S. 413 BNSS | आरोपी को बरी किए जाने के खिलाफ अपील करने के लिए पीड़ित को विशेष अनुमति की आवश्यकता नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट

Update: 2024-08-16 04:06 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने माना कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 413 के तहत बरी किए जाने के आदेश के खिलाफ अपील दायर करने के लिए किसी विशेष अनुमति की आवश्यकता नहीं, जिसमें मामले में शिकायतकर्ता स्वयं पीड़ित है।

जस्टिस बीरेंद्र कुमार की पीठ ने कहा कि BNSS की धारा 413 सीआरपीसी की धारा 372 के अनुरूप है, जहां प्रावधान के तहत पीड़ित को बरी किए जाने के आदेश, या कम गंभीर अपराध के लिए आरोपी को दोषी ठहराए जाने या अपर्याप्त मुआवजा लगाए जाने के आदेश के खिलाफ अपील करने का अधिकार दिया गया।

न्यायालय ने मल्लिकार्जुन कोडगली बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य और जोसेफ स्टीफन और अन्य बनाम संथानसामी और अन्य के सुप्रीम कोर्ट के मामलों का भी हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि पीड़िता को अपील के लिए विशेष अनुमति दाखिल करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उसे सीआरपीसी की धारा 372 के प्रावधान के तहत अपील का वैधानिक अधिकार है, जिसमें अपील के लिए विशेष अनुमति प्राप्त करने की कोई शर्त निर्धारित नहीं की गई।

न्यायालय ने कहा,

"स्पष्ट रूप से, पीड़िता को अपीलीय फोरम के समक्ष अपील करने का अधिकार है। अपील करने के लिए किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं है। इसलिए वर्तमान अपील संबंधित जिला एवं सत्र न्यायाधीश के समक्ष दायर की जानी चाहिए।"

न्यायालय धारा 138, NI Act के तहत एक मामले में शिकायतकर्ता द्वारा दायर अपील की अनुमति देने के लिए एक आवेदन पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें आरोपी को बरी कर दिया गया। आवेदक के वकील ने सीआरपीसी की धारा 378(4) का हवाला दिया, जिसमें प्रावधान है कि बरी किए जाने के आदेश के मामले में शिकायतकर्ता हाईकोर्ट की विशेष अनुमति लेने के बाद अपील दायर कर सकता है।

इस तर्क को खारिज करते हुए न्यायालय ने BNSS की धारा 2(वाई) का हवाला दिया, जिसमें "पीड़ित" को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया, जिसे आरोपी व्यक्ति के किसी कार्य या चूक के कारण कोई नुकसान या चोट लगी हो।

इसलिए न्यायालय ने कहा कि शिकायतकर्ता मामले में पीड़ित था।

उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर न्यायालय द्वारा निम्नलिखित टिप्पणियां की गईं:

"कानून अच्छी तरह से स्थापित है कि कोई भी व्यक्ति आपराधिक कार्यवाही शुरू कर सकता है, अगर उसे किसी संज्ञेय अपराध के होने का ज्ञान है तो ऐसा कदम पुलिस में एफआईआर दर्ज करके या मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत याचिका दायर करके उठाया जा सकता है। यदि ऐसा शिकायतकर्ता ऊपर परिभाषित अनुसार पीड़ित नहीं है तो उसे बरी किए जाने के खिलाफ अपील करने के लिए हाईकोर्ट के समक्ष अनुमति आवेदन प्रस्तुत करना होगा। हालांकि, अगर शिकायतकर्ता अपराध का पीड़ित है तो उसे धारा 413 BNSS के प्रावधान के तहत बरी किए जाने, कमतर अपराध के लिए दोषसिद्धि या अपर्याप्त मुआवजा लगाए जाने के खिलाफ अपील करने का अधिकार होगा।"

तदनुसार, न्यायालय ने आवेदन खारिज किया तथा आवेदक को संबंधित जिला एवं सत्र न्यायाधीश के समक्ष नियमित अपील दायर करने का निर्देश दिया।

केस टाइटल: विक्रम मनशानी बनाम प्रवीण शर्मा

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