सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
20 Nov 2022 12:00 PM IST
सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (14 नवंबर, 2022 से 18 नंवबर, 2022 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
अगर ' उसी मामले' में दोषी को हिरासत में लिया गया है तो धारा 428 सीआरपीसी का लाभ लिया जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि धारा 428 सीआरपीसी का लाभ तभी लिया जा सकता है, जब जांच, पूछताछ या ट्रायल के दौरान 'एक ही मामले' में दोषी को हिरासत में लिया गया हो। सीआरपीसी की धारा 428 में यह प्रावधान है कि अभियुक्त द्वारा हिरासत में काटी गई अवधि को सजा या कारावास के खिलाफ सेट ऑफ किया जाए।
इसे इस प्रकार पढ़ा जाता है: जहां एक अभियुक्त व्यक्ति को दोषी ठहराए जाने पर कारावास की सजा दी गई है [जुर्माने के भुगतान में चूक में कारावास नहीं], उसी मामले में जांच, पूछताछ या ट्रायल के दौरान उसके द्वारा काटी गई हिरासत की अवधि, यदि कोई हो, और ऐसी दोषसिद्धि की तारीख से पहले, ऐसी दोषसिद्धि पर उसे दिए गए कारावास की अवधि के विरुद्ध कम किया जाएगा, और ऐसे व्यक्ति की ऐसी दोषसिद्धि पर कारावास से गुजरने का शेष दायित्व, यदि कोई हो, उसे दी गई कारावास की अवधि के बारे में सीमित होगा।
विनय प्रकाश सिंह बनाम समीर गहलौत | 2022 लाइवलॉ (SC) 974 | एमए 1902/ 2022 | 14 नवंबर 2022 | जस्टिस के एम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय
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सीआरपीसी की धारा 439 के तहत जमानत अर्जी पर विचार करते समय 'कस्टोडियल ट्रायल की आवश्यकता' प्रासंगिक पहलू नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के आरोपी को दी गई जमानत रद्द करते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 439 के तहत जमानत अर्जी पर विचार करते समय 'हिरासत में सुनवाई की आवश्यकता' प्रासंगिक पहलू नहीं है।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस हेमा कोहली की पीठ ने देखा कि जमानत अर्जी पर विचार करते समय जिन प्रासंगिक पहलुओं को ध्यान में रखना आवश्यक है, वे हैं- कथित अपराध की गंभीरता हैं; जांच के दौरान एकत्रित सामग्री; अभियोजन पक्ष आदि के बयान।
केस विवरण- एक्स बनाम कर्नाटक राज्य | लाइवलॉ (SC) 972/2022 | सीआरए 1981/2022 | 17 नवंबर, 2022 | जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस हिमा कोहली
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चेक बाउंस - एनआई एक्ट धारा 142 के तहत निर्धारित परिसीमा अवधि समाप्त होने के बाद अतिरिक्त अभियुक्तों को पक्षकार बनाने की अनुमति नहीं है : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चेक बाउंस की शिकायत दर्ज करने के बाद अतिरिक्त अभियुक्तों को पक्षकार बनाने की अनुमति नहीं है, जब एक बार निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 142 के तहत अपराध का संज्ञान लेने के लिए निर्धारित परिसीमा समाप्त हो जाती है।
इस मामले में, हाईकोर्ट ने चेक बाउंस की शिकायत में एक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित समन आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया कि किसी कंपनी का निदेशक निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत अभियोजन के लिए उत्तरदायी नहीं होगा, जब तक कि कंपनी को एक दोषी के तौर पर शामिल ना किया जाए।
पवन कुमार गोयल बनाम यूपी राज्य | 2022 लाइवलॉ (SC) 971 | सीआरए 1999/ 2022 | 17 नवंबर 2022 | जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी
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क्या फैसला सुरक्षित रखने के बाद सीआरपीसी की धारा 319 लागू की जा सकती है ? : सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया कि 'क्या फैसला सुरक्षित रखने के बाद सीआरपीसी की धारा 319 लागू की जा सकती है।'
जस्टिस अब्दुल नज़ीर, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस ए एस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बी वी नागरत्ना की 5-न्यायाधीशों की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी। इससे पहले, याचिकाकर्ता के लिए पेश सीनियर पीएस पटवालिया ने प्रस्तुत किया था कि उनकी राय में उनका मामला हरदीप सिंह बनाम पंजाब राज्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कवर होता है, जो परिस्थितियां निर्धारित करता है जिनमें धारा 319 सीआरपीसी के तहत शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है। एसजी तुषार मेहता ने प्रस्तुत किया कि इसकी व्याख्या की आवश्यकता होगी।
केस : सुखपाल सिंह खैरा बनाम पंजाब राज्य
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गंभीर चोटों के परिणामस्वरूप स्थायी अक्षमता वाले दुर्घटना मामलों में भविष्य की संभावनाओं के लिए मुआवजे का दावा किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भविष्य की संभावनाओं के लिए मुआवजे का दावा दुर्घटना के ऐसे मामलों में किया जा सकता है, जिसमें गंभीर चोटें शामिल हैं, जिसके परिणामस्वरूप स्थायी विकलांगता हो जाती है।
पीठ ने कहा कि उसे हाईकोर्ट और मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरणों द्वारा अपनाए गए विपरीत दृष्टिकोण का पता चला है। अदालत ने कहा कि इस तरह की संकीर्ण व्याख्या अतार्किक है क्योंकि यह दुर्घटना के मामलों में पीड़ित के जीवन में आगे बढ़ने की संभावना को पूरी तरह से नकारती है - और पीड़ित की मृत्यु के मामले में भविष्य की संभावनाओं को स्वीकार करती है।
केस डिटेलः सिदराम बनाम मंडल प्रबंधक यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड | 2022 लाइवलॉ (SC) 968 | CA 8510/2022| 16 नवंबर 2022 | जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पर्दीवाला
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गैर-सांविधिक अनुबंध से उत्पन्न मामले में राज्य द्वारा कार्रवाई की न्यायिक समीक्षा का दायरा - सुप्रीम कोर्ट ने समझाया
बुधवार (16 नवंबर 2022) को दिए गए एक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने गैर-सांविधिक अनुबंध से उत्पन्न मामले में राज्य द्वारा कार्रवाई की न्यायिक समीक्षा के दायरे को समझाया।
जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा, एकमात्र तथ्य यह है कि एक अनुबंध के तहत राहत मांगी गई है जो वैधानिक नहीं है, यदि शिकायत करने वाला पक्ष यह स्थापित करने में सक्षम है कि अनुबंध के तहत कार्रवाई या निष्क्रियता की जांच करने के लिए राज्य को अपने आप में अधिकार नहीं होगा/ निष्क्रियता अपने आप में मनमानी है।
एमपी पावर मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड बनाम स्काई पावर साउथईस्ट सोलर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड | 2022 लाइवलॉ (SC) 966 | एसएलपी (सी) 4609-4610/ 2021 | 16 नवंबर 2022 | जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय
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यह धारणा बन रही है कि किशोरों के साथ जिस नरमी से व्यवहार किया जा रहा है, वह उन्हें जघन्य अपराधों में लिप्त होने के लिए अधिक प्रोत्साहित कर रहा है : सुप्रीम कोर्ट
हमने यह धारणा बनानी शुरू कर दी है कि सुधार के लक्ष्य के नाम पर किशोरों के साथ जिस नरमी से व्यवहार किया जाता है, वह इस तरह के जघन्य अपराधों में लिप्त होने के लिए अधिक से अधिक प्रोत्साहित कर रहा है, सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, कठुआ और जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द करते हुए कि जिन्होंने माना था कि कठुआ बलात्कार-हत्या मामले में एक आरोपी किशोर था। जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस जे बी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि भारत में किशोर अपराध की बढ़ती दर चिंता का विषय है और इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
जम्मू और कश्मीर राज्य बनाम शुभम सांगरा | 2022 लाइवलॉ (SC) 965 | सीआरए 1928/ 2022 | 16 नवंबर 2022 | जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस जेबी पारदीवाला
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परिसीमा अधिनियम की धारा 14 के तहत बाहर की गई अवधि की गणना उस अवधि की गणना के लिए नहीं की जा सकती, जिसके लिए देरी को माफ किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परिसीमा अधिनियम की धारा 14 के तहत बाहर की अवधि की गणना उस अवधि की गणना के लिए नहीं किया जा सकता है, जिसके लिए देरी को माफ किया जा सकता है। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि अवधि को बाहर करना अलग है और देरी की माफी के साथ इसकी तुलना नहीं की जा सकती है।
इस मामले में अपीलीय उपायुक्त (वाणिज्यिक कर) (एफएसी), विजयवाड़ा ने यह कहते हुए एक अपील खारिज कर दी कि विलंब क्षमा योग्य अवधि से परे है। इस आदेश को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था।
केस डिटेलः लक्ष्मी श्रीनिवास आर एंड पी बॉइल्ड राइस मिल बनाम आंध्र प्रदेश राज्य | 2022 लाइवलॉ (SC) 964 | एसएलपी(सी) 11225/2022 | 14 नवंबर 2022 | जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस जे के माहेश्वरी
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आदेश 7 नियम 11 सीपीसी - वाद को केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि 'वादी मुकदमे में किसी भी राहत का हकदार नहीं है': सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सीपीसी के आदेश 7 नियम 11 के तहत केवल इस आधार पर एक वाद खारिज नहीं किया जा सकता है कि 'वादी मुकदमे में किसी भी राहत का हकदार नहीं है'। इस मामले में वादी ने प्रतिवादी के खिलाफ स्थायी निषेधाज्ञा के लिए एक मुकदमा दायर किया।
प्रतिवादी ने सीपीसी के आदेश 7 नियम 11 के तहत वाद की अस्वीकृति की मांग करते हुए एक शिकायत दायर किया और इसे निचली अदालत ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि शिकायत को पढ़ने से प्रथम दृष्टया वादी के संबंध में की गई कार्रवाई का कारण पता चलता है।
केस डिटेलः गुरदेव सिंह बनाम हरविंदर सिंह | 2022 लाइवलॉ (SC) 963 | एसएलपी (सी) 19018/2022 | 9 नवंबर 2022 | जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एमएम सुंदरेश
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क्या मंत्रियों, विधायकों, सांसदों सहित सार्वजनिक पदाधिकारियों की बोलने की आजादी पर अधिक प्रतिबंध लगाया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया कि क्या अन्य बातों के साथ-साथ मंत्रियों, विधायकों, सांसदों सहित सार्वजनिक पदाधिकारियों द्वारा बोलने की आजादी पर अनुच्छेद 19 (2) द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों से अधिक प्रतिबंध होना चाहिए। जस्टिस अब्दुल नज़ीर, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस ए एस बोपन्ना, जस्टिस वी ट रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मुद्दे की सुनवाई की।
केस : कौशल किशोर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, यूपी गृह सचिव
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आयकर अधिनियम की धारा 194एच ट्रैवल एजेंट द्वारा अर्जित ' सप्लीमेंट्री कमीशन' राशि के मामले में आकर्षित होती है, एयरलाइंस टीडीएस काटने के लिए उत्तरदायी : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आयकर अधिनियम की धारा 194एच ट्रैवल एजेंट द्वारा अर्जित सप्लीमेंट्री कमीशन राशि के मामले में आकर्षित होती है और इसलिए एयरलाइंस इस संबंध में टीडीएस काटने के लिए उत्तरदायी हैं।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा और सीआईटी बनाम कतर एयरवेज [2009 SCC ऑनलाइन Bom 2179] में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें अन्यथा आयोजित किया गया था।
सिंगापुर एयरलाइंस लिमिटेड बनाम सीआईटी, दिल्ली | 2022 लाइवलॉ (SC) 959 | सीए 6964-6965/ 2015 | 14 नवंबर 2022 | जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एमएम सुंदरेश
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किसी हस्तक्षेप आदेश की अपील में कानूनी प्रतिनिधियों को केवल वाद में कार्यवाही के लिए सुनिश्चित किया जाएगा : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक अपीलीय अदालत द्वारा किसी हस्तक्षेप आदेश की अपील में कानूनी प्रतिनिधियों को केवल वाद में कार्यवाही के लिए सुनिश्चित किया जाएगा। इस मामले में वादी ने निषेधाज्ञा वाद दायर किया था। अंतरिम निषेधाज्ञा की उसकी अर्जी को निचली अदालत ने खारिज कर दिया था।
अपील के लंबित रहने के दौरान, वादी की मृत्यु हो गई और अपीलीय न्यायालय ने आवेदन को कानूनी प्रतिनिधि को रिकॉर्ड पर लाने की अनुमति दी। बाद में, हाईकोर्ट ने आक्षेपित आदेश में कहा कि एकमात्र वादी की मृत्यु के परिणामस्वरूप वाद को समाप्त कर दिया गया था, और समय के भीतर वाद में कानूनी प्रतिनिधियों के रिकॉर्ड में लाकर इसे अस्थिर नहीं किया गया था।
मरिंगमेई अचम बनाम एम मरिंगमेई खुरीपोऊ| 2022 लाइव लॉ (SC) 958 | सीए 8104/ 2022 | 3 नवंबर 2022 | जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय
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धारा 439 (2) सीआरपीसी - जमानत देने से पहले आरोपी की ओर से सिर्फ कथित अनुशासनहीनता के लिए जमानत रद्द करने का आदेश नहीं दिया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जमानत देने से पहले आरोपी की ओर से किसी कथित अनुशासनहीनता के लिए जमानत रद्द करने का आदेश नहीं दिया जा सकता है।
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा, "जमानत रद्द करने की शक्तियों का आरोपी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के रूप इस्तेमाल करने के लिए नहीं किया जा सकता है।" इसमें कहा गया है कि धारा 439 (2) सीआरपीसी की परिकल्पना केवल ऐसे मामलों में की गई है जहां अभियुक्त की स्वतंत्रता आपराधिक मामले के उचित ट्रायल की आवश्यकताओं को निष्प्रभावी करने वाली है।"
भूरी बाई बनाम मध्य प्रदेश राज्य | 2022 लाइवलॉ ( SC ) 956 | सीआरए 1972/ 2022 | 11 नवंबर 2022 | जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सुधांशु धूलिया
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अयोध्या फैसले के परिशिष्ट के खिलाफ याचिका का निपटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यह अदालत धर्मों की समानता का सम्मान करती है
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अयोध्या के फैसले [एलआर के माध्यम से एम सिद्दीक (मृत) बनाम महंत सुरेश दास और अन्य] में पांच-न्यायाधीशों की खंडपीठ के फैसले के परिशिष्ट में निहित कुछ टिप्पणियों पर अपनी राय व्यक्त की।
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमा कोहली की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध याचिका उक्त निर्णय में कुछ टिप्पणियों को हटाने की मांग करते हुए दायर की गई थी। याचिकाकर्ता ने अयोध्या में राम मंदिर में गुरु नानक के आने के संबंध में एक बचाव पक्ष के गवाह के बयान के बारे में परिशिष्ट फैसले में कुछ संदर्भों पर आपत्ति जताई थी।
[केस टाइटल: मंजीत सिंह रंधावा बनाम भारत संघ WP(C) नंबर 42/2020]