सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

26 March 2023 6:30 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (20 मार्च, 2023 से 24 मार्च, 2023 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    ‘COVID-19 में पैरोल पर रिहा हुए सभी कैदी 15 दिनों के भीतर सरेंडर करें’: सुप्रीम कोर्ट ने दिया निर्देश

    COVID-19 के दौरान देश भर में कई कैदियों को पैरोल दी गई थी। पैरोल का मतलब- कैदी की अस्थाई रिहाई। आज सुप्रीम कोर्ट ने COVID-19 के समय पैरोल पर रिहा हुए सभी कैदियों को 15 दिनों के भीतर सरेंडर करने का निर्देश दिया है। हाई पावर्ड कमेटी की सिफारिश पर COVID-19 के समय कैदियों को आपातकालीन पैरोल दी गई थी। ये आदेश जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की डिवीजन बेंच ने दिया। बेंच ने कहा कि COVID-19 के समय पैरोल पर रिहा हुए सभी कैदी 15 दिनों के भीतर खुद को सरेंडर करें। सरेंडर जेल अधिकारी के समक्ष की जाए।

    Case : In Re : Contagion of COVID-19 Virus in Prisons, SMW(C) No. 1/2020

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    दोषियों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो की याचिका: सुप्रीम कोर्ट 27 मार्च को करेगा सुनवाई

    Bilkis Bano Case- बिलकिस बानो मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई की अनुमति देने वाले गुजरात सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट 27 मार्च 2023 को सुनवाई करेगा।

    जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की डिवीजन बेंच मामले की सुनवाई करेगी। बानो की वकील एडवोकेट शोभा गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पांच बार उल्लेख किए जाने के बाद इस मामले को सूचीबद्ध किया गया है। दो दिन पहले जब सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच के सामने इस मामले का उल्लेख किया गया था, तो शीर्ष अदालत ने गुप्ता को आश्वासन दिया था कि याचिका पर सुनवाई के लिए एक विशेष बेंच का गठन किया जाएगा।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    प्रतिबंधित संगठन की सदस्यता को आपराधिक बनाने वाले यूएपीए प्रावधान में अस्पष्टता नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम 1967 की धारा 10 (ए) (i) को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रावधान अस्पष्ट या अनुचित नहीं है। अधिनियम की उक्त धारा गैरकानूनी संगठन की सदस्यता को अपराध बनाती है। अदालत ने अरुप भुइयां बनाम असम राज्य, इंद्र दास बनाम असम राज्य और केरल राज्य बनाम रनीफ में 2011 के अपने फैसलों को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि प्रतिबंधित संगठन की मात्र सदस्यता गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) के तहत अपराध का गठन करने के लिए पर्याप्त नहीं है। अधिनियम 1967 या आतंकवाद और विघटनकारी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, जब तक कि यह कुछ प्रत्यक्ष हिंसक के साथ न हो।

    केस टाइटल: अरूप भुइयां बनाम असम राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    COVID-19 के दौरान एचपीसी द्वारा दी गई पैरोल की अवधि को वास्तविक सजा की अवधि में नहीं गिना जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि कैदियों की भीड़भाड़ को रोकने के लिए COVID-19 महामारी की अवधि के दौरान कैदियों को दी गई पैरोल की अवधि को कैदी द्वारा कारावास की अवधि में नहीं गिना जा सकता।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की खंडपीठ ने कैदी द्वारा दायर रिट याचिका खारिज कर दिया, जिसमें घोषणा की मांग की गई कि महामारी के दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वप्रेरणा से पारित आदेशों के आधार पर उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा दी गई पैरोल की अवधि की अनुमति दी गई। जेलों में COVID-19 वायरस के पुन: संक्रमण के मामले को वास्तविक सजा की अवधि में गिना जाएगा।

    केस टाइटल: अनिल कुमार बनाम हरियाणा राज्य | W.P.(Crl.) नंबर 46/2022

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    जाति/जनजाति के दावे की सत्यता निर्धारित करने के लिए अफ्फिनिटी टेस्ट आवश्यक नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस सवाल से संबंधित संदर्भ का जवाब दिया कि क्या अफ्फिनिटी टेस्ट (Affinity Test) जाति जांच समिति द्वारा बनाई गई जाति की स्थिति के निर्धारण का अभिन्न अंग है। अफ्फिनिटी टेस्ट का उपयोग यह पता लगाने के लिए किया जाता है कि क्या व्यक्ति समुदाय के पारंपरिक सांस्कृतिक लक्षणों का पालन करता है।

    जस्टिस एस.के. कौल, जस्टिस ए.एस. ओक और जस्टिस मनोज मिश्रा ने कहा कि अफ्फिनिटी टेस्ट जाति का नाम तय करने के लिए लिटमस टेस्ट नहीं है और हर मामले में जाति/जनजाति के नाम की शुद्धता के निर्धारण की प्रक्रिया में अनिवार्य हिस्सा नहीं है।

    [केस टाइटल: माह. आदिवासी ठाकुर जमात संरक्षण समिति बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य। एसएलपी (सी) नंबर 24894/2009]

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    महज प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होना भी यूएपीए के तहत अपराध है: सुप्रीम कोर्ट ने 2011 की मिसालों को खारिज किया

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को महत्वपूर्ण फैसले में अरूप भुइयां बनाम असम राज्य, इंद्र दास बनाम असम राज्य और केरल राज्य बनाम रानीफ में अपने 2011 के फैसलों को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया है कि प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होना भी गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम 1967 या आतंकवाद और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA Act) के तहत अपराध का गठन करने के लिए पर्याप्त नहीं है, जब तक कि यह कुछ प्रत्यक्ष हिंसक के साथ न हो।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    बॉम्‍बे रेंट कंट्रोल एक्ट के तहत किराएदार को सबलेटिंग की अनुमति नहीं, जब तक कि अनुबंध में ऐसा प्रावधान ना हो: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में दोहराया कि बॉम्बे रेंट, होटल और लॉजिंग हाउस रेट्स (कंट्रोल) एक्ट, 1947 के लागू होने के बाद सबलेट (किराये पर ली गई संपत्ति को किराये पर देना ) करना वैध नहीं होगा, जब तक कि अनुबंध में स्पष्ट रूप से ऐसा प्रावधान नहीं किया गया है।

    जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा, "इन प्रावधानों से यह स्पष्ट हो जाता है कि सामान्य प्रक्रिया में और किसी भी अन्य कानून में निहित किसी भी बात के बावजूद, जब तक कि अनुबंध खुद सबलेट करने की अनुमति नहीं देता है, 1947 के अधिनियम के संचालन में आने के बाद यह वैध नहीं होगा।

    केस टाइटल: युवराज @ मुन्ना प्रल्हाद जगदाले व अन्य बनाम जनार्दन सूबाजीराव विदे| Civil Appeal Nos. 28552856 Of 2011

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    जिला परिषद से नगर निगम में विलय होने पर भी कर्मचारी की जिला परिषद में वरिष्ठता की गणना होगी : सुप्रीम कोर्ट

    जिला परिषद में नियुक्त किए गए और बाद में उनकी पारस्परिक वरिष्ठता के आधार पर पुणे नगर निगम में समाहित किए गए प्राथमिक शिक्षकों के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जिला परिषद में रहते हुए वरिष्ठता के लिए उनकी सेवा को गिना जाना चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जे के माहेश्वरी ने कहा कि महाराष्ट्र नगर निगम अधिनियम, 1949 के परिशिष्ट IV के खंड (5) के साथ पठित धारा 439 के तहत स्पष्ट रूप से इसकी परिकल्पना की गई है।

    केस : महाराष्ट्र राज्य पदवीदार प्राथमिक शिक्षक बनाम केंद्र प्रमुख सभा बनाम पुणे नगर निगम और अन्य | 2023 की सिविल अपील संख्या 1765

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    हत्या का मुकदमा - एकमात्र चश्मदीद गवाह की विश्वसनीय गवाही उचित संदेह से परे मामले को साबित करने के लिए काफी : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि एकमात्र चश्मदीद गवाह की गवाही अभियोजन पक्ष के लिए अपने मामले को उचित संदेह से परे स्थापित करने के लिए विश्वसनीय हो सकती है, यहां तक कि कई अभियुक्तों से जुड़े मामलों में भी यह विश्वसनीय हो सकती है।

    जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने मुख्य रूप से एकमात्र गवाह की गवाही पर आठ अभियुक्तों को दोषी ठहराने और सजा देने के निचली अदालतों के फैसले को बरकरार रखा। यह नोट किया गया कि आठ व्यक्तियों की सजा एक ही साक्ष्य पर आधारित हो सकती है, खासकर तब जब उनकी गवाही में प्रत्येक अभियुक्त की भूमिका के संबंध में कोई अस्पष्टता न हो।

    केस विवरण- रावसाहेब @ रावसाहेबगौड़ा आदि बनाम कर्नाटक राज्य| 2023 LiveLaw (SC) 225 |2010 की आपराधिक अपील नंबर 1109-1110| 16 मार्च, 2013|

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    जब पीपीए में प्रावधान ना हो तब अन्य उत्पादन स्टेशनों के लिए गैस का डाइवर्जन मुआवजे की मांग का पर्याप्त आधार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण की राय की पुष्टि करते हुए कहा कि अगर बिजली खरीद समझौते में ऊर्जा की कम आपूर्ति के संबंध में फुल फिक्‍स्‍ड चार्ज, और एक्‍चुअल वैरिएबल चार्ज के मुआवजे के संबंध में कोई प्रावधान नहीं है तो बिजली बोर्ड को क्षतिपूर्ति नहीं करनी पड़ेगी।

    जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सी टी रविकुमार की पीठ पेन्ना इलेक्ट्रिसिटी लिमिटेड की अपील पर सुनवाई कर रही थी। कंपनी तमिलनाडु में तमिलनाडु विद्युत बोर्ड के लिए बने एक कंबाइंड साइकिल गैस टरबाइन पावर जनरेटिंग स्टेशन का संचालन और रखरखाव करती है।

    केस टाइटल: पेन्ना इलेक्ट्रिसिटी लिमिटेड (अब मैसर्स पायनियर पावर लिमिटेड) बनाम तमिलनाडु इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड व अन्य| सिविल अपील नंबर (एस)। 706/2014

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट्स को सांसदों/विधायकों के खिलाफ मुकदमों की सुनवाई में तेजी लाने के लिए एमिकस के सुझावों का जवाब देने का निर्देश दिया

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एमिकस क्यूरी सीनियर एडवोकेट विजय हंसारिया द्वारा मौजूदा और पूर्व सांसदों / विधायकों के खिलाफ मामलों में मुकदमे में तेजी लाने के लिए दिए गए सुझावों पर उच्च न्यायालयों से जवाब मांगा है। सुनवाई के दौरान, सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि अदालत विधायकों के मुकदमे में तेजी लाने के मामले को व्यवस्थित तरीके से तभी निपटा पाएगी, जब उसके पास लंबित मामलों, न्यायाधीशों के कार्यभार से संबंधित पर्याप्त डेटा होगा।

    केस टाइटल: अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम यूओआई और अन्य। WP(C) संख्या 699/2016 जनहित याचिका

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड भ्रष्टाचार के मामले में कर्नाटक में सबसे खराब: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एमआर शाह ने कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड की खिंचाई करते हुए कहा कि ये भ्रष्टाचार के मामले में कर्नाटक में सबसे खराब प्राधिकरण है। जज ने आगे कहा, "ये भ्रष्टाचार के मामले में कर्नाटक में सबसे खराब प्राधिकरण है। कितने मामलों में भूमि आवंटित की गई है? हमने एक राय नहीं बनाई है, लेकिन हम यह कह रहे हैं। कर्नाटक से बहुत सारे मामले हैं, हमने देखा है। कम से कम मेरे करियर में।"

    केस टाइटल: भोरुका स्टील्स एंड सर्विस लिमिटेड बनाम कार्यकारी सदस्य, केआईएडीबी।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    रूपये की वसूली के लिए रिट याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता, खासकर तब जब सिविल उपाय लागू किया गया हो: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि बिलों/चालानों के तहत देय रूपये की वसूली के लिए दायर रिट याचिकाओं पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत विचार नहीं किया जा सकता है, खासकर तब जब रिट याचिकाकर्ता ने दीवानी मुकदमा दायर किया हो, जो डिफ़ॉल्ट रूप से खारिज हो गया हो। जस्टिस एम.आर. शाह और जस्टिस सी.टी. रविकुमार ने कृषि निदेशक और अन्य बनाम एम.वी. रामचंद्रन मामले में दायर अपील पर फैसला सुनाते हुए ऐसा कहा।

    केस टाइटल: कृषि निदेशक व अन्य बनाम एम.वी. रामचंद्रन

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    सुप्रीम कोर्ट में बिल्किस बानो मामला फिर सूचीबद्ध हुआ, सीजेआई ने कहा, दोषियों की समय से पहले रिहाई के खिलाफ याचिका पर सुनवाई के लिए विशेष बेंच का गठन किया जाएगा

    सुप्रीम कोर्ट एक बार फिर बिलकिस बानो मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे 11 दोषियों को समय से पहले रिहा करने के गुजरात सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए विशेष पीठ गठित करने पर सहमत हो गया है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने पिछले महीने भी कहा कि वह इस मामले को उठाने के लिए विशेष बेंच का गठन करेंगे।

    इस बीच, बानो की वकील एडवोकेट शोभा गुप्ता का दावा है कि इस मामले का पहले भी 4 बार उल्लेख किया जा चुका है, लेकिन प्रारंभिक सुनवाई और नोटिस के लिए इसे अभी तक नहीं लिया गया। इस मामले का पहली बार 30 नवंबर, 2022 को उल्लेख किया गया, जिसके बाद इसे जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एन त्रिवेदी की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    'अदालतों को इस धारणा को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए कि केवल लड़का ही वृद्धावस्था में माता-पिता की देखभाल करेगा; पितृसत्तात्मक टिप्पणियों से बचें': सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने न्यायालयों को निर्णयों में पितृसत्तात्मक टिप्पणी करने से परहेज करने की सलाह दी। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ 7 साल के लड़के के अपहरण और हत्या के दोषी को दी गई मौत की सजा की पुनर्विचार करने की मांग वाली याचिका पर फैसला कर रही थी। खंडपीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड की पुष्टि करने वाली अपनी अपील में लड़के की हत्या को गंभीर स्थिति माना।

    केस टाइटल : पुलिस निरीक्षक द्वारा सुंदर @ सुंदरराजन बनाम राज्य | लाइवलॉ (एससी) 217/2023

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    दुर्लभ से दुर्लभतम के सिद्धांत के तहत मौत की सजा तभी दी जा सकती है, जबकि सुधार की कोई गुंजाइश न हो : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 7 साल के बच्चे के अपहरण और हत्या के लिए दी गई मौत की सजा को कम से कम बीस साल के आजीवन कारावास में बदल दिया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ ने कहा कि हालांकि अपराध गंभीर और अक्षम्य है, फिर भी 'दुर्लभतम' सिद्धांत के लिए आवश्यक है कि मौत की सजा केवल अपराध की गंभीर प्रकृति को ध्यान में रखकर नहीं दी जाए। लेकिन तभी जब अपराधी में सुधार की कोई संभावना न हो'।

    केस विवरण- सुंदर @ सुंदरराजन बनाम राज्य पुलिस निरीक्षक द्वारा | LiveLaw (SC) 2023 | आपराधिक अपील नंबर 300-301/2013 की समीक्षा याचिका (Crl) नंबर 159-160| 21 मार्च, 2023| सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    ईडी प्रमुख के कार्यकाल विस्तार को चुनौती | सुप्रीम कोर्ट ने कहा, याचिकाकर्ताओं की राजनीति से सरोकार नहीं

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मौखिक रूप से कहा कि ईडी निदेशक एसके मिश्रा को दिए गए तीसरे कार्यकाल विस्तार और सीवीसी संशोधन अधिनियम 2021 के खिलाफ याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ताओं की राजनीतिक संबद्धता से इसका कोई सरोकार नहीं है।

    इससे पहले फरवरी में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने लोकस स्टैंडी की कमी के आधार पर याचिकाओं पर प्रारंभिक आपत्ति जताई थी। उन्होंने जोर देकर कहा था कि याचिकाकर्ता उन राजनीतिक दलों के सदस्य हैं, जिनके वरिष्ठ सदस्य मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों का सामना कर रहे है और इस तरह, वे जनहित में काम नहीं कर रहे।

    केस टाइटलः जया ठाकुर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य | Writ Petition (Civil) No. 1106 of 2022

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    राज्य बोर्ड कर्मचारियों को राज्य सरकार के कर्मचारियों के बराबर नहीं माना जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि राज्य सरकार द्वारा स्थापित निकाय कॉरपोरेट के कर्मचारियों को राज्य सरकार के कर्मचारियों के बराबर नहीं माना जा सकता है। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस पीवी संजय कुमार की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि उड़ीसा खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड के कर्मचारी सरकारी कर्मचारियों के बराबर पेंशन के हकदार नहीं हैं। पीठ ने कहा कि भले ही राज्य ने कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 43 के तहत अपने दायित्वों का निर्वहन करने के लिए बोर्ड की स्थापना की थी, लेकिन इसके कर्मचारियों को राज्य सरकार के कर्मचारियों के बराबर नहीं माना जा सकता है।

    केस : उड़ीसा राज्य बनाम उड़ीसा खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड कर्मचारी संघ।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    'केंद्र सरकार के पास राज्य प्रशासनिक ट्रिब्यूनल को खत्म करने की शक्ति है': सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल को खत्म करने की पुष्टि की

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार द्वारा 2019 में ओडिशा एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (OAT) को खत्म करने के लिए जारी अधिसूचना को बरकरार रखा। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की खंडपीठ ने ओडिशा एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल बार एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी, जिसमें उड़ीसा हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई, जिसमें OAT को समाप्त करने को बरकरार रखा गया था।

    केस टाइटल: उड़ीसा एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ और अन्य। एसएलपी (सी) नंबर 10985/2021

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    मर्डर ट्रायल - लास्ट सीन थ्योरी: जिस समय मृतक को आरोपी के साथ आखिरी बार देखा गया, उसे निर्णायक रूप से साबित किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर मामले में 'लास्ट सीन थ्योरी' पर भरोसा करते हुए कहा कि जिस समय मृतक को आरोपी के साथ आखिरी बार देखा गया था, उस समय के साक्ष्य को निर्णायक रूप से साबित करना होगा।

    जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार की खंडपीठ ने देखा, "परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित मामले में और 'लास्ट सीन' के सिद्धांत को परिस्थितियों की श्रृंखला में एक कड़ी के रूप में भरोसा किया जाता है, उस समय से संबंधित साक्ष्य जिसमें मृतक को अभियुक्त के साथ आखिरी बार देखा गया था, उसको निर्णायक रूप से साबित करना होगा, जब यह मृत शरीर को खोजने के समय के साथ-साथ बेगुनाही साबित करने का बोझ आरोपी का होगा।"

    केस टाइटल: शंकर बनाम महाराष्ट्र राज्य | आपराधिक अपील नंबर 954/2011

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने में सभी हाईकोर्ट में ऑनलाइन आरटीआई पोर्टल स्थापित करने का निर्देश दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सभी हाईकोर्ट को तीन महीने के भीतर ऑनलाइन आरटीआई पोर्टल स्थापित करने का निर्देश दिया, जिन हाईकोर्ट में अब तक ऑनलाइन आरटीआई पोर्टल स्थापित नहीं हुआ है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) आवेदनों की ई-फाइलिंग और उच्च न्यायालयों में पहली अपील के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल स्थापित करने की व्यवस्था की मांग वाली याचिका पर यह निर्देश पारित किया ।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    अगर अनुबंध के तहत कोई रोक नहीं है तो आर्बिट्रेटर पेंडेंट लाइट ब्याज अवॉर्ड कर सकता है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि जब तक अनुबंध के तहत कोई विशिष्ट रोक नहीं है, मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 (ए एंड सी एक्ट) की धारा 31 (7) (ए) के मद्देनजर आर्बिट्रेटर के लिए मामले के लंबित होने के दौरान ब्याज देने के लिए हमेशा खुला है।

    न्यायालय ने ए एंड सी एक्ट, 1996 की धारा 34 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र को पार करने के लिए सुविचारित आर्बिट्रेशन अवार्ड अलग करके हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेशों को भी रद्द कर दिया। यह भी कहा गया है कि आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल मामले के लंबित होने के दौरान ब्याज देने के लिए खुला है जब तक कि अनुबंध के तहत कोई विशिष्ट रोक न हो।

    केस टाइटल: इंडियन रेलवे कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड बनाम मेसर्स नेशनल बिल्डिंग्स कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन लिमिटेड

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story