गई। पेंशनभोगी की मृत्यु के बाद, उनकी पत्नी नमिता दास पूर्वी रेलवे से फैमली पेंशन पा रही थीं। 5 मई 1991 को उनका निधन हो गया।
-बेटी की शादी ऋषिकेश सरकार से हुई थी, लेकिन पेंशनभोगी मां नमिता दास की मृत्यु के 2 साल बाद 3 अगस्त, 1993 को उनकी भी असामयिक मृत्यु हो गई।
टिप्पणियां
कोर्ट ने केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 के नियम 54 (6) पर भरोसा किया, जिसमें यह परिकल्पना की गई है कि एक बेटी इस उप नियम के तहत उसकी शादी की तारीख से फैमली पेंशन के लिए अपात्र हो जाएगी। इसके अलावा, नियम यह भी निर्धारित करता है कि अगर बेटे या बेटी को अपनी आजीविका कमाना शुरू कर देता है/देती है, तो उसे देय फैमली पेंशन बंद कर दी जाएगी।
कोर्ट ने कहा, "सीसीएस (पेंशन) नियमों के नियम 54(6) के आलोक में रेलवे के सभी संबंधित कार्यालय ज्ञापनों को एक साथ पढ़ने से पता चलता है कि यह विधायिका की मंशा थी कि फैमली पेंशन का लाभ अविवाहित बेटियों को 25 साल की उम्र तक या जब तक उसकी शादी नहीं हो जाती, जो भी पहले हो, तब तक दिया जाएगा। इस प्रकार का लाभ बाद में 25 साल से अधिक उम्र के पेंशनभोगी की विधवा/तलाकशुदा बेटी को दिया गया था।"
कोर्ट ने आगे कहा कि विधायिका ने फैमली पेंशनभोगी के बच्चे/बच्चों को फैमली पेंशन का लाभ अलग-अलग परिस्थितियों में उनकी मृत्यु पर दिया है, जैसा कि संबंधित नियम में बताया गया है। उदाहरण के लिए, यह नोट किया गया था कि मानसिक रूप से मंद बच्चे को उसके माता-पिता की मृत्यु के बाद जीवन भर फैमली पेंशन पाने के लिए विधायी आशीर्वाद दिया जाता है। लेकिन, इस तरह का लाभ एक विवाहित बेटी को नहीं दिया जाता है।
कोर्ट ने आगे कहा कि मृतक फैमली पेंशनभोगी के संकट में फंसे बच्चे को फैमली पेंशन देना सरकार का नीतिगत फैसला है। हालांकि, कोर्ट ने इस बात को रेखांकित किया कि एक बेटी जो अपने पिता/माता के निधन के बाद विधवा हो गई, उसके पास फैमली पेंशन का दावा करने का कोई मौलिक या वैधानिक अधिकार नहीं है।
आगे यह भी कहा गया कि 18 सितंबर 2014 के स्पष्टीकरण कार्यालय ज्ञापन को भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता। संबंधित कार्यालय ज्ञापन द्वारा यह स्पष्ट किया गया था कि फैमली पेंशन उन मामलों में बंद कर दी जानी चाहिए जहां यह उन कार्यालय ज्ञापनों के अनुसरण में स्वीकृत की गई है, लेकिन यह विचार किए बिना कि विधवा/तलाकशुदा बेटी अपने पिता/माता मृत्यु के समय विवाहित जीवन जी रही थी, इसलिए वह फैमली पेंशन के लिए अपात्र थी।
कार्यालय ज्ञापन ने आगे स्पष्ट किया कि यह उचित होगा कि कानून के समक्ष समानता बनाए रखने के लिए ऐसी बेटी को देय फैमली पेंशन बंद कर दी जाए। हालांकि, फैमली पेंशन के रूप में पहले से भुगतान की गई राशि की वसूली बेहद कठोर होगी और ऐसा नहीं किया जाना चाहिए।
इस प्रकार न्यायालय ने निर्देश दिया, "ओए संख्या 350/01194/2015 में विद्वान ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आदेश 16.06.2016 रद्द किया जाता है। नतीजतन, ट्रिब्यूनल का आवेदन खारिज किया जाता है।"
केस शीर्षक: यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य बनाम रत्ना सरकार
केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (Cal) 31