केवल "राष्ट्रीय सुरक्षा" का उल्‍लेख करने भर से राज्य को फ्री पास नहीं मिलेगा: पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

27 Oct 2021 7:50 AM GMT

  • केवल राष्ट्रीय सुरक्षा का उल्‍लेख करने भर से राज्य को फ्री पास नहीं मिलेगा: पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पेगासस स्पाइवेयर मामले की जांच के लिए स्वतंत्र कमेटी का गठन करने का आदेश दिया। अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा केंद्र सरकार की ओर से द‌िए गए "राष्ट्रीय सुरक्षा" के तर्क को ठुकरा दिया।

    केंद्र सरकार ने मामले में यह कहकर स्पष्ट बयान देने से इनकार कर दिया था कि उसने पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया है या नहीं, यह "राष्ट्रीय सुरक्षा" से संबंधित है।

    सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि सरकार को यह बताने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है कि क्या वह निगरानी के लिए एक विशेष सॉफ्टवेयर का उपयोग कर रही है, क्योंकि यह आतंकवादी समूहों को सतर्क कर सकता है। मेहता ने दलील दी थी कि इस मुद्दे को हलफनामे या सार्वजनिक चर्चा का विषय नहीं बनाया जा सकता है, और सुझाव दिया था कि केंद्र सरकार द्वारा गठित एक समिति कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, राजनेताओं आदि की लक्षित निगरानी के आरोपों की जांच कर सकती है।

    उन्होंने दलील दी थी, "वे चाहते हैं कि भारत सरकार यह बताए कि कौन सा सॉफ्टवेयर इस्तेमाल नहीं किया गया है। कोई भी देश कभी यह नहीं बताएगा कि उन्होंने किस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया है या नहीं किया है! जिन लोगों को इंटरसेप्ट किया जा रहा है वे प्री-एम्पटिव या करेक्ट‌िव स्टेप उठा सकते हैं!" ,

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया था कि न्यायालय को राष्ट्रीय सुरक्षा के पहलुओं को जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है और केवल यह पता लगाना चाहता था कि क्या पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग करके नागरिकों को लक्षित करने में किया गया था।

    आज सुनाए गए फैसले में अदालत ने एक स्पष्ट बयान दिया कि राज्य केवल "राष्ट्रीय सुरक्षा" तर्क देकर न्यायिक जांच से दूर नहीं हो सकता है।

    "... प्रतिवादी-यूनियन ऑफ इंडिया संवैधानिक विचार मौजूद होने की स्थिति में सूचना प्रदान करने से इनकार कर सकता है जैसेकि राज्य की सुरक्षा से संबंधित। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि हर बार जब "राष्ट्रीय सुरक्षा" का मुद्द उठाया जाता है तो राज्य को फ्री पास मिल जाता है।"

    फैसले में आगे कहा गया, "राष्ट्रीय सुरक्षा ऐसी डरवानी नहीं हो सकती है कि अदालतें इसका नाम लेने भर से दूर हट जाए। हालांकि इस अदालत को राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र का अतिक्रमण करने के मामले में चौकन्‍ना रहना चाहिए, लेकिन न्यायिक समीक्षा के लिए किसी सर्वव्यापी निषेध को नहीं माना जा सकता है"।

    सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने फैसले में कहा कि यूनियन ऑफ इंडिया को उन तथ्यों को साबित करना चाहिए जो इंगित करते हैं कि मांगी गई जानकारी को गुप्त रखा जाना चाहिए क्योंकि उनका प्रकटीकरण राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को प्रभावित करेगा। उन्हें उस रुख को सही ठहराना चाहिए जो वे एक न्यायालय के समक्ष रखते हैं।

    कोर्ट ने कहा, "राज्य द्वारा केवल राष्ट्रीय सुरक्षा का आह्वान करने से न्यायालय मूकदर्शक नहीं बन जाता है।"

    यूनियन ऑफ इंडिया का अस्पष्ट और सर्वव्यापी इनकार पर्याप्त नहीं है। न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ताओं ने कुछ ऐसी सामग्री रिकॉर्ड पर रखी है, जिस पर प्रथम दृष्टया न्यायालय द्वारा विचार किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा, "प्रतिवादी- यूनियन ऑफ इंडिया ने याचिकाकर्ताओं के किसी भी तथ्य का विशेष खंडन नहीं किया है। प्रतिवादी द्वारा दायर "सीमित हलफनामे" में केवल एक सर्वव्यापी और अस्पष्ट इनकार किया गया है, जो पर्याप्त नहीं हो सकता है।"

    अदालत ने कहा , "ऐसी परिस्थितियों में, हमारे पास याचिकाकर्ताओं द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच के लिए किए गए प्रथम दृष्टया मामले को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।"

    केस शीर्षक: मनोहर लाल शर्मा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और जुड़े मामले

    प्रशस्ति पत्र : एलएल 2021 एससी 600

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