सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

29 May 2022 12:00 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (23 मई, 2022 से 27 मई, 2022 तक ) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    अधीनस्थ न्यायालय के कर्मचारियों की गलती, आदेश का पालन करने में देरी, मामला स्थानांतरित करने का कारण नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधीनस्थ न्यायालय के कर्मचारियों की ओर से कोई गलती या कमी या अदालत द्वारा अनुपालन में कोई देरी किसी मामले को स्थानांतरित करने का एक कारण नहीं है।

    इस मामले में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आपराधिक मामले को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रथम, अलीगढ़ की अदालत से मथुरा के संबंधित न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया था। इसका कारण यह था कि हाईकोर्ट अधीनस्थ न्यायालय के कर्मचारियों द्वारा उसके द्वारा पारित आदेश को रिकॉर्ड में नहीं लेने के आचरण से असंतुष्ट महसूस करता था।

    केस टाइटलः नजमा नाज बनाम रुखसाना बानो |2022 LiveLaw (SC) 532 | CrA 820 OF 2022 | 17 May 2022

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    सह-आरोपी द्वारा की गई अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति साक्ष्यों के लिए केवल समर्थित साक्ष्य के तौर पर हो : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सह-आरोपी द्वारा की गई अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति को साक्ष्य के रूप में केवल समर्थित साक्ष्य के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है। जिसमें जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा, आरोपी के खिलाफ किसी भी ठोस सबूत के अभाव में, सह-आरोपी द्वारा कथित रूप से की गई अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति अपना महत्व खो देती है और सह-आरोपी की इस तरह की अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति के आधार पर कोई दोष सिद्ध नहीं हो सकता है।

    चंद्रपाल बनाम छत्तीसगढ़ राज्य | 2022 लाइव लॉ (SC ) 529 | सीआरए 378 | 27 मई 2022/ 2015

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    विशिष्ट अदायगी की सहमति डिक्री में भी बिक्री प्रतिफल के भुगतान का समय बढ़ाया जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विशिष्ट अदायगी की सहमति डिक्री में भी बिक्री प्रतिफल के भुगतान का समय बढ़ाया जा सकता है। अदालत ने कहा कि विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 की धारा 28, न केवल निर्णय देनदारों को अनुबंध को रद्द करने की अनुमति देती है, बल्कि अदालत द्वारा राशि का भुगतान करने के लिए समय बढ़ाने की भी अनुमति देती है।

    जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा, " एक डिक्री के पारित होने पर विशिष्ट प्रदर्शन के लिए एक वाद समाप्त नहीं होता है और जिस अदालत ने विशिष्ट प्रदर्शन के लिए डिक्री पारित की है, वह डिक्री पारित होने के बाद भी डिक्री पर नियंत्रण रखती है।"

    किशोर घनश्यामसा परलीकर (डी) बालाजी मंदिर संस्थान मंगरुल (नाथ) | 2022 लाइव लॉ (SC) 528 |

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    पुलिस को यौनकर्मियों के साथ दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए, छापे और रेस्‍क्यू ऑपरेशन के दौरान मीडिया को उनकी तस्वीरें प्रकाशित नहीं करनी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी किए

    सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए कि मानव शालीनता और गरिमा की बुनियादी सुरक्षा यौनकर्मियों के लिए भी उपलब्‍ध है, निर्देश दिया कि पुलिस को यौनकर्मियों के साथ सम्मान का व्यवहार करना चाहिए। मौखिक या शारीरिक रूप से उनके साथ दुव्यवहार नहीं करना चा‌हिए।

    इसके अलावा, कोर्ट ने निर्देश दिया कि मीडिया को रेस्‍क्‍यू ऑपरेशन की रिपोर्ट करते समय यौनकर्मियों की तस्वीरें प्रकाशित नहीं करनी चाहिए, या उनकी पहचान का खुलासा नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने कहा, यदि मीडिया ग्राहकों के साथ यौनकर्मियों की तस्वीरें प्रकाशित करता है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 354 सी के तहत दृश्यता के अपराध को लागू किया जाना चाहिए।

    केस टाइटलः बुद्धदेव कर्मस्कर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य। Criminal Appeal No. 135 of 2010

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    सुप्रीम कोर्ट ने यूआईडीएआई को निवास के प्रमाण पर जोर दिए बिना यौनकर्मियों को आधार कार्ड जारी करने का निर्देश दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) को यौनकर्मियों को आधार कार्ड जारी करने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि नाको में राजपत्रित अधिकारी या स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी में प्रोजेक्ट डायरेक्टर की ओर से से दिए गए प्रोफार्मा प्रमाणन के आधार पर यौनकर्मियों को आधार कार्ड जारी करे। जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एएस बोपन्ना ने यूआईडीएआई से यह सुनिश्चित करने को कहा कि आधार कार्ड जारी करने की प्रक्रिया में यौनकर्मियों की गोपनीयता बनी रहे।

    केस टाइटल: बुद्धदेव कर्मस्कर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।Criminal Appeal No. 135 of 2010

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    मध्यस्थता अधिनियम -एक साल से ज्यादा से लंबित धारा 11 (5) और 11 (6) के तहत आवेदनों का निपटारा 6 महीने के भीतर करें : सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से कहा

    हाईकोर्ट द्वारा मध्यस्थों की नियुक्ति के लिए आवेदनों को जल्द से जल्द तय करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणियां की हैं। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा है कि यदि मध्यस्थों की जल्द से जल्द नियुक्ति नहीं की जाती है और मध्यस्थों की नियुक्ति के लिए मध्यस्थता अधिनियम की धारा 11 (5) और 11 (6) के तहत आवेदनों को वर्षों तक लंबित रखा जाता है तो यह अधिनियम के उद्देश्य और लक्ष्य को विफल कर देगा और यह एक प्रभावी वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र के महत्व को खो सकता है।

    केस: मेसर्स श्री विष्णु कंस्ट्रक्शन बनाम मुख्य सैन्य इंजीनियरिंग सेवा में इंजीनियर और अन्य एसएलपी (सी) संख्या 5306/ 2022

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    घरेलू हिंसा अधिनियम में 'संयुक्त परिवार' का अर्थ परिवार की तरह एक साथ रहना है, न कि जैसा हिंदू कानून में समझा जाता है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने प्रभा त्यागी बनाम कमलेश देवी मामले में हाल के फैसले में घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम 2005 की धारा 2 (एफ) में प्रयुक्त अभिव्यक्ति "संयुक्त परिवार" को विस्तारित अर्थ दिया है। अधिनियम की धारा 2 (एफ) "घरेलू संबंध" को "दो व्यक्तियों के बीच एक संबंध के रूप में परिभाषित करती है, जो किसी भी समय एक साझा घर में एक साथ रहते हैं, जब वे आम सहमति विवाह, या एक के विवाह माध्यम से या गोद लेने की प्रकृति में संबंध या संयुक्त परिवार के रूप में एक साथ रहने वाले परिवार के सदस्य हैं।"

    प्रभा त्यागी बनाम कमलेश देवी | 2022 लाइव लॉ (SC ) 474 | सीआरए 511/ 2022 का | 12 मई 2022

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    आईपीसी की धारा 405 – अगर आरोपी को संपत्ति नहीं सौंपी गई तो आपराधिक विश्वासघात का अपराध आकर्षित नहीं होगा: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आरोपी को संपत्ति नहीं सौंपी गई तो आईपीसी की धारा 405 के तहत आपराधिक विश्वासघात का अपराध आकर्षित नहीं होगा। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि आईपीसी की धारा 405 के तहत अपराध के लिए अनिवार्य शर्त आरोपी व्यक्तियों को संपत्ति सौंपना है। रामकी रिक्लेमेशन एंड रिसाइक्लिंग प्राइवेट लिमिटेड ने प्लास्टिक के पुनर्चक्रण के लिए बोलियां आमंत्रित करते हुए एक निविदा जारी की। शिकायतकर्ता ने अपनी कंपनी जेके वेस्ट रिसाइक्लिंग प्राइवेट लिमिटेड के माध्यम से अपनी बोली प्रस्तुत की।

    गुरुकंवरपाल कृपाल सिंह बनाम सूर्य प्रकाशम | 2022 लाइव लॉ (एससी) 519 | एसएलपी (सीआरएल) 5485/2021 | 12 मई 2022

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    आर्थिक या धन संबंधी लाभ के अलावा अन्य लाभ हासिल करने के उद्देश्य से गैरकानूनी गतिविधि जारी रखना भी मकोका के तहत एक "संगठित अपराध" है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आर्थिक या धन संबंधी लाभ के अलावा अन्य लाभ हासिल करने के उद्देश्य से गैरकानूनी गतिविधि जारी रखना भी महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 1999 के तहत एक "संगठित अपराध है।

    जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि अपराध करने वाले व्यक्ति को लाभ हो सकता है, जो सीधे तौर पर धन लाभ या अन्य लाभ की ओर नहीं ले जा रहा है, लेकिन समाज में या यहां तक कि सिंडिकेट में भी एक मजबूत पकड़ या वर्चस्व प्राप्त करने का हो सकता है।

    अभिषेक बनाम महाराष्ट्र राज्य | 2022 लाइव लॉ (SC) 516 | सीआरए 869/ 2022 | 20 मई 2022

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    सशस्त्र बल कर्मी सरकारी सेवा में फिर से आने पर सशस्त्र बल में अपने अंतिम वेतन के बराबर वेतन पाने के हकदार नहीं होंगे : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सशस्त्र बल (Armed Force) कर्मचारी सरकारी सेवा में पुनर्नियोजन (Re­employed) पर अपने वेतनमान के लिए सशस्त्र बल में अपने अंतिम आहरित वेतन (last drawn pay) के बराबर का हकदार नहीं होगा।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा , सशस्त्र बलों में अंतिम आहरित वेतन का संदर्भ केवल यह सुनिश्चित करने के लिए है कि केंद्रीय सिविल सेवा (पुनर्नियुक्त पेंशनभोगियों के वेतन का निर्धारण ) आदेश, 1986 के पैरा 8 में परिकल्पित तरीके से सिविल पद पर वेतन की गणना सशस्त्र बलों में कर्मियों द्वारा अंतिम आहरित मूल वेतन ( स्थगित वेतन सहित लेकिन अन्य परिलब्धियों को छोड़कर) से अधिक न हो।

    भारत संघ बनाम अनिल प्रसाद | 2022 लाइव लॉ (SC) 513 | सीए 4073/2022 | 20 मई 2022

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    किसी उम्मीदवार के पास यह आग्रह करने का कानूनी अधिकार नहीं है कि भर्ती प्रक्रिया को उसके तार्किक अंत तक ले जाया जाए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी उम्मीदवार के पास यह आग्रह करने का कानूनी अधिकार नहीं है कि भर्ती प्रक्रिया को उसके तार्किक अंत तक ले जाया जाए।

    जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच ने कहा कि यहां तक कि चयन सूची में एक उम्मीदवार को शामिल करने से उम्मीदवार को ऐसा अधिकार नहीं मिल सकता है। पीठ ने स्पष्ट किया कि इसका मतलब यह नहीं है कि नियोक्ता मनमाने ढंग से कार्य करने के लिए स्वतंत्र है।

    कर्मचारी राज्य बीमा निगम बनाम डॉ विनय कुमार | 2022 लाइव लॉ (SC ) 514 | सीए 4150/ 2022 | 18 मई 2022

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    हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम- एचयूएफ संपत्ति का विशेष कब्जा एक अनुमान पैदा करेगा कि ऐसी संपत्ति को उसके भरण-पोषण के टलिए निर्धारित किया गया था : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक विधवा द्वारा हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) की संपत्ति का विशेष कब्जा एक अनुमान पैदा करेगा कि ऐसी संपत्ति को उसके पहले से मौजूद भरण-पोषण के अधिकार की प्राप्ति के लिए निर्धारित किया गया था।

    जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा, यह विशेष रूप से तब होता है जब जीवित सहदायिक ने भरण-पोषण के अपने पूर्व-मौजूदा अधिकार को मान्यता देने के लिए कोई वैकल्पिक संपत्ति निर्धारित नहीं की,

    मुन्नी देवी उर्फ नाथी देवी (डी) बनाम राजेंद्र उर्फ लल्लू लाल (डी) | 2022 लाइव लॉ (SC) 515 | सीए 5894/ 2019 | 18 मई 2022

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    दावों का निपटान करते समय बीमा कंपनी को उन दस्तावेजों के लिए नहीं पूछना चाहिए, जो बीमाधारक अपने नियंत्रण से बाहर की परिस्थितियों के कारण पेश करने की स्थिति में नहीं है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दावों का निपटान करते समय, बीमा कंपनी को बहुत अधिक तकनीकी नहीं होना चाहिए और उन दस्तावेजों के लिए नहीं पूछना चाहिए, जो बीमाधारक अपने नियंत्रण से बाहर की परिस्थितियों के कारण पेश करने की स्थिति में नहीं है।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि कई मामलों में यह पाया गया है कि बीमा कंपनियां मामूली आधार और/या तकनीकी आधार पर दावे से इनकार कर रही हैं।

    गुरमेल सिंह बनाम शाखा प्रबंधक, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड लिमिटेड | 2022 लाइव लॉ (SC) 506 | सीए 4071/ 2022 | 20 मई 2022

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    कॉपीराइट अधिनियम की धारा 63 - कॉपीराइट उल्लंघन एक संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि कॉपीराइट अधिनियम की धारा 63 के तहत कॉपीराइट उल्लंघन का अपराध एक संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि यदि अपराध तीन साल से लेकर सात साल तक की सजा के योग्य है तो अपराध एक संज्ञेय अपराध है।

    निट प्रो इंटरनेशनल बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार | 2022 लाइव लॉ (एससी) 505 | सीआरए 807/2022 | 20 मई 2022

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    सभी आपराधिक मामलों में अभियोजन पक्ष बयानों, दस्तावेजों, सामग्री एग्जिबिट की सूची प्रस्तुत करेगा, जिन पर जांच अधिकारी भरोसा नहीं कर रहा है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिए गए एक फैसले में कहा कि सभी आपराधिक मामलों में अभियोजन पक्ष बयानों, दस्तावेजों, सामग्री वस्तुओं और एग्जिबिट की सूची प्रस्तुत करेगा, जिन पर जांच अधिकारी भरोसा नहीं कर कर रहा है।

    जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने टिप्पणी की, लोक अभियोजक की भूमिका आंतरिक रूप से निष्पक्ष ट्रायल के लिए समर्पित है, न कि " मामले में दोषसिद्धि तक पहुंचने की प्यास" के लिए।

    मनोज बनाम मध्य प्रदेश राज्य | 2022 लाइव लॉ (SC) 510 | 2015 का सीआरए 248-250 | 20 मई 2022

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