सीआरपीसी की धारा 439 के तहत जमानत अर्जी पर विचार करते समय 'कस्टोडियल ट्रायल की आवश्यकता' प्रासंगिक पहलू नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

18 Nov 2022 5:41 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के आरोपी को दी गई जमानत रद्द करते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 439 के तहत जमानत अर्जी पर विचार करते समय 'हिरासत में सुनवाई की आवश्यकता' प्रासंगिक पहलू नहीं है।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस हेमा कोहली की पीठ ने देखा कि जमानत अर्जी पर विचार करते समय जिन प्रासंगिक पहलुओं को ध्यान में रखना आवश्यक है, वे हैं- कथित अपराध की गंभीरता हैं; जांच के दौरान एकत्रित सामग्री; अभियोजन पक्ष आदि के बयान।

    इस मामले में आरोपी के खिलाफ यह आरोप है कि उसने पेय में कुछ पदार्थ मिलाया, जिससे पीड़िता बेहोश हो गई। उसके बाद उसने उसे नशा करने का अपराध किया और उसके साथ यौन क्रिया की। हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 439 के तहत उनकी जमानत याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि यह आरोप मुकदमे का मामला है और आरोपी 11.02.2022 से हिरासत में है, इसलिए आगे हिरासत में सुनवाई की कोई आवश्यकता नहीं है।

    सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने आरोपों की गंभीरता और अभियुक्तों के खिलाफ लगाए गए अपराधों की गंभीरता पर बिल्कुल भी विचार नहीं किया।

    अदालत ने कहा,

    "हाईकोर्ट एफआईआर में आरोपों की सराहना करने में विफल रहा है कि घटना के तुरंत बाद जब पीड़िता को होश आया तो वह पहले अस्पताल गई और उसके बाद एफआईआर दर्ज करने की कोशिश की, लेकिन कोई शिकायत नहीं दर्ज की गई। इस तरह के मामले में हाईकोर्ट ने इस तथ्य की ठीक से सराहना नहीं की कि कुछ देरी हो सकती है। (हालांकि वर्तमान मामले में यह नहीं कहा जा सकता कि एफआईआर दर्ज करने में कोई अत्यधिक देरी हुई) क्योंकि पीड़ित/अभियोजन पक्ष को सदमे से बाहर निकलने के लिए कुछ समय खर्च किया जा सकता है। मुकदमे के समय उक्त पहलू पर भी विचार किया जाना आवश्यक है।"

    खंडपीठ ने जमानत आदेश रद्द करते हुए हाईकोर्ट को अर्जी पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश दिया।

    खंडपीठ ने यह देखा:

    "यहां तक ​​कि सीआरपीसी की धारा 439 के तहत जमानत अर्जी पर विचार करते समय यह टिप्पणी भी प्रासंगिक पहलू नहीं कि आगे कोस्टोडियल ट्रायल की आवश्यकता नहीं है। अग्रिम जमानत के आवेदन पर विचार करते समय इसकी कुछ प्रासंगिकता हो सकती है।"

    केस विवरण- एक्स बनाम कर्नाटक राज्य | लाइवलॉ (SC) 972/2022 | सीआरए 1981/2022 | 17 नवंबर, 2022 | जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस हिमा कोहली

    दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 439 - जमानत - बलात्कार के अभियुक्त को हाईकोर्ट द्वारा यह देखते हुए जमानत दी गई कि आरोप विचारण का मामला है और कोस्टोडियल ट्रायल की आवश्यकता नहीं है - यहां तक ​​कि यह अवलोकन कि आगे हिरासत में मुकदमे की कोई आवश्यकता नहीं है। जमानत पर विचार करते समय भी कोई प्रासंगिक पहलू नहीं है। हालांकि, सीआरपीसी की धारा 439 के तहत आवेदन अग्रिम जमानत के आवेदन पर विचार करते समय इसकी कुछ प्रासंगिकता हो सकती है - जमानत आवेदन पर विचार करते समय जिन प्रासंगिक पहलुओं को ध्यान में रखा जाना आवश्यक है, वे हैं: कथित अपराध की गंभीरता; जांच के दौरान एकत्रित सामग्री; सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज अभियोजिका का बयान आदि- हाईकोर्ट ने जमानत अर्जी पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश दिया।

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