सशस्त्र बल कर्मी सरकारी सेवा में फिर से आने पर सशस्त्र बल में अपने अंतिम वेतन के बराबर वेतन पाने के हकदार नहीं होंगे : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

23 May 2022 7:30 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सशस्त्र बल (Armed Force) कर्मचारी सरकारी सेवा में पुनर्नियोजन (Re­employed) पर अपने वेतनमान के लिए सशस्त्र बल में अपने अंतिम आहरित वेतन (last drawn pay) के बराबर का हकदार नहीं होगा।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा , सशस्त्र बलों में अंतिम आहरित वेतन का संदर्भ केवल यह सुनिश्चित करने के लिए है कि केंद्रीय सिविल सेवा (पुनर्नियुक्त पेंशनभोगियों के वेतन का निर्धारण ) आदेश, 1986 के पैरा 8 में परिकल्पित तरीके से सिविल पद पर वेतन की गणना सशस्त्र बलों में कर्मियों द्वारा अंतिम आहरित मूल वेतन ( स्थगित वेतन सहित लेकिन अन्य परिलब्धियों को छोड़कर) से अधिक न हो।

    दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष रिट याचिकाकर्ता भारतीय सेना में मेजर थे और उन्हें 15.07.2007 को सेवा से मुक्त कर दिया गया था। बाद में उन्हें केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल में सहायक कमांडेंट (चिकित्सा अधिकारी) के रूप में 15600-39100 रुपये के वेतनमान के साथ ग्रेड पे 5400 रुपये में नियुक्त किया गया।

    रिट याचिकाकर्ता ने दावा किया कि भारतीय सेना से मुक्ति की तारीख को, वह 6600 रुपये के ग्रेड पे के साथ 28340 रुपये का वेतन प्राप्त कर रहा था, वही केंद्रीय सिविल सेवा ( पुनर्नियुक्त पेंशनभोगियों के वेतन का निर्धारण) आदेश, 1986 के पैरा 8 के अनुसार संरक्षित होने का हकदार था।

    उनकी रिट याचिका को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि सरकारी सेवा में पुनर्नियुक्ति पर मूल रिट याचिकाकर्ता सेवानिवृत्त सशस्त्र बल कार्मिक होने के नाते उसका वेतन उसके अंतिम आहरित मूल वेतन के बराबर तय किया जाएगा।

    भारत संघ द्वारा दायर अपील में उठाया गया मुद्दा यह था कि क्या सरकारी सेवा में पुनर्नियोजन पर, एक कर्मचारी जो भारतीय सेना में/सशस्त्र बलों में सेवारत था, अपने अंतिम आहरित वेतन के बराबर वेतनमान का हकदार होगा?

    इस मुद्दे का उत्तर देने के लिए, पीठ ने सीसीएस आदेश के पैरा 8 का उल्लेख किया और कहा कि यह प्रावधान नहीं करता है कि सरकारी सेवाओं में पुनर्नियुक्ति पर एक सेवानिवृत्त सशस्त्र बल कर्मी अपने अंतिम आहरित मूल वेतन के बराबर वेतन निर्धारित करने का हकदार होगा। यह निर्धारित करता है कि इस प्रकार का वेतन प्राप्त मूल वेतन ( स्थगित वेतन सहित लेकिन अन्य परिलब्धियों को छोड़कर) से अधिक नहीं होना चाहिए, जो प्रतिवादी द्वारा सशस्त्र बल में अंतिम रूप से लिया गया था।

    अदालत ने कहा :

    "सशस्त्र बलों में अंतिम आहरित वेतन का संदर्भ केवल यह सुनिश्चित करने के लिए है कि सीसीएस आदेश के पैरा 8 में परिकल्पित तरीके से सशस्त्र बलों में कर्मियों द्वारा अंतिम आहरित मूल वेतन (स्थगित वेतन सहित लेकिन अन्य परिलब्धियों को छोड़कर) सिविल पद पर वेतन की गणना से अधिक नहीं होगा।

    उदाहरण के लिए, यदि सिविल पद से जुड़ा न्यूनतम वेतन सशस्त्र बल में कर्मियों के अंतिम आहरित वेतन से अधिक है संभवतः सशस्त्र बलों में अंतिम आहरित वेतन का भुगतान किया जा सकता है। उक्त नियम मूल वेतन ( स्थगित वेतन सहित लेकिन अन्य परिलब्धियों को छोड़कर) से अधिक वेतन के निर्धारण को प्रतिबंधित करता है, जो सशस्त्र बलों में कर्मियों द्वारा सिविल पद के संबंध में अंतिम रूप से लिया जाता है, जिस पर एक पूर्व सैनिक नियुक्त किया गया है।

    इस प्रकार, ऐसे मामले में जहां वेतन की गणना सशस्त्र बलों में अंतिम आहरित वेतन से अधिक है, ऐसी स्थिति में संभवतः ऐसे कर्मियों का अंतिम आहरित वेतन तय किया जा सकता है।"

    इसलिए पीठ ने कहा कि सरकारी सेवा में प्रतिवादी का वेतन निर्धारण सीसीएस आदेश 1986 के पैरा 8 के बिल्कुल अनुरूप था।

    मामले का विवरण

    भारत संघ बनाम अनिल प्रसाद | 2022 लाइव लॉ (SC) 513 | सीए 4073/2022 | 20 मई 2022

    पीठ: जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना

    हेडनोट्सः केंद्रीय सिविल सेवा (पुनर्नियुक्त पेंशनभोगियों के वेतन का निर्धारण) आदेश, 1986; पैरा 8 - सरकारी सेवा में पुनर्नियुक्ति पर, एक कर्मचारी जो भारतीय सेना में/सशस्त्र बलों में सेवा कर रहा था, जो अपने अंतिम आहरित वेतन के बराबर वेतनमान का हकदार नहीं था - सशस्त्र बलों में अंतिम आहरित वेतन का संदर्भ केवल यह सुनिश्चित करने के लिए है कि सीसीएस आदेश के पैरा 8 में परिकल्पित तरीके से सिविल पद पर गणना किए गए वेतन मूल वेतन ( स्थगित वेतन सहित लेकिन अन्य परिलब्धियों को छोड़कर) से अधिक नहीं है, जो सशस्त्र बलों में कर्मियों द्वारा अंतिम रूप से लिया गया है। (पैरा 5-6)

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