सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

22 May 2022 6:30 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (16 मई, 2022 से 20 मई, 2022 तक ) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    धारा 106 साक्ष्य अधिनियम उन मामलों पर लागू होता है, जहां अभियोजन ने घटनाओं की श्रृंखला सफलतापूर्वक स्थापित की है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 उन मामलों पर लागू होती है, जहां अभियोजन ने घटनाओं की श्रृंखला को सफलतापूर्वक स्थापित किया हो, जिससे आरोपी के खिलाफ एक उचित निष्कर्ष निकाला जाए।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमाना, जस्टिस कृष्णा मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने कहा, परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित मामले में, जब भी अभियुक्त से कोई दोष ठहराने योग्य प्रश्न किया जाता है और वह या तो प्रतिक्रिया से बचता है या ऐसी प्रतिक्रिया देता है जो सत्य नहीं होती तो ऐसी प्रतिक्रिया अपने आप में घटनाओं की श्रृंखला में एक अतिरिक्त कड़ी बन जाती है।

    मामलाः साबित्री सामंतराय बनाम ओडिशा राज्य | 2022 LiveLaw (SC) 503 | CrA 988 OF 2017| 20 May 2022

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    सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद मुकदमा जिला अदालत में ट्रांसफर किया

    सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू भक्तों द्वारा दायर ज्ञानवापी मस्जिद मुकदमा सिविल कोर्ट में स्थानांतरित किया है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ,जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पी एस नरसिंह की पीठ ने यह भी आदेश दिया कि मस्जिद समिति द्वारा कानून में वर्जित होने के कारण मुकदमा खारिज करने के लिए आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के तहत निचली अदालत के समक्ष दायर आवेदन पर जिला जज द्वारा प्राथमिकता के आधार पर निर्णय लिया जाएगा।

    इस बीच, इसका 17 मई का अंतरिम आदेश आवेदन पर निर्णय होने तक और उसके बाद आठ सप्ताह की अवधि के लिए लागू रहेगा। साथ ही संबंधित जिलाधिकारी को वुजू के पालन की समुचित व्यवस्था करने का निर्देश दिया गया है।

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    हैदराबाद एनकाउंटर फर्जी, पुलिस का वर्ज़न मनगढ़ंत, न्यायिक जांच आयोग ने हत्या के लिए 10 पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की

    हैदराबाद मुठभेड़ मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त जांच आयोग ने हैदराबाद पुलिस के दावों का खंडन किया है और निष्कर्ष निकाला है कि चारों आरोपियों को जानबूझकर पुलिस ने गोली मारी और पुलिस को मालूम था कि फायरिंग से उनकी मौत हो जाएगी।

    दिसंबर 2019 की कथित हैदराबाद मुठभेड़ हत्याओं की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस वीएस सिरपुरकर की अध्यक्षता वाले आयोग ने पाया है कि संदिग्धों की मौत पुलिस पार्टी द्वारा चलाई गई गोलियों से हुई चोटों के कारण हुई और पुलिस पार्टी ने आत्मरक्षा या मृतक संदिग्धों को फिर से गिरफ्तार करने के प्रयास में गोली नहीं चलाई थी, बल्कि पुलिस को मालूम था कि गोली चलाने से आरोपियों की मौत हो जाएगी।

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    स्थायी लोक अदालत विवाद पर गुणों के आधार पर फैसला कर सकती हैं, लेकिन सुलह के लिए चरणबद्ध कार्यवाही अनिवार्य : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्थायी लोक अदालतों के पास कानूनी सेवा अधिनियम, 1987 के तहत न्यायिक कार्य हैं और इस प्रकार गुणों के आधार पर विवाद को तय करने का अधिकार है।

    जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि एलएसए अधिनियम की धारा 22-सी के तहत सुलह की कार्यवाही प्रकृति में अनिवार्य है। यदि विरोधी पक्ष उपस्थित नहीं होता है, तब भी स्थायी लोक अदालत चरण-दर-चरण प्रक्रिया का पालन करने के लिए बाध्य है।

    केनरा बैंक बनाम जीएस जयरामा | 2022 लाइव लॉ (SC) 499 | सीए 3872 | 19 मई 2022/ 2022 का

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    हेट स्पीच: सुप्रीम कोर्ट ने जून-जुलाई में प्रस्तावित धर्म संसद कार्यक्रमों के संबंध में याचिकाकर्ताओं को अवकाश पीठ के समक्ष जाने की स्वतंत्रता दी

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को याचिकाकर्ताओं को जून-जुलाई में आगामी धर्म संसद कार्यक्रमों में किसी भी अभद्र भाषा के संबंध में अवकाश पीठ के समक्ष जाने की (जब कोर्ट गर्मी की छुट्टियों के लिए बंद है) स्वतंत्रता प्रदान की, जिन्होंने धर्म संसद में कथित नफरत भरे भाषणों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।

    जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ पत्रकार कुर्बान अली और सीनियर एडवोकेट और पटना हाईकोर्ट की पूर्व न्यायाधीश अंजना प्रकाश द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    केस टाइटल: कुर्बान अली एंड अन्य बनाम भारत संघ एंड अन्य।

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    1988 रोड रेज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नवजोत सिंह सिद्धू की सजा को बढ़ाकर एक साल के कारावास में बदला

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कांग्रेस नेता और भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व सदस्य नवजोत सिंह सिद्धू की सजा को 1988 के रोड रेज हादसे में सजा को बढ़ाकर एक साल के कारावास में बदल दिया है। इस हादसे में गुरनाम सिंह नाम के व्यक्ति की मौत हो गई थी।

    कोर्ट ने 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पीड़ित गुरनाम सिंह के परिवार द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका को स्वीकार कर लिया। सुप्रीम कोर्ट ने उक्त फैसले ने मामले में नवजोत सिंह सिद्धू की सजा को 3 साल के कारावास से घटाकर 1000 रुपये कर दिया था।

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    सुप्रीम कोर्ट ने सपा नेता आजम खान को अंतरिम जमानत दी; उन्हें संबंधित अदालत में नियमित जमानत के लिए आवेदन दाखिल करने का निर्देश दिया

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान को जालसाजी मामले में अंतरिम जमानत दे दी और उन्हें दो सप्ताह के भीतर सक्षम अदालत के समक्ष नियमित जमानत के लिए आवेदन दाखिल करने का निर्देश दिया। अंतरिम जमानत तब तक चलेगी जब तक अदालत नियमित जमानत के लिए आवेदन पर फैसला नहीं ले लेती। अगर अदालत का फैसला नियमित जमानत देने के खिलाफ आता है, तो अंतरिम जमानत और दो सप्ताह के लिए जारी रहेगी।

    केस टाइटल: मोहम्मद आजम खान बनाम यू.पी. राज्य WP(Crl.) no. 39 of 2022

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    धारा 138 एनआई एक्ट- अधिकतम पेंडेंसी वाले 5 राज्यों में चेक बाउंस मामलों के लिए रिटायर्ड जजों की अध्यक्षता में पायलट कोर्ट स्थापित करें: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत चेक बाउंस मामलों की पेंडेंसी को कम करने की दृष्टि से गुरुवार को अधिकतम पेंडेंसी वाले 5 राज्यों (महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और उत्तर प्रदेश) के 5 जिलों में रिटायर्ड जजों की अध्यक्षता में पायलट अदालतों की स्थापना का निर्देश दिया।

    जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने चेक ‌डिसऑनर के लंबित मामलों (एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत मामलों के तेजी से ट्रायल के संदर्भ में) के निस्तारण के लिए पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने एक स्वत: संज्ञान मामले में कार्यवाही के लिए निर्देश पारित किया था।

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    धारा 302 को तहत सजा कम करने की शक्ति राज्य के पास है ना कि केंद्र के पास : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत राजीव गांधी की हत्या के दोषियों में से एक, ए जी पेरारिवलन को रिहा करते हुए कहा कि राज्यपाल के पास अनुच्छेद 161 के तहत भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 302 के तहत दी गई सजा को हटाने / कम करने / माफ करने की शक्ति है, क्योंकि राज्य की कार्यकारी शक्ति उक्त प्रावधान तक फैली हुई है।

    जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ए एस बोपन्ना अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज द्वारा किए गए निवेदन को स्वीकार करने में असमर्थ थे कि राष्ट्रपति के पास भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत दी गई सजा को माफ करने या छूट देने या कम करने के लिए अनुच्छेद 72 के तहत विशेष शक्ति है।

    [मामला : ए जी पेरारिवलन बनाम राज्य, पुलिस अधीक्षक सीबीआई / एसआईटी / एमएमडीए, चेन्नई, तमिलनाडु और अन्य के माध्यम से। सीआरएल ए. नंबर - 10039-10040/2016 ]

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    सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण लागू करने की अनुमति दी, आदेश में संशोधन किया

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मध्य प्रदेश में स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण लागू करने की अनुमति दे दी। कोर्ट ने 10 मई को पारित अपने पहले के आदेश को संशोधित किया जिसमें राज्य चुनाव आयोग को ओबीसी कोटे के बिना चुनावों को अधिसूचित करने का निर्देश दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि स्थानीय निकाय आरक्षण के लिए ट्रिपल टेस्ट की आवश्यकता पूरी नहीं हुई थी।

    बाद में यह कहते हुए आदेश को संशोधित करने की मांग करते हुए एक आवेदन दिया गया कि पिछड़ा वर्ग आयोग ने न्यायालय की टिप्पणियों के आधार पर अपनी पिछली रिपोर्ट को संशोधित करते हुए एक दूसरी रिपोर्ट तैयार की है। यह कहते हुए कि संशोधित रिपोर्ट ट्रिपल-टेस्ट की आवश्यकता को पूरा करती है, ओबीसी कोटा लागू करने की अनुमति मांगी गई थी।

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    धारा 482 सीआरपीसी - आपराधिक कार्यवाही को केवल इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है कि "कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा": सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब कथित अपराधों के लिए एक स्पष्ट मामला बनता है तो आपराधिक कार्यवाही को केवल इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है कि "मामले की कार्यवाही को लंबा करने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा"।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने दोहराया कि एक हाईकोर्ट को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत याचिकाओं का निपटारा करते हुए एक सकारण और तर्कपूर्ण आदेश पारित करना चाहिए।

    मामलाः सतीश कुमार जाटव बनाम यूपी राज्य | 2022 LiveLaw (SC) 488 | CrA 770 of 2022 | 17 May 2022

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    सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की स्थापना को बरकरार रखा कहा, एनजीटी से सीधे एससी में अपील हाईकोर्ट को कमजोर नही करती

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) एक्ट 2010 की धारा 3 की संवैधानिकता को बरकरार रखा, जो एनजीटी की स्थापना का प्रावधान करती है। जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने एनजीटी की धारा 3 के खिलाफ एमपी हाई कोर्ट एडवोकेट्स बार एसोसिएशन द्वारा दी गई चुनौती को खारिज कर दिया।

    नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एक्ट की धारा 3 इस प्रकार कहती है, "3 ट्रिब्यूनल की स्थापना। - केंद्र सरकार, अधिसूचना द्वारा, ऐसी तारीख से, जो उसमें निर्दिष्ट की जा सकती है, एक ट्रिब्यूनल को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल* के रूप में जाना जाएगा, जो ट्रिब्यूनल द्वारा या इस अधिनियम के तहत इस तरह के अधिकार क्षेत्र, शक्तियों और अधिकार का प्रयोग करेगा।"

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    आदेश IX नियम 13 सीपीसी - ये ट्रायल कोर्ट पर छोड़ देना चाहिए कि एकपक्षीय डिक्री को खारिज करने पर प्रतिवादियों को लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति दी जाए या नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब एक पक्षीय डिक्री को रद्द कर दिया जाता है और वाद दायर करने के लिए बहाल किया जाता है, तो प्रतिवादी को वाद की सुनवाई की तारीख से पहले की स्थिति में वापस नहीं लाया जा सकता है जब उसे एक पक्षीय रखा गया था।

    जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने इस मामले में कहा कि एक निचली अदालत इस बात पर विचार कर सकती है कि क्या एकपक्षीय डिक्री को खारिज करने पर प्रतिवादियों की लिखित बयान दाखिल करने की प्रार्थना को अनुमति दी जा सकती है?

    सुधीर रंजन पात्रा (डी) बनाम हिमांशु शेखर श्रीचंदन | 2022 लाइव लॉ (SC) 492 | 2022 की सीए 3641 | 17 मई 2022

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    आईपीसी की धारा 304ए – 'चीजें खुद बोलती हैं' का सिद्धांत अनिवार्यत: लागू नहीं होता, आरोपी की लापरवाही और पीड़ित की मौत को स्थापित करना होगा : सुप्रीम कोर्ट

    मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने लापरवाही से मौत मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 304ए के तहत दो आरोपियों को बरी करते हुए कहा, "आरोपियों के अपराध को साबित करने के लिए, अभियोजन पक्ष को पहले लापरवाही साबित करनी होगी और फिर आरोपी की लापरवाही और पीड़ित की मौत के बीच सीधा संबंध स्थापित करना होगा।"

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने धारा 304ए के साथ पठित धारा 34 के तहत अपीलकर्ताओं की दोषसिद्धि को बरकरार रखा। अभियोजन का मामला इस प्रकार था: 21.11.2003 को दोपहर लगभग 1.00 बजे मृतक अपने घर में टीवी देख रहा था। टीवी में अचानक आवाज आने पर मृतक डिश के तार, टीवी कनेक्शन के तार और टेलीफोन के तार को अलग करने के लिए उठा, जो आपस में जुड़े हुए थे। इस बिंदु पर, उन्हें बिजली का झटका लगा और उनका दाहिना हाथ जल गया और इस झटके के परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो गई। जांच करने पर, यह पाया गया कि उक्त घटना आरोपी, पर्यवेक्षक (टेलीफोन विभाग में एक कर्मचारी) और उसके द्वारा नियोजित दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी की लापरवाही के कारण हुई।

    नंजुंदप्पा बनाम कर्नाटक सरकार | 2022 लाइव लॉ (एससी) 489 | सीआरए 900/2017 | 17 मई 2022

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    राजीव गांधी हत्याकांड: सुप्रीम कोर्ट ने दोषी एजी पेरारिवलन की रिहाई के आदेश दिए

    सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी हत्याकांड के दोषी एजी पेरारिवलन को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए रिहा करने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट का विचार था कि अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल द्वारा पेरारिवलन की शीघ्र रिहाई की याचिका पर निर्णय लेने में अत्यधिक देरी के कारण उनकी रिहाई आवश्यक हो गई।

    पेरारिवलन, जिन्होंने 30 साल से अधिक जेल की सजा काट ली थी, ने अपनी सजा को माफ करने के लिए 2018 में तमिलनाडु सरकार द्वारा दी गई सिफारिश के बावजूद अपनी रिहाई में देरी से दुखी होकर अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

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    एओआर को ये पुष्टि करना चाहिए कि जो वकालतनामे पर उसकी उपस्थिति में हस्ताक्षर नहीं हुए, उसके निष्पादन पर वो संतुष्ट है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (एओआर) को वकालतनामे के निष्पादन को प्रमाणित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के नियम 2013 के तहत आवश्यकताओं का पालन करना होगा।

    जस्टिस अभय एस ओक ने पिछले सप्ताह पारित एक आदेश में कहा: -यदि वकालतनामा स्वयं एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड की उपस्थिति में निष्पादित किया गया है, तो यह प्रमाणित करना उसका कर्तव्य है कि निष्पादन उसकी उपस्थिति में किया गया था। यदि वह वादी को व्यक्तिगत रूप से जानता है, तो वह निष्पादन को प्रमाणित कर सकता है। यदि वह वादी को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता है, तो उसे आधार या पैन कार्ड जैसे दस्तावेजों से वकालतनामे पर हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति की पहचान सत्यापित करनी होगी।

    सुरेश चंद्र बनाम उत्तर प्रदेश राज्य | 2022 लाइव लॉ (SC) 490 | 2021 की एमए 1242 | 13 मई 2022

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    ज्ञानवापी मस्जिद मामला - शिवलिंग स्पॉट की रक्षा के निर्देश मुसलमानों के नमाज़ पढ़ने और धार्मिक अनुष्ठान करने के अधिकारों को प्रतिबंधित नहीं करेंगे: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को स्पष्ट किया कि वाराणसी में सिविल जज सीनियर डिवीजन द्वारा उस स्थान की रक्षा के लिए पारित आदेश, जहां ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान कथित तौर पर "शिवलिंग" पाया गया, मुसलमानों के मस्जिद तक पहुंचने, नमाज अदा करने और धार्मिक अनुष्ठान करने के अधिकार को प्रतिबंधित नहीं करेगा।

    कोर्ट ने मस्जिद कमेटी की ओर से वाराणसी कोर्ट के आदेश से हो रहे सर्वे को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी कर मामले की सुनवाई गुरुवार (19 मई) के लिए पोस्ट कर दी।

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    दोहरा बीमा: जब एक बीमाकर्ता ने नुकसान की पूरी क्षतिपूर्ति की हो तो दूसरा बीमाकर्ता दावा अस्वीकार कर सकता है- सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि ओवरलैपिंग इन्‍श्योरेंस पॉलिसी के मामलों में, जब बीमाधारक को हुई हानि (defined loss) की पूरी क्षतिपूर्ति एक बीमाकर्ता ने की हो तो दूसरा बीमाकर्ता उसी घटना के लिए किए गए क्लेम के लिए उत्तरदायी नहीं होगा। "परिभाषित नुकसान (defined loss)की क्षतिपूर्ति के लिए बीमा का अनुबंध हमेशा एक और एक ही होता है, न ज्यादा और न कम। विशिष्ट जोखिमों, जैसे कि आग के कारण हुए नुकसान आदि के लिए बीमित व्यक्ति दोहरे बीमा से लाभ नहीं उठा सकता है।"

    केस टाइटल: यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम लेविस स्ट्रॉस (इंडिया) प्रा लिमिटेड

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