परिसीमा अधिनियम की धारा 14 के तहत बाहर की गई अवधि की गणना उस अवधि की गणना के लिए नहीं की जा सकती, जिसके लिए देरी को माफ किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

Avanish Pathak

16 Nov 2022 2:40 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परिसीमा अधिनियम की धारा 14 के तहत बाहर की अवधि की गणना उस अवधि की गणना के लिए नहीं किया जा सकता है, जिसके लिए देरी को माफ किया जा सकता है।

    जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि अवधि को बाहर करना अलग है और देरी की माफी के साथ इसकी तुलना नहीं की जा सकती है।

    इस मामले में अपीलीय उपायुक्त (वाणिज्यिक कर) (एफएसी), विजयवाड़ा ने यह कहते हुए एक अपील खारिज कर दी कि विलंब क्षमा योग्य अवधि से परे है। इस आदेश को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था।

    हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने उसके समक्ष 18.01.2018 के मूल्यांकन आदेश को चुनौती दी थी और उसी दिन 07.03.2018 के आदेश द्वारा याचिका को स्वीकार करने के चरण में खारिज कर दिया गया था, जिसमें याचिकाकर्ता को आंध्र प्रदेश मूल्य वर्धित कर अधिनियम के तहत वैधानिक उपाय का लाभ उठाने की स्वतंत्रता दी गई थी।

    कोर्ट ने कहा,

    "हालांकि, याचिकाकर्ता ने 60 दिनों के बाद यानी कानून के तहत माफ की जा सकने वाली अधिकतम अवधि से परे उक्त उपाय का लाभ उठाया। इसलिए अपील को समय सीमा के अनुसार खारिज कर दिया गया।"

    अपील में सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने उल्लेख किया कि 24.02.2018 को रिट याचिका दायर करने की तारीख से अवधि और जिस तारीख को इसे खारिज कर दिया गया था, उस पर विचार नहीं किया गया यानि 07.03.2018 को इस मामले में बाहर रखा जाना चाहिए था।

    कोर्ट ने कहा,

    "रिट कार्यवाही बनाए रखने योग्य थी, लेकिन विचार नहीं किया गया। रिट याचिका दायर करने में अपीलकर्ता की सदाशयता को चुनौती नहीं दी जाती है। इसके अलावा, रिट याचिका खारिज होने के तुरंत बाद, अपीलकर्ता ने अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष अपील दायर की। उपरोक्त अवधि, अपीलकर्ता द्वारा की गई अपील क्षमा करने योग्य अवधि के भीतर होगी।"

    धारा 14 सीमा अधिनियम

    परिसीमा अवधि की धारा 14 बिना अधिकार क्षेत्र के अदालत में वास्तविक कार्यवाही के समय को बाहर करने का प्रावधान करती है।

    उक्त प्रावधान इस प्रकार है:

    (1) किसी भी वाद के लिए परिसीमा अवधि की गणना करने में, जिस समय के दौरान वादी सम्यक् तत्परता के साथ एक अन्य दीवानी कार्यवाही चला रहा है, चाहे प्रथम दृष्टया या अपील या पुनरीक्षण की अदालत में, प्रतिवादी के खिलाफ बाहर रखा जाएगा, जहां कार्यवाही एक ही मामले से संबंधित है और एक अदालत में सद्भावपूर्वक मुकदमा चलाया जाता है, जो क्षेत्राधिकार के दोष या इसी तरह के अन्य कारणों से इसे ग्रहण करने में असमर्थ है।

    (2) किसी भी आवेदन के लिए सीमा की अवधि की गणना करने में, वह समय जिसके दौरान आवेदक एक ही राहत के लिए एक ही पार्टी के खिलाफ प्रथम दृष्टया या अपील या पुनरीक्षण की अदालत में उचित परिश्रम के साथ मुकदमा चला रहा है, बाहर रखा जाएगा, जहां इस तरह की कार्यवाही एक अदालत में अच्छे विश्वास में मुकदमा चलाया जाता है, जो क्षेत्राधिकार के दोष या इसी तरह के अन्य कारणों से इसे ग्रहण करने में असमर्थ है।

    (3)इस खंड के प्रयोजनों के लिए, - (ए) उस समय को छोड़कर जिसके दौरान एक पूर्व सिविल कार्यवाही लंबित थी, जिस दिन वह कार्यवाही शुरू की गई थी और जिस दिन यह समाप्त हुई थी, दोनों की गणना की जाएगी; (बी) एक वादी या अपील का विरोध करने वाले आवेदक को कार्यवाही चलाने के लिए समझा जाएगा; (सी) पार्टियों या कार्रवाई के कारणों के गलत संयोजन को क्षेत्राधिकार के दोष के साथ समान प्रकृति का कारण माना जाएगा।

    समय को बाहर करना अलग है..

    धारा 14 परिसीमा अधिनियम पर, अदालत ने इस प्रकार कहा:

    "समय को बाहर करना अलग है, और देरी की माफी के साथ बराबरी नहीं की जा सकती है। एक बार बाहर की गई अवधि को उस अवधि की गणना के उद्देश्य से नहीं गिना जा सकता जिसके लिए देरी को माफ किया जा सकता है। निश्चित रूप से सीमा अधिनियम, 1963 की धारा 14 के तहत समय को बाहर करने के लिए, धारा 14 में निर्धारित शर्तों को पूरा करना होगा।"

    अपील को स्वीकार करते हुए, पीठ ने अपीलीय प्राधिकारी को गुण-दोष के आधार पर अपील की जांच करने का निर्देश दिया।

    केस डिटेलः लक्ष्मी श्रीनिवास आर एंड पी बॉइल्ड राइस मिल बनाम आंध्र प्रदेश राज्य | 2022 लाइवलॉ (SC) 964 | एसएलपी(सी) 11225/2022 | 14 नवंबर 2022 | जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस जे के माहेश्वरी

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