सुप्रीम कोर्ट ने जयंतीलाल मिस्त्री मामले में 2015 के फैसले पर प्रथम दृष्टया संदेह जताया जिसमें आरबीआई को डिफॉल्टरों का खुलासा करने को कहा था, कहा ये उपभोक्ताओं की निजता को प्रभावित कर सकता है

LiveLaw News Network

1 Oct 2022 10:32 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने जयंतीलाल मिस्त्री मामले में 2015 के फैसले पर प्रथम दृष्टया संदेह जताया जिसमें आरबीआई को डिफॉल्टरों का खुलासा करने को कहा था, कहा ये उपभोक्ताओं की निजता को प्रभावित कर सकता है

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भारतीय रिजर्व बैंक बनाम जयंतीलाल एन मिस्त्री मामले में 2015 के अपने फैसले के बारे में प्रथम दृष्टया संदेह व्यक्त किया, जिसमें कहा गया था कि भारतीय रिजर्व बैंक सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत बैंकों संबंधित डिफॉल्टरों की सूची, निरीक्षण रिपोर्ट, वार्षिक विवरण आदि का खुलासा करने के लिए बाध्य है।

    जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सीटी रविकुमार की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने प्रथम दृष्टया पाया कि जयंतीलाल मिस्त्री मामले में सूचना के अधिकार और निजता के अधिकार को संतुलित करने के पहलू पर ध्यान नहीं दिया गया। पीठ ने यह भी नोट किया कि पुट्टास्वामी मामले में 2017 में 9-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दिए गए एक बाद के फैसले में अनुच्छेद 21 के तहत निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया गया है।

    ऐसा मानते हुए, बेंच ने निरीक्षण रिपोर्ट, जोखिम मूल्यांकन रिपोर्ट और वार्षिक वित्तीय निरीक्षण रिपोर्ट से संबंधित बैंकों से जानकारी मांगने के लिए आरबीआई द्वारा जारी निर्देशों को चुनौती देने वाली विभिन्न बैंकों द्वारा दायर रिट याचिकाओं को सुनवाई योग्य माना।

    यह माना गया कि जयंतीलाल मिस्त्री मामले की परवाह किए बिना निर्देशों को चुनौती देने के लिए अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिकाओं को सुनवाई योग्य माना जा सकता है।

    पीठ ने कहा,

    "जयंतीलाल एन मिस्त्री के मामले में इस न्यायालय के फैसले के मद्देनज़र, आरबीआई याचिकाकर्ताओं / बैंकों को बैंक के व्यक्तिगत ग्राहकों के संबंध में भी जानकारी का खुलासा करने के लिए निर्देश जारी करने का हकदार है। वास्तव में, यह प्रतिकूल हो सकता है क्योंकि यो व्यक्तियों के निजता के मौलिक अधिकार को प्रभावित करता है।"

    तदनुसार, रिट याचिकाओं के सुनवाई योग्य होने के खिलाफ उठाई गई प्रारंभिक आपत्ति को खारिज कर दिया गया था। रिट याचिकाओं पर गुण-दोष के आधार पर सुनवाई होगी।

    2021 में, जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस विनीत सरन ( अब दोनों सेवानिवृत्त न्यायाधीश) की एक पीठ ने बैंकों द्वारा दायर विभिन्न आवेदनों को खारिज कर दिया था, जिसमें जयंतीलाल मिस्त्री मामले को वापस लेने की मांग की गई थी, जिसमें कहा गया था कि वे प्रभावी रूप से आदेश वापस लेने की आड़ में फैसले पर पुनर्विचार की मांग कर रहे थे। हालांकि, पीठ ने कानून के अनुसार अन्य उपाय तलाशने का बैंकों का अधिकार सुरक्षित रखा था। उसके बाद, एचडीएफसी, एक्सिस बैंक, एसबीआई, कोटक महिंद्रा बैंक आदि सहित कई बैंकों द्वारा अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिकाएं दायर की गईं।

    आरटीआई सूचना मांगने वाले आवेदकों की ओर से पेश एडवोकेट प्रशांत भूषण ने दलील दी कि पहले के फैसले को चुनौती देने वाली रिट याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं हैं। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में, जयंतीलाल मिस्त्री मामले में निर्देशों का पालन न करने के लिए आरबीआई के खिलाफ अवमानना कार्रवाई पर विचार करते हुए, अदालत के निर्देशों के अनुरूप अपनी प्रकटीकरण नीति को बदलने का निर्देश दिया था। उन्होंने नरेश श्रीधर मिराजकर और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य और ए आर अंतुले बनाम आर एस नायक और अन्य की मिसालें दीं जिनमें यह माना गया था कि अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सही नहीं किया जा सकता है।

    विभिन्न बैंकों की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी, राकेश द्विवेदी, के वी विश्वनाथन, दुष्यंत दवे, जयदीप गुप्ता ने पुट्टास्वामी मामले का हवाला दिया, जिसमें निजता को मौलिक अधिकार माना गया था। कहावत "एक्स डेबिटो जस्टिसिया" यानी न्यायिक गलती को सुधारा जाना चाहिए, का आह्वान करते हुए, यह तर्क दिया गया कि किसी भी पक्ष को न्यायालय की गलती के कारण पीड़ित नहीं होना चाहिए और उस प्रक्रिया को न्याय की दासी के रूप में देखा जाना चाहिए। आगे यह तर्क दिया गया कि निजी बैंक आरटीआई अधिनियम के दायरे में नहीं आते हैं।

    कोर्ट की राय

    विभिन्न मिसालों का जिक्र करते हुए, कोर्ट ने कहा:

    "इस न्यायालय के सुप्रा उद्धृत निर्णयों के अवलोकन से पता चलता है कि यह माना गया है कि हालांकि निर्णय की अंतिमता की अवधारणा को संरक्षित किया जाना है, साथ ही, एक्स डेबिटो जस्टिटिया के सिद्धांत को अलविदा नहीं दिया जा सकता है। यदि न्यायालय ने पाया कि पहले का निर्णय कानून की सही स्थिति को निर्धारित नहीं करता है, इस न्यायालय के लिए हमेशा उस पर पुनर्विचार करना और यदि आवश्यक हो, तो इसे एक बड़ी पीठ को संदर्भित करना हमेशा स्वीकार्य होता है।

    चूंकि निजता के अधिकार के उल्लंघन के बारे में चिंताएं हैं, याचिकाकर्ताओं के लिए उपलब्ध एकमात्र उपाय यह होगा कि वे अपने ग्राहकों के जो भारत के नागरिक हैं, मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका के माध्यम से न्यायालय का दरवाजा खटखटाएं।

    "कोई अंतिम राय व्यक्त किए बिना, प्रथम दृष्टया, हम पाते हैं कि जयंतीलाल एन मिस्त्री (सुप्रा) के मामले में इस अदालत के फैसले में सूचना के अधिकार और निजता के अधिकार के बीच संतुलन के पहलू पर ध्यान नहीं दिया गया। याचिकाकर्ता प्रतिवादी आरबीआई की कार्रवाई को चुनौती दी है, जिसके माध्यम से आरबीआई ने याचिकाकर्ताओं/बैंकों को कुछ जानकारी का खुलासा करने के निर्देश जारी किए हैं, जो याचिकाकर्ताओं के अनुसार आरटीआई अधिनियम, आरबीआई अधिनियम और बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 में निहित प्रावधानों के विपरीत नहीं है लेकिन ये बैंकों और उनके उपभोक्ताओं के निजता के अधिकार पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है। आरबीआई ने इस तरह के निर्देश जयंतीलाल एन मिस्त्री (सुप्रा) और गिरीश मित्तल (सुप्रा) के मामले में इस न्यायालय के निर्णय के मद्देनज़र जारी किए हैं। ऐसे में, याचिकाकर्ताओं के पास इस न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के अलावा और कोई उपाय नहीं होगा।"

    ऐसा कहते हुए, बेंच ने प्रारंभिक आपत्तियों को खारिज कर किया।

    एचडीएफसी बैंक, एक्सिस बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, यस बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, आईडीएफसी फर्स्ट बैंक और बंधन बैंक का प्रतिनिधित्व सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी और के वी विश्वनाथन, एवं एडवोकेट निखिल रोहतगी,आई/बी, बिंदी दवे, सीनियर पार्टनर, प्रणय गोयल और अमन राज गांधी, पार्टनर धारा शाह, सीनियर एसोसिएट, अपूर्व कौशिक, आयश गांधी और धवल देसाई एडवोकेट के नेतृत्व में वाडिया घांडी एंड कंपनी ने किया।

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