कोई आदेश तथ्यात्मक परिस्थितियों में दिया जाता है; निर्णय कानून के सिद्धांतों को निर्धारित करता है: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

26 Sep 2022 7:10 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली
    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आदेश मौजूदा तथ्यात्मक परिदृश्य में दिया जाता है और निर्णय कानून के सिद्धांतों को निर्धारित करता है।

    जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा,

    "इस कोर्ट द्वारा पारित कोई भी आदेश या निर्णय रिपोर्ट किए गए मामलों के अधिक वॉल्यूम बनाने के लिए रिपोर्ट योग्य प्रयास बन जाता है।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि इससे प्रचलित कानूनी सिद्धांतों पर कुछ भ्रम पैदा होता है।

    इस मामले में, दो न्यायाधीशों की पीठ ने निम्नलिखित मुद्दों को संदर्भित किया था: i) क्या दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 195 के तहत की गयी शिकायत से पहले ही कोई कोर्ट संहिता की धारा 340 के तहत प्रारंभिक जांच का आदेश दे सकता है और संभावित आरोपी को उसका पक्ष रखने का अवसर दे सकता है? (ii) ऐसी प्रारंभिक जांच का दायरा और सीमा क्या है? यह तब हुआ जब बेंच ने तीन जजों की दो बेंच के फैसलों के बीच के विरोध का संज्ञान लिया। 'प्रीतीश बनाम महाराष्ट्र सरकार और अन्य (2002) 1 एससीसी 253' मामले में यह व्यवस्था दी गयी थी कि कोर्ट किसी शिकायत पर प्रारंभिक जांच करने के लिए बाध्य नहीं है, लेकिन यदि कोर्ट न्याय के हित में अपराध की आगे जांच करने को समीचीन पाता है और ऐसा करने का निर्णय लेता है, तो उसे तथ्यों का अंतिम सेट बनाना चाहिए। 'शरद पवार बनाम जगमोहन डालमिया (2010) 15 एससीसी 290 में, यह कहा गया था कि सीआरपीसी की धारा 340 के तहत विचार के अनुसार प्रारंभिक जांच करना आवश्यक है और प्रतिवादियों को सुनवाई का अवसर प्रदान करना भी जरूरी है।

    संदर्भ का जवाब देते हुए, बेंच ने कहा कि शरद पवार (सुप्रा) के मामले में जो रिपोर्ट किया गया है वह केवल एक आदेश है, निर्णय नहीं।

    कोर्ट ने कहा:

    "कोई आदेश दिए गए तथ्यात्मक परिदृश्य में होता है। निर्णय कानून के सिद्धांतों को निर्धारित करता है। परिदृश्य यह है कि इस कोर्ट द्वारा पारित कोई भी आदेश या निर्णय रिपोर्ट किए गए मामलों के अधिक वॉल्यूम बनाने के लिए रिपोर्ट योग्य प्रयास बन जाता है। इस प्रकार कई बार प्रचलित कानूनी सिद्धांतों पर कुछ भ्रम पैदा होने की संभावना होती है। उक्त उद्धृत पैराग्राफ में की गयी टिप्पणियां स्पष्ट रूप से कानून के किसी भी सिद्धांत की घोषणा के बजाय आदेश के प्रवाह में आया है और यही कारण है कि बेंच ने इसे आदेश के रूप में वर्गीकृत किया अर्थात दिए गए तथ्यात्मक परिदृश्य में।"

    पीठ ने 'इकबाल सिंह मारवाह बनाम मीनाक्षी मारवाह (2005) 4 एससीसी 370' मामले में संविधान पीठ द्वारा प्रतिपादित उस कानून को मानते हुए संदर्भ का उत्तर दिया, जो 'प्रीतीश केस (सुप्रा)' में भी कहा गया था।

    मामले का विवरण

    पंजाब सरकार बनाम जसबीर सिंह | 2022 लाइव लॉ (एससी) 776 | सीआरए 335/2020 | 15 सितंबर 2022 | जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस विक्रम नाथ

    हेडनोट्स

    दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 195, 340 - क्या दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 195 के तहत की गयी शिकायत से पहले ही कोई कोर्ट संहिता की धारा 340 के तहत प्रारंभिक जांच का आदेश दे सकता है और संभावित आरोपी को उसका पक्ष रखने का अवसर दे सकता है? – इस प्रकृति के परिदृश्य में सुनवाई के अवसर का कोई सवाल ही नहीं है- इस तरह की प्रारंभिक जांच का दायरा और सीमा - इकबाल सिंह मारवाह बनाम मीनाक्षी मारवाह (2005) 4 एससीसी 370 का संदर्भ।

    निर्णय और आदेश – कोई आदेश दिए गए तथ्यात्मक परिदृश्य में जारी होता है। निर्णय कानून के सिद्धांतों को निर्धारित करता है। परिदृश्य यह है कि इस कोर्ट द्वारा पारित कोई भी आदेश या निर्णय रिपोर्ट किए गए मामलों के अधिक वॉल्यूम बनाने के लिए रिपोर्ट योग्य प्रयास बन जाता है। इस प्रकार इससे प्रचलित कानूनी सिद्धांतों पर कुछ भ्रम पैदा होने की संभावना होती है।

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