सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

LiveLaw News Network

31 Oct 2021 10:30 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (25 अक्टूबर, 2021 से 29 अक्टूबर, 2021) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं, सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप।

    पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए विशेष शिक्षकों की नियुक्ति: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, राज्यों को जारी किए निर्देश

    सुप्रीम कोर्ट ने विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को पढ़ाने के लिए विशेष शिक्षकों की नियुक्ति के मामले में निर्देश जारी किया।

    पीठ एक रिट याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें मान्यता प्राप्त स्कूलों में ऐसे शिक्षकों को अनुबंध के आधार पर बिना कार्यकाल की निश्चितता के नियोजित करने में अवैधता का आरोप लगाया गया था।

    केस का नाम और उद्धरण: रजनीश कुमार पांडे बनाम यू‌नियन ऑफ इंडिया| एलएल 2021 एससी 602 मामला संख्या और दिनांक: WP(C) 132 ऑफ 2016 | 28 अक्टूबर 2021

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    यूएपीए - अगर आरोप पत्र में प्रथम दृष्टया मामले का खुलासा नहीं होता तो धारा 43डी(5) के तहत जमानत देने पर प्रतिबंध लागू नहीं होगा : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि अगर आरोप पत्र में प्रथम दृष्टया मामले का खुलासा नहीं होता है तो गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम की धारा 43डी(5) के तहत जमानत देने पर प्रतिबंध लागू नहीं होगा।

    जस्टिस अजय रस्तोगी और अभय श्रीनिवास ओका की पीठ ने कहा, "धारा 43 डी की उप-धारा (5) में जमानत देने के लिए कठोर शर्तें केवल 1967 के अधिनियम के अध्याय IV और VI के तहत दंडनीय अपराधों पर लागू होंगी ... आरोप पत्र पर विचार करने के बाद ही प्रतिबंध लागू होगा। न्यायालय की यह राय है कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि ऐसे व्यक्ति के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सच हैं। इस प्रकार, यदि आरोप पत्र को देखने के बाद, यदि न्यायालय इस तरह के प्रथम दृष्टया निष्कर्ष निकालने में असमर्थ है, तो प्रावधान द्वारा बनाया गया प्रतिबंध लागू नहीं होगा।"

    केस का नाम और उद्धरण: थवाहा फ़सल बनाम भारत संघ LL 2021 SC 605 मामला संख्या।

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    पटाखों पर नियंत्रण किसी विशेष त्योहार या समुदाय के खिलाफ नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    निर्माताओं द्वारा आतिशबाजी में खतरनाक और सुरक्षा सीमा से परे कुछ रसायनों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के आदेश के उल्लंघन का आरोप लगाने वाले एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि यह किसी विशेष त्योहार या समुदाय के खिलाफ नहीं है, लेकिन यह दूसरों को इन शक्तियों की आड़ में नागरिकों के जीने के अधिकार के साथ खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दे सकता।

    अपने पिछले आदेशों के कार्यान्वयन पर जोर देते हुए जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने टिप्पणी की, "हम किसी विशेष त्योहार या उत्सव के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हम उत्सव की आड़ में दूसरों को जीवन के अधिकार के साथ खेलने की अनुमति नहीं दे सकते हैं।"

    केस: अर्जुन गोपाल और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य | रिट याचिका (सिविल) संख्या। 728/2015

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    मोटर दुर्घटना दावाः दावेदार के जीवन भर के लिए अक्षम होने पर कमाई क्षमता का नुकसान 100% तय किया जाएगा: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि जब दावेदार-मोटर दुर्घटना का शिकार जीवन भर के लिए अक्षम हो जाता है और घर तक ही सीमित रहता है तो कमाई की क्षमता का नुकसान 100% तय किया जाना चाहिए।

    जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा, इसलिए एक व्यक्ति को न केवल दुर्घटना के कारण हुई चोट के लिए बल्कि चोट के कारण हुए नुकसान और जीवन जीने में असमर्थता के लिए भी मुआवजा दिया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि विकलांगता से होने वाले आर्थिक नुकसान की सीमा को स्थायी विकलांगता की सीमा के अनुपात में नहीं मापा जा सकता है।

    केस शीर्षक और उद्धरण: जितेंद्रन बनाम न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड | एलएल 2021 एससी 597

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    सुप्रीम कोर्ट ने यतिन ओझा के वरिष्ठ पदनाम को अस्थायी रूप से दो साल के लिए बहाल किया

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार कोयतिन ओझा के वरिष्ठ पदनाम को दो साल की अवधि के लिए अस्थायी रूप से बहाल कर दिया।

    न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदर की पीठ ने ओझा द्वारा दायर एक अपील में आदेश पारित किया जिसमें उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री के खिलाफ उनके द्वारा की गई कुछ टिप्पणियों के कारण उनके वरिष्ठ पदनाम को रद्द करने के गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी।

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    गुजरात दंगा : पुलिस के काम में दखल देने के लिए राज्य के दो मंत्री शहर के नियंत्रण कक्षों में थे : जाकिया जाफरी की याचिका में कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गुजरात दंगों में तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य उच्च पदाधिकारियों को क्लीन चिट देने वाली एसआईटी रिपोर्ट को चुनौती देने वाली जाकिया एहसान जाफरी की याचिका पर बुधवार को सुनवाई जारी रखी।

    जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने शुरुआत में याचिकाकर्ता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा, "मिस्टर सिब्बल, सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि आप पीछे न हटें। 2009 और 2010 का इतिहास हमारी मदद नहीं कर सकता। आज हमें 2011 के आदेश से शुरू करना होगा जब इस न्यायालय को अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए एसआईटी की आवश्यकता है। विरोध याचिका दायर करने का एक विकल्प था। हमें दिखाएं कि क्या रिपोर्ट प्रस्तुत की गई और रिपोर्ट के संदर्भ में दायर विरोध याचिका क्या थी। हमें दिखाएं कि मजिस्ट्रेट द्वारा विरोध याचिका के किन कारको पर ध्यान नहीं दिया गया था"

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    हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने अध्यक्ष और सचिव को संयुक्त रूप से चेक पर हस्ताक्षर करने को कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन के लिए लोकपाल और एथिक्स ऑफिसर के रूप में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की नियुक्ति को बरकरार रखने वाले तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर नोटिस जारी किया।

    भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमाना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने हैदराबाद क्रिकेट संघ के अध्यक्ष और सचिव दोनों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामलों की सुनवाई नहीं होने तक संयुक्त रूप से चेक पर हस्ताक्षर करने का निर्देश दिया है, एसोसिएशन के दिन-प्रतिदिन के कामकाज में फिलहाल कोई बाधा न आए।

    केस टाइटल: हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन बनाम द चारमीनार क्रिकेट क्लब और बडिंग स्टार क्रिकेट क्लब बनाम चारमीनार क्रिकेट क्लब, के जॉन मनोज बनाम मोहम्मद अजहरुद्दीन और अन्य

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    एससी-एसटी एक्ट के तहत आपराधिक कार्यवाही केवल इसलिए समाप्त नहीं होती है मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लिया है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत आपराधिक कार्यवाही केवल इसलिए समाप्त नहीं होती है क्योंकि मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लिया है और मामले को विशेष अदालत में भेज दिया है।

    न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि अधिनियम की धारा 14 में दूसरे प्रावधान को सम्मिलित करने से अधिनियम के तहत अपराधों का संज्ञान लेने के लिए विशेष न्यायालय को केवल अतिरिक्त शक्तियां मिलती हैं। अदालत ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता है कि वह संज्ञान लेने के लिए मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र को छीन लेता है और उसके बाद मामले को विशेष अदालत में सुनवाई के लिए सौंप देता है।

    केस का नाम और उद्धरण: शांताबेन भूराभाई भूरिया बनाम आनंद अथाभाई चौधरी | LL 2021 SC 594

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    मध्यस्थता अधिनियम की धारा 31 (7) (सी) के तहत ब्याज देने में मध्यस्थ के पास पर्याप्त विवेकाधिकार है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 31 (7) (सी) के तहत किसी मध्यस्थ के पास ब्याज देने में पर्याप्त विवेकाधिकार है। इस मामले में मध्यस्थ ने 01.01.2003 से वसूली की तिथि तक 18% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज प्रदान किया था।

    मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 (मध्यस्थता अधिनियम) की धारा 34 के तहत याचिका का निपटारा करते हुए जिला न्यायालय द्वारा ब्याज दर को घटाकर 12% प्रतिवर्ष कर दिया गया। मध्यस्थता अपील में, उच्च न्यायालय ने एपी स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड बनाम जी वी मल्ला रेड्डी एंड कंपनी 2010 AIR SCW 6337 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए ब्याज दर को 9% प्रति वर्ष तक कम कर दिया।उक्त निर्णय में, यह देखा गया कि ब्याज दर के संबंध में किसी विशिष्ट अनुबंध की अनुपस्थिति में, वादकालीन और भविष्य का ब्याज सामान्य रूप से 9% प्रति वर्ष से अधिक नहीं होना चाहिए।

    मामला संख्या। और दिनांक: एसएलपी (सी) 36655/2016 | 20 अक्टूबर 2021

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    'एनडीपीएस एक्ट की धारा 67 के तहत अधिकारियों को दिए गए आरोपियों के बयान सबूत के तौर पर अस्वीकार्य': सुप्रीम कोर्ट ने 'तोफन सिंह' जजमेंट को लागू किया

    सुप्रीम कोर्ट ने एनडीपीएस अधिनियम के तहत एक मामले में आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोपों को यह देखते हुए खारिज किया कि मामला धारा 67 के तहत अधिकारियों को दिए गए अन्य आरोपियों के बयानों पर आधारित था, जो सबूत में अस्वीकार्य हैं।

    न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि पिछले साल तोफान सिंह बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया था कि एनडीपीएस अधिकारियों के सामने दिए गए इकबालिया बयान सबूत के तौर पर अस्वीकार्य हैं।

    केस का शीर्षक: संजीव चंद्र अग्रवाल एंड अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

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    पत्रकारिता के स्रोतों की सुरक्षा प्रेस की स्वतंत्रता के लिए एक बुनियादी शर्त : पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पेगासस स्पाइवेयर मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय स्वतंत्र विशेषज्ञ कमेटी का गठन करने का आदेश दिया। कमेटी की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस आरवी रवींद्रन करेंगे। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हेमा कोहली की पीठ ने सोमवार को लोकतंत्र में व्यक्तियों की अंधाधुंध निगरानी की प्रथा, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर 'ठंडा प्रभाव' डालता है, के खिलाफ अपना कड़ा विरोध व्यक्त किया।

    केस शीर्षक: मनोहर लाल शर्मा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और जुड़े मामले

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    "विशिष्ट अदायगी अब विवेकाधीन राहत नहीं" : सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 2018 संशोधन पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं हो सकता मगर मार्गदर्शक हो सकता है

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिए गए एक फैसले में कहा है कि विशिष्ट अदायगी (Specific Performance) अब विवेकाधीन राहत नहीं है।

    न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 में 2018 का संशोधन जिसके द्वारा धारा 10 (ए) को शामिल किया गया है, हालांकि पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं हो सकता है, लेकिन विवेकाधीन राहत पर एक मार्गदर्शक हो सकता है। अदालत ने हालांकि इस सवाल का फैसला नहीं किया कि उक्त प्रावधान पूर्वव्यापी रूप से लागू होगा या नहीं और/या सभी लंबित कार्यवाही पर लागू किया जाना चाहिए।

    केस का नाम और उद्धरण: सुघार सिंह बनाम हरि सिंह (मृत) | LL 2021 SC 595

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    केवल "राष्ट्रीय सुरक्षा" का उल्‍लेख करने भर से राज्य को फ्री पास नहीं मिलेगा: पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पेगासस स्पाइवेयर मामले की जांच के लिए स्वतंत्र कमेटी का गठन करने का आदेश दिया। अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा केंद्र सरकार की ओर से द‌िए गए "राष्ट्रीय सुरक्षा" के तर्क को ठुकरा दिया। केंद्र सरकार ने मामले में यह कहकर स्पष्ट बयान देने से इनकार कर दिया था कि उसने पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया है या नहीं, यह "राष्ट्रीय सुरक्षा" से संबंधित है।

    सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि सरकार को यह बताने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है कि क्या वह निगरानी के लिए एक विशेष सॉफ्टवेयर का उपयोग कर रही है, क्योंकि यह आतंकवादी समूहों को सतर्क कर सकता है। मेहता ने दलील दी थी कि इस मुद्दे को हलफनामे या सार्वजनिक चर्चा का विषय नहीं बनाया जा सकता है, और सुझाव दिया था कि केंद्र सरकार द्वारा गठित एक समिति कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, राजनेताओं आदि की लक्षित निगरानी के आरोपों की जांच कर सकती है।

    केस शीर्षक: मनोहर लाल शर्मा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और जुड़े मामले

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    सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस मामले में आरोपों की जांच करने के लिए विशेषज्ञ समिति के गठन का आदेश दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग कर राजनेताओं, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं आदि को निशाना बनाकर उनकी निगरानी के आरोपों को देखने के लिए एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति के गठन का आदेश दिया।

    सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरवी रवींद्रन की देखरेख में यह समिति काम करेगी। इस कार्य में पर्यवेक्षक न्यायाधीश की सहायता करने वाले के नाम इस प्रकार हैं।

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    अवमानना के मामले में प्रतिनिधिक दायित्व को एक सिद्धांत के रूप में लागू नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रतिनिधिक दायित्व को अवमानना के मामले में एक सिद्धांत के रूप में लागू नहीं किया जा सकता है। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि केवल इसलिए कि एक अधीनस्थ अधिकारी ने न्यायालय द्वारा पारित एक आदेश की अवहेलना की, इसकी जानकारी के अभाव में एक उच्च अधिकारी पर दायित्व तय नहीं किया जा सकता है।

    इस मामले में, अपीलकर्ताओं को असम कृषि उत्पाद बाजार अधिनियम, 1972 की धारा 21 को बरकरार रखते हुए किए गए लेवी के संबंध में उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश की जानबूझकर अवज्ञा करने का दोषी ठहराया गया था। अपील में, उन्होंने दलील दी थी कि अपने अधीनस्थों की कथित अवज्ञा के लिए अपीलकर्ताओं को मामले में उलझाने का कोई आधार नहीं है।

    केस का नाम और साइटेशन: डॉ यूएन बोरा, पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनाम असम रोलर आटा मिल्स एसोसिएशन | एलएल 2021 एससी 593 मामला संख्या। और दिनांक: सीआरए 1967/2009 | 26 अक्टूबर 2021

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    सिर्फ अनुबंध का उल्लंघन धोखाधड़ी नहीं, सिविल मामलों को आपराधिक रंग देने को हतोत्साहित किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ अनुबंध का उल्लंघन धोखाधड़ी के लिए आपराधिक अभियोजन को जन्म नहीं दे सकता। न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि आपराधिक अभियोजन के लिए, धारा 405, 419 और 420 के तहत एक बेईमानी या धोखाधड़ी के इरादे के प्रमुख घटक को बाहर करना होगा।

    पीठ ने कहा कि दीवानी विवाद के विपरीत आपराधिक मामले में दी गई अपेक्षाकृत त्वरित राहत का लाभ उठाने के लिए दीवानी विवाद को आपराधिक रंग नहीं दिया जा सकता है। अदालत ने कहा कि इस तरह की क़वायद और कुछ नहीं बल्कि कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है जिसे पूरी तरह से हतोत्साहित किया जाना चाहिए।

    केस का नाम और उद्धरण: मितेश कुमार जे शाह बनाम कर्नाटक राज्य | LL 2021 SC 592

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    एससी/एसटी अधिनियम सहित विशेष कानूनों के तहत अपराधों को भी सीआरपीसी की धारा 482/अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग करके रद्द किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

    सीजेआई एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, "केवल यह तथ्य कि अपराध एक 'विशेष क़ानून' के तहत कवर किया गया है, इस न्यायालय या हाईकोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 142 या सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी-अपनी शक्तियों का प्रयोग करने से नहीं रोकेगा।"

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण अधिनियम), 1989 से उत्पन्न होने वाले आपराधिक मुकदमे को संविधान के अनुच्छेद 142 या आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत शक्तियों का आह्वान करते हुए रद्द किया जा सकता है।

    केस का नाम और उद्धरण: रामावतार बनाम मध्य प्रदेश सरकार| एलएल 2021 एससी 589

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    'तैयारी' और 'बलात्कार के प्रयास' के बीच अंतर: सुप्रीम कोर्ट ने की व्याख्या

    सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के प्रयास के आरोपी व्यक्ति की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए बलात्कार करने के लिए 'तैयारी' और 'प्रयास' के बीच का अंतर समझाया। इस मामले में आरोपी को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 511 के साथ पठित धारा 376(2)(एफ) के तहत दोषी ठहराया गया था।

    अपील में, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इसे धारा 354 के तहत दोषसिद्धि में संशोधित किया और उसे दी गई सजा को कम कर दिया। हाईकोर्ट ने यह विचार किया कि उसने दोनों अभियोक्ता के साथ बलात्कार की कोशिश में सभी प्रयास नहीं किए, और वह तैयारी के चरण से आगे नहीं गया था।

    केस का नाम और उद्धरण: मध्य प्रदेश सरकार बनाम महेंद्र उर्फ गोलू | एलएल 2021 एससी 590

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    कोई भी बार एसोसिएशन किसी जज के रोस्टर को बदलने के लिए मुख्य न्यायाधीश पर दबाव नहीं बना सकती : सुप्रीम कोर्ट

    जयपुर बार एसोसिएशन द्वारा किए गए बहिष्कार के आह्वान पर कड़ी आपत्ति जताते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि बार एसोसिएशन और अधिवक्ता किसी न्यायाधीश के रोस्टर को बदलने के लिए मुख्य न्यायाधीश पर दबाव नहीं बना सकते। न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा, "हम न्यायाधीशों पर दबाव बनाने के संघों के प्रयासों को बर्दाश्त नहीं करेंगे।"

    न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ उसकी याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें राजस्थान उच्च न्यायालय की जयपुर पीठ के बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों को हड़ताल के रूप में उच्च न्यायालय की एकल पीठ का बहिष्कार करने के लिए अवमानना ​​नोटिस जारी किया था।

    केस: जिला बार एसोसिएशन बनाम ईश्वर शांडिल्य और अन्य | एमए 859/2020 एसएलपी (सी) 5440/2020

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    क्यूरेटिव पिटीशन के साथ सीनियर एडवोकेट का सर्टिफिकेट फाइल करना अनिवार्य: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि क्यूरेटिव पिटीशन के साथ सीनियर एडवोकेट का सर्टिफिकेट दाखिल करना अनिवार्य है। इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता से अपेक्षित प्रमाण पत्र दाखिल करने की बजाय याचिकाकर्ता (दोषी) ने उक्त प्रमाण पत्र दाखिल करने से छूट की अर्जी दाखिल की।

    इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि यह एक जेल याचिका है, कोर्ट ने मामले को सर्वोच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति (एससीएलएससी) को भेज दिया। समिति ने अन्य बातों के साथ-साथ यह कहते हुए एक वरिष्ठ अधिवक्ता का पत्र अग्रसारित किया कि क्यूरेटिव याचिका दायर करने के लिए कोई आधार उपलब्ध नहीं है।

    केस का नाम और साइटेशन : राजेश झा बनाम उत्तर प्रदेश सरकार | एलएल 2021 एससी 587

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