'संसद को तय करना है कि उम्मीदवारों को दो सीटों से चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाए या नहीं': सुप्रीम कोर्ट ने आरपी एक्ट की धारा 33(7) को चुनौती खारिज की

Avanish Pathak

2 Feb 2023 9:22 AM GMT

  • Supreme Court

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    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 33 (7) की संवैधानिकता के खिलाफ एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसके तहत एक उम्मीदवार को चुनाव में दो सीटों से लड़ने की अनुमति दी जाती है।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने यह देखते हुए कि यह विधायी नीति का मामला है, अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका को खारिज कर दिया।

    याचिका में कहा गया था कि प्रावधान सरकारी खजाने पर अतिरिक्त बोझ पैदा करता है, इसलिए अनुचित और मनमाना है। प्रावधान के कारण उपचुनाव अनिवार्य रूप से होते हैं क्योंकि उम्मीदवारों को दोनों सीटों से जीतने की स्थिति में एक सीट छोड़नी पड़ती है।

    पीठ ने आदेश में कहा,

    "एक उम्मीदवार को एक से अधिक सीट पर चुनाव लड़ने की अनुमति देना विधायी नीति का मामला है क्योंकि अंततः यह संसद की इच्छा है कि क्या राजनीतिक लोकतंत्र को इस तरह का विकल्प देकर आगे बढ़ाया जाता है।"

    पीठ ने आगे कहा, "उम्मीदवार विभिन्न कारणों से विभिन्न सीटों से चुनाव लड़ सकते हैं। क्या यह लोकतंत्र को आगे बढ़ाएगा यह संसद पर निर्भर है।"

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने प्रावधान को समाप्त करने के लिए विधि आयोग द्वारा की गई सिफारिशों पर भरोसा किया। इस संबंध में, पीठ ने कहा कि विधि आयोग की सिफारिशों पर कार्रवाई करना संसद का विशेषाधिकार है। विधि आयोग की सिफारिश के आधार पर एक वैधानिक प्रावधान को असंवैधानिक के रूप में रद्द नहीं किया जा सकता है।

    शंकरनारायणन ने बताया कि 1966 से पहले एक उम्मीदवार कई सीटों पर चुनाव लड़ सकता था। हालांकि, 1966 में संशोधन के जर‌िए यह संख्या को दो तक सीमित कर दी गई। पीठ ने कहा कि संसद यह विचार कर सकती है कि संख्या को और सीमित करना उचित है या नहीं और वह हमेशा अधिनियम में संशोधन कर सकती है। हालांकि, एक न्यायिक हस्तक्षेप अनुचित है।

    याचिकाकर्ता ने एक वैकल्पिक राहत की मांग की थी कि जो उम्मीदवार दो सीटों से चुनाव लड़ना चाहते हैं उन्हें अधिक राशि जमा करने के लिए कहा जाना चाहिए। इस प्रार्थना को भी पीठ ने नीतिगत मामला बताते हुए विचार नहीं किया।

    सुनवाई के दरमियान सीजेआई चंद्रचूड़ ने मौखिक रूप से कहा कि ये राजनीतिक लोकतंत्र के मामले हैं न कि न्यायिक हस्तक्षेप के लिए।

    सीजेआई ने याचिकाकर्ता से पूछा, "इसमें गलत क्या है?",

    सीजेआई ने मौखिक रूप से कहा, इसे देखने का एक और तरीका है। एक नेता कह सकता है कि मैं पूरे देश के स्तर पर अपने दल को स्थापित करना चाहता हूं और यह दिखाना चाहता हूं कि मैं पश्चिम, पूर्व, उत्तर, दक्षिण से खड़ा हो सकता हूं। ये सभी राजनीतिक फैसले हैं और आखिरकार मतदाता तय करेंगे।"

    जस्टिस नरसिम्हा ने कहा, "इसमें कोई अनैतिकता नहीं है। ऐतिहासिक शख्सियतें हैं, जिनकी उस तरह की लोकप्रियता थी।"


    केस टाइटल: अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम यूनियन ऑफ इंडिया| डब्ल्यूपी (सी) नंबर 967/2017

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