सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

2 Oct 2022 6:30 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (25 सितंबर, 2022 से 30 सितंबर, 2022 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    विशिष्ट अदायगी की अनुमति देते समय समझौते में निर्दिष्ट समय सीमा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि कोर्ट विशिष्ट अदायगी का निर्णय देने में अपने विवेक का प्रयोग करते हुए समझौते में निर्दिष्ट समय सीमा को पूरी तरह नजरअंदाज नहीं कर सकता है। मामले में प्रतिवादी ने वादी के पक्ष में वाद संपत्ति की बिक्री के लिए एक बिक्री समझौता निष्पादित किया था।

    बिक्री के समझौते में यह प्रावधान था कि 75 दिनों के भीतर यूएलसी अधिकारियों से अनुमति प्राप्त नहीं होने की स्थिति में, क्रेता 75 दिनों के बाद भुगतान की गई अपनी अग्रिम राशि को वापस पाने का हकदार होगा, लेकिन किसी भी परिस्थिति में 90 दिनों के बाद ऐसा नहीं होगा।

    केस डिटेलः कोल्ली सत्यनारायण (डी) बनाम वलुरीपल्ली केशव राव चौधरी (D) | 2022 लाइव लॉ (SC) 807 | CA 1013 Of 2014| 27 सितंबर 2022 | जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सीटी रविकुमार

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    सुप्रीम कोर्ट ने जयंतीलाल मिस्त्री मामले में 2015 के फैसले पर प्रथम दृष्टया संदेह जताया जिसमें आरबीआई को डिफॉल्टरों का खुलासा करने को कहा था, कहा ये उपभोक्ताओं की निजता को प्रभावित कर सकता है

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भारतीय रिजर्व बैंक बनाम जयंतीलाल एन मिस्त्री मामले में 2015 के अपने फैसले के बारे में प्रथम दृष्टया संदेह व्यक्त किया, जिसमें कहा गया था कि भारतीय रिजर्व बैंक सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत बैंकों संबंधित डिफॉल्टरों की सूची, निरीक्षण रिपोर्ट, वार्षिक विवरण आदि का खुलासा करने के लिए बाध्य है।

    जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सीटी रविकुमार की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने प्रथम दृष्टया पाया कि जयंतीलाल मिस्त्री मामले में सूचना के अधिकार और निजता के अधिकार को संतुलित करने के पहलू पर ध्यान नहीं दिया गया। पीठ ने यह भी नोट किया कि पुट्टास्वामी मामले में 2017 में 9-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दिए गए एक बाद के फैसले में अनुच्छेद 21 के तहत निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया गया है।

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    धोखाधड़ी से प्राप्त जजमेंट या डिक्री को अमान्य माना जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि धोखाधड़ी से प्राप्त निर्णय या डिक्री को अमान्य माना जाना चाहिए। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि अनुचित लाभ प्राप्त करने की दृष्टि से प्रासंगिक और भौतिक दस्तावेजों का खुलासा न करना धोखाधड़ी की श्रेणी में आता है।

    इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने डिप्टी कलेक्टर, रसूलाबाद द्वारा रिट याचिकाकर्ता के उचित मूल्य की दुकान का लाइसेंस रद्द करने के आदेश को रद्द कर दिया था। यह पाया गया कि पूर्ण जांच प्रक्रिया का पालन किए बिना रद्दीकरण किया गया था।

    राम कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य | 2022 लाइव लॉ (एससी) 806 | सीए 4258 ऑफ 2022 | 28 सितंबर 2022 | जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सीटी रविकुमार

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    संसद की नई इमारत के ऊपर लगी शेर की मूर्ति राज्य प्रतीक अधिनियम का उल्लंघन नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को माना कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत निर्माणाधीन नए संसद भवन के ऊपर स्थापित शेर की मूर्ति भारत के राज्य प्रतीक (अनुचित उपयोग का निषेध) अधिनियम, 2005 का उल्लंघन नहीं करती है।

    जस्टिस एमआर शाह और कृष्ण मुरारी की पीठ ने ऐसा मानते हुए दो वकीलों द्वारा दायर एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिन्होंने दावा किया था कि नई मूर्ति भारत के राज्य प्रतीक (अनुचित उपयोग का निषेध) अधिनियम, 2005 के तहत अनुमोदित राष्ट्रीय प्रतीक के डिजाइन के विपरीत है।

    केस टाइटल: अल्दानिश रीन और दूसरा बनाम यूनियन ऑफ इं‌डिया WP (C) No 609/2022 X

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    क्या सुप्रीम कोर्ट विवाह को भंग करने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है, फैसला सुरक्षित

    सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने गुरुवार को कानून के सामान्य प्रश्न उठाने वाली याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई शुरू की, अर्थात्, क्या वह विवाह को भंग करने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है, इस तरह की शक्ति का प्रयोग करने के लिए व्यापक मानदंड क्या हैं , और क्या पक्षकारों की आपसी सहमति के अभाव में ऐसी असाधारण शक्तियों के आह्वान की अनुमति दी गई है।

    कई ट्रांसफर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान पहले दो प्रश्न मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और जस्टिस एन वी रमना की बेंच ( तत्कालीन) ने तैयार किए थे और संदर्भ भेजा था। हालांकि विवादों को निर्णायक रूप से तय किया गया था, चूंकि मौलिक महत्व के प्रश्न उठाए गए थे, और "अनुच्छेद 142 के तहत शक्ति के प्रयोग के लिए बड़ी संख्या में अनुरोध" के प्रकाश में मामले को जीवित रखा गया था। गठन के बाद संविधान पीठ ने कहा कि तीसरे सवाल पर भी विचार करना जरूरी है।

    शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन [टीपी (सी) संख्या 1118/2014] और अन्य जुड़े मामले

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    डाक्टर द्वारा पुलिस को दी जाने वाली जानकारी में गर्भपात की मांग करने वाली नाबालिग लड़की की पहचान का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं हैः सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम(पॉक्सो) के तहत अनिवार्य पुलिस रिपोर्टिंग की आवश्यकता को पढ़ा और कहा कि एक डॉक्टर द्वारा पुलिस को दी गई जानकारी में नाबालिग लड़की के नाम और पहचान का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है।

    जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट और पॉक्सो एक्ट के सामंजस्यपूर्ण पढ़ने का आह्वान किया और कहा कि एक पंजीकृत चिकित्सक को पॉक्सो एक्ट की धारा 19 के तहत दी गई जानकारी में नाबालिग की पहचान और अन्य व्यक्तिगत विवरण का खुलासा करने से छूट दी गई है।

    केस टाइटल- एक्स बनाम प्रधान सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, दिल्ली NCT सरकार, सीए 5802/2022

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    व्यभिचार परिवार को अलग कर देता है; इस तरह के मामलों को हल्के में नहीं लेना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि व्यभिचार (Adultery) गहरा दर्द पैदा करता है और परिवारों को अलग कर देता है। इसलिए, इससे संबंधित मामलों को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।

    जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली एक संविधान पीठ ने मौखिक रूप से कहा, "आप सभी वकील उस दर्द, गहरे दर्द से अवगत हैं जो व्यभिचार एक परिवार में पैदा करता है। हमने उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के रूप में कई सत्र आयोजित किए हैं, बंदी प्रत्यक्षीकरण क्षेत्राधिकार, हमने देखा है कि व्यभिचार के कारण परिवार कैसे टूटते हैं। हमने इसे अपने तक ही रखने की सोची लेकिन हम आपको सिर्फ इतना बता रहे हैं कि इसे हल्के-फुल्के अंदाज में न लें। यदि आपके पास अनुभव है तो आप जानते होंगे कि व्यभिचार होने पर परिवार में क्या होता है।"

    केस टाइटल: जोसेफ शाइन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

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    एमटीपी एक्ट के उद्देश्य से बलात्कार के दायरे में वैवाहिक बलात्कार भी शामिल, पति ने जबरन यौन संबंध बनाया तो पत्नी गर्भपात की मांग कर सकती है: सुप्रीम कोर्ट

    जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट और रुल्स के तहत बलात्कार से आशयों में "वैवाहिक बलात्कार" को भी शामिल करना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा कि जिन पत्नियों ने पतियों द्वारा जबरन यौन संबंध बनाने के बाद गर्भधारण किया है, वे भी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स के रूल 3बी (ए) में वर्णित "यौन उत्पीड़न या बलात्कार या अनाचार पीड़िता" के दायरे में आएंगी।

    (एक्स बनाम प्रधान सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, दिल्ली NCT सरकार, CA 5802/2022)।

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    विधानसभा के स्पीकर के पास दसवीं अनुसूची के तहत विधायक की अयोग्यता याचिका पर फैसला करते समय पेंशन और अन्य लाभों से इनकार करने की शक्ति नहीं है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि संविधान की विधान सभा के स्पीकर के पास दसवीं अनुसूची के तहत, एक विधायक के खिलाफ अयोग्यता याचिका पर फैसला करते समय पेंशन और अन्य लाभों से इनकार करने की शक्ति नहीं है।

    भारत के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ जद (यू) के तत्कालीन चार विधायकों - ज्ञानेंद्र कुमार सिंह, रवींद्र राय, नीरज कुमार सिंह और राहुल कुमार की अपीलों पर विचार कर रहे थे, जिन्हें न केवल अयोग्य ठहराया गया था, बल्कि 15वें बिहार विधानसभा स्पीकर द्वारा 11 नवंबर 2014 को पेंशन लाभ से वंचित कर दिया गया।

    केस: ज्ञानेंद्र कुमार सिंह और अन्य। बनाम बिहार विधान सभा पटना और अन्य | सीए सं. 5463-5464/2015 Xvi

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    सभी महिलाओं को गर्भपात का अधिकार, विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव असंवैधानिक: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव नहीं कर सकते हैं। अविवाहित महिलाओं को भी 20-24 सप्ताह के गर्भ को गर्भपात कराने की अधिकार है। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स से अविवाहित महिलाओं को लिव-इन रिलेशनशिप से बाहर करना असंवैधानिक है।

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    स्पीकर 10वीं अनुसूची के तहत अयोग्य ठहराए गए विधायकों को पेंशन और अन्य लाभों से वंचित नहीं कर सकते: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत, एक विधान सभा के अध्यक्ष के पास एक पूर्व विधायक के खिलाफ अयोग्यता याचिका पर फैसला करते समय पेंशन और अन्य लाभों से इनकार करने की शक्ति नहीं है।

    भारत के चीफ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस जेबी पारदीवाला जद (यू) के तत्कालीन चार विधायकों - ज्ञानेंद्र कुमार सिंह, रवींद्र राय, नीरज कुमार सिंह और राहुल कुमार की अपीलों पर विचार कर रहे थे, जिन्हें न केवल अयोग्य ठहराया गया था, बल्कि यह भी कहा गया था कि उन्हें 15वें बिहार विधान सभा अध्यक्ष द्वारा 11 नवंबर 2014 को पेंशन लाभ से वंचित कर दिया गया है।

    केस टाइटल: ज्ञानेंद्र कुमार सिंह एंड अन्य बनाम बिहार विधान सभा पटना एंड अन्य | CA.No. 5463-5464/2015 Xvi

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    AIBE की वैधता को चुनौती : सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा

    सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने बुधवार को अखिल भारतीय बार परीक्षा (AIBE) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच पर फैसला सुरक्षित रख लिया।

    पांच जजों की बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस ए.एस. ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी शामिल थे। मुख्य याचिका मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के 2008 के एक फैसले के खिलाफ बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) द्वारा दायर की गई विशेष अनुमति की अपील है, जो एक लॉ कॉलेज को संबद्धता और मान्यता प्रदान करने से संबंधित मामले में है।

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    सक्षम पति को वैध तरीके से कमाकर अपनी पत्नी और नाबालिग बच्चे का भरण पोषण करना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक सक्षम पति वैध तरीकों से कमाने और अपनी पत्नी और नाबालिग बच्चे का भरण पोषण करने के लिए बाध्य है। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा, " पति को शारीरिक श्रम से भी पैसा कमाने की आवश्यकता होती है, अगर वह सक्षम है तो क़ानून में उल्लिखित कानूनी रूप से अनुमेय आधारों को छोड़कर अपने दायित्व से बच नहीं सकता।"

    अंजू गर्ग बनाम दीपक कुमार गर्ग | 2022 लाइव लॉ (एससी) 805 | 2022 का सीआरए 1693 | 28 सितंबर 2022 | जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी

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    यदि किसी "आवश्यक पक्ष" की पैरवी नहीं की गई तो मुकदमा खारिज किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किसी "आवश्यक पक्ष" को मामले में पक्ष नहीं बनाया गया है तो मुकदमा खारिज किया जा सकता है। कोर्ट के अनुसार, एक आवश्यक पक्ष होने के लिए दोहरे परीक्षण को संतुष्ट करना होगा (1) कार्यवाही में शामिल विवादों के संबंध में ऐसे पक्ष के खिलाफ कुछ राहत का अधिकार होना चाहिए (2) कि ऐसी पार्टी की अनुपस्थिति में कोई प्रभावी डिक्री पारित नहीं हो सकती है।

    केस ड‌िटेलः मोरेशर यादराव महाजन बनाम व्यंकटेश सीताराम भेदी (D) | 2022 लाइव लॉ (SC) 802 | CA 5755-5756 Of 2011| 27 सितंबर 2022 | जस्टिस बीआर गवई और सीटी रविकुमार

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    अप्रयुक्त अवकाश के बदले नकद लाभ वेतन का हिस्सा है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि लीव इनकैशमेंट (बच गये अवकाश के बदले नकद लाभ लेना) वेतन का हिस्सा है। कोर्ट ने कहा कि राजस्थान स्वैच्छिक ग्रामीण शिक्षा सेवा नियम, 2010 के तहत बचे हुए विशेषाधिकार (प्रीवलेज) अवकाश को आगे ले जाने पर रोक की शर्त मनमानी और नितांत अनुचित है, जिसे लागू नहीं किया जा सकता है।

    इस मामले में, अपीलकर्ताओं को 1993 में एक वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय द्वारा स्वीकृत पदों पर नियुक्त किया गया था। राजस्थान हाईकोर्ट ने यह कहकर उनकी याचिका खारिज कर दी थी कि राजस्थान स्वैच्छिक ग्रामीण शिक्षा सेवा नियमावली, 2010 के नियम 10 या राजस्थान गैर-सरकारी शैक्षणिक संस्थान (मान्यता अनुदान-सहायता और सेवा शर्तें, आदि) नियमावली, 1993 के तहत न तो ग्रेच्युटी और न ही छुट्टी नकदीकरण को ''वेतन" की अभिव्यक्ति द्वारा कवर किया गया था।

    जगदीश प्रसाद सैनी बनाम राजस्थान सरकार | 2022 लाइव लॉ (एससी) 801 | एसएलपी (सी) 16813/2019] | 26 सितंबर 2022 | सीजेआई उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भाटी

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    किसी अपंजीकृत बिक्री समझौते के आधार पर स्थायी निषेधाज्ञा की राहत नहीं मांगी जा सकती : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी अपंजीकृत दस्तावेज/बिक्री समझौते के आधार पर स्थायी निषेधाज्ञा की राहत नहीं मांगी जा सकती है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि किसी वादी को अप्रत्यक्ष रूप से राहत नहीं मिल सकती है, जो उसे वह विशिष्ट प्रदर्शन के लिए वाद में नहीं मिल सकती है।

    इस मामले में, वादी ने स्थायी निषेधाज्ञा की एक डिक्री के लिए प्रार्थना करते हुए एक वाद दायर किया, जिसमें प्रतिवादी को वाद संपत्ति में उसके कब्जे से छेड़छाड़ करने से रोक दिया गया था, जिसे बिक्री समझौते के आधार पर दावा किया गया था, जो दस रुपये के स्टाम्प पेपर पर अपंजीकृत दस्तावेज/बिक्री समझौता था। ट्रायल कोर्ट ने मूल वादी द्वारा दायर वाद को खारिज कर दिया और स्थायी निषेधाज्ञा देने से इनकार कर दिया और प्रतिवादी के प्रति-दावे की अनुमति दी। प्रथम अपीलीय न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को उलट दिया और वाद का फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने प्रतिवादी की दूसरी अपील खारिज कर दी।

    बलराम सिंह बनाम केलो देवी | 2022 लाइव लॉ ( SC) 800 | सीए 6733/ 2022 का | 23 सितंबर 2022 | जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस कृष्ण मुरारी

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    उपयुक्तता के संबंध में गलत जानकारी या छिपाने पर कर्मचारी को सेवा से बर्खास्त किया जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी कर्मचारी को सेवा से बर्खास्त किया जा सकता है यदि यह पाया जाता है कि उसने अपनी फिटनेस या पद के लिए उपयुक्तता को प्रभावित करने वाले मामलों के संबंध में गलत जानकारी दी थी।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि सामग्री जानकारी को छिपाने और गिरफ्तारी, अभियोजन, दोषसिद्धि आदि से संबंधित सत्यापन फॉर्म में गलत बयान देने से कर्मचारी के चरित्र, आचरण और इतिहास पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है।

    सतीश चंद्र यादव बनाम भारत संघ | 2022 लाइव लॉ (SC) 798 | एसएलपी (सी) 20860/ 2019| 26 सितंबर 2022 | जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला

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    कोई आदेश तथ्यात्मक परिस्थितियों में दिया जाता है; निर्णय कानून के सिद्धांतों को निर्धारित करता है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आदेश मौजूदा तथ्यात्मक परिदृश्य में दिया जाता है और निर्णय कानून के सिद्धांतों को निर्धारित करता है। जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा, "इस कोर्ट द्वारा पारित कोई भी आदेश या निर्णय रिपोर्ट किए गए मामलों के अधिक वॉल्यूम बनाने के लिए रिपोर्ट योग्य प्रयास बन जाता है।" कोर्ट ने आगे कहा कि इससे प्रचलित कानूनी सिद्धांतों पर कुछ भ्रम पैदा होता है।

    पंजाब सरकार बनाम जसबीर सिंह | 2022 लाइव लॉ (एससी) 776 | सीआरए 335/2020 | 15 सितंबर 2022 | जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस विक्रम नाथ

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