सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

LiveLaw News Network

19 Dec 2021 10:00 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (13 दिसंबर, 2021 से 17 दिसंबर, 2021) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं, सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    उम्मीदवार को कट-ऑफ डेट से पहले विज्ञापन के अनुसार पात्रता मानदंड का पालन करना होगा: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बिहार पुलिस फोर्स में कांस्टेबल पद पर एक उम्मीदवार की नियुक्ति संबंधी एक मामले में कहा कि अगर भर्ती प्राधिकरण कट ऑफ डेट आगे नहीं बढ़ाता है तो एक उम्मीदवार या आवेदक को कट ऑफ डेट से पहले विज्ञापन के अनुसार सभी शर्तों और पात्रता मानदंडों का पालन करना होगा।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की खंडपीठ ने पटना हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर बिहार राज्य की एक दीवानी अपील पर यह टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में डीआईजी मुंगेर को प्रतिवादी को कांस्टेबल के रूप में नियुक्त करने का निर्देश दिया था।

    केस शीर्षक: बिहार राज्य और अन्य बनाम मधु कांत रंजन

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    मंदिर में दुकानों की लीज़ की नीलामी की प्रक्रिया में गैर- हिंदुओं को बाहर न करें: सुप्रीम कोर्ट ने एपी सरकार को निर्देश दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आंध्र प्रदेश के कुरनूल में श्री ब्रमरमम्बा मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में दुकानों की लीज़ की नीलामी की प्रक्रिया में सभी धर्मों के लोगों को भाग लेने की अनुमति दी। कोर्ट ने आदेश दिया, "...हम निर्देश देते हैं कि केवल धर्म के आधार पर किसी भी किराएदार/दुकानदार को नीलामी में भाग लेने या लीज़ के अनुदान से बाहर नहीं किया जाएगा।"

    जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ एसएलपी में दायर एक अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जहां शीर्ष अदालत ने जनवरी, 2020 में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के सितंबर, 2019 के फैसले पर रोक लगा दी थी। इसमें 2015 के आंध्र प्रदेश राज्य के जीओएम, जिसमें गैर-हिंदुओं को दुकानों की निविदा-सह-नीलामी प्रक्रिया में भाग लेने या अन्यथा मंदिर से संबंधित अचल संपत्ति में व्यापार करने के लिए लीज़ या लाइसेंस प्राप्त करने पर प्रतिबंध को अनुच्छेद 14 और 15 के उल्लंघन घोषित करने की रिट याचिका खारिज कर दी गई थी।

    केस: सैयद जानी बाशा बनाम डॉ जी वाणी मोहन और अन्य; टीएम रब्बानी बनाम जी वाणी मोहन, अवमानना याचिका (सिविल) संख्या 955/2021

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    सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी सीटों पर चुनाव प्रक्रिया पर रोक लगाई

    सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में स्थानीय निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षित सीटों पर चुनाव प्रक्रिया पर शुक्रवार को रोक लगा दी. न्यायालय ने स्थानीय निकायों में ओबीसी सीटों के संबंध में मध्य प्रदेश राज्य चुनाव आयोग द्वारा जारी 4 दिसंबर, 2021 की चुनाव अधिसूचना पर रोक लगाने की मांग करने वाले एक विविध आवेदन पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया।

    जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने चुनाव आयोग को सामान्य वर्ग के लिए सीटों को फिर से अधिसूचित करने का भी निर्देश दिया।

    केस शीर्षक: मनमोहन नगर बनाम मध्य प्रदेश राज्य चुनाव आयोग

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    वादी "डोमिनिस लिटिस" है; हाईकोर्ट उसे अतिरिक्त प्रतिवादी के रूप में हस्तेक्षप करने का निर्देश नहीं दे सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने एक वाद में डिक्री को रद्द करने और वादी को एक अतिरिक्त प्रतिवादी के रूप में हस्तक्षेप कर अपना पक्ष रखने का निर्देश देने के बाद इसे नए सिरे से ट्रायल के लिए भेजने के हाईकोर्ट द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण को अस्वीकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने याद दिलाया कि वादी "डोमिनिस लिटिस" ( वाद का मास्टर) है, जो यह तय करने का हकदार है कि मामले में सभी को पक्ष के रूप में जोड़ा जाना चाहिए।

    यह मुद्दा आईएल एंड एफएस इंजीनियरिंग एंड कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा मेसर्स भार्गवर्मा कंस्ट्रक्शन और अन्य के खिलाफ दायर मनी सूट से उत्पन्न हुआ था। ट्रायल कोर्ट ने वाद ती डिक्री दी थी। प्रतिवादियों ने डिक्री को हाईकोर्ट के समक्ष अपील में चुनौती दी। प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि अन्य पक्षकार ए पी ट्रांसको और मैटास इंफ्रा प्रा लिमिटेड ने विषय अनुबंध कार्य निष्पादित किया था और इसलिए यह रकम का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है। इस तर्क के साथ, प्रतिवादी ने एपी ट्रांसको को अपील में पक्षकार के रूप में जोड़ने के लिए एक आवेदन दायर किया।

    केस : आईएल एंड एफएस इंजीनियरिंग एंड कंस्ट्रक्शन कंपनी बनाम मेसर्स भार्गवर्मा कंस्ट्रक्शन और अन्य

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    अनुकंपा नियुक्ति अधिकार का मामला नहीं है, यह परिवार को वित्तीय संकट से तुरंत निपटने के लिए प्रदान की जाती है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, "निस्संदेह, पेंशन उपहार देने का कार्य नहीं है, बल्कि उस सेवा के लिए है जो एक कर्मचारी द्वारा प्रदान की गई है। हालांकि, सेवा में रहते हुए मृत्यु पर अनुकंपा नियुक्ति के लिए एक दावे का मूल्यांकन करने में, यह अधिकारियों के लिए खुला है कि वो परिवार की वित्तीय स्थिति का मूल्यांकन करे।"

    अदालत ने कहा है, "अनुकंपा नियुक्ति एक निहित अधिकार नहीं है। यह सेवा के दौरान वेतन-अर्जक की मृत्यु के कारण एक परिवार को वित्तीय संकट से निपटने में सक्षम बनाने के लिए प्रदान किया जाती है। यदि योजना की आवश्यकता है कि परिवार पेंशन को ध्यान में रखा जाना चाहिए किसी आवेदन के गुण-दोष का मूल्यांकन करते समय उसका पालन किया जाना चाहिए... अनुकंपा नियुक्ति अधिकार का मामला नहीं है, बल्कि परिवार को तत्काल संकट से निपटने में सक्षम बनाने के लिए है जो कर्मचारी की मृत्यु के परिणामस्वरूप हो सकता है। यदि सरकार की नीति की परिकल्पना है कि परिवार पेंशन का भुगतान दस साल के लिए किया जाएगा जिसके बाद इसे संशोधित करना होगा, यह नहीं कहा जा सकता है कि वर्तमान पेंशन भुगतान को ध्यान में रखते हुए, अधिकारियों ने एक बाहरी परिस्थिति पर विचार किया है। वही मानदंड अनुकंपा नियुक्ति की मांग करने वाले सभी आवेदकों के लिए भी है।"

    केस : भारत संघ बनाम अमृता सिन्हा

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    सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस मामले में पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा गठित जस्टिस लोकुर आयोग की जांच पर रोक लगाई

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर के नेतृत्व में न्यायिक जांच आयोग की जांच कार्यवाही पर रोक लगाई, जिसका गठन पश्चिम बंगाल राज्य द्वारा पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल करके जासूसी के आरोपों की जांच के लिए किया गया था।

    भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमाना की अगुवाई वाली पीठ ने आयोग द्वारा कार्यवाही करने पर नाखुशी व्यक्त की क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के लिए एक स्वतंत्र समिति का गठन किया है।

    केस का शीर्षक: ग्लोबल विलेज फाउंडेशन चैरिटेबल ट्रस्ट बनाम भारत संघ एंड अन्य

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    उधार दिए गए रुपए का पूरा भुगतान साबित करने का बोझ दावा करने वाली पार्टी पर: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि जब किसी पार्टी ने रुपए के भुगतान और उसके एक हिस्से का पुनर्भुगतान स्वीकार किया है तो यह साबित/स्थापित करने का दायित्व उस पार्टी पर ही है कि बकाया राशि की पूर्ण और अंतिम आदयगी हो चुकी है। कोर्ट ने कहा, "एक पार्टी जो किसी विशेष तारीख को निश्चित राशि की प्राप्ति स्वीकार करती है और बाद की तारीख में पूर्ण और अंतिम अदयागी की मांग करती है, उसी पर जिम्मेदारी होती है।"

    जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की खंडपीठ ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ एक अपील की अनुमति दी, जिसने दो मनी सूट्स में पहली अपीलीय अदालत के आदेश और डिक्री को रद्द कर दिया था, जिसे आरंभ में निचली अदालत ने खारिज कर दिया था। पीठ ने उत्तरदाताओं पर 50,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया।

    शीर्षक: अनीता रानी बनाम अशोक कुमार और अन्य, Civil Appeal Nos. 7750-7751 of 2021

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    पीएमएलए की धारा 45 के तहत जमानत की दो शर्तें रद्द की गई हैं : सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देने के दिशा- निर्देशों को स्पष्ट किया

    चार्जशीट दायर करने पर जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किए गए अभियुक्तों को जमानत देने के पहलू पर दिशानिर्देश जारी करने के आदेश दिनांक 07.10.2021 के स्पष्टीकरण की मांग करने वाले आवेदन पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि दोनों शर्तों के लिए धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 45 में निर्दिष्ट जमानत के अनुदान को रद्द कर दिया गया है।

    कोर्ट ने आदेश में कहा, "हम सावधानी बरत रहे हैं चूंकि केवल कुछ अपराधों को आर्थिक अपराधों के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो असंज्ञेय हो सकते हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि हमारे आदेश को एक अलग अर्थ दिया जाना चाहिए। हमारा इरादा जमानत की प्रक्रिया को आसान बनाना था ..."

    [मामला: सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम सीबीआई एसएलपी (सीआरएल) 5191/2021]

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    अवमानना क्षेत्राधिकार हमेशा विवेकाधीन होता है जिसे संयम से प्रयोग किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    यह कहते हुए कि अवमानना क्षेत्राधिकार हमेशा विवेकाधीन होता है जिसे संयम से और सावधानी के साथ प्रयोग किया जाना चाहिए,सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि कामाख्या डेबटर बोर्ड के सदस्यों को दंडित करके या बोर्ड द्वारा कथित रूप से दुरूपयोग किए गए मंदिर के धन की वापसी का निर्देश देने के लिए उक्त अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने के लिए श्री श्री मां कामाख्या मंदिर प्रबंधन मामला उपयुक्त मामला नहीं है।

    सुप्रीम कोर्ट ने 7 जुलाई, 2015 को मंदिर के प्रशासन को बोर्डेउरी समाज में बहाल करने के 2011 के गुवाहाटी उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें पुजारी के पांच मुख्य परिवार शामिल थे, जिन्होंने 1998 तक मंदिर का संचालन किया था- जब कामाख्या डेबटर बोर्ड का गठन किया गया और मंदिर पर नियंत्रण कर लिया गया। बोर्डेउरी समाज की याचिका पर अदालत के 7 जुलाई 2015 के फैसले का पालन न करने के कारण अवमानना का मामला उत्पन्न हुआ।

    केस: द बोर्डेउरी समाज ऑफ श्री मां कामाख्या बनाम रिजू प्रसाद शर्मा और अन्य

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    सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में बैलगाड़ी दौड़ की इजाजत दी, कहा संविधान पीठ में मामले के लंबित रहते समय राज्य के संशोधित नियम संचालित होंगे

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को महाराष्ट्र राज्य को पशु क्रूरता निवारण अधिनियम और उसके तहत बनाए गए नियमों के आधार पर राज्य में बैलगाड़ी दौड़ आयोजित करने की अनुमति दे दी।

    जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ महाराष्ट्र की विशेष अनुमति याचिका में अंतरिम आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसे 2018 में राज्य में बैलगाड़ी दौड़ के आयोजन के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा पारित रोक आदेश को चुनौती देते हुए दायर किया गया था।

    केस : महाराष्ट्र राज्य बनाम अजय मराठे और अन्य | एसएलपी (सी) संख्या 3526-3527/2018

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    बैंक को 'एकमुश्त निपटान योजना' का लाभ देने के लिए रिट पर परमादेश जारी नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (15 दिसंबर 2021) को दिए गए एक फैसले में कहा है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए हाईकोर्ट द्वारा एक वित्तीय संस्थान / बैंक को किसी उधारकर्ता को एकमुश्त निपटान योजना का लाभ सकारात्मक रूप से देने का निर्देश देते हुए, परमादेश की कोई रिट जारी नहीं की जा सकती है।

    न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि कोई भी कर्जदार, अधिकार के मामले में, एकमुश्त निपटान योजना के लाभ के लिए प्रार्थना नहीं कर सकता है।

    केस : बिजनौर अर्बन कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, बिजनौर बनाम मीनल अग्रवाल

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    सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को 10 दिन के भीतर सभी आवेदकों को COVID-19 से हुई मौत के लिए मुआवजे का भुगतान करने के निर्देश दिए

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र राज्य द्वारा किए गए मुआवजे के भुगतान की कम संख्या पर निराशा व्यक्त करते हुए राज्य को सभी आवेदकों को 10 दिनों के भीतर अनुग्रह राशि का भुगतान करने के निर्देश दिए।

    न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि प्राप्त कुल 85000 आवेदनों में से केवल 1658 दावों की अनुमति दी गई है और 9 दिसंबर तक भुगतान किया गया है। बेंच ने कहा, "हम महाराष्ट्र राज्य को उन सभी आवेदकों को 10 दिनों के भीतर 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि का भुगतान करने का निर्देश देते हैं, जिन्होंने आज तक आवेदन जमा किया है, जिसमें अनुमोदन और वास्तविक भुगतान शामिल है।"

    केस का शीर्षक: गौरव कुमार बंसल बनाम भारत संघ

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    सुप्रीम कोर्ट ने तीन साल की बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या के दोषी व्यक्ति की मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील किया

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तीन साल की बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या के दोषी व्यक्ति की मौत की सजा को उसकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि और सुधार और पुनर्वास की संभावना को देखते हुए कम कर दिया। "इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि अपीलकर्ता के सुधार और पुनर्वास की कोई संभावना नहीं है, कम सजा के विकल्प को बंद किया जाता है और मौत की सजा को अनिवार्य बनाया जाता है।"

    न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने अपीलकर्ता (लोचन श्रीवास) की दोषसिद्धि को बरकरार रखा, लेकिन ' अपराधी परीक्षण' के विचार पर मृत्युदंड को कम कर दिया, जिस पर अदालत ने कहा कि न तो ट्रायल कोर्ट और न ही हाईकोर्ट द्वारा इसे आयोजित किया गया था।

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    ट्रायल कोर्ट से किसी मामले की 'संवेदनशीलता' के आधार पर विशेष तरीके से कार्य करने की उम्मीद नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक ट्रायल कोर्ट से मामले की संवेदनशीलता के आधार पर किसी विशेष तरीके से कार्य करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है।

    जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच ने एक पुलिस अधिकारी की हत्या के आरोपी दो युवकों को बरी करने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि बल्कि इसकी सराहना की जानी चाहिए यदि कोई ट्रायल कोर्ट संवेदनशीलता के बावजूद योग्यता के आधार पर किसी मामले का फैसला करता है।

    केस शीर्षक: मोहन@ श्रीनिवास@ सीना@ टेलर सीना बनाम कर्नाटक राज्य

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    किसी 'कर्ता के' हिंदू परिवार की संपत्ति को कानूनी आवश्यकता या फिर संपदा के लाभ के लिए अलग- थलग करना परिवार के सभी सदस्यों के लिए बाध्यकारी : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि जहां एक कर्ता ने एक संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति को मूल्य के लिए, या तो कानूनी आवश्यकता या फिर संपदा के लाभ के लिए अलग- थलग कर दिया है, यह परिवार के सभी अविभाजित सदस्यों के हितों को बाध्य करेगा, भले ही वे नाबालिग या विधवा हों।

    इस मामले में, के वेलुस्वामी ने संयुक्त हिंदू परिवार के कर्ता के रूप में 29 लाख रुपये में वाद संपत्ति को बेचने के समझौते को अंजाम दिया और बीरेड्डी दशरथरामी रेड्डी से अग्रिम रूप से 4 लाख रुपये प्राप्त किए। बीरेड्डी दशरथर्मी रेड्डी ने के वेलुस्वामी और वी मंजूनाथ (वेलुस्वामी के पुत्र) दोनों को बेचने के लिए समझौते के विशिष्ट प्रदर्शन के लिए वाद दाखिल किया। इस वाद पर निचली अदालत द्वारा डिक्री सुनाई गई थी।

    केस : बीरेड्डी दशरथर्मी रेड्डी बनाम वी मंजूनाथ

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    सह-आरोपी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल न होना, आरोपी के खिलाफ कार्यवाही रद्द करने का आधार नहीं हो सकता, जिसके खिलाफ जांच के बाद चार्जशीट दाखिल की गई: सुप्रीम कोर्ट

    न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने हाल ही में बैंक को धोखा देने और संपत्ति का बेईमान से वितरण को प्रेरित करने के आपराधिक साजिश से संबंधित एक मामले में कहा है कि केवल इसलिए कि कुछ अन्य व्यक्ति जिन्होंने अपराध किया हो, लेकिन उन्हें आरोपी के रूप में नहीं रखा गया है और उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल नहीं किया गया है, यह उन आरोपियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने का आधार नहीं हो सकता, जिन पर गहन जांच के बाद चार्जशीट किया गया है।"

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    सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते समय एफआईआर/शिकायत में लगाए गए आरोपों की विश्वसनीयता या सच्चाई की जांच नहीं की जा सकती: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए एक हाईकोर्ट एफआईआर/ शिकायत में लगाए गए आरोपों की विश्वसनीयता या वास्तविकता के बारे में कोई जांच शुरू नहीं कर सकता है।

    जस्टिस एमआर शाह और बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा, धारा 482 सीआरपीसी के तहत शक्तियां बहुत व्यापक हैं, लेकिन व्यापक शक्तियों के कारण अदालत को अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है।

    केस शीर्षक: ओडिशा राज्य बनाम प्रतिमा मोहंती

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    विवेकाधीन कोटे के आधार पर सार्वजनिक संपत्तियों का आवंटन खत्म करना होगा: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विवेकाधीन कोटे के आधार पर सार्वजनिक संपत्तियों के आवंटन को समाप्त किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्न की पीठ ने कहा कि इस तरह का आवंटन पारदर्शी होना चाहिए और निष्पक्ष और गैर-मनमाना होना चाहिए ।

    कोर्ट ने कहा कि जिस मामले में भी एक विशेष वर्ग-दलित वर्ग आदि को भूखंड आवंटित करने के लिए नीतिगत निर्णय लिया जाता है, उस मामले में भी दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए।

    केस का नाम: ओडिशा सरकार बनाम प्रतिमा मोहंती

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    एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 के प्रावधानों का पालन वाहन की तलाशी के मामले में करना आवश्यक नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) एक्ट की धारा 50 के प्रावधानों का पालन केवल व्यक्तिगत तलाशी (संदिग्ध लोगों की तलाशी) के मामले में किया जाना आवश्यक है, लेकिन वाहन की तलाशी के मामले में धारा 50 के प्रावधानों का पालन करना आवश्यक नहीं है।

    अदालत ने यह भी कहा कि केवल इसलिए कि स्वतंत्र गवाहों से पूछताछ नहीं की गई, यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि आरोपी को झूठा फंसाया गया।

    केस का नाम: कल्लू खान बनाम राजस्थान राज्य

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