कॉपीराइट अधिनियम की धारा 63 - कॉपीराइट उल्लंघन एक संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध है: सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
22 May 2022 2:15 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि कॉपीराइट अधिनियम की धारा 63 के तहत कॉपीराइट उल्लंघन का अपराध एक संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध है।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि यदि अपराध तीन साल से लेकर सात साल तक की सजा के योग्य है तो अपराध एक संज्ञेय अपराध है।
पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत एक आवेदन दायर किया था और आईपीसी की धारा 420 के साथ पठित कॉपीराइट अधिनियम की धारा 51, 63 और 64 के तहत अपराधों के लिए प्रतिवादी-आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट से निर्देश मांगा।
उक्त आवेदन को स्वीकार करते हुए सीएमएम ने संबंधित एसएचओ को कानून के उचित प्रावधान के तहत प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया। इसी आदेश के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। इसके बाद आरोपी ने मुख्य रूप से इस आधार पर आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की प्रार्थना के साथ दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका दायर की कि कॉपीराइट अधिनियम की धारा 63 के तहत अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध नहीं है। हाईकोर्ट ने रिट याचिका की अनुमति दी और कॉपीराइट अधिनियम, 1957 की धारा 63 और 65 के तहत अपराधों के लिए रिट याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया।
विवाद
अपील में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने यह निर्णय करने में एक गंभीर त्रुटि की है कि कॉपीराइट अधिनियम की धारा 63 के तहत दंडनीय अपराध एक गैर-संज्ञेय अपराध है और सीआरपीसी की पहली अनुसूची के भाग-दो के अंतर्गत नहीं आता है। प्रतिवादी ने दलील दी कि कॉपीराइट अधिनियम की धारा 63 के तहत अपराध एक गैर-संज्ञेय अपराध है, इसलिए मुद्दा यह था कि क्या कॉपीराइट अधिनियम की धारा 63 के तहत अपराध एक संज्ञेय अपराध है, जैसा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा माना जाता है या एक असंज्ञेय अपराध है?
पीठ ने कॉपीराइट अधिनियम की धारा 63 और सीआरपीसी की पहली अनुसूची के भाग II का उल्लेख किया।
कॉपीराइट अधिनियम की धारा 63
कोर्ट ने कहा कि कॉपीराइट अधिनियम की धारा 63 के तहत अपराध के लिए, प्रदान की गई सजा एक निश्चित अवधि के लिए कारावास की सजा है। यह अवधि छह महीने से कम नहीं होगी, लेकिन जिसे तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है, साथ ही जुर्माना भी हो सकता है।
सीआरपीसी की पहली अनुसूची का भाग – दो
भाग II के अनुसार, एक अपराध के लिए यदि 3 वर्ष से कम के कारावास या केवल जुर्माने की सजा का प्रावधान है, तो वह अपराध गैर-संज्ञेय है और जमानती है। यदि सजा 3 वर्ष और उससे अधिक तथा सात वर्ष तक के कारावास की हो तो अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती है।
कोई अस्पष्टता नहीं
कोर्ट ने कहा कि धारा 63 के तहत अधिकतम सजा तीन साल की हो सकती है और इसलिए मजिस्ट्रेट आरोपी को तीन साल की सजा भी दे सकता है।
"इस मामले में सीआरपीसी की पहली अनुसूची के भाग II पर विचार करते हुए, यदि अपराध तीन साल और उसके अधिक के कारावास की सजा के योग्य है, लेकिन सात साल से अधिक नहीं, तो यह एक संज्ञेय अपराध है। केवल ऐसे मामले में जहां अपराध तीन साल से कम के कारावास या जुर्माने के लिए दंड योग्य है, अपराध को असंज्ञेय कहा जा सकता है। पहली अनुसूची के भाग II में प्रावधान की भाषा बहुत स्पष्ट है और इसमें कोई अस्पष्टता नहीं है।"
आरोपी-प्रतिवादी ने 'राकेश कुमार पॉल बनाम असम सरकार, (2017) 15 एससीसी 67' मामले में फैसले पर भरोसा किया था, जहां सीआरपीसी की धारा 167 (2) (ए) (i) में अभिव्यक्ति "10 साल से कम नहीं" थी इसका मतलब यह हुआ कि सजा 10 साल होनी चाहिए। अदालत ने हालांकि कहा कि यह फैसला मौजूदा मामले के तथ्यों पर लागू नहीं होगा।
अपील की अनुमति देते हुए और हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए, पीठ ने इस प्रकार टिप्पणी की:-
" ...यह देखा गया और माना गया कि कॉपीराइट अधिनियम की धारा 63 के तहत अपराध एक संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध है। नतीजतन, हाईकोर्ट के विपरीत दृष्टिकोण के तहत पारित निर्णय और आदेश को एतद्द्वारा रद्द किया जाता है और निरस्त किया जाता है और कॉपीराइट अधिनियम की धारा 63 और 64 के तहत अपराध के लिए प्रतिवादी संख्या 2 के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को कानून के दायरे में और गुण-दोषों के आधार पर इसे एक संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध के रूप में आगे बढ़ाया जाएगा। "
मामले का विवरण
निट प्रो इंटरनेशनल बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार | 2022 लाइव लॉ (एससी) 505 | सीआरए 807/2022 | 20 मई 2022
कोरम: जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस बी वी नागरत्ना
हेडनोट्स
कॉपीराइट अधिनियम, 1957; धारा 63 - दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; पहली अनुसूची का भाग II - कॉपीराइट अधिनियम की धारा 63 एक संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध है। (पैरा 7)
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; पहली अनुसूची का भाग II - यदि अपराध तीन साल और उससे अधिक के कारावास के दंड योग्य है, लेकिन सात साल से अधिक नहीं, तो अपराध एक संज्ञेय अपराध है। केवल उस मामले में जहां अपराध तीन साल से कम के कारावास या जुर्माने के लिए दंडनीय है, केवल वैसे अपराध को असंज्ञेय कहा जा सकता है। [राकेश कुमार पॉल बनाम असम राज्य, (2017) 15 एससीसी 67] (पैरा 5.3)
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