हत्या का मुकदमा - एकमात्र चश्मदीद गवाह की विश्वसनीय गवाही उचित संदेह से परे मामले को साबित करने के लिए काफी : सुप्रीम कोर्ट

Sharafat

23 March 2023 3:30 AM GMT

  • हत्या का मुकदमा - एकमात्र चश्मदीद गवाह की विश्वसनीय गवाही उचित संदेह से परे मामले को साबित करने के लिए काफी : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि एकमात्र चश्मदीद गवाह की गवाही अभियोजन पक्ष के लिए अपने मामले को उचित संदेह से परे स्थापित करने के लिए विश्वसनीय हो सकती है, यहां तक ​​कि कई अभियुक्तों से जुड़े मामलों में भी यह विश्वसनीय हो सकती है।

    जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने मुख्य रूप से एकमात्र गवाह की गवाही पर आठ अभियुक्तों को दोषी ठहराने और सजा देने के निचली अदालतों के फैसले को बरकरार रखा। यह नोट किया गया कि आठ व्यक्तियों की सजा एक ही साक्ष्य पर आधारित हो सकती है, खासकर तब जब उनकी गवाही में प्रत्येक अभियुक्त की भूमिका के संबंध में कोई अस्पष्टता न हो।

    मृतक की दिनदहाड़े हत्या की गई थी। रिपोर्ट दर्ज कराई गई। जांच अधिकारी ने शव बरामद करने के बाद पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला है कि मृतक को गंभीर प्रकृति की 21 चोटें लगी थीं। ट्रायल कोर्ट ने आठ अभियुक्तों को, जो मृतक के दूर के रिश्तेदार थे, उन्हें दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष के अधिकांश गवाह मुकर गए। फिर भी, ट्रायल कोर्ट की राय थी कि अभियोजन का मामला उचित संदेह से परे साबित हुआ है, मुख्य रूप से अभियोजन पक्ष के एक गवाह (शिकायतकर्ता) की अखंडित गवाही और पक्षद्रोही गवाह के सहायक साक्ष्य पर आधारित है।हाईकोर्ट ने इस सजा की पुष्टि की। तीन आरोपियों ने अपील में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    विचारणीय प्रश्न

    क्या एकमात्र गवाह की गवाही के आधार पर आठ लोगों को आजीवन कैद की सजा दी जा सकती है?

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा विश्लेषण

    न्यायालय ने कहा कि आमतौर पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए यह तथ्यों के समवर्ती निष्कर्षों में हस्तक्षेप नहीं करेगा, विशेष परिस्थितियों को छोड़कर या जब निचली अदालत द्वारा घोर त्रुटि हो। संबंधित मुद्दे पर फैसला सुनाते हुए न्यायालय ने पक्षद्रोही गवाह के साक्ष्य से निपटने वाले निर्णयों की एक सीरीज़ का उल्लेख किया। चूक, कमियों के प्रभाव एकल गवाह पर निर्भरता, करीबी रिश्तेदार की गवाही, संभावनाओं की प्रबलता, एफआईआर भेजने में देरी, लास्ट सीन थ्योरी, कई आरोपी व्यक्तियों से जुड़े मामले, अपील की अदालत की शक्ति, अनुच्छेद 136 के तहत सुप्रीम कोर्ट की शक्ति।

    न्यायालय के अनुसार, केवल इसलिए कि अधिकांश गवाह पक्षद्रोही बन गए। शिकायतकर्ता के साक्ष्य को खारिज करने का आधार नहीं है। यह इस तर्क को स्वीकार करने के लिए इच्छुक नहीं था कि आठ अभियुक्तों को एकल साक्ष्य के आधार पर दोषसिद्धि, जो कि एक इच्छुक गवाह (मृतक का भाई) भी है, न्यायोचित नहीं है, खासकर जब गवाही में कोई अस्पष्टता नहीं हो। सिर्फ इसलिए कि शिकायत शिकायतकर्ता द्वारा नहीं बल्कि एक वकील द्वारा तैयार की गई, इससे अभियोजन पक्ष के मामले पर संदेह नहीं होगा। यह देखा गया कि जब अभियुक्त की संख्या या उपस्थिति विवादित नहीं है तो निचली अदालतों के फैसले में हस्तक्षेप करना संभव नहीं है।

    न्यायालय ने करुणाकरन बनाम तमिलनाडु राज्य और साधुराम बनाम राजस्थान राज्य में अपने फैसले का उल्लेख किया, जिसमें यह माना गया था कि यदि कोई गवाह पूरी तरह से विश्वसनीय है तो उनकी गवाही के आधार पर दोषसिद्धि को दुर्बल नहीं कहा जा सकता है। भगवान जगन्नाथ मरकड बनाम महाराष्ट्र राज्य और हरबंस कौर बनाम हरियाणा राज्य में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि एक गवाह का करीबी रिश्तेदार होना उनकी गवाही को खारिज करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है।

    निचली अदालतों द्वारा दी गई दोषसिद्धि और सजा की पुष्टि करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वर्तमान मामले में सावधानी के एक शब्द का उल्लेख किया। ट्रायल कोर्ट निर्णय लेने के लिए सबसे अच्छी अदालत है, क्योंकि गवाह के आकलन पर कोई स्ट्रेटजैकेट फॉर्मूला नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि ट्रायल जज की आंखों से सच्चाई की यात्रा को बेहतर तरीके से देखा जा सकता है।

    केस विवरण

    रावसाहेब @ रावसाहेबगौड़ा आदि बनाम कर्नाटक राज्य| 2023 LiveLaw (SC) 225 |2010 की आपराधिक अपील नंबर 1109-1110| 16 मार्च, 2013|

    जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल

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