सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

10 Nov 2024 12:00 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (04 नवंबर, 2024 से 08 नवंबर, 2024 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    सार्वजनिक-निजी अनुबंधों में एकतरफा मध्यस्थ नियुक्ति खंड अमान्य; पीएसयू के पैनल से मध्यस्थों के चयन को बाध्य नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को निजी ठेकेदारों के साथ विवादों का फैसला करने के लिए एकतरफा मध्यस्थों की नियुक्ति करने की अनुमति देने वाले खंडों के खिलाफ फैसला सुनाया। संविधान पीठ ने कहा कि पीएसयू संभावित मध्यस्थों का एक पैनल बनाए रख सकते हैं, लेकिन वे दूसरे पक्ष को पैनल से अपने मध्यस्थ का चयन करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की संविधान पीठ मध्यस्थता खंड की वैधता पर विचार कर रही थी, जो निर्धारित करता है कि मध्यस्थ की नियुक्ति मध्यस्थों के एक पैनल से होगी, जिसे किसी एक पक्ष द्वारा चुना जाएगा, जो कि अधिकांश मामलों में सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम (पीएसयू) होता है।

    मामले: सेंट्रल ऑर्गनाइजेशन फॉर रेलवे इलेक्ट्रिफिकेशन बनाम मेसर्स ईसीआई एसपीआईसी एसएमओ एमसीएमएल (जेवी) एक संयुक्त उद्यम कंपनी सीए संख्या 009486 - 009487 / 2019

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    सुप्रीम कोर्ट ने AMU का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखा

    अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की पीठ ने (4:3 बहुमत से) एस. अजीज बाशा बनाम भारत संघ के मामले में 1967 के फैसला खारिज किया। उक्त फैसले में कहा गया था कि कानून द्वारा गठित कोई संस्था अल्पसंख्यक संस्था होने का दावा नहीं कर सकती।

    इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखा। अब यह मुद्दा कि AMU अल्पसंख्यक संस्था है या नहीं, बहुमत के इस दृष्टिकोण के आधार पर नियमित पीठ द्वारा तय किया जाना है।

    केस टाइटल: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अपने रजिस्ट्रार फैजान मुस्तफा बनाम नरेश अग्रवाल सी.ए. संख्या 002286/2006 और संबंधित मामले

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    आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल किसी अन्य पक्ष को आर्बिट्रेशन में भाग लेने के लिए बाध्य करने के लिए रेफरल न्यायालय के सीमित अधिकार क्षेत्र का दुरुपयोग करने वाले पक्ष पर जुर्माना लगा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्याय के हित में आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल उस पक्ष पर जुर्माना लगा सकता है, जिसने रेफरल चरण में न्यूनतम न्यायिक हस्तक्षेप का लाभ उठाकर किसी अन्य पक्ष को आर्बिट्रेशन कार्यवाही में भाग लेने के लिए बाध्य करने वाली कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया।

    न्यायालय ने कहा, "न्यायिक हस्तक्षेप के ऐसे सीमित दायरे को उन पक्षों के हितों के साथ संतुलित करने के लिए, जिन्हें आर्बिट्रेशन कार्यवाही में भाग लेने के लिए बाध्य किया जा सकता है, आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल यह निर्देश दे सकता है कि आर्बिट्रेशन की लागत उस पक्ष द्वारा वहन की जाएगी, जिसके बारे में न्यायाधिकरण को अंततः यह पता चलता है कि उसने कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया। आर्बिट्रेशन के दूसरे पक्ष को अनावश्यक रूप से परेशान किया।"

    केस टाइटल: असलम इस्माइल खान देशमुख बनाम एएसएपी फ्लूइड्स प्राइवेट लिमिटेड और अन्य, मध्यस्थता याचिका नंबर 20/2019

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    POCSO के तहत यौन उत्पीड़न मामले को 'समझौते' के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट का फैसला खारिज किया, जिसमें शिक्षक (पीड़िता के स्तन को रगड़ने के आरोपी) के खिलाफ 'यौन उत्पीड़न' की शिकायत खारिज कर दी गई थी। हाईकोर्ट ने पीड़िता के पिता और शिक्षक के बीच 'समझौते' के आधार पर मामला खारिज कर दिया था।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "हम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि हाईकोर्ट इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंचा कि इस मामले में पक्षों के बीच विवाद है, जिसे सुलझाया जाना है। साथ ही सद्भाव बनाए रखने के लिए एफआईआर और उससे जुड़ी सभी आगे की कार्यवाही को खारिज कर दिया जाना चाहिए।"

    केस टाइटल: रामजी लाल बैरवा और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य, आपराधिक अपील नंबर 3403/2023

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    DRI अधिकारी कस्टम एक्ट के तहत कारण बताओ नोटिस जारी कर सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) के अधिकारियों को कस्टम एक्ट, 1962 (Customs Act) के तहत शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार है, जिससे वे कारण बताओ नोटिस जारी कर सकें और शुल्क वसूल सकें। कोर्ट ने माना कि DRI अधिकारी कस्टम एक्ट, 1962 की धारा 28 के तहत कारण बताओ नोटिस जारी करने के लिए "उचित अधिकारी" हैं।

    कोर्ट ने माना, "फैसले में की गई टिप्पणियों के अधीन, राजस्व खुफिया निदेशालय, कस्टम-निवारक आयुक्तालय, केंद्रीय उत्पाद शुल्क खुफिया महानिदेशालय और केंद्रीय उत्पाद शुल्क आयुक्तालय और इसी तरह की स्थिति वाले अन्य अधिकारी कस्टम एक्ट की धारा 28 के प्रयोजनों के लिए "उचित अधिकारी" हैं और कारण बताओ नोटिस जारी करने के लिए सक्षम हैं।"

    केस टाइटल: कस्टम आयुक्त बनाम मेसर्स कैनन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड | आर.पी.(सी) नंबर 000400 - / 2021

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    सुप्रीम कोर्ट ने रिसॉल्यूशन योजना के विफल होने पर जेट एयरवेज के परिसमापन का आदेश दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए जेट एयरवेज के परिसमापन का आदेश दिया, क्योंकि "विचित्र और चिंताजनक" परिस्थिति यह है कि रिसॉल्यूशन योजना (Resolution Plan) को पांच वर्षों से क्रियान्वित नहीं किया गया।

    न्यायालय ने NCLAT के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें नकदी संकट से जूझ रही जेट एयरवेज के स्वामित्व को Resolution Plan के अनुसार पूर्ण भुगतान किए बिना सफल समाधान आवेदक (SRA) को हस्तांतरित करने की अनुमति दी गई थी।

    केस टाइटल: भारतीय स्टेट बैंक और अन्य बनाम मुरारी लाल जालान और फ्लोरियन फ्रिट्स और अन्य का संघ। सी.ए. नंबर 5023-5024/2024 और संबंधित

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    भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद अनुमति न होने पर पात्रता मानदंड नहीं बदले जा सकते: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि पदों के लिए चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद "खेल के नियमों" को तब तक नहीं बदला जा सकता, जब तक कि संबंधित नियम स्पष्ट रूप से इसकी अनुमति न दें।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डॉ. डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने 18 जुलाई, 2023 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

    केस टाइटल: तेज प्रकाश पाठक और अन्य बनाम राजस्थान हाईकोर्ट और अन्य सी.ए. नंबर 2634/2013 और संबंधित मामले

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    S. 56 Electricity Act 2003 | 2 वर्ष की सीमा अवधि 2003 अधिनियम के लागू होने से पहले अर्जित बकाया पर लागू नहीं होती : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि विद्युत अधिनियम, 2003 ("2003 अधिनियम") के लागू होने से पहले अर्जित विद्युत बिल बकाया से उत्पन्न देयता 2003 अधिनियम की धारा 56 के तहत निर्धारित 2 वर्ष की सीमा अवधि द्वारा वर्जित नहीं होगी। न्यायालय ने माना कि एक बार जब देयता न्यायिक रूप से क्रिस्टलीकृत हो जाती है और उसे चुनौती नहीं दी जाती है, तो व्यक्ति एस्टोपल के सिद्धांत से बंधा होता है।

    जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने विद्युत उपभोग से संबंधित एक चुनौती पर सुनवाई की, जिसमें प्रतिवादी संख्या 1 ने अपीलकर्ताओं द्वारा उठाए गए बकाया को चुनौती दी थी, लेकिन मध्य प्रदेश हाईकोर्ट और फिर एक विविध याचिका में उनके खिलाफ इसे रद्द किया गया था। हालांकि, आदेश की अनदेखी करते हुए याचिका वापस ले ली गई और उसी मुद्दे पर मुकदमेबाजी का दूसरा दौर शुरू किया गया जो उनके पक्ष में समाप्त हुआ क्योंकि हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने परिसीमा कानून लागू किया।

    मामला : मध्य प्रदेश मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड और अन्य बनाम बापूना एल्कोब्रू प्राइवेट लिमिटेड और अन्य, सिविल अपील संख्या 1095/2013

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    स्वीकृत मेडिकल पद्धतियों का पालन करने वाले डॉक्टर सर्जरी के बाद होने वाली जटिलताओं के लिए उत्तरदायी नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जो डॉक्टर अपने कर्तव्यों के निर्वहन में मेडिकल पेशे की स्वीकार्य पद्धति का पालन करता है, वह मरीज की सर्जरी के बाद होने वाली जटिलताओं के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।

    जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने कहा, “दूसरे शब्दों में केवल इस कारण से कि मरीज ने सर्जरी या डॉक्टर द्वारा दिए गए उपचार के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया नहीं दी है या सर्जरी विफल हो गई, डॉक्टर को रेस इप्सा लोक्विटर के सिद्धांत को लागू करके सीधे तौर पर मेडिकल लापरवाही के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि यह साक्ष्य द्वारा स्थापित न हो जाए कि डॉक्टर अपने कर्तव्यों के निर्वहन में अपने पास मौजूद उचित कौशल का प्रयोग करने में विफल रहा।”

    केस टाइटल: नीरज सूद और अन्य। बनाम जसविंदर सिंह (नाबालिग) व अन्य, सिविल अपील नंबर 272/2012

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    LMV ड्राइविंग लाइसेंस धारक को 7500 किलोग्राम से कम भार वाले परिवहन वाहन चलाने के लिए अलग से प्राधिकरण की आवश्यकता नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हल्के मोटर वाहन (LMV) के लिए ड्राइविंग लाइसेंस रखने वाला व्यक्ति बिना किसी विशेष अनुमोदन के, 7500 किलोग्राम से कम भार वाले परिवहन वाहन को चला सकता है। यदि वाहन का कुल भार 7500 किलोग्राम से कम है तो LMV लाइसेंस वाला चालक ऐसे परिवहन वाहन को चला सकता है। कोर्ट ने कहा कि उसके समक्ष ऐसा कोई अनुभवजन्य डेटा नहीं लाया गया है, जो यह दर्शाता हो कि परिवहन वाहन चलाने वाले LMV लाइसेंस धारक सड़क दुर्घटनाओं का महत्वपूर्ण कारण हैं।

    केस टाइटल: मेसर्स. बजाज एलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम रम्भा देवी एवं अन्य | सिविल अपील नंबर 841/2018

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    सुप्रीम कोर्ट ने UP Madarsa Education Act की वैधता बरकरार रखी

    सुप्रीम कोर्ट ने 'उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004' (Uttar Pradesh Board of Madarsa Education Act 2004) की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी और इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला खारिज कर दिया, जिसने पहले इसे खारिज कर दिया था।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हाईकोर्ट ने इस आधार पर अधिनियम खारिज करने में गलती की कि यह धर्मनिरपेक्षता के मूल ढांचे के सिद्धांत का उल्लंघन करता है। किसी क़ानून को तभी खारिज किया जा सकता है, जब वह संविधान के भाग III के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो या विधायी क्षमता से संबंधित प्रावधानों का उल्लंघन करता हो।

    केस टाइटल: अंजुम कादरी और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य डायरी नंबर 14432-2024, मैनेजर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया यूपी बनाम भारत संघ एसएलपी (सी) नंबर 7821/2024 और संबंधित मामले।

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    सभी निजी संपत्ति 'समुदाय के भौतिक संसाधन' नहीं, जिन्हें राज्य को अनुच्छेद 39(बी) के अनुसार समान रूप से वितरित करना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने 8:1 के बहुमत से माना कि सभी निजी संपत्तियां 'समुदाय के भौतिक संसाधनों' का हिस्सा नहीं बन सकती , जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के तहत राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के अनुसार समान रूप से पुनर्वितरित करने के लिए राज्य बाध्य है। कोर्ट ने कहा कि कुछ निजी संपत्तियां अनुच्छेद 39(बी) के अंतर्गत आ सकती हैं, बशर्ते वे भौतिक हों और समुदाय की हों।

    9 जजों की पीठ में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस बी.वी. नागरत्ना, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे।

    केस टाइटल: प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन बनाम महाराष्ट्र राज्य (सीए संख्या 1012/2002) और अन्य संबंधित मामले

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