सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस मामले में पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा गठित जस्टिस लोकुर आयोग की जांच पर रोक लगाई

LiveLaw News Network

17 Dec 2021 8:04 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस मामले में पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा गठित जस्टिस लोकुर आयोग की जांच पर रोक लगाई

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर के नेतृत्व में न्यायिक जांच आयोग की जांच कार्यवाही पर रोक लगाई, जिसका गठन पश्चिम बंगाल राज्य द्वारा पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल करके जासूसी के आरोपों की जांच के लिए किया गया था।

    भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमाना की अगुवाई वाली पीठ ने आयोग द्वारा कार्यवाही करने पर नाखुशी व्यक्त की क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के लिए एक स्वतंत्र समिति का गठन किया है।

    जब मामला लिया गया, तो याचिकाकर्ता एनजीओ "ग्लोबल विलेज फाउंडेशन चैरिटेबल ट्रस्ट" की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने प्रस्तुत किया कि वे पश्चिम बंगाल आयोग की कार्यवाही को चुनौती दे रहे हैं।

    सीजेआई रमाना ने तब पश्चिम बंगाल राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा कि उनके द्वारा दिए गए मौखिक वचन का क्या हुआ कि राज्य सरकार मामले को आगे नहीं बढ़ाएगी।

    सीजेआई ने सिंघवी से पूछा,

    "सिंघवी, यह क्या है? पिछली बार आपने अंडरटेकिंग दी थी। हम रिकॉर्ड करना चाहते थे आपने कहा कि रिकॉर्ड मत करो। फिर से आपने जांच शुरू की?"

    सिंघवी ने जवाब दिया कि राज्य सरकार आयोग को नियंत्रित नहीं कर सकती।

    सिंघवी ने कहा,

    "मैं आयोग को नियंत्रित नहीं करता हूं। आयोग शुरू हो चुका है। कृपया उनके वकील को बुलाएं और आदेश पारित करें। एक राज्य के रूप में मैं आयोग को रोक नहीं सकता।"

    सीजेआई ने कहा,

    "हम राज्य की स्थिति को समझते हैं। सभी पक्षों को नोटिस जारी करें। हम कार्यवाही पर रोक लगाते हैं।"

    न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने आयोग को नोटिस जारी किया और उसकी कार्यवाही पर रोक लगा दी।

    पीठ ने याचिकाकर्ता को मामले में आयोग के सचिव को पक्षकार बनाने की अनुमति दी।

    गुरुवार को याचिकाकर्ता एनजीओ "ग्लोबल विलेज फाउंडेशन चैरिटेबल ट्रस्ट" द्वारा मामले की तत्काल सूची मांगी गई थी, जिसमें कहा गया था कि पश्चिम बंगाल आयोग जांच के साथ आगे बढ़ रहा है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस के आरोपों की जांच के लिए एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति का गठन किया है।

    मामले का जिक्र करते हुए वकील ने कहा था कि पश्चिम बंगाल ने अंडरटेंकिग दिया था कि समिति सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित आयोग के समानांतर काम नहीं करेगी।

    वकील ने अदालत से शुक्रवार को या शीतकालीन अवकाश के तुरंत बाद मामले को उठाने का आग्रह किया था।

    सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त में पेगासस स्पाइवेयर स्कैंडल से संबंधित आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन बी लोकुर की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन करने वाली पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा जारी अधिसूचना पर रोक लगाने की ट्रस्ट की याचिका को खारिज कर दिया था।

    पीठ ने पश्चिम बंगाल राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अभिषेक मनु सिंघवी से एक मौखिक वचन लिया कि आयोग कार्य नहीं करेगा, जबकि मामला न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है।

    27 अक्टूबर को कोर्ट ने पेगासस के आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र समिति का गठन किया।

    पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा उठाई गई राष्ट्रीय सुरक्षा की याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि याचिकाकर्ताओं ने प्रथम दृष्टया मामला बना दिया है।

    पेगासस विवाद 18 जुलाई को द वायर और कई अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों द्वारा मोबाइल नंबरों के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित करने के बाद शुरू हुआ, जो भारत सहित विभिन्न सरकारों को एनएसओ कंपनी द्वारा दी गई स्पाइवेयर सेवा के संभावित लक्ष्य में शामिल थे।

    द वायर के अनुसार, 40 भारतीय पत्रकार, राहुल गांधी जैसे राजनीतिक नेता, चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर, ईसीआई के पूर्व सदस्य अशोक लवासा आदि को लक्ष्य की सूची में बताया गया है।

    केस का शीर्षक: ग्लोबल विलेज फाउंडेशन चैरिटेबल ट्रस्ट बनाम भारत संघ एंड अन्य

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