दोहरा बीमा: जब एक बीमाकर्ता ने नुकसान की पूरी क्षतिपूर्ति की हो तो दूसरा बीमाकर्ता दावा अस्वीकार कर सकता है- सुप्रीम कोर्ट

Avanish Pathak

16 May 2022 8:03 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि ओवरलैपिंग इन्‍श्योरेंस पॉलिसी के मामलों में, जब बीमाधारक को हुई हानि (defined loss) की पूरी क्षतिपूर्ति एक बीमाकर्ता ने की हो तो दूसरा बीमाकर्ता उसी घटना के लिए किए गए क्लेम के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।

    "परिभाषित नुकसान (defined loss)की क्षतिपूर्ति के लिए बीमा का अनुबंध हमेशा एक और एक ही होता है, न ज्यादा और न कम। विशिष्ट जोखिमों, जैसे कि आग के कारण हुए नुकसान आदि के लिए बीमित व्यक्ति दोहरे बीमा से लाभ नहीं उठा सकता है।"

    ज‌स्टिस यूयू ललित, ज‌स्टिस एस रवींद्र भट और ज‌स्टिस पीएस नरसिम्हा ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के आदेश के खिलाफ दायर एक अपील की अनुमति दी। एनसीडीआरसी ने अपने आदेश में बीमा कंपनी को बीमाधारक की ओर से पेश दावे के खिलाफ 1.78 करोड़ रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था।

    यह कहते हुए कि बीमा कंपनी भुगतान के लिए उत्तरदायी नहीं है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में मुद्दा 'दोहरे बीमा'/'ओवरलैपिंग पॉलिसी' का है, जिसमें धारक ने एक और एक जैसी घटनाओं के जोखिमों के कवरेज की मांग दो बीमा पॉलिसियों से की है।

    पृष्ठभूमि

    यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ने लेविस स्ट्रॉस (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड को एक स्टैंडर्ड फायर एंड स्पेशल पेरिल्स पॉलिसी (एसएफएसपी पॉलिसी) जारी की थी, जिसके तहत पहले 01.01.2007 से 31.12.2007 की अवधि के लिए और फिर 01.01.2008 से 31.12.2008 की अवधि के लिए कपंनी के स्टोरेज में मौजूद स्टॉक को कवर किया गया था।

    बीमाकृत की पैरेंट कंपनी लेविस स्ट्रॉस एंड कंपनी ने 01.05.2008 से 30.04.2009 की अवधि के लिए एलियांज ग्लोबल कॉरपोरेट एंड स्पेशियलिटी से एक ग्‍लोबल पॉलिसी (एसटीपी पॉलिसी) प्राप्त की।

    इसने बीमाकृत सहित उसकी सभी सहायक कंपनियों के स्टॉक को कवर किया। एलियांज ने 01.05.2008 से 01.05.2009 की अवधि के लिए एक और 'ऑल रिस्‍क्‍स' पॉलिसी (एआर पॉलिसी) जारी की, जिसमें दुनिया भर में बीमाकृत की सहायक कंपनियों के स्टॉक को शामिल किया गया था।

    13.07.2008 को बीमाधारक के एक गोदाम में से आग लग गई, जिसमें उसके स्टॉक मौजूद थे। 18.07.2008 को बीमाधारक ने बीमाकर्ता से 12.20 करोड़ रुपये का दावा किया।

    बीमाकर्ता ने 11.09.2009 को यह कहते हुए दावे को अस्वीकार कर दिया कि एसएफएसपी पॉलिसी की शर्त 4, मरीन पॉलिसी यानी एसटीपी पॉलिसी के तहत देय नुकसान के लिए देयता को शामिल नहीं करती है। बीमाधारक ने एनसीडीआरसी से संपर्क किया, जिसने यह तय किए बिना की एसटीपी पॉलिसी एक मरीन पॉलिसी थी या नहीं, शिकायत को अनुमति दे दी।

    एसटीपी पॉलिसी के क्लॉज 47 के अवलोकन पर, यह नोट किया गया कि उक्त पॉलिसी में घरेलू पॉलिसी द्वारा कवर की गई सीमा को शामिल नहीं किया गया है। यह माना गया कि हालांकि क्षतिग्रस्त स्टॉक की बिक्री पर बीमित व्यक्ति द्वारा अर्जित लाभ की हानि एलियांज द्वारा देय है, माल की लागत की सीमा तक होने वाली हानि बीमाकर्ता द्वारा देय होगी। इसने 1.78 करोड़ रुपये की सीमा तक दावे की अनुमति दी, जबकि बीमित को आलियांज से 19.52 करोड़ मिले थे।

    विश्लेषण

    एसटीपी पॉलिसी एक मरीन पॉलिसी है

    मरीन इश्योरेंस एक्ट, 1963 की धारा 4 में कहा गया है कि मरीन इंश्योरेंस का एक अनुबंध, अपनी स्पष्ट शर्तों द्वारा, या व्यापार के उपयोग द्वारा, बढ़ाया जा सकता है, ताकि बीमित व्यक्ति को अंतर्देशीय जल या किसी भी भूमि जोखिम पर होने वाले नुकसान से, जो किसी भी समुद्री यात्रा के लिए आकस्मिक हो सकते हैं, बचाया जा सके।

    कई निर्णयों का उल्लेख करते हुए, कोर्ट ने कहा कि भारत में मरीन इंश्योरेंस पॉलिसियों में वेयरहाउस जोखिम, यात्रा और अन्य समुद्री जोखिम शामिल हैं। एसटीपी पॉलिसी यह भी निर्धारित करती है कि यह समुद्री और अन्य जोखिमों को कवर करती है। इसके अलावा, पॉलिसी खुद को 'ओपन मरीन इंश्योरेंस कॉन्ट्रैक्ट' के रूप में वर्णित करती है। यह देखा गया कि पॉलिसी में समुद्री खतरे शामिल हैं और इसलिए यह एक समुद्री आवरण है।

    एसएफएसपी पॉलिसी की शर्त 4 के अनुसार, बीमाकर्ता भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं था

    कोर्ट ने कहा कि एसएफएसपी पॉलिसी की शर्त 4 में कहा गया है कि बीमा जोखिम होने की स्थिति में, अगर बीमाधारक मरीन पॉलिसी के तहत दावा करने का हकदार था, तो बीमाकर्ता को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड बनाम गर्ग संस इंटरनेशनल (2014) 1 SCC 686, विक्रम ग्रीनटेक इंडिया लिमिटेड बनाम न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी (2009) 5 SCC 599; सिक्का पेपर्स लिमिटेड बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी (2009) 7 SCC 777; इम्पैक्ट फंडिंग सॉल्यूशंस लिमिटेड बनाम बैरिंगटन सपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड (2016) यूकेकेएससी 57 पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने कहा कि जो पार्टी अपनी देयता को सीमित करना चाहती है, उसे स्पष्ट शब्दों में ऐसा करना चाहिए और बीमित व्यक्ति बीमा पॉलिसी द्वारा कवर की गई राशि से अधिक का दावा नहीं कर सकता है।

    शर्त 4 की सख्त व्याख्या पर, कोर्ट ने माना कि बीमाकर्ता ने अपनी देयता को एक मरीन पॉलिसी के तहत कवर किए गए जोखिम से बाहर रखा था, जो इस मामले में एसटीपी पॉलिसी थी। न्यायालय ने यह भी नोट किया कि बीमाकर्ता पर अपने व्यवसाय के संचालन में घरेलू पॉलिसी प्राप्त करने के लिए कोई वैधानिक या संविदात्मक दायित्व नहीं था और इसलिए, एनसीडीआरसी ने गलती से क्लॉज 47 लागू कर दिया था।

    दोहरा बीमा

    बीमाधारक ने 12.2 करोड़ रुपये का दावा पेश किया था, उसे पहले ही आलियांज से 19 करोड़ रुपये ‌मिल चुके थे। इस पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहा कि बीमा का एक अनुबंध परिभाषित नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए एक है। विशिष्ट जोखिमों के मामले में बीमित व्यक्ति दोहरे बीमा से लाभ नहीं उठा सकता है। इस संबंध में Castettion v. Preston (1833) 11 QBD 380 का संदर्भ दिया गया, जिसमें कहा गया था कि नुकसान के मामले में, बीमित व्यक्ति को पूरी क्षतिपूर्ति की जाएगी, लेकिन कभी भी पूरी क्षतिपूर्ति से अधिक नहीं दिया जाएगा।

    केस टाइटल: यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम लेविस स्ट्रॉस (इंडिया) प्रा लिमिटेड

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एससी) 487

    केस नबंर और तारीख: Civil Appeal No. 2955 of 2022 | 2 May 2022

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