BREAKING| हिरासत में लिया गया आरोपी दूसरे मामले के लिए अग्रिम जमानत मांग सकता है : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-09-09 06:29 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि एक मामले के सिलसिले में पहले से हिरासत में लिया गया आरोपी दूसरे मामले के सिलसिले में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकता है।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने ऐसे मामले में फैसला सुनाया, जिसमें यह कानूनी मुद्दा उठाया गया था कि क्या आरोपी को दूसरे मामले में गिरफ्तार किए जाने पर अग्रिम जमानत दी जा सकती है।

मामले का निष्कर्ष

जस्टिस जेबी पारदीवाला ने फैसले के मुख्य निष्कर्ष इस प्रकार पढ़े :

आरोपी किसी अपराध के सिलसिले में अग्रिम जमानत मांगने का हकदार है, जब तक कि उसे उस अपराध के सिलसिले में गिरफ्तार नहीं किया जाता। एक बार जब उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है तो उसके पास उपलब्ध एकमात्र उपाय धारा 437/439 सीआरपीसी के तहत नियमित जमानत के लिए आवेदन करना है।

सीआरपीसी या किसी अन्य कानून में ऐसा कोई स्पष्ट या निहित प्रतिबंध नहीं है, जो सेशन कोर्ट या हाईकोर्ट को किसी अपराध के संबंध में अग्रिम जमानत आवेदन पर विचार करने और निर्णय लेने से रोकता है, जबकि आवेदक किसी अन्य अपराध के संबंध में हिरासत में है।

सीआरपीसी की धारा 438 में कोई प्रतिबंध नहीं पढ़ा जा सकता, जो किसी आरोपी को किसी अन्य अपराध में हिरासत में होने के दौरान किसी अपराध के संबंध में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन करने से रोकता है, क्योंकि यह प्रावधान के उद्देश्य और विधायिका के इरादे के खिलाफ होगा। धारा 438 सीआरपीसी के तहत अग्रिम जमानत देने की अदालत की शक्ति पर एकमात्र प्रतिबंध धारा 438 सीआरपीसी की उप-धारा (4) और SC/ST Act आदि जैसे अन्य कानूनों के तहत निर्धारित है।

किसी विशेष अपराध में पहले से ही हिरासत में लिया गया व्यक्ति किसी अन्य अपराध में गिरफ्तारी की आशंका करता है तो बाद का अपराध सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए अलग अपराध है। तब इसका अर्थ यह होगा कि बाद के अपराध के संबंध में अभियुक्त और जांच एजेंसी को कानून द्वारा दिए गए सभी अधिकार स्वतंत्र रूप से संरक्षित हैं।

जांच एजेंसी, यदि आवश्यक समझे, तो किसी अपराध में पूछताछ/जांच के उद्देश्य से अभियुक्त की रिमांड मांग सकती है, जबकि वह पिछले अपराध के संबंध में हिरासत में है, जब तक कि बाद के अपराध के संबंध में अग्रिम जमानत देने का आदेश पारित नहीं किया गया हो। हालांकि, यदि अभियुक्त द्वारा अग्रिम जमानत देने का आदेश प्राप्त कर लिया जाता है तो जांच एजेंसी के लिए बाद के अपराध के संबंध में अभियुक्त की रिमांड मांगना अब खुला नहीं रहेगा। इसी तरह यदि अभियुक्त द्वारा अग्रिम जमानत का आदेश प्राप्त करने में सक्षम होने से पहले रिमांड का आदेश पारित किया जाता है तो उसके बाद अभियुक्त के लिए अग्रिम जमानत मांगना खुला नहीं होगा। उसके पास उपलब्ध एकमात्र विकल्प नियमित जमानत मांगना है।

धारा 438 सीआरपीसी के तहत अभियुक्त के लिए गिरफ्तारी से पहले जमानत के लिए आवेदन करने की पूर्व शर्त यह मानने का कारण है कि उसे गिरफ्तार किए जाने की संभावना है। इसलिए उक्त अधिकार का प्रयोग करने के लिए एकमात्र पूर्व शर्त यह है कि अभियुक्त को यह आशंका हो कि उसे गिरफ्तार किया जा सकता है।

एक मामले में हिरासत का प्रभाव दूसरे मामले में गिरफ्तारी की आशंका खत्म करने जैसा नहीं होता।

न्यायालय याचिकाकर्ता के लिए सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे की दलील से सहमत था कि अभियुक्त के व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने का अधिकार धारा 438 सीआरपीसी के प्रावधानों पर आधारित है और इसे कानून द्वारा स्थापित वैध प्रक्रिया के बिना पराजित या विफल नहीं किया जा सकता।

न्यायालय ने कहा,

यदि प्रतिवादी के लिए सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा द्वारा प्रस्तुत व्याख्या स्वीकार की जाती है तो इससे न केवल व्यक्ति के गिरफ्तारी-पूर्व जमानत के लिए आवेदन करने के अधिकार को पराजित किया जाएगा, बल्कि इससे बेतुकी स्थितियाँ भी पैदा हो सकती हैं।

मिस्टर लूथरा का मुख्य तर्क यह था कि धारा 41 के तहत गिरफ्तारी की शक्ति का उपयोग उस व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए नहीं किया जा सकता, जो पहले से ही हिरासत में है।

केस टाइटल: धनराज अश्विनी बनाम अमर एस. मूलचंदानी और अन्य डायरी नंबर - 51276/2023

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