सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

14 Aug 2022 6:30 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (8 अगस्त, 2022 से 12 अगस्त, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    धारा 156 (3) सीआरपीसी - जब प्र‌थम दृष्टया संज्ञेय अपराध पाया जाए, विशेषकर यौन अपराधों में, तब मजिस्ट्रेट को पुलिस जांच का आदेश देना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में माना है कि एक न्यायिक मजिस्ट्रेट का कर्तव्य है कि वह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) के तहत पुलिस जांच का आदेश दे, जब शिकायत प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध को दर्शाती हो और तथ्य पुलिस जांच की आवश्यकता को इंगित करते हों।

    हालांकि सीआरपीसी की धारा 156(3) में "सकते हैं" शब्द का इस्तेमाल किया गया है, जो पुलिस जांच का आदेश देने के लिए मजिस्ट्रेट को विवेक देता है, कोर्ट ने कहा कि इस तरह के विवेक का इस्तेमाल विवेकपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए।

    केस टाइटल: XYZ बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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    बलात्कार के अलावा यौन उत्पीड़न के मामलों का इन- कैमरा ट्रायल हो, यौन इतिहास से जुड़े सवालों को अनुमति ना दें : सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को कहा

    न्यायालयों के यौन अपराधों के पीड़ितों के साथ संवेदनशील तरीके से निपटने के महत्व को दोहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों को यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करने वाली महिलाओं के लिए पीड़ा और उत्पीड़न से बचने के लिए कई निर्देश जारी किए हैं। अदालत ने निर्देश दिया कि यौन उत्पीड़न से संबंधित सभी मामलों में बंद कमरे में सुनवाई की अनुमति दी जानी चाहिए। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 327 के अनुसार, केवल बलात्कार के मामलों में बंद कमरे में सुनवाई अनिवार्य है। कोर्ट ने इस दायरे का विस्तार किया है।

    केस : XYZ बनाम महाराष्ट्र राज्य |

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    पैगंबर पर टिप्पणी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा के खिलाफ सभी वर्तमान और भविष्य की एफआईआर दिल्ली ट्रांसफर की

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के खिलाफ देश के विभिन्न हिस्सों में पैगंबर मोहम्मद साहब पर नूपुर की टिप्पणी को लेकर दर्ज सभी एफआईआर दिल्ली पुलिस को ट्रांसफर कर दी।

    यह आदेश 26 मई को "टाइम्स नाउ" द्वारा प्रसारित चैनल डिबेट पर की गई टिप्पणियों के संबंध में भविष्य में नूपुर के खिलाफ दर्ज किसी भी एफआईआर या शिकायत पर लागू होगा। अदालत ने नूपुर को एफआईआर रद्द करने की राहत के लिए दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता भी दी। कोर्ट ने यह माना कि कार्रवाई का एक हिस्सा दिल्ली में उत्पन्न हुआ था।

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    क्या धारा 319 सीआरपीसी के तहत जोड़ा गया आरोपी धारा 227 सीआरपीसी के तहत आरोप मुक्त करने की मांग कर सकता है? सुप्रीम कोर्ट पहले के फैसलों का पुन: परीक्षण करने को तैयार

    क्या धारा 319 सीआरपीसी के तहत जोड़ा गया आरोपी धारा 227 सीआरपीसी के तहत आरोप मुक्त करने की मांग कर सकता है? सुप्रीम कोर्ट विशेष अनुमति याचिका में उठाए गए इस मुद्दे की जांच के लिए तैयार हो गया है। विशेष अनुमति याचिका में याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट एस नागमुथु ने तर्क दिया था कि जोगेंद्र यादव बनाम बिहार राज्य (2015) 9 SCC 244 मामले में इस मुद्दे का उत्तर नकारात्मक में दिया गया था और यह कि उक्त दृष्टिकोण कानून में सही दृष्टिकोण नहीं है।

    केस : राम जन्म यादव बनाम यूपी राज्य | अपील की विशेष अनुमति ( क्रिमिनल) संख्या 3199/2021

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    'दक्ष न्यायाधीशों में खराब संदेश गया': सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट से पॉक्सो मामलों का कुछ ही दिनों में फैसला करने वाले जज के खिलाफ कार्यवाही वापस लेने का आग्रह किया

    भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पटना हाईकोर्ट से बिहार के एक निलंबित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के खिलाफ पॉक्सो मामलों का फैसला कुछ ही दिनों में करने के लिए शुरू की गई सभी अनुशासनात्मक कार्यवाही को वापस लेने का आग्रह किया।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "हमारी ईमानदारी से सलाह है कि सब कुछ छोड़ दें। अगर आप नहीं चाहते हैं तो हम इसकी तह तक जाएंगे। जब तक आप भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा रहे हैं, तब तक कुछ स्पष्ट होना चाहिए .....वह केवल अपने आदेशों का पालन कर रहे हैं, यह उनके खिलाफ बेहद अनुचित है।"

    केस टाइटल: शशि कांत बनाम एचसी ऑफ ज्यूडिकेचर, पटना| डब्ल्यूपी (सी) 557/2022

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    पिछले वेतन के साथ सेवा की निरंतरता उन मामलों में निर्देशित की जा सकती है जहां छंटनी सद्भावनापूर्ण नहीं थी : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेवा की निरंतरता उन मामलों में निर्देशित की जा सकती है जहां छंटनी सद्भावनापूर्ण नहीं थी। दरअसल आर्म्ड फोर्सेज एक्स ऑफिसर्स मल्टी सर्विसेज कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड ने अपना कारोबार बंद करने के आधार पर 55 कर्मचारियों की सेवाओं को 'छंटनी' कर दी। औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 25एफ के अनुसार छंटनी मुआवजे की भी पेशकश की गई थी। औद्योगिक ट्रिब्यूनल, पुणे के समक्ष, सरकार ने सेवा की निरंतरता और पूर्ण वेतन के साथ 55 ड्राइवरों की बहाली के लिए कामगारों की मांग के संबंध में विवाद को संदर्भित किया।

    आर्म्ड फोर्सेज एक्स ऑफिसर्स मल्टी सर्विसेज कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड बनाम राष्ट्रीय मजदूर संघ (INTUC) | 2022 लाइव लॉ (SC) 674 | सीए 2393/ 2022 | 11 अगस्त 2022 | जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस पीएस नरसिम्हा

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    सरफेसी एक्ट की धारा 17 के तहत आवेदन दाखिल करने के लिए 45 दिनों की समय सीमा सुरक्षा के त्वरित प्रवर्तन के लिए है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि सुरक्षा के त्वरित प्रवर्तन के लिए सरफेसी अधिनियम (SARFAESI Act) की धारा 17 के तहत आवेदन दाखिल करने के लिए 45 दिनों की समय सीमा प्रदान की गई है। सरफेसी अधिनियम की धारा 17 के अनुसार, सुरक्षित ऋणों की वसूली के उपायों के खिलाफ आवेदन, ऋण वसूली न्यायाधिकरण के समक्ष उस तारीख से 45 दिनों के भीतर दायर किया जाना है जिस दिन ऐसा उपाय किया गया था।

    बैंक ऑफ बड़ौदा बनाम परसादीलाल तुर्सीराम शीटग्रह प्राइवेट लिमिटेड | 2022 लाइव लॉ (एससी) 671 | सीए 5240 ऑफ 2022 | 11 अगस्त 2022 | जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस पीएस नरसिम्हा

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    ईपीएफ पेंशन मामला- वार्षिक रिपोर्टों में पड़ने वाले संभावित वित्तीय बोझ को क्यों नहीं दर्शाया गया? सुप्रीम कोर्ट ने ईपीएफओ से पूछा [ दिन -6 ]

    ईपीएफ पेंशन मामले की सुनवाई के अंतिम दिन सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भारत संघ से पूछा कि वार्षिक रिपोर्टों में सरकार पर पड़ने वाले संभावित वित्तीय बोझ को क्यों नहीं दर्शाया गया है, यदि पेंशनभोगियों को पूर्वव्यापी और 15,000 रुपये वेतन सीमा व उससे आगे पेंशन योजना का विकल्प चुनने की अनुमति दी जाती है।

    जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कर्मचारी भविष्य निधि संगठन द्वारा केरल, राजस्थान और दिल्ली हाईकोर्ट के कर्मचारियों के पेंशन (संशोधन) योजना, 2014 को रद्द करने के फैसले को चुनौती देने वाली अपीलों के एक बैच की सुनवाई करते हुए सवाल उठाया।

    केस: ईपीएफओ बनाम सुनील कुमार और अन्य

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    जन्मतिथि में सुधार के संबंध में सिविल अदालत के अधिकार क्षेत्र को औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 द्वारा बाहर नहीं किया गया है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि किसी कर्मचारी की जन्मतिथि में सुधार के संबंध में सिविल अदालत के अधिकार क्षेत्र को औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 द्वारा बाहर नहीं किया गया है। न्यायालय ने कहा कि यदि यह औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत किसी अधिकार के प्रवर्तन से संबंधित मामला है तो सिविल न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को बाहर कर दिया जाता है।

    केस: तुलसी चौधरी बनाम मेसर्स स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) और अन्य। | (एसएलपी (सी) संख्या 8443/ 2018

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    मोटर दुर्घटना मुआवजे के दावे पर फैसला करते समय आपराधिक ट्रायल में आरोपों को साबित करने के लिए साक्ष्य के नियम का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मोटर दुर्घटना मुआवजे की मांग करने वाले आवेदन पर फैसला करते समय आपराधिक ट्रायल में आरोपों को साबित करने के लिए साक्ष्य के नियम का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि इस तरह के एक आवेदन पर उसके सामने पेश किए गए सबूतों के आधार पर फैसला किया जाना चाहिए, न कि उन सबूतों के आधार पर जो एक आपराधिक ट्रायल में होना चाहिए था या हो सकता था।

    जनाबाई दिनकराव घोरपड़े बनाम आईसीआईसीआई लैम्बॉर्ड इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड | 2022 लाइव लॉ ( SC) 666 | एसएलपी (सी) 21077/ 2019 | 10 अगस्त 2022 | जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस विक्रम नाथ

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    केवल अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति के आधार पर दोषसिद्धि को कायम नहीं रखा जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हत्या (Murder Case) के आरोपी को बरी करने के हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति साक्ष्य का एक कमजोर टुकड़ा है और जब तक कुछ पुष्टि नहीं होती, केवल अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति के आधार पर दोषसिद्धि कायम नहीं रह सकती है।

    राजस्थान राज्य बनाम किस्तूर राम | 2022 लाइव लॉ (एससी) 663 | सीआरए 2119 ऑफ 2010| 28 जुलाई 2022 | जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस पीएस नरसिम्हा

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    सीआरपीसी धारा 311 के तहत आवेदन को केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि इससे अभियोजन पक्ष के मामले की खामियों को भरने में मदद मिलेगी : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि धारा 311 सीआरपीसी के तहत एक आवेदन को केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि इससे अभियोजन पक्ष के मामले की खामियों को भरने में मदद मिलेगी।

    जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि जहां भी अदालत को लगता है कि मामले के न्यायसंगत निर्णय के लिए कोई सबूत आवश्यक है और सबूतों को बंद करने के लिए बाध्य नहीं है, वहां शक्ति का प्रयोग किया जाना चाहिए।

    वर्षा गर्ग बनाम मध्य प्रदेश राज्य 2022 लाइव लॉ (SC) 662 | सीआरए 1021/ 2022 | 8 अगस्त 2022 | जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना

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    [कुछ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग] अल्पसंख्यकों की पहचान केवल राज्य स्तर पर की जा सकती है जिला स्तर पर नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कुछ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक (Hindu Minority) का दर्जा देने की मांग वाली याचिका पर कहा कि अल्पसंख्यकों की पहचान केवल राज्य स्तर पर की जा सकती है, जिला स्तर पर नहीं। जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट की बेंच ने कहा, "आप प्रार्थना का दावा नहीं कर सकते कि यह कानून के विपरीत है। आप कह रहे हैं कि इसे जिला स्तर पर किया जाना चाहिए। हम इस पर विचार नहीं कर सकते। यह 11 जजों के विपरीत है।"

    केस टाइटल : देवकीनंदन ठाकुर जी बनाम भारत संघ | डब्ल्यूपी (सी) 446/2022

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    ज्ञानवापी परिसर में मिली संरचना की प्रकृति का अध्ययन करने की पीआईएल को खारिज करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल

    इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज करने के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है जिसमें ज्ञानवापी परिसर में मिली संरचना की प्रकृति का अध्ययन करने के लिए हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश (वर्तमान / सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता में एक समिति / आयोग की नियुक्ति की मांग की गई थी।

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