AIBE की वैधता को चुनौती : सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा

Sharafat

29 Sept 2022 1:21 AM IST

  • AIBE की वैधता को चुनौती : सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा

    सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने बुधवार को अखिल भारतीय बार परीक्षा (AIBE) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच पर फैसला सुरक्षित रख लिया।

    पांच जजों की बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस ए.एस. ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी शामिल थे।

    मुख्य याचिका मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के 2008 के एक फैसले के खिलाफ बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) द्वारा दायर की गई विशेष अनुमति की अपील है, जो एक लॉ कॉलेज को संबद्धता और मान्यता प्रदान करने से संबंधित मामले में है।

    जब मामला अपील में शीर्ष अदालत में गया तो तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने शीर्ष अदालत के समक्ष उठाए गए "सामान्य रूप से कानूनी पेशे को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण प्रश्नों" के अंतिम निर्धारण के लिए पांच न्यायाधीशों से बनी एक संविधान पीठ को भेजा था।

    इस याचिका के लंबित रहने के दौरान ही सीनियर एडवोकेट गोपाल सुब्रमण्यम की अध्यक्षता में बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने 2010 में पहली बार अखिल भारतीय बार परीक्षा आयोजित करने का फैसला किया था। मामला संदर्भित करने के छह साल से अधिक समय के बाद और हाईकोर्ट के फैसले के 14 साल से अधिक समय के बाद संविधान पीठ आखिरकार विवाद को शांत करने के लिए तैयार है।

    कोर्ट ने मंगलवार को भारत के अटार्नी जनरल और सीनियर एडवोकेट के.के. वेणुगोपाल और एमिकस क्यूरी सीनियर एडवोकेट के.वी. विश्वनाथन की दलीलें सुनीं।

    उन्होंने वी. सुदीर बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया और अन्य [(1999) 3 एससीसी 176] में निर्धारित कानून की शुद्धता पर सवाल उठाया और प्री-इनरोलमेंट एक्जामिनेशन पर ज़ोर दिया।

    यह तर्क को बीसीआई के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा और उपाध्यक्ष एस. प्रभाकरण के पक्ष में लग रहा था, जो वैधानिक निकाय की ओर से पेश हुए थे।

    विश्वनाथन ने वी. सुदीर [(1999 3 एससीसी 176] में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना करना जारी रखा। उन्होंने इंडियन काउंसिल ऑफ लीगल एड एंड एडवाइस बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया [(1995) 1 एससीसी 732] में फैसले की सुदृढ़ता पर भी सवाल उठाया, जिस पर सुदीर बेंच ने भरोसा रखा था।

    विश्वनाथन ने दावा किया कि इन फैसलों के आधार पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया को राज्य बार काउंसिल की तुलना में एक अधीनस्थ स्थिति में रखा गया है। उन्होंने आग्रह किया कि अधिनियम के उद्देश्यों के तहत बनाए गए संगठनात्मक ढांचे के आलोक में बार काउंसिल की सर्वोच्चता को संरक्षित करने की आवश्यकता है।

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