केवल अंग्रेजी ट्रांसलेशन में ही गवाहों की गवाही रिकॉर्ड न करें; सीआरपीसी की धारा 277 का पालन करें: सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से कहा

LiveLaw News Network

31 Jan 2023 6:32 AM GMT

  • केवल अंग्रेजी ट्रांसलेशन में ही गवाहों की गवाही रिकॉर्ड न करें; सीआरपीसी की धारा 277 का पालन करें: सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के जजों द्वारा उस गवाह के बयान का अनुवाद करके केवल अंग्रेजी भाषा में दर्ज करने की प्रथा को अस्वीकार कर दिया, जो अलग भाषा में गवाही देता है।

    गवाह के साक्ष्य को कोर्ट की भाषा में या गवाह की भाषा में, जैसा भी संभव हो, दर्ज किया जाना चाहिए और फिर रिकॉर्ड का हिस्सा बनाने के लिए कोर्ट की भाषा में इसका अनुवाद किया जाना चाहिए।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गवाह की गवाही को केवल अंग्रेजी भाषा में अनूदित रूप में रिकॉर्ड पर रखने की अनुमति नहीं है, यदि गवाह कोर्ट की भाषा में या अपनी स्थानीय भाषा में गवाही देता है।

    जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की बेंच ने निर्देश दिया कि सभी कोर्ट गवाहों की गवाही दर्ज करते समय दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 277 के प्रावधानों का विधिवत पालन करेंगे।

    बेंच ने एक आपराधिक अपील का निस्तारण करते हुए यह टिप्पणी की, क्योंकि इसने देखा कि कुछ ट्रायल कोर्ट में गवाहों के बयान उनकी भाषा में दर्ज नहीं किए जा रहे हैं और केवल अंग्रेजी भाषा में दर्ज किए जा रहे हैं, जैसा कि पीठासीन अधिकारी द्वारा अनूदित किया जाता है। इस मामले में, ट्रायल कोर्ट ने अंग्रेजी अनुवाद में अभियोजन पक्ष के साक्ष्य को दर्ज किया था, हालांकि उसने अपनी स्थानीय भाषा में गवाही दी थी।

    कोर्ट ने देखा कि सीआरपीसी की धारा 277 के अनुसार:

    (1) यदि गवाह कोर्ट की भाषा में गवाही देता है तो उसे उसी भाषा में दर्ज करना होता है। यदि गवाह किसी अन्य भाषा में गवाही देता है, यदि संभव हो तो उसे उसी भाषा में दर्ज किया जा सकता है, और यदि ऐसा करना संभव नहीं है, तो कोर्ट की भाषा में गवाही का सही अनुवाद तैयार किया जा सकता है।

    (2) यह केवल तब होता है जब गवाह अंग्रेजी में गवाही देता है और इसे उसी प्रकार से दर्ज कर लिया जाता है, और कोर्ट की भाषा में अनुवाद की किसी भी पक्ष को आवश्यकता नहीं होती है, तब कोर्ट ऐसे अनुवाद से छुटकारा पा सकता है।

    (3) यदि गवाह कोर्ट की भाषा से इतर अन्य भाषा में गवाही देता है, तो कोर्ट की भाषा में उसका सही अनुवाद यथाशीघ्र तैयार किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा कि गवाह की गवाही को कोर्ट की भाषा में या गवाह की भाषा में जैसा भी संभव हो दर्ज किया जाना चाहिए और फिर रिकॉर्ड का हिस्सा बनाने के लिए कोर्ट की भाषा में इसका अनुवाद किया जाना चाहिए।

    बेंच ने कहा,

    "इस प्रकार, साक्ष्य के मूल पाठ और नकल तथा कोर्ट में गवाह के आचरण की केवल तभी सर्वोत्तम तरीके से समीक्षा की जा सकती है, जब गवाही को गवाह की भाषा में दर्ज किया जाता है। अन्यथा, जब यह सवाल उठता है कि वास्तव में गवाह ने अपनी गवाही में क्या कहा था, तो ऐसी स्थिति में गवाह के मूल बयान को ध्यान में रखा जाना होता है, न कि पीठासीन जज द्वारा अंग्रेजी में अनूदित ज्ञापन को।’’

    केस का ब्योरा- नईम अहमद बनाम (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) सरकार | 2023 लाइवलॉ (एससी) 66 | सीआरए 257/ 2023 | 30 जनवरी 2023 | जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी

    वरिष्ठ अधिवक्ता सुश्री इंदिरा जयसिंह, (एसी) पारसनाथ सिंह, अधिवक्ता श्री श्रीसत्य मोहंती, अधिवक्ता श्री रविंदर सिंह, अधिवक्ता सुश्री रवीशा गुप्ता, अधिवक्ता सुश्री मंतिका हरियानी, अधिवक्ता श्री संजीव कौशिक, अधिवक्ता श्री श्रेयस अवस्थी, अधिवक्ता श्री देवव्रत सिंह, अधिवक्ता श्री रोहिन भट्ट, अधिवक्ता सुश्री मुस्कान सुराणा, अधिवक्ता सुश्री आस्था शर्मा, याचिकाकर्ताओं के लिए (एओआर) श्री राज किशोर चौधरी, एओआर श्री शकील अहमद। अधिवक्ता श्री अनुपम भाटी, अधिवक्ता श्री रिजवान अहमद, अधिवक्ता श्री अमीर कलीम, अधिवक्ता श्री विक्रमजीत सिंह रंगा, अधिवक्ता श्री नकुल चौधरी, अधिवक्ता श्री वसीम अख्तर खान प्रतिवादियों के लिए अधिवक्ता श्री के.एल. जंजानी, अधिवक्ता श्री केतन पॉल, अधिवक्ता मो. अखिल, अधिवक्ता श्री दीपाबली दत्ता, अधिवक्ता श्री टी.एस. सबरीश, अधिवक्ता श्री गुरमीत सिंह मक्कड़, एओआर

    दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 277 - गवाह की गवाही को कोर्ट की भाषा में या गवाह की भाषा में, जो भी संभव हो, दर्ज किया जाना चाहिए और फिर रिकॉर्ड का हिस्सा बनाने के लिए कोर्ट की भाषा में इसका अनुवाद किया जाना चाहिए। हालांकि, गवाह की गवाही को केवल अंग्रेजी भाषा में अनूदित रूप में रिकॉर्ड पर रखने की अनुमति नहीं है, यदि गवाह कोर्ट की भाषा में या अपनी स्थानीय भाषा में गवाही देता है- साक्ष्य के मूल पाठ और नकल तथा कोर्ट में गवाह के आचरण की केवल तभी सर्वोत्तम तरीके से समीक्षा की जा सकती है, जब गवाही को गवाह की भाषा में दर्ज किया जाता है – जब यह सवाल उठता है कि वास्तव में गवाह ने अपनी गवाही में क्या कहा था, तो ऐसी स्थिति में गवाह के मूल बयान को ध्यान में रखा जाना होता है, न कि पीठासीन जज द्वारा अंग्रेजी में अनूदित ज्ञापन को- सभी कोर्ट गवाहों की गवाही दर्ज करते समय धारा 277 के प्रावधानों का विधिवत पालन करेंगे।

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