सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2023-02-05 06:17 GMT

सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (30 जनवरी, 2023 से 3 फरवरी, 2023 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

वीआरएस लेने वाले कर्मचारी आयु प्राप्त करने पर सेवानिवृत्त होने वाले अन्य लोगों के साथ समानता का दावा नहीं कर सकते : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) के तहत सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारी वेतन संशोधन के उद्देश्यों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु प्राप्त करने पर सेवानिवृत्त होने वाले अन्य लोगों के साथ समानता का दावा नहीं कर सकते हैं।

केस : महाराष्ट्र राज्य वित्तीय निगम पूर्व कर्मचारी संघ और अन्य। बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य। सिविल अपील सं. 778/202 [@ विशेष अनुमति याचिका (सिविल) संख्या 1902/ 2019]

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मरने का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने इच्छामृत्यु चुनने के लिए लोगों शर्तें आसान कीं, अग्रिम चिकित्सा निर्देशों/ विल पर 2018 के निर्देशों में ढील दी

सुप्रीम कोर्ट ने 2018 के उस फैसले में अग्रिम चिकित्सा निर्देशों, या लिविंग विल से संबंधित निर्देशों में संशोधन किया है, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के साथ जीने के अधिकार के एक अविच्छेद पहलू के रूप में गरिमा के साथ मरने के अधिकार को मान्यता दी गई थी और तदनुसार, इच्छामृत्यु की कानूनी वैधता को बरकरार रखा था।

संशोधन आदेश उस संविधान पीठ द्वारा पारित किया गया था जिसमें जस्टिस के एम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सी टी रविकुमार शामिल थे जो इंडियन काउंसिल फॉर क्रिटिकल केयर मेडिसिन के एक आवेदन पर विचार कर रहे थे। पीठ द्वारा 24 जनवरी को लिखे गए आदेश को हाल ही में अपलोड किया गया था।

केस- कॉमन कॉज बनाम भारत संघ | रिट याचिका (सिविल) संख्या 215/ 2005 में विविध आवेदन संख्या 1699/ 2019

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धर्मनिरपेक्ष राज्य को किसी भी कीमत पर हेट स्पीच को रोकना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर देते हुए कि भारत "धर्मनिरपेक्ष राज्य" है और हेट स्पीच की अनुमति नहीं दी जा सकती है, शुक्रवार को निर्देश दिया कि 5 फरवरी को मुंबई में 'सकल हिंदू समाज' द्वारा प्रस्तावित बैठक की पुलिस द्वारा वीडियोग्राफी की जानी चाहिए और न्यायालय को इसकी सूचना दी जानी चाहिए। न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि यदि हेट स्पीच या कानून और व्यवस्था की समस्याओं को रोकने के लिए गिरफ्तारी आवश्यक है तो पुलिस को सीआरपीसी की धारा 151 के आदेश के अनुसार कार्य करना चाहिए।

केस टाइटल: शाहीन अब्दुल्ला बनाम भारत संघ डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 940/2022

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धारा 138 एनआई एक्ट| पार्टियों के बीच अपराध को संयोजित करने के लिए पार्टियों के बीच हुए समझौते को ओवरराइड कर दोष सिद्धि की पुष्टि नहीं की जा सकती: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में तेलंगाना हाईकोर्ट के एक आदेश को रद्द कर दिया, जिसने पार्टियों के बीच अपराध को संयोजित करने के लिए हुए एक समझौते को ओवरराइड करते हुए चेक बाउंस मामले में सजा की पुष्टि की ‌थी।

जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की एक पीठ ने कहा कि जब मुकदमेबाजी की कार्यवाही में शामिल पक्षकारों ने एक संयोजन योग्य अपराध को संयोजित करने के लिए एक समझौते में प्रवेश किया है तो हाईकोर्ट ऐसे समझौते को रद्द नहीं कर सकते हैं और पार्टियों पर अपनी इच्छा नहीं थोप सकते हैं।

केस टाइटल: बीवी सेशैया बनाम तेलंगाना राज्य और बी वामसी कृष्णा बनाम तेलंगाना राज्य

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न्यायिक अकादमियों में जमानत और गिरफ्तारी दिशानिर्देशों पर उनके दो जजमेंट्स को कोर्स का हिस्सा बनाया जाए, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने निर्देश दिया कि न्यायिक अकादमियों में जमानत और गिरफ्तारी दिशानिर्देशों पर उनके दो जजमेंट्स को कोर्स का हिस्सा बनाया जाए, जहां न्यायिक अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है। कोर्ट ने सिद्धार्थ बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एलएल 2021 एससी 391 मामले में 2021 के फैसले और सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो 2022 लाइव लॉ (एससी) 577 मामले में 2022 के फैसले को कोर्स का हिस्सा बनाने का निर्देश दिया है।

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मोदी पर बनी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को बैन करने के खिलाफ याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया

बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' को ब्लॉक करने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र को नोटिस जारी किया। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एमएम सुंदरेश की खंडपीठ ने निर्देश दिया कि केंद्र सुनवाई की अगली तारीख पर आदेश से संबंधित ओरिजिनल रिकॉर्ड पेश करे।

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वैवाहिक विवादों से संबंधित अपराधों के मामलों में पक्षों के बीच आपराधिक कार्यवाही को रद्द किया जा सकता है अगर उन्होंने वैवाहिक विवादों को वास्तव में सुलझाया लिया है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि वैवाहिक विवादों से संबंधित अपराधों के मामलों में पक्षों के बीच आपराधिक कार्यवाही को रद्द किया जा सकता है अगर उन्होंने वैवाहिक विवादों को वास्तव में सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाया लिया है। इस मामले में, पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर के अनुसार पति पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए, 427, 504 और 506 के तहत आरोप लगाया गया था। दंपति ने एक समझौता किया और आपसी सहमति से तलाक की डिक्री उन्हें मंजूर कर ली गई।

रंगप्पा जवूर बनाम कर्नाटक राज्य | 2023 लाइवलॉ (SC) 74 | एसएलपी(सीआरएल) डायरी 33313/2019 | 30 जनवरी 2023 | जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एमएम सुंदरेश

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ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया कैटेगरी के स्टूडेंट्स को जनरल सीटों से प्रतिबंधित करने का केंद्र का फैसला 04.03.2021 से संभावित रूप से लागू होगा: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा 2021 में जारी की गई अधिसूचना - जिसने ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) कैटेगरी के स्टूडेंट्स के जनरल सीटों के लिए आवेदन करने के अधिकार को छीन लिया और उनके अधिकार को केवल अनिवासी भारतीयों (NRI) कैटेरगी की सीटें तक सीमित कर दिया। ये अधिसूचना की तारीख से संभावित रूप से लागू होंगी, जो कि 4 मार्च, 2021 है।

[केस टाइटल: अनुष्का रंगुंथवार और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य। WP(C) No.891/2021]

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अनुच्छेद 226 | जब केवल कानून के प्रश्न उठाए गए हों, तब रिट याचिका को वैकल्पिक उपायों के आधार पर खारिज नहीं किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह के मनोरंजन के लिए एक असाधारण मामला बनाया गया है या नहीं, इसकी जांच किए बिना वैकल्पिक उपाय के आधार पर एक रिट याचिका को खारिज करना उचित नहीं है।

जस्टिस एस रवींद्र भट और दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा, "जहां विवाद विशुद्ध रूप से कानूनी है और इसमें तथ्य के विवादित प्रश्न शामिल नहीं हैं, बल्कि केवल कानून के प्रश्न शामिल हैं, तो वैकल्पिक उपाय उपलब्ध होने के आधार पर रिट याचिका को खारिज करने के बजाय हाईकोर्ट द्वारा इसका निर्णय लिया जाना चाहिए"।

केस डिटेलः गोदरेज सारा ली लिमिटेड बनाम एक्साइज एंड टैक्सेशन ऑफिसर कम असेसिंग अथॉरिटी | 2023 लाइवलॉ (SC) 70 | सीए 5393 ‌ऑफ 2010| एक फरवरी 2023 | जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस दीपांकर दत्ता

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पागलपन की दलील साबित करने के लिए अभियुक्त पर सबूत का बोझ संभाव्यता की प्रबलता में से एक है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने पागलपन की दलील को स्वीकार करते हुए हाल ही में ट्रायल कोर्ट के 2006 के एक फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें हत्या के अपराध के लिए एक व्यक्ति को दोषी ठहराया गया था। कोर्ट ने कहा कि 2004 में हुए अपराध के समय अपीलकर्ता को सिज़ोफ्रेनिया का इलाज चल रहा था।

रिकॉर्ड पर सबूत थे कि घटना से पहले, उसने मानसिक बीमारी के लिए एक सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में इलाज कराया था। अपीलकर्ता की बीमारी के संबंध में दो डॉक्टरों ने भी अदालत के समक्ष गवाही दी थी। हालांकि, ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने उन कारकों को खारिज कर दिया।

मामलाः प्रकाश नयी @ सेन बनाम गोवा राज्य | 2023 लाइवलॉ (SC) 71 | सीआरए 2010 ऑफ 2010 | 12 जनवरी 2023 | जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एमएम सुंदरेश

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यदि ज़मानत देने की तारीख से एक महीने के भीतर ज़मानत बॉन्ड नहीं दिया जाता तो ट्रायल कोर्ट स्वतः संज्ञान लेकर शर्तों में छूट दे सकता है : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने उन विचाराधीन कैदियों के मुद्दे पर सुनवाई की जो जमानत का लाभ दिए जाने के बावजूद हिरासत में हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश की जेलों में हर महीने 5000 लोगों का अत्यधिक बोझ है, क्योंकि वे केवल जमानत बॉन्ड भरने में असमर्थ हैं।

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओक की सुप्रीम कोर्ट की बेंच स्वत: संज्ञान रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे ज़मानत देने के लिए एक व्यापक नीति रणनीति जारी करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।

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जमानत मिलने के बाद कैदियों की रिहाई में देरी से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए निर्देश

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने उन विचाराधीन कैदियों के मुद्दे पर निम्नलिखित दिशा-निर्देश जारी किए हैं जो जमानत आदेश में निर्धारित शर्तों को पूरा करने में असमर्थता के कारण जमानत का लाभ दिए जाने के बावजूद हिरासत में हैं।

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'संसद को तय करना है कि उम्मीदवारों को दो सीटों से चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाए या नहीं': सुप्रीम कोर्ट ने आरपी एक्ट की धारा 33(7) को चुनौती खारिज की

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 33 (7) की संवैधानिकता के खिलाफ एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसके तहत एक उम्मीदवार को चुनाव में दो सीटों से लड़ने की अनुमति दी जाती है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने यह देखते हुए कि यह विधायी नीति का मामला है, अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका को खारिज कर दिया।

केस टाइटल: अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम यूनियन ऑफ इंडिया| डब्ल्यूपी (सी) नंबर 967/2017

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सभी अदालतों में मामलों की सुनवाई के लिए हाइब्रिड सिस्टम होना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मौखिक रूप से कहा कि देश की सभी अदालतों में मामलों की सुनवाई के लिए एक हाईब्रिड प्रणाली होनी चाहिए। जस्टिस एसके कौल और जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका की पीठ के समक्ष सीनियर एडवोकेट पी विल्सन ने कहा कि वादकारियों के लाभ के लिए सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय पीठ आवश्यक हैं।

केस टाइटल: आई.एस. इनबदुरई बनाम अप्पावु| सीए संख्या 1055/2022

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दो साल से अधिक समय के बाद जेल से रिहा हुए केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन

धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा जमानत दिए जाने के 1 महीने से अधिक समय बाद, दो साल से अधिक समय से जेल में बंद रहे केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन (Siddique Kappan) को रिहा किया गया। बता दें, कप्पन को 5 अक्टूबर, 2020 को हाथरस में अशांति पैदा करने की साजिश के आरोप में तीन अन्य लोगों के साथ हाथरस जाते समय गिरफ्तार किया गया था, जहां एक दलित लड़की के साथ कथित रूप से सामूहिक बलात्कार और हत्या कर दी गई थी। हालांकि, यह उनका मामला है कि एक पत्रकार होने के नाते वह मामले की रिपोर्ट करने के लिए वहां जा रहे थे।

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कोर्ट फीस का भुगतान करने के लिए धन की कमी अपील दायर करने में देरी को माफ करने का पर्याप्त कारण नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि कोर्ट फीस का भुगतान करने के लिए धन की कमी अपील दायर करने में देरी को माफ करने का पर्याप्त कारण नहीं है। ऐसी स्थिति में सीपीसी की धारा 149 के संदर्भ में एक अपील दायर की जा सकती है और उसके बाद कम कोर्ट फीस का भुगतान करके दोषों को दूर किया जा सकता है।

इस मामले में, उच्च न्यायालय ने परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा 5 के तहत दायर देरी माफी आवेदनों को खारिज कर दिया। इसमें 254 दिनों की देरी को माफ करने से इनकार दिया था। कहा गया था कि देरी के लिए माफी के लिए निर्धारित कारण पर्याप्त कारण नहीं थे। देरी के लिए निर्धारित एकमात्र कारण यह था कि उसके पास कोर्ट फीस का भुगतान करने के लिए पर्याप्त धन नहीं था।

अजय डबरा बनाम प्यारे राम | 2023 लाइवलॉ (SC) 69| एसएलपी (सी) नंबर 15793 ऑफ 2019 | 31 जनवरी 2023 | जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस सुधांशु धूलिया

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आईपीसी की धारा 497 को रद्द करने के बावजूद सशस्‍त्र बल कर्मी को व्यभिचार के लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना होगा: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण है फैसले में स्पष्ट किया कि शीर्ष अदालत ने 2018 में एक फैसले में आईपीसी की धारा 497 को रद्द कर दिया था, ‌जिसके तहत व्यभिचार को अपराध माना जाता था, इसके बाद भी व्यभिचार के लिए सशस्त्र बल में कार्यरत व्यक्ति के खिलाफ शुरू की गई कोर्ट मार्शल की कार्यवाही प्रभावित नहीं होगी।

पीठ ने कहा कि जोसेफ शाइन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में 2018 का फैसला सशस्त्र बल अधिनियमों के प्रावधानों से बिल्कुल भी संबंधित नहीं था। पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 33 के अनुसार, सशस्त्र बलों को नियंत्रित करने वाले कानून मौलिक अधिकारों की प्रयोज्यता से छूट प्रदान कर सकते हैं।

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केवल अंग्रेजी ट्रांसलेशन में ही गवाहों की गवाही रिकॉर्ड न करें; सीआरपीसी की धारा 277 का पालन करें: सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से कहा

सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के जजों द्वारा उस गवाह के बयान का अनुवाद करके केवल अंग्रेजी भाषा में दर्ज करने की प्रथा को अस्वीकार कर दिया, जो अलग भाषा में गवाही देता है। गवाह के साक्ष्य को कोर्ट की भाषा में या गवाह की भाषा में, जैसा भी संभव हो, दर्ज किया जाना चाहिए और फिर रिकॉर्ड का हिस्सा बनाने के लिए कोर्ट की भाषा में इसका अनुवाद किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गवाह की गवाही को केवल अंग्रेजी भाषा में अनूदित रूप में रिकॉर्ड पर रखने की अनुमति नहीं है, यदि गवाह कोर्ट की भाषा में या अपनी स्थानीय भाषा में गवाही देता है।

केस का ब्योरा- नईम अहमद बनाम (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) सरकार | 2023 लाइवलॉ (एससी) 66 | सीआरए 257/ 2023 | 30 जनवरी 2023 | जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी

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धारा 482 सीआरपीसी। वाद के लंबित होने को छिपाया गया, सिविल विवाद को अपराध का लबादा पहनाने का प्रयास किया गया : सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक कार्यवाही रद्द की

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि धारा 482 सीआरपीसी के तहत शक्तियों के प्रयोग में आपराधिक कार्यवाही को रद्द किया जा सकता है, जब यह पाया जाता है कि किसी विवाद को "आपराधिक कृत्य का लबादा" पहनाने का प्रयास किया गया था जो अनिवार्य रूप से सिविल प्रकृति का है।

अदालत ने यह कहते हुए आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया कि धारा 156 (3), सीआरपीसी के तहत दायर आवेदन कथित अपराधों को आकर्षित करने के लिए आवश्यक सामग्री को संतुष्ट नहीं करता है और वे अस्पष्ट हैं। साथ ही, आवेदन में आकस्मिक घटना पर लंबित सिविल विवाद के अस्तित्व का खुलासा नहीं किया गया था।

केस : उषा चक्रवर्ती और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य। एसएलपी (क्रिमिनल) 2022 / 5866

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विवाह आपसी प्रेम और स्नेह पर आधारित, नियम और शर्तों पर नहीं : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मौखिक रूप से कहा, "विवाह आपसी प्रेम और स्नेह पर आधारित है न कि नियमों और शर्तों पर।" जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की खंडपीठ ने पति-पत्नी की जोड़ी के बीच वैवाहिक विवाद से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। आज सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों के वकीलों ने सूचित किया कि वे विवाह संबंध को एक और मौका देना चाहते हैं। हालांकि, पत्नी के वकील ने अनुरोध किया कि मामले को सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता केंद्र में भेजा जाए।

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जेट एयरवेज दिवाला: सुप्रीम कोर्ट ने एनसीएलएटी के आदेश की पुष्टि की, सफल बोली लगाने वाले को कर्मचारियों के पीएफ, ग्रेच्युटी बकाया चुकाने का निर्देश दिया

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें जेट एयरवेज लिमिटेड के सफल समाधान आवेदक जालान फ्रिट्श कंसोर्टियम को कर्मचारियों की ग्रेच्युटी और भविष्य निधि बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने जालान फ्रिट्च कंसोर्टियम द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया।

मामला : जालान फ्रित्श कंसोर्टियम बनाम क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त और अन्य| सीए संख्या 407/2023

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जब एक बेटे ने पिता की स्व-अर्जित संपत्ति पर अपना अधिकार छोड़ दिया तो उसके बेटों को हिस्से का दावा करने से वर्जित किया जाएगा : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि संपत्ति पर दावा करने से एस्टॉपेल यानी विबंधन के प्रभाव को उन व्यक्तियों द्वारा दावा नहीं किया जा सकता है जिनके आचरण ने एस्टॉपेल उत्पन्न किया है। जस्टिस के एम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय ने कहा कि जब एक बेटा पिता की स्व-अर्जित संपत्ति पर अपना अधिकार छोड़ देता है; और विबंधन का सिद्धांत इस आचरण पर प्रतिफल की प्राप्ति के साथ बेटे और उसके उत्तराधिकारियों पर लागू होगा।

एलुमलाई @वेंकेटशन और अन्य बनाम एम कमला और अन्य। और आदि | 2023 लाइवलॉ (SC) 65 | सीए 521-522 /2023 | 25 जनवरी 2023 |

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